संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

कोयला खदानों का नाजायज आवंटन : कोयला मंत्रालय ने साधी चुप्पी

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन द्वारा सरकार से कोयला आवंटन की प्रक्रिया को लेकर सरकार पर अपारदर्शिता का आरोप लगाते हुए आवंटन की प्रक्रिया से संबंधित सवाल पूछे थे जिसके लिए कोयला मंत्रालय का जवाब भ्रमात्मक और मामले को दबाने की कोशिश मात्र है | छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने मांग की है कि CAG इसे संज्ञान में लेकर जांच करे या फिर एक न्यायिक जांच कराई जाये l यह प्रक्रिया ना तो पारदर्शी है बल्कि कुछ कंपनियों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य मात्र से रची गई है जिससे सरकार और देश के बहुमूल्य संसाधनों को व्यर्थ गंवाया जा रहा है l प्रस्तुत है छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन की विस्तृत रिपोर्ट;

कोयला आवंटन की प्रक्रिया को लेकर छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन के आरोपों पर कोयला मंत्रालय का जवाब भ्रमात्मक और मामले को दबाने की कोशिश मात्र है |

कोयला खदानों के आवंटन के मामले में आज दैनिक पत्रिकाओं के माध्यम से समाचार मिला है की कोयला मंत्रालय ने 5 मार्च 2017 को लगाए गए आरोपों पर अपना स्पष्टीकरण एवं जवाब दिया है l परन्तु हमें बेहद अफ़सोस है की सरकार ने हमारे द्वारा पूछे गए किसी भी अहम् सवाल का ना तो जवाब दिया बल्कि पूरे मामले को भटकाने की कोशिश की है l मंत्रालय की मुख्य दलील यह है की उसने एम.डी.ओ. की नियुक्ति प्रक्रिया के सम्बन्ध में निर्देश जारी किये हैं जिससे इसमें घोटाले की संभावना नहीं है| साथ ही यह भी कहा गया सरकारी कंपनियों को कोयला आवंटन का प्रावधान कोल माइंस (विशेष उपबंध) अधिनियम 2015 में पहले से ही किया गया है |

यह दोनों ही जवाब भ्रमात्मक हैं और मामले को मुख्य सवालों से भटकाने का प्रयास है l हमने अपनी विज्ञप्ति में उचतम न्यायलय के 2014 में दिए गए कोयला घोटाले के निर्णय का उल्लेख किया था जिसमें स्पष्ट रूप से कोयला आवंटन में निजी कंपनियों को नाजयाज़ फायदा उठाने से रोका गया था l कोयला मंत्रालय द्वारा निर्धारित एम.डी.ओ. प्रक्रिया इसी कड़ी में उच्चतम न्यायालय के फैसले की मूल भावना का उल्लंघन है l एम. डी. ओ. प्रक्रिया कोई साधारण अनुबंध नहीं है बल्कि माइनिंग के सम्बंधित सभी अधिकारों एवं जिम्मेदारियों (जिसमें स्वीकृतियां लेना, भूमि अधिग्रहण, खनन कार्य, इत्यादि सब शामिल हैं) का स्थानान्तरण जैसा है l ऐसे में लगभग सभी सरकारी कम्पनियों द्वारा एम.डी.ओ. की नियुक्ति ना केवल सरकारी कंपनियों की खनन क्षमताओं पर सवालिया निशान है बल्कि सभी खनन परियोजनाओं का निजी कंपनियों को स्थानान्तरण जैसा है l इसके साथ ही आर.टी.आई. के माध्यम से मिली जानकारी के अनुसार कोयला मंत्रालय खदानों के सम्बंधित एम.डी.ओ. की सूची तक नहीं रखता l ऐसे में कोयला मंत्रालय कैसे सुनिश्चित कर सकता है कि यह उपबंध पारदर्शी रूप से किये गए हैं |

कोयला मंत्रालय ने हमारे इस सवाल पर भी चुप्पी साध ली की पिछले लगभग 2 सालों में सभी खदानों को केवल आवंटन के रास्ते से ही बांटा गया है और यह नीलामी में दी गई खदानों से कहीं अधिक है l ऐसे में पारदर्शी नीलामी प्रक्रिया का क्या मतलब ही रह गया है l साथ ही सरकार ने इस तथ्य का खंडन भी नहीं किया की नीलामी प्रक्रिया में मिला सरकारी राजस्व, आवंटन के रास्ते दी गयी खदानों से कहीं अधिक होता है l फिर क्यूँ सरकार ने इन खदानों को नीलामी में प्रस्तुत नहीं किया और ऐसी सरकारी कंपनियों को बाँट दिया जिनके पास खनन की कोई क्षमता ही नहीं है l और वह सरकारी कम्पनियाँ एम.डी.ओ. के रास्ते निजी कंपनियों पर पूर्णतया आश्रित हैं l इसके साथ ही यह भी आश्चर्यजनक है की खदानों को कमर्शियल माइनिंग के लिए बांटा जा रहा है ना की अंत उपयोग के लिए जिससे इससे सम्बंधित फायदा निजी कंपनियों को ही मिल रहा है क्यूंकि अब तक तो नीलामी प्रक्रिया में कमर्शियल माइनिंग के नियम तक नहीं बनाये गए हैं |

ऐसे में कोयला मंत्रालय का जवाब स्पष्टीकरण देने की जगह नए सवाल खड़े कर देता है l क्यूँ सरकार इस मामले को छुपाने की कोशिश कर रही है और इसकी निष्पक्ष जांच की मांग से बचना चाह रही है l छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन पुनःइस पूरी कोयला खदानों के आवंटन की प्रक्रिया की निष्पक्ष जांच की मांग करता है जिसमें विशेष रूप से सभी एम.डी.ओ (MDO) की नियुक्ति प्रक्रिया शामिल है l हम मांग करते हैं की CAG इसे संज्ञान में लेकर जांच करे या फिर एक न्यायिक जांच कराई जाये l यह प्रक्रिया ना तो पारदर्शी है बल्कि कुछ कंपनियों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य मात्र से रची गई है जिससे सरकार और देश के बहुमूल्य संसाधनों को व्यर्थ गंवाया जा रहा है l

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