संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

दिल्ली-मुम्बई कॉरीडॉर : संघर्ष यात्रा में खुली ‘शाईनिंग गुजरात‘ की पोल

अपने पांचवे दिन डीएमआईसी के खिलाफ चल रही मुंबई-दिल्ली संघर्ष यात्रा 13 मार्च को गुजरात पहुंची। मुंबई से 8 मार्च को आंरभ होकर यात्रा महाराष्ट्र के कोंकण, खानदेश और मराठवाड़ा क्षेत्रो में गई। आज गुजरात निवेश के लिये ‘विकास का एक बहुत ही आकर्षक क्षेत्र‘ के रुप में मुख्यमंत्री द्वारा प्रचारित किया गया है। कोरपोरेट क्षेत्र के लिये गुजरात में आज लालकालीन बिछाया जा रहा है। सेज, विशेष निवेश क्षेत्र, पैट्रौलियम-कैमिकल-पैट्रौकैमिकल निवेश क्षेत्र बनाये जा रहे है। और इस चमक-दमक में जो महत्वपूर्ण सामाजिक विषय है जैसे कुपोषण, लिंगानुपात, शिक्षा, स्वास्थय आदि को छुपाया जा रहा है। असलियत यह है कि इन सब विषयों पर गुजरात की स्थिति शर्मनाक है। संघर्ष यात्रा ने इस सत्य को सामने लाया है। 
आज संर्घष यात्रा उमरगांव व गुनडिया गांव, धर्मपुरा तहसील, जिला वलसाड; हजारिया-सूरत, सरभान गांव जिला भरुच; इन्द्रावरना गांव, जिला नर्मदा आदि क्षेत्रो के आदिवासी, मछुआरों, किसानों, असंगठित कामगारों को जोड़ती हुई आगे बढ़ी। ये सब समूह इस समय मनमोहन-नरेंन्द्रमोदी-अहलुवालिया-चिदंबरम्-नवीन पटनायक-जयललिता के गठजोड़ से त्रस्त है। उमरगांव में आज भी लोग लै0 प्रताप सावे जी की पुलिस बर्बता से हुई हत्या से उबर नही पाये है। वहीं अब एक इजरायली कंपनी एक भारतीय कंपनी मिलकर बहुत बड़ा नया बंदरगाह बना रही है। पार-तापी-नर्मदा नदी जोड़ परियोजना के कारण धर्मपुर के आदिवासियों की जलसंपदा दिन के उजाले में लुट रही है। ऐसे में डीएमआईसी के कारण आने वाली विभिन्न परियोजनाओं के कारण सूरत और भरुच के गांवो के आदिवासियों की भूमि छीनने का खतरा आ गया है। इन विभिन्न समूहो को साथ लाकर डीएमआईसी के विरोध में चल रही मुंबई-दिल्ली संर्घष यात्रा ने गुजरात प्रगति में औद्योगिक विकास के बारे में फैलाये जा रहे झूठ को उजागर किया।

असली मुद्दे हैंः-

गुजरात में चमकीले निवेश के बावजूद बेराजगारी की समस्या पहले की तरह ही बरकारार है। वास्तव में गुजरात मात्र रोजगार हीन वृद्धि के रास्ते पर है।


यह पूरी तरह काला झूठ है कि लोग इच्छापूर्वक अपनी जमीन-जंगल-पानी जैसी संपदा को छोड़ रहे है। जबरी अधिग्रहण और अन्यायी परियोजनाओं का हर जगह विरोध हो रहा है।

ढांचागत परियोजनाओं चाहे वो रेल्वे लाइने हो, दु्रतगतिमार्ग हो, बंदरगाह हो, अणुउर्जा के प्लांट हो सब जगह विरोध है। लोगो ने सरकारी दावों की पोल देख ली है। और वो अब संघर्ष के रास्ते पर है।

कामगार लोग-आदिवासी, मछुआरों, किसानों, असंगठित कामगार आदि को इस तथाकथित विकास की बड़ी किमत चुकानी पड़ रही है और उन्हे शहरी स्लम के नरक में फेका जा रहा है।

‘गुजरात विकास का माडॅल है‘ यह झूठ अब उधड़ना शुरु हो गया है।

डीएमआईसी के खिलाफ चल रही मुंबई-दिल्ली संघर्ष यात्रा को यही संदेश गुजरात के परियोजना प्रभावितों से मिला है। अब 14 मार्च को यात्रा खेडा और अहमदाबाद की ओर गुजरात में अपने अंतिम पड़ाव पर जायेगी। जिसके बाद मुंबई-दिल्ली संघर्ष यात्रा मध्यप्रदेश में इंदौर में प्रवेश करेगी

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