संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

अपनी ही ज़मीन पर काम को तरसते आदिवासी !

 

झारखंड़ के धनबाद में स्थानीय आदिवासी गुजरी 31 दिसम्बर 2013 से अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हैं यह आदिवासी अपनी ही भूमि पर सरकार द्वारा जबरदस्त स्थापित भारत कुकिंग कोल लिमिटेड़ (बी.सी.सी.एल.) प्लांट में रोजगार मांग रहे है, यहाँ पर भी झारखंड़ के अन्य मामलों की तरह मनमाने तरीके से भूमि अधिग्रहण और विस्थापितों के अधिकारों का हनन बदस्तूर जारी है। कंपनी प्रबंधन ने आदिवासी नेता हरे मुरारी महतों समेत अन्य मजदूरों पर रगदारी वसूलने एवं अन्य झुठे आरोप लगा कर केस दर्ज कर दिये हैं। पेश है उमा साह की रिपोर्ट;

पाथरड़ीह कोलवाशरी में भारत कुकिंग कोल लिमिटेड़ (बी.सी.सी.एल.) के प्लांट के स्थान पर अब एक नई वाशरी के निमार्ण का कार्य हो रहा है, इस नए प्लांट का निमार्ण मोनेट इस्पात एनर्जी लिमिटेड़ कंपनी कर रही है। मोनेट इस्पात एनर्जी लि0 ने निमार्ण कार्य के लिए भूमि अधिग्रहण में ना केवल भारी अनियमितता बरती, बल्कि वहां के स्थानीय मजदूरों को भी निमार्ण कार्य में रोजगार देने से मना कर दिया।

पाथरड़ीह कोलवाशरी, बिहार कोलियरी कामगार यूनियन के शाखा सचिव हरे मुरारी महतों ने बताया कि वहां के रैयतों को काम ना मिलने और भूमिअधिग्रहण के नियमों की अनदेखी के बाद, मजदूरो ने अपनी समस्या से उन्हें (हरे मुरारी महतो) अवगत कराया। मुरारी महतों ने सारे जमीनी दस्तावेजों का निरीक्षण और रैयतों व स्थानीय मजदूरों से पूरे मामले की गहरी जानकारी ली, जिसमें पाया गया कि वाशरी की बाहरी दीवाल के निमार्ण कार्य में 90 से अधिक मजदूर काम कर रहे हैं, जिन्हें न्यूनतम मजदूरी दर 235रू/के स्थान पर 150-160रू/ भुगतान किया जा रहा है। साथ ही उन्हें बैंक पेमेंट, पी.एफ. कटौती, बी. फार्म., पहचान पत्र, सुरक्षा व्यवस्था आदि भी नहीं दी जा रही है। ठेकेदारों और प्रबंधन की इस अनियमितता को देखते हुए वहां की वस्तुस्थिति की जानकारी धनबाद के उपायुक्त को दी गई, जिस पर अभी तक कोई संज्ञान नहीं लिया गया।

इसके बाद पूरे मामले की जानकारी ‘श्रम आयुक्त भारत सरकार श्रम भवन धनबाद‘ में दी गयी। वहां से  मिले जवाब में मामले को सही बताया गया और मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी और काम के 8घंटे तय करने का आदेश भी दिया गया। इन सारी कागज़ी कार्यवाहियों के बाद भी मोनेट इस्पात एनर्जी लि0 के प्रबंधन और ठेकेदारों ने मजूदरों और रैयतों की कोई सुध नहीं ली।

स्थानीय निवासी और मजदूर अपने 10 सूत्रीय मांगों के संबंध में दिनांक 31.12.2013 को श्री आर कुमार, प्रबंधक, एन.एल. डब्लू, मोनेट इस्पात एनर्जी लिमिटेड़, पाथरड़ीह कोलवाशरी को सूचित कर एक दिवसीय धरने पर बैठे। उनके मांगपत्र में मुख्य बिंदू निम्न हैं-

  • 150 से अधिक रैयतों की जमीन सेल को दी गयी थी जिनके आश्रितों ने आवेदन दिया है। उन्हें अबिलम्ब काम दिया जाय।
  • जमीन अधिग्रहण में हुई अनियमितता के कागजात प्रस्तुत कर निदान किया जाय, जैसे खाता संख्या 18 स्व. भगतु महतों, चन्द्रबाद।
  • चन्द्रबाद, परघाबाद, भाटडीह, परासबनिया, चार पंचायतों के बेरोजगारों एवं शिक्षित बेरोजगारों को योग्यता के आधार पर काम में आरक्षण देकर काम दिया जाय।
  • न्यूनतम मजदूरी, काम के घंटे, सुरक्षा आदि मांगों के साथ शांतिपूर्वक धरना दिया, लेकिन कंपनी प्रबंधन ने इस ओर भी कोई ध्यान नहीं दिया।

इसके बाद मजदूरों ने अपना धरना जारी रखने का निर्णय किया है।

इतनी कड़ाके की ठंठ में मजदूर बिना किसी प्रकार के उपद्रव किए, रोटी और सुरक्षा के लिए ठंठ में रात दिन खुले में बैठे हैं। इस पूरे प्रकरण पर मुख्य धारा की मीडिया का हस्तक्षेप गौण प्राय है। 31 दिसम्बर से मजदूर धरने पर बैठे हैं, लेकिन झारखंड़ के अन्य मामलों की तरह कंपनी प्रबंधन ने कुछ मजदूरों और हरे मुरारी महतों आदि पर रगदारी वसूलने एवं अन्य झुठे आरोप लगा कर केस दर्ज कर दिये हैं।

इस पूरे मामले में सबसे बड़ी बात यह है कि भोगतु महतों की जमीन, जिसका मोजा न0 159 खाता सं0 26 प्लाट न0 17, 18, रक़बा 7 एकड़ 78 डिसमिल है। इसका कोई अधिग्रहन नहीं हुआ है। और मोनेट इस्पात एनर्जी लि0 बिना जमीन लिए जबरन निमार्ण कार्य कर रही है। यहां भी पूरा मामला अवैध  निमार्ण कार्य का है। जिस पर प्लांट और अन्य निमार्ण हो रहा है वह जमीन वहां के स्थानीय निवासी के ही नाम पर है। यहां के स्थानीय लोग कम पढ़े-लिखे हैं, इसलिए वे शांतिपूर्वक शक्तिशाली कंपनी से अपनी रोटी मांग रहे हैं, वे जानते हैं कि प्लांट लगने के बाद उन्हे प्रशिक्षित ना होने के कारण काम नहीं दिया जायगा इसलिए वे निमार्ण कार्य में मजूरी करना चाहते हैं। वहां के लोगों के सामने बेगारी और विस्थापन दोनों समस्या है। अपनी जमीन का हक़ मांगने पर उन पर कार्यवाही और किसी प्रकार का कार्य ना दिए जाने की धमकी भी दी जा रही है।

झारखंड़ जैसे प्रदेश में नागरिक अधिकारों और मजदूरों के हितों की अनदेखी का यह अकेला मामला नहीं है। आज कॉरपोरेट घराने के बढ़ते दवाब और सरकार की अनदेखी ने झारखंड़ के निवासियों के भविष्य को घोर अंधेरे में धकेल दिया है।

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