संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

छत्तीसगढ़ सरकार का कारनामा : शहीद वीर नारायण सिंह की कर्म भूमि वेदांता कंपनी को बेची

छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार ने राज्य के प्रथम शहीद वीर नारायण सिंह की कर्म भूमि को सोना खनन के लिए वेदांता कंपनी को बेच दिया है. खनन के विरोध में हजारों आदिवासी 19 दिसम्बर को दलित आदिवासी मंच के बैनर तले बलौदाबाजार जिला मुख्यालय पहुंचे। सभा के बाद एक रैली की सूरत में कलेक्टर के दफ्तर पहुंचकर राष्ट्रपति को एक ज्ञापन दिया गया। हम यहां आपके साथ यह विस्तृत रिपोर्ट साझा कर रहे हैं;

शहीद वीर नारायण सिंह की विरासत को बचाने के लिया गया संकल्प

सामुदायिक वनधिकार दावों को मान्यता देने के लिए सरकार पर बनाया गया दबाव

बलौदाबाज़ार/ 19 दिसंबर 2017. दशहरा मैदान में दलित आदिवासी मंच के बैनर तले करीब 3 हज़ार आदिवासी महिला पुरुषों ने सरकार के खिलाफ चेतावनी सम्मलेन का आयोजन किया. बलौदाबाजार जिले के बारनवापारा व सोनाखान क्षेत्रों से आये इन आदिवासियों ने शहीद वीर नारायण सिंह की पुण्यतिथि के अवसर पर उन्हें श्रृद्धांजलि देते हुए उनकी विरासत को बचाने के संकल्प को दुहराया. आदिवासी राजा शहीद वीर नारायण सिंह को आज़ाद भारत की सरकारों ने भुला दिया था. इन्हें इतिहास में पुनर्स्थापित करने का काम शहीद कॉमरेड शंकर गुहा नियोगी ने किया था. 1972 में पहली बार शहीद वीर नारायण सिंह को लोक- स्मृतियों से उठाकर छत्तीसगढ़ की विरासत के रूप में स्थापित किया गया जिसने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला था और अपने नैसर्गिक संसाधनों व आदिवासी समुदायों को उनकी गुलामी से बचाने के लिए संघर्ष किया था. बाद में अंग्रेजों ने इसे राजद्रोह करार देते हुए वीर नारायण सिंह को फांसी की सज़ा सुनाई थी.

आज फिर वैसी ही और उससे बदतर परिस्थितियाँ नैसर्गिक रूप से धनी व संसाधनों से भरपूर अंचल के सामने हैं. वन्य जीव प्राणियों को बचाने के नाम पर बारनवापारा अभ्यारण्य घोषित करने के साथ ही सदियों से इस जंगल में रह रहे आदिवासियों को जबरन बेदखल करने के प्रयास किये जा रहे हैं. अब तक तीन गाँवों को बेदखल किया जा चुका है जिससे पूरे इलाके में डर और आक्रोश का माहौल है. अभी 22 गाँवों को बेदखल किया जाना है. गौरतलब है कि अभी भी यहाँ वन अधिकार मान्यता कानून के दावों को नज़रंदाज़ किया गया है. बारनवापारा अभ्यारण्य में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पांच सितारा रिजोर्ट्स बनाए गए हैं और करीब साल भर पहले यह भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के आयोजन स्थल बनने के कारण चर्चा में रहा. इस अभयारण्य में बसे गाँवों के लोगों का कहना है कि रायपुर से तमाम नौकरशाह व राजनेता यहाँ अपनी एशगाह बनाना चाहते हैं और छुट्टियों के दिनों में यहाँ के हरेली रिजोर्ट में खुलेआम डीजे बजाये जाते हैं और तमाम तरह के कारनामे होते हैं. रायपुर से इस क्षेत्र की कम दूरी होने के कारण यहाँ कभी भी वन्य जीवों की रक्षा करना संभव नहीं होगा.

इसी क्षेत्र से लगे सोनाखान इलाके में अब सदियों से जंगल व जंगली जानवरों के साथ रहने के अभ्यस्त आदिवासियों पर बड़ा ख़तरा वेदांता कम्पनी को मिली सोना खनन की अनुमति से पैदा हुआ है. ऐसे समुदाय जो कभी हिंसक वन्य जीवों से नहीं डरे, बारिश के मौसम में प्राय: जंगलों में विचरण करने वाले ज़हरीले सांप, बिच्छुओं से नहीं डरे आज वह इस व्यवस्था से डर रहे हैं. इस इलाके के आदिवासी तो उस साम्राज्य से नहीं डरे जिसका राज दुनिया के इतने देशों में था की उनके साम्राज्य में कभी सूरज अस्त नहीं होता था. “तब उस साम्राज्य से उन्हें बचाने के लिए उनके बीच उनका राजा वीर नारायण सिंह था. जो उन्हें निडर बनाता था. अपने जंगल और अपनी खेती पर कोई कर नहीं देने की घोषणा करके वीर नारायण सिंह ने अंग्रेजों से सीधा लोहा लिया और जब पूरे क्षेत्र में अकाल पड़ा तब अंग्रेज हितैषी और उनके संरक्षण में पल रहे व्यापारियों के अनाज के गोदाम लूट कर सोनाखान के लोगों में बाँट दिए. वो एक बार गिरफ्तार किये गए, ठीक आज की तरह उनपर राजद्रोह का मुकद्दमा चला, उन्हें रायपुर जेल में बंद किया गया. यह 1857 का वह समय था जब देश में अंग्रेजों के खिलाफ पहला विद्रोह भड़क चुका था. उस समय वो रायपुर जेल से भाग निकलने में सफल हो गए और एक सेना का गठन किया जो बाद में सीधे अंग्रेजों से टकराई अनतत: उन्हें पुन: पकड़ लिया गया जिसमें सबसे बड़ी भूमिका उनके ही कुटुंब के एक व्यक्ति की रही और 10 दिसंबर 1857 को उन्हें फांसी दी गयी. रायपुर शहर में मौजूद आज का जयस्तंभ चौक उस समय वीर नारायण सिंह की शहादत स्थल बनी.” शहीद वीर नारायण सिंह एक आदिवासी राजा थे. यह शब्द सम्मलेन में आये किसी भी ग्रामीण आदिवासी से जुबानी सुने जा सकते हैं. उनकी शहादत दिवस के अवसर पर आयोजित इस सम्मलेन में लोगों ने उनकी दिखाई राह यानी नाफ़रमानी और अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करने का संकल्प लिया और सोनाखान की इस ऐतिहासिक विरासत को बचाए –बनाए रखने का संकल्प लिया.

19 दिसंबर को दलित आदिवासी मंच के तत्वाधान में इन दोनों क्षेत्रों से आये हज़ारों आदिवासी महिला-पुरुषों ने शहीद वीर नारायण सिंह की शहादत को याद करते हुए, बारनवापारा अभ्यारण्य से जबरन बेदखली पर रोक व सोना खान में वेदांता कम्पनी के साथ सोना खनन के लिए हुए करार को रद्द करने के लिए अपनी आवाज़ को बुलंद किया.

उल्लेखनीय है कि हाल ही में दलित आदिवासी मंच के प्रयासों से 49 गाँवों को वनाधिकार मान्यता कानून के तहत सामुदायिक वन अधिकार दिए गए लेकिन यहाँ भी नौकरशाही ने अपनी जात दिखाते हुए इन अधिकारों को संबंधित गाँव की ग्राम सभा के बजाय वन प्रबंधन समितियों के नाम से दे दिया. जिसका भी पुरजोर विरोध इस मंच से गाँव वासियों ने किया और ग्राम सभा के नाम से पत्रक देने की मांग की. यह चेतावनी भी दी कि अगर यह पत्रक उन्हें जबरन दिए जाते हैं तो इन्हें सामूहिक रूप से कलेक्टर के दफ्तर के सामने जलाया जाएगा. इसी तर्ज पर छत्तीसगढ़ के दूसरे क्षेत्रों में भी सामुदायिक वन अधिकार दिए जा रहे हैं. ऐसे में जबकि वन प्रबंधन समितियों की कोई वैधानिक स्थिति नहीं है और विशेष रूप से वन अधिकार मान्यता कानून लागू हो जाने के बाद गाँव के जंगल संसाधनों पर ग्राम सभा का स्वामित्व स्वमेव स्थापित होना चाहिए, वन विभाग व कलेक्टर जान बूझकर वन प्रबंधन समितियों को प्रोत्साहित करके कानून की मूल भावना के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं बल्कि उनका मनोबल गिराने की भी कोशिश कर रहे हैं.

सभा के बाद एक रैली की सूरत में कलेक्टर के दफ्तर पहुंचकर राष्ट्रपति को एक ज्ञापन दिया गया जिसमें इन दो प्रमुख मांगों के साथ साथ इस अंचल से जुड़ी तमाम अन्य समस्याओं की तरफ भी ध्यान खींचा गया.

  1. अनुसूचित जनजाति व अन्य पारंपरिक वन निवासी (वनाधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 के तहत क्षेत्र में दावेदार परिवारों को दावा नहीं करने दिया गया, या अधूरे दावे भरवाए गए, कुछ ही दावेदारों को वनभूमि पर मान्यता-पत्र दिए गए, मान्यता-पत्र बगैर नक़्शे और मापन के दिए गए, ज्यादातर नाप में कम भूमि दी गयी. ख़ारिज किये दावों के लिए कोई कारण लिखित में नहीं दिया गया. सभी कार्रवाई ग्रामसभा की वास्तविक जानकारी के बगैर किया गया. ग्राम वनाधिकार समिति, ग्राम सभा की सहमति से नहीं बनायीं गयी,या ग्रामसभा को उसकी जानकारी नहीं थी. उक्त मुद्दों से लोगों के वनाधिकार का स्पष्ट उल्लंघन हुआ है.
  2. वनाधिकार कानून की धारा 3(1) का अक्षरशः पालन का आदेश कर, लापरवाही और उल्लंघन करने वाले पर कार्रवाई की जाय.
    आदिवासी समुदाय सदियों से वनों पर अपनी आजीविका, पहचान और सम्मान के लिए निर्भर है. वनाधिकार कानून इस तथ्य को मान्य करता है, पर प्रदेश में सामुदायिक वनाधिकार के नाम पर कुछ नहीं दिया जा रहा है. अतः, उक्त कानून की धारा 3(1) में वर्णित सामुदायिक अधिकारों को उन सभी ग्रामसभाओं को सौंप दिया जाय, जिन्होंने इसके लिए दावा किया है. सामुदायिक अधिकार में अपने क्षेत्र के वन संसाधनों के प्रबंधन का अधिकार, वनोपज पर मालिकी, निस्तार, चराई व जलक्षेत्र पर सामुदायिक अधिकार शामिल है.
  3. वन-विभाग द्वारा वन प्रशासन के नाम पर लोगों की जमीन पर पौधरोपण, तारबंदी, जब्ती, झूठे वन अपराध प्रकरण, वनग्रामों का अन्यायपूर्ण परिवर्तन, अभ्यारण्य के बफर क्षेत्र के नाम पर विस्थापन का भय आदि की एकतरफा कार्यवाही को तुरंत रोका जाय, जब तक कि सभी वनाधिकार न्यायपूर्ण तरीके से स्थापित न हो जाय.
  4. वनाधिकार कानून के तहत लघु वनोपज पर मालिकी का अधिकार है, पर क्षेत्र के बसोड और अन्य समुदाय को बांस पर अधिकार दिए जाये और उन्हें प्रताड़ित करने वाले वन-विभाग के कर्मचारियों पर कार्रवाई की जाय.
    ग्रामसभाओं को अपने वनक्षेत्र के प्रबंधन के लिए प्रशिक्षण और राशि मुहैया कराने हेतु उचित निर्देश जारी किये जाए, और संयुक्त
  5. वन प्रबंधन समितियों को भंग कर ग्रामसभाओं को प्रबंधन के अधिकार सौंपे जाय.
  6. क्षेत्र में लोगों की कृषिभूमि, वन भूमि व सामुदायिक संसाधनों को बगैर ग्रामसभा की सहमति के अधिग्रिहित न किया जाये.
  7. मनरेगा के तहत लगभग सभी गाँव में लंबित मजदूरी वृद्ध, विधवा, विकलांगों के पेंशन, इंदिरा आवास सहित अन्य योजना की राशि यथाशीघ्र लोगों को प्रदान की जाय. जानबूझ कर राशि रोकने वाले या विलम्ब करने वाले कर्मचारियों पर कार्यवाही की जाय.
    बाघमाड़ा व अचानकपुर गाँव को नीलाम कर सोना खनन के लि वेदांता कम्पनी को राज्य सरकार द्वारा दिया गया है उसे तत्काल रद्द किया जाय|
  8. कसडोल ब्लॉक के सोनाखान क्षेत्र के दो वर्षो से 22 गाँव का वन अधिकार कानून 2005 व संशोधित नियम 2012-2013 के तहत सामुदायिक वन अधिकार दावा भरा कर SDM कार्यालय जमा किया गया है वन अधिकार कानून 2005 का सही क्रियान्वयन करके गाँव वालो को सामुदायिक अधिकार दिया जाए|
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