संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

पूर्वी सिंहभूम, झारखण्ड से पोटका आंदोलनः एक इतिहास

भाग- 1
झारखण्ड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने सत्ता पर बैठते ही विकास के नाम पर यहां के प्राकृतिक संसाधनों का भरपूर दोहन करने की पूरी योजना बना ली थी। उन्होंने इसकी शुरूआत 2001 में औद्योगिक नीति से की जिसके तहत  हजारीबाग जिले के बरही से पूर्वी सिंहभूम जिले के बहरागोड़ा तक मुख्य सड़क के दोनों ओर 5-5 किलो मीटर तक विशेष अर्थिक क्षेत्र बना कर पूंजीपतियों को बैठाने की योजना थी। इसी कड़ी में उन्होंने ग्रेटर रांची एवं विकास का सब्जबाग दिखाते हुए आदिवासियों के सुरक्षा कवच कहलाने वाले छोटानागपुर एवं संतान परगना काश्तकारी कानूनों में भी संशोधन करने की वकालत की।

जब 2003 में अर्जुन मुण्डा झारखण्ड की राजगद्दी पर बैठे तो उन्होंने भी बाबूलाल मरांडी के पदचिन्ह पर ही चलना प्रारंभ किया। लेकिन उनका असली चेहरा 2005 में तब जनता के सामने आया जब उन्हें दूसरी बार झारखण्ड की  सत्ता मिली। अपनी दूसरी पारी में अर्जुन मुण्डा एम0ओ0यू0 के बादशाह बने। उन्होंने आधुनिक भारत के निर्माता कहे जाने वाले पं0 जवाहारलाल नेहरू से भी ज्यादा एम0ओ0यू0 पर हस्ताक्षर किये। उन्होंने 2006 में मित्तल कंमनी के साथ हुए एम0ओ0यू0 को सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि बताया।
अपने कार्यकाल में अर्जुन मुण्डा ने उद्योगपतियों को झारखण्ड में खुला छोड़ दिया। इसी दौरान 2005 में नई दिल्ली स्थित भूषण स्टील एवं पॉवर लिमिटेड ने सरकार के साथ बिना कोई समझौता किये हुए ही गाँवों को चिन्हित करना प्रारंभ कर दिया। कंपनी ने स्टील एवं पॉवर प्लांट के लिए पूर्वी सिंहभूम जिले स्थित पोटका प्रखण्ड के 14 गाँवों को चिन्हित किया। जब ग्रामीणों को इसकी भनक लगी तो उन्होंने कुछ संघर्षशील आंदोलनकारियों के नेतृत्व में गाँवों में बैठक की, जिसमें एकसूत्री बात उभर कर आयी कि भूषण कंपनी को एक इंच भी जमीन नहीे देना है। इसी क्रम में आंदोलन को गति प्रदान करने हेतु ग्रामीणों ने खुटकट्टी रैयत भूमि सुरक्षा समिति नामक संगठन का गठन किया। इसके बाद उन्होंने 5 सिंतबर 2005 को पोटका के बी0डी0ओ0 एवं सी0ओ0 को एक ज्ञापन सौंपा लेकिन इन पदाधिकारियों ने इस मामले पर चुप्पी साधते हुए अपनी अनभिज्ञता जाहिर की।
पोटका में जमीन चिन्हित में करने के बाद भूषण स्टील एवं पॉवर लिमिटेड ने 7 सितंबर 2006 को अर्जुन मुण्डा के नेतृत्व वाली झारखण्ड सरकार के साथ 10,500 करोड़ रूपये की लागत से 3 मेट्रिकस् टन क्षमता वाली स्टील प्लांट एवं 900 मेगावाट क्षमता का एक पावर प्लांट जो एकीकृत होगा पूर्वी सिंहभूम जिले के पोटका प्रखण्ड में लगाने के लिए एम0ओ0यू0 (समझौता) पर हस्ताक्षर किया। 2 अक्टूबर 2006 को कंपनी ने पोटका प्रखण्ड के ‘‘पिछली’’गाँव में परियोजना का शिलान्यास करने की योजना बनायी। जब गाँव वालों को इसकी खबर लगी तो लगभग 5 हजार की संख्या में ग्रामीणों ने परियोजना स्थल जाने वाली सड़क में बैरिकेट लगा दिया। जब कंपनी के पदाधिकारियों को इसकी खबर मिली तो वे लोग शिलान्यास स्थल में पहुँचने के बजाये आंदोलनकारियों के डर से दूसरे रास्ते से होकर जमशेदपुर भाग निकले। भूमि अधिग्रहण हेतु किये गये सभी प्रयासों की योजना भूषण कंपनी एवं सरकारी पदाधिकारियों ने गुप्त रूप से तैयार की थी। इसमें ग्रामीणों को पूरी तरह से अलग रखा गया था जबकि पोटका अनुसूचित क्षेत्र में आता है जहाँ ग्रामसभा सर्वोपरि है इसलिए भूमि अधिग्रहण हेतु ग्रामसभा की पूर्वानुमति अतिआवश्यक है। लेकिन कंपनी ने ग्रामीणों को अंधेेरे में रखते हुए पोटका प्रखण्ड के सी0ओ0 से गैरमजूरवा जमीन कंपनी को देने के लिए राजी करवा लिया। 22 सितंबर 2007 को कंपनी के सर्वेयर पिछली गाँव में जमीन का सर्वे करने के लिए पहुँचे। जब ग्रामीणों को इसकी सूचना मिली तो उन्होंने सभी 11 सर्वेयरों को पकड़कर ग्रामसभा में लाये। उसके बाद इस क्षेत्र में नहीं आने की हिदायत एवं लिखित लेने के बाद ग्रामीणों ने उन्हें छोड़ दिया। लेकिन कंपनी ने अपना काम बेशर्मी से जारी रखा। कपंनी ने फिर से अपने 3 सर्वेयरों को जमीन का सर्वे करने के लिए खड़िया साई गाँव भेजा। जब महिलाओें ने सर्वेयरों को देखा तो उन्होेंने तीनों सर्वेयरों को पकड़ने के बाद कालिख पोतकर पूरे गाँव में घुमाया। इसके बाद तीनों सर्वेयरों को पोटका थाने को सौंप दिया। इस क्षेत्र में लोगों के भारी विरोध को देखते हुए कंपनी ने पोटका के ही कलिकापुर क्षेत्र को चिन्हित किया। इसी बीच कलिकापुर के आदिवासी एवं स्थानीय लोगों ने मिलाकर भूमि सुरक्षा समिति नामक संगठन का गठन किया। भूषण कंपनी ने लोगों को प्रलोभन देना शुरू किया। 10 जुलाई 2008 को भूषण कंपनी के खिलाफ कलिकापुर में एक बड़ी सभा हुई। दूसरी ओर कंपनी के पक्ष में खड़े लोगों की भी एक सभा भी उसी स्थान पर हुई। सभा के समय दोनों गुटों के बीच झड़प हुई लेकिन अंततः कंपनी के विरोध में खड़े लोग ही जीते। कंपनी समर्थकों को सभा की अनुमति नहीं थी इसलिए उन्हें उस जगह से हटना पड़ा। भारी विरोध के बावजूद भूषण कंपनी का काम जारी रहा। कलिकापुर में कैम्प कार्यालय खोलकर खतियान एवं अन्य दस्तावेजों का सर्वे शुरू हुआ। कंपनी ने कुछ लोगों को पैसा भी दिया। कंपनी के स्थानीय अधिकारियों ने परियोजना की प्रगति का जायजा लेने के लिए 8 अगस्त 2008 को कंपनी के सी0एम0डी0 संजय सिंघल को कलिकापुर बुलाया। वे पूरी तैयारी के साथ पोटका आये। उनकी गाड़ी पोटका थाना के पास लगी हुई थी तथा पोटका पुलिस उनका स्कॉटिंग करते हुए कलिकापुर लाने की तैयारी कर रही थी।
इसकी भनक लगते ही आंदोलनकारियों ने दिन के 11 बजे कलिकापुर के पास सड़क को जाम कर दिया। आंदोलनकारियों ने पुलिस की गाड़ी को भी रोक दिया। इस पर पुलिस वालों ने आंदोलनकारियों से कहा की भूषण कंपनी के सी0एम0डी0 नहीं आयेंगे। बावजूद इसके आंदोलनकारी दिन के 3 बजे तक सड़क पर डटे रहे। जब सभी वापस चले गये तब सी0एम0डी0 के कलिकापुर आगमन की तैयारी हुई। इसी बीच भूमि सुरक्षा समिति के संयोजक तापस भकत को इसकी जानकारी मिली तब उन्होंने आंदोलनकारी लोग कलिकापुर में तुरंत जमा होने के लिए सूचना दी। आंदोलनकारी लोग पुनः सड़क पर आ गये। वे खटिया लगाकर सड़क पर ही बैठ गये।
शाम के लगभग 6 बजे भूषण  कंपनी के सी0एम0डी0 संजय सिंघल कलिकापुर गाँव पहुँचे जहाँ जमीन बेचने वालों ने उनका भरपूर स्वागत किया लेकिन लौटते समय वे ग्रामीणों से घिर गये। दोनों पक्षों के बीच झड़प भी हुई जिसमें  सी0एम0डी0 के गाड़ी का शीशा टूट गया। अंत में यह सहमति बनी कि गाँव के दलालों द्वारा आयोजित कार्यक्रम गलत था एवं भविष्य में इस तरह की गलती नहीं करने का आश्वासन देने के बाद मामला को रफादफा किया गया।
9 अगस्त 2008 को आंदोलनकारियों को पता चला कि कंपनी ने संगठन के 6 लोगों पर पोटका थाना में मुकदमा दर्ज करवाया। ग्रामीणों ने यह महसूस किया कि यह सारा खेल जमीन हड़पने के लिए किया जा रहा है इसलिए इससे डरने की जरूरत नहीं है। कंपनी के सी0एम0डी0 ने महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार किया था इसलिए महिलाओं ने भी उनके खिलाफ मुकदमा करने का असफल प्रयास किया लेकिन थाना एवं सी0जी0एम0 कोर्ट में उनका केस स्वीकार नहीं किया गया। इसी बीच जूड़ी, रोलाडीह, बोनकाटी, सरमंदा एवं समरसाई में भी भूषण कंपनी के खिलाफ ग्रामीण लोग गोलबन्द होकर गाँवों में संघर्ष समितियों का गठन कर कंपनी को किसी भी कीमत पर जमीन नहीं देने का एलान कर दिया। इसके बाद 11 सितंबर 2008 को गुर्ररा नदी के पास गुप्त रूप से जमीन का सर्वे करने गये भूषण कंपनी के 3 सर्वेयर युसूफ अहमद, शीतल कुमार एवं सहदेव सिंह को रोलाडीह गाँव की महिलाओं ने पकड़ लिया। फिर गाँव में ग्रामसभा का बैठक बुलाया गया उसके बाद तीनों सर्वेयर को महिलाओं ने गोबर पोता, पुआल खिलाया एवं जूते की माला पहनाया। इसी बीच गाँव में पुलिस आयी तथा इन तीनों को पुलिस गाड़ी में बैठाकर थाना ले जाने का प्रयास किया जिसका महिलाओं ने जमकर विरोध किया।
महिलाओं ने कहा कि इन्हें बार-बार मना करने के बावजूद ये लोग हमारी जमीन का सर्वे करने आते हैं इसलिए इन्हें सजा मिलनी चाहिए। ग्रामीणों ने एक रैली निकाली तथा रोलाडीह गाँव से 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पोटका थाना तक इन्हें पैदल ले जाकर थाने को सुपुर्द कर दिया। इसमें काजोल नामता नामक व्यक्ति भगने में सफल हो गया, जो 12 अगस्त 2008 को 4 ग्रामीणों के उपर पोटका थाना में मुकदमा दर्ज कर दिया। 3 सर्वेयरों को थाना पहुँचाने का अंजाम यह हुआ कि इन्होंने उल्टे 18 ग्रामीणों के नाम पर पोटका थाना में मामला दर्ज करा दिया। ग्रामीणों का विरोध जारी रहा। इसी बीच आंदोलनकारियों ने पोटका के थाना प्रभारी एवं प्रखण्ड विेकास पदाधिकारी से मिलकर कहा कि अगर उनके खिलाफ झूठा मुकदमा बन्द नहीं किया गया तो विधि-व्यवस्था की समस्या आ जायेगी।
15 सितंबर 2008 को फेडरेशन ऑफ झारखण्ड चेम्बर ऑफ कॉमर्स एवं इंडस्ट्रीज ने रांची में भूषण कंपनी के पक्ष में ‘‘झारखण्ड बचाओ’’ रैली का आयोजन किया। इस रैली में भूषण कंपनी के सर्वेयरों पर ग्रामीणों द्वारा किये गये हमले की निन्दा की गई, विस्थापन विरोधी आंदोलनों के कार्यकर्ताओं पर मुकदमा करने एवं उद्योगपतियों को सुरक्षा प्रदान करने की मांग की गई। उद्योगपतियों के दबाव में आकर प्रशासन नें आंदोलनकारियों के खिलाफ पोटका थाना में मुकदमा दर्ज करवा दिया।
आंदोलनकारियों के खिलाफ कई झुठा मुकदमा दर्ज करने के खिलाफ 22 अगस्त 2008 को पोटका में ‘‘जनाक्रोश रैली’’ का आयोजन किया गया, जिसमें लगभग 2 हजार लोग शामिल हुए। इस रैली में पुनः घोषणा किया गया कि भूषण कंपनी को पोटका में एक इंच भी जमीन नहीं दिया जायेगा तथा कंपनी के प्रतिनिधियों द्वारा आंदोलनकारियों के उपर झूठा मुकदमा दर्ज करवाने के खिलाफ कार्रवाई की जायेगी। परिणामस्वरूप पोटका थाना की पुलिस नरम पड़ गई एवं किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई। पोटका पुलिस ने आंदोलनकारियों को अदालत से जमानत लेने को भी कहा। मामले का पेचिंदगी को देखते हुए भूषण कंपनी ने एक नई चाल चली। कुछ स्थानीय लोगों को पकड़कर हाता में कैम्प कार्यालय खोला। इसके बाद ग्रामीण विकास समिति का गठन कर एक ज्ञापन पोटका बी0डी0ओ0 को दिया गया। इस कार्यक्रम के लिए लोगों को बाहर से लाया गया, जिसके लिए कंपनी ने लगभग 5 लाख रूपये खर्च किया लेकिन कुछ फायदा नहींे हुआ। कंपनी वालों ने बिरसा मुण्डा के प्रतिमा पर माला चढ़ाया जिसकी वजह से जनाक्रोश और बढ़ गया।
25 सितंबर 2008 को हाता मेें आमसभा हुई पारंपरिक हथियार के साथ कई संगठन एक सभा में शामिल होकर भूषण कंपनी के खिलाफ आवाज बुलंद किये। 26 सितंबर 2008 को घाटीडुबा में एक बड़ी रैली एवं आमसभा का आयोजन किया गया, जिसमें हजारों लोग शामिल हुए, जिसमें पुनः भूषण एवं जिंदल कंपनी को एक इंच भी जमीन नहीं देने एवं इन कंपनियों को पोटका से भगाने का संकल्प लिया गया। इसके बाद 11 नवंबर 2008 को जमशेदपुर में भूषण एवं जिंदल कंपनी के खिलाफ एक बड़ी रैली का आयोजन कर उपायुक्त को ज्ञापन सौंपा गया, जिसमें यह कहा गया कि भूषण एवं जिंदल कंपनी को गाँव के लोग जमीन नहीं देना चाहते हैं इसलिए प्रशासन जोर-जबर्दस्ती से भूमि अधिग्रहण का काम न करे। इस रैली में हजारों की संख्या में शामिल ग्रामीणों ने कंपनी को जमीन नहीं देने का संकल्प लिया।
ग्रामीणों के भारी विरोध को देखते हुए भूषण कंपनी ने वर्ष 2009 में अपने गतिविधियों पर लगाम लगा रखा था लेकिन झारखण्ड में जैसे ही भाजपा समर्थित शिबू सोरेन की सरकार बनी, कंपनी ने अपने गतिविधियों को तेज कर दिया। कंपनी के दबाव में आकर पोटका पुलिस ने 23 फरवरी 2010 को विस्थापन विरोधी एकता मंच के  संयोजक कुमार चन्द्र मार्डी को भूषण कंपनी के सीएमडी संजय सिंघल पर हमला करने के आरोप में पोटका से गिरफ्तार कर जल्दबाजी में जमशेदपुर जेल भेज दिया। 10 मार्च 2010 को आंदोलन के नेतृत्वकर्ता कुमार चन्द्र मार्डी की गिराफ्तारी के खिलाफ पोटका में एक दिवसीय धरना का आयोजन किया गया, जिसमें सैकड़ों लोग शामिल हुए। इस धरना में मांग किया गया की कुमार चन्द्र मार्डी को जल्द से जल्द रिहा किया जाये। 31 मार्च 2010 को कंपनियों का पोटका में स्थापना के खिलाफ ग्रामीणों ने विस्थापन विरोधी एकता मंच के बैनर तले जमशेदपुर में रैली निकाली एवं उपायुक्त कार्यालय के समक्ष प्रदर्शन किया। उन्होंने डीसी को एक ज्ञापन भी सौंपा, जिसमें कहा गया कि कंपनियों द्वारा किये जा रहे भूमि का खरीद-बिक्री बन्द किया जाये एवं जल, जंगल और जमीन पर लोगों का हक नहीं छिना जाये।
13 अप्रैल 2010 को जनसंगठनों ने विस्थापन बन्द करने, जल, जमीन, खनिज एवं प्राकृतिक संसाधनों पर ग्रामीणों का संवैधानिक अधिकार सुनिश्चित करने हेतु आयुक्त कार्यालय के समक्ष धरना दिया। 18 अप्रैल 2010 को जानेमाने लेखिका एवं समाज सेवी महाश्वेता देवी पोटका प्रखण्ड के रोलाडीह एवं कलिकापुर गाँवों में आयोजित जनसभाओ को संबोधित करते हुए ग्रामीणों को बहुराष्ट्रीय कंपनीयों के खिलाफ चल रहे आंदोलन में साथ देने की घोषणा की। इतने विरोध के बावजूद जब भूषण कंपनी ने कुछ रैयतों से जमीन खरीदकर भूमि पूजन का आयोजन किया तो आंदोलनकारियों ने इसके खिलाफ 15 मई को पोटका में अनिश्चितकालीन जनता कर्फ्यू लगाकर भूमि पूजन पर प्रतिबंध कर दिया। लेकिन कंपनी गुप्त रूप से भूमि पूजन करने के बाद पुनः 2 जून 2010 को जमीन का सर्वे करने हेतु 2 सर्वेयरों को गुर्ररा नदी के पास भेजा। ग्रामीणों ने दोनों सर्वेयरों को पकड़ कर रोलाडीह ग्रामसभा लाया गया जहाँ लगभग 1 हजार   आंदोलनकारियों ने बैठक करने के बाद इन्हें पोटका थाना को सुपुर्द कर दिया। – कुमारचन्द मार्डी
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