संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

हिमाचल प्रदेश: लूट का रण क्षेत्र

हिमाचल प्रदेश में पिछली दोनों पार्टीयों की सरकारों ने बारी-बारी से प्रदेश को लूट का रण क्षेत्र बना डाला है। खेती की भूमि, वनों व सांझा संम्पदा को बिजली परियोजनाओं, सिमेंट उद्योंगों, खनन, व दूसरी औद्यौगिक तथा व्यावसायिक ईकाइयों को औने-पौने दामों में बेच डाला गया है। बांधों व बिजली परियोजनाओं के निर्माण, सीमेंट उद्योग, खनन, वन उत्पादों की व्यवसायिक मांग, सड़क, शहरीकरण, मैगा पर्यटन का विस्तार, ट्रांसमिशन लाइनों के बिछे जाल ने यहां के वनों को तवाह किया है। पेश हिमालय नीति अभियान के संयोजक गुमान सिंह कि रिपोर्ट;

हिमाचल प्रदेश में भूमि सुधार कानून की धारा -118 व वन कानूनों की धज्जियां उड़ाई गई। इस में नेताओं,  सरकारी अधिकारियों, पंूजिपतियों व दलालों की मिली भगत रही है और भूमि के इन सौदौ में इन लोगों ने खूब पैसा कमाया। प्रदेश में सांझा संम्पदा व जमीने बेचने का यह एक बहूत बड़ा घोटाला हुआ है जिस की सीबीआई जांच होनी चाहिए। प्रदेश में औद्योगिक पैकेज के नाम पर हजारों करोड़ का घोटाला हुआ है। बिजली परियोजनाओं, सीमेंट व अन्य उद्योगों को मंजूरी देने में बड़े पैमाने पर कानूनी गड़बडियां हुई है। आज उद्योगों की मंजूरी की सिंगल विन्डो कलेयरेंस नीति नेत्रित्व के उपरी स्तर पर धन उगाही का सुरक्षित व आसान तरीका बन कर रह गया है। सरकारी खरीद में हुई गड़वडियों, पंड़ित दीनदयाल किसान व बागवान समृधि योजना, जलागम विकास परियोजना तथा कार्बन क्रगैडिट के धन पर भी घोटाला होने की आशंका है। इस लिए हिमालय नीति अभियान पिछली दोनों सरकारों के दौरान हुए सभी घोटालों की सी बी आई जांच की मांग कर रही है।


पिछले दस सालों में हर नदी नालों को जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण के लिए बेचा जाना शुरू हुआ। हिमाचल में इन बांधों व बिजली परियोजनाओं के निर्माण, सीमेंट उद्योग, खनन, वन उत्पादों की व्यवसायिक मांग, सड़क व वड़ा निर्माण, शहरीकरण, मैगा पर्यटन के विस्तार, ट्रांसमिशन लाइनों के बिछे जाल ने यहां के वनों को तवाह किया है। पर्यावरण संतुलन तो प्रभावित हुआ ही है साथ में विस्थापन व स्थानीय लोगों की परम्परागत आजीविका का ह्रास होने लगा है। हिमालय क्षेत्र में देशी-विदेशी कम्पनियां बिजली उत्पादन, उद्योग और पर्यटन के क्षेत्रों में भी पैर पसारती जा रही हैं। प्राकृतिक संसाधन उनके हवाले किये जाने का काम इन दोनों सरकारों ने खूब किया जिस के कारण स्थानीय समुदाय के सामने आजीविका का संकट खड़ा होता जा रहा है। इसलिये आज हिमाचल प्रदेश की जनता कई जगह आन्दोलनरत हैं।

कम्पनी के गुण्डों को सरकारी संरक्षण मिल रहा है जो स्थानीय विरोध करने वाले किसानों को डराने धमकानें व उन पर हमला करने से भी नहीं डर रहे हैं। चम्बा- जडेरा में हुल जल विद्युत परियोजना के विरोध करने पर कम्पनी के गुण्डों ने बैठक कर रहे निहत्थे किसानों पर दो साल पहले दिन दहाडे हमला किया परन्तु धूमल सरकार ने बदले में सैंकडों किसानों पर झूठे केस बना डाले। जब कि सरकार को इतने जन विरोध व कम्पनी के गुण्डों द्वारा फैलाए खुले आतंक को देखते हुए हुल जल विद्युत परियोजना को तुरन्त रद कर देना चाहिए था। आज कल वहीं गुण्डे चम्बा में इन चुनावों में कांग्रेस और भाजपा  के कार्यकरता व नेता हैं। गगरेट-उना में एस ई जैड का विरोध करने पर 500 किसानों  पर सरकार ने झूठे मुकदमें कर रखे है। कुल्लु-हरिपूर नाला जल विद्युत परियोजना व स्की विलेज का विरोध करने पर भी सैकडों किसानों  पर इसी धूमल सरकार ने झूठे मुकदमें कर रखे है।

पिछली वीरभद्र सरकार ने 2007 में कड़छम बागतु किनौर में स्थानीय देवता के रथ को साथ ले कर कड़छम बागतु जल विद्युत परियोजना का शांन्तिपूण विरोध कर रहे किसानों पर प्रदेश में पहली बार पुलिस से गोलियां चलाई। जे पी सीमेंट प्लॉट वागा, रेणुका बांध,  जे पी थर्मल वघेरंी, लफार्ज सीमेंट अलसीढी, लुहरी जल विद्युत परियोजना व कई अन्य स्थानों पर लोगों के विरोध को दोनों सरकारों ने दवाने की कोषिष की है।

आज हलात यह हो गए हैं कि ये पिछली दोनो सरकारें कम्पनी की सरकारें बन कर रह गई हैं।

इस कारण प्रदेश में बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ है, जिनका सही पुर्नवास व पुर्नस्थापना का कार्य नहीं हुआ, जब यहां साठ-सतर के दशक में भाखड़ा और पोंग बांध के विस्थापितों के पुर्नवास व पुर्नस्थापना का कार्य भी अभी तक लम्बित पड़ा है।


वन अधिकार कानून, 2006 पूरे देश में 2008 से लागू हो चुका है परन्तु हिमाचल सरकार ने जान बूझ कर इसे प्रदेश में लागू नहीं किया, ताकि यह वन की बर्तनदारी भूमि बिजली कम्पनियों व अन्य निजि परियोजनाओं को बेची जा सके और उस से खूब पैसा कमाया जा सके। इस कानून के मुताविक यहां के किसानों को यह अधिकार मिल गया है कि 13 दिसम्बर 2005 से पहले से जो बर्तनदार किसान, वन भूमि पर खेती कर रहे हैं तथा आवासीय घर बनाए हैं, उन्हें इस भूमि के अधिकार के पटटे मिल जाऐंगे। सभी बर्तनदारी वन, गंावों के वन बन जाऐंगे। जिन का प्रबन्ध, संरक्षण व आजीविका के लिए दोहन गांव समाज सामुहिकता से करेगा और  वन विभाग की इस में कोई भूमिका नहीं होगी। इस संबैधानिक प्रावधान के बावजुद भी सरकार गैर कानूनी तरीके से हमें नाजायज कब्जाधारी कहती है जो सरासर गलत है।

आज विकास के नाम पर जो धन आ रहा है और जिसे चुनें हुए प्रतिनिधि उन के द्वारा किया गया कार्य बता रहे हैं यह वास्तव में सच नहीं है। इस में विधायकों की बड़ी भूमिका नहीं रह गई है। क्योंकि मनरेग कानून के मुताविक हर ग्राम सभा को केंद्रीय  सरकार से धन कानूनन मिलता है। षिक्षा में सर्व षिक्षा अभियान के तहत कानूनन स्कुल बनेगे हीे, खिचडी, किताबें व बर्दी किसी भी सरकार को देनी ही होगी। 108 एम्वूलेंस ग्रामीण स्वास्थ्य मिषन के तहत मिलेगी ही। सड़कंे प्रधानमन्त्री सड़़क योजना व भारत निर्माण के तहत बनेगी ही। ऐसे में राजनैतिक पार्टीयों व सभी उमीदवारों  को इस हिमालयी प्रदेष के विकास के वैकल्पिक मॉडल के बारे में सोचना पड़ेगा।

इन विधान सभा चुनावों में हिमालय नीति अभियान जनता से अनुरोध करते हैं कि वे प्रदेष के वैकल्पिक विकास के मॉडल पर विचार कर के निम्न मूददों को उमीदवारों के समक्ष रखें और उन प्रत्याषियों को मत दें जो इस वैकल्पिक विकास के मॉडल पर काम करने पर सहमत हों।
इस इलाके के विकास के लिए खेती व पषुपालन का विकास जरूरी है। इस के लिए सिंचाई का उचित प्रबन्ध करना होगा। कम लागत वाली जैविक खेती का विकास करना होगा। पानी के संरक्षण के कार्य करने होगें। नई सिचाई योजनाऐं बनानी होगी व पुरानी कुल्हों व खराव पड़ी सिचाई योजनाऐं को फिर से जिन्दा करना होगा। खेती उपज के उचित मूल्य किसान को प्रदान करना तथा स्थानीय स्तर पर कृषि उत्पाद के प्रषोधन व भंड़ारण के संयत्र लगानें होगें। खेती को जंगली जानवरों व आवारा पषुओं से बचाने के लिए प्रभावी कदम उठाये जाने चाहिए। फसल बीमा योजना को सभी फसलों पर लागू किया जाना चाहिए ताकि किसान सम्मान की जिन्दगी जी सके।

लोक मित्र मिश्रित वनों का विकास करना होगा जिस में चारा, ईन्धन, जडी-बूटी, फल, ईमारती लकड़ी, तथा खाद्य पदार्थ इत्यादि विकसित किऐ जाऐं। चारागह विकास व पषुपालन के कार्यों को बढावा दिया जाऐं।
वन अधिकार कानून-2006 को लागु किया जाऐ व वन प्रबन्धन को इस कानून के अनूसार गांव को सौंपा जाऐ। इस से सभी आदिवासी गुज्जर-गददी समुदायों व अन्य वन निवासी समुदायों को लाभ होगा। इस के मुताविक ग्राम सभा को टी डी देने का अधिकार भी मिल जाएगा। पर्यावरण मित्र लघु, जिम्मेबार व धरोहर पर्यटन को विकसित किया जाए। जिस की मलकीयत स्थानीय लोगों के हाथों में रहे। स्थानीय वन व कृषि उत्पादों के प्रषोधन की लघु ईकाईयां प्रदेष में लगाई जाऐं तथा परम्परागत कलाओं व दस्तकारी को विकसित किया जाए। खुदरा व्यापार में विदेषी निवेष रोका जाए ताकि भारतीय व्यापार व इस कारोवार से जुड़े करोडों़ व्यवसायियों का रोजगार बचाया जा सके। रेडी फ़ड़ी के काम में लगे सैंकडों कामगारों के रोजगार को सुरक्षित रखा जाए व इस रोजगार को स्वरोजगार नीति के साथ जोड़ा जाए।

यहां स्थापित उद्योगों में 75 प्रतिशत स्थानीय युवाओं को प्राथमिकता पर रोजगार मिलने चाहिए, ठेकेदारी प्रथा बन्द हो तथा उद्योगों में श्रम कानूनों का पालन होना चाहिए।

आंगनबाडी कार्यकर्ता व सहायिका, मिड डे मील वर्कर, पंचायत तकनीकी सहायक, रोजगार सेवक, पंचायत सहायक सचिव व पी टी ए अध्यापकों व पांच साल का सेवा काल पूरा का चुके सभी कर्मचारियों को पक्का किया जाए। मनरेगा के तहत कम से कम 240 दिन का साल में काम दिया जाना चाहिए। सरकारी नौकरयों में ठेकेदारी तथा स्वयं सेवी भर्तियों की प्रथा बन्द की जाऐ, इस के स्थान पर स्थायी भर्तियां की जाए। कर्मचारियों के राजनैतिक तबादले बन्द किऐ जाऐ।

पन बिजली व सीमेंट परियोजनाओं तथा बडे निमार्ण को रोकना होगा जिस से जंगलों, चारागाहों तथा स्थानीय आजीविका का निरन्तर विनाष हो रहा है और बदले में स्थानीय लोगों को स्थाई रोजगार भी नहीं मिल रहा है। इस के बदले प्रदेष के युवाओं में उद्यमीयता का विकास कर के स्थायी व टिकाउ रोजगार के आधार विकसित किऐ जाऐं।

सार्वजनिक सुविधाओं की स्थिति बहुत खराव है। चम्बा हस्पताल में इएनटी, गाइनी व अन्य डाक्टरों तथा पैरा मैडिकल स्टाफ की कमी, विस्तरों का अभाव व अन्य सुविधाओं की कमी है, जिसे सुधारना होगा। गांवों के स्कुलों में अध्यापकों का अभाव है जिस के लिए नई भर्तियो करनी होगीं। षिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं के स्तर व गुणवता को सुधारा जाना होगा व सभी के लिए समान स्कुल बनाए जाने चाहिए।
ग्राम सभा को सरकारी नियत्रण से मुक्त कर के 73वें संविधान संषोधन की मंनषा के अनुसार क्षेत्र के विकास का पूरा अधिकार दिया जाए। वोनाफाईड प्रमाण पत्र, सभी पैन्षनों के पात्र आवेदक के आवेदन र्फाम की मंजूरी जैसे स्थानीय कार्यों को जारी करने का अधिकार ग्राम पंचायत को दिया जाना चाहिए। प्रषासन को लोक हित में काम करना होगा, सभी विभागों की सक्रियता से लोगों की सम्स्याओं का निपटारा करना होगा। हर स्तर पर भ्रष्टाचार को रोका जाना होगा।
 
इसको भी देख सकते है