संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

बस्तर बुमकाल विद्रोह : आज भी जिंदा है गुण्डाधुर का संघर्ष आदिवासी परंपरा में


छत्तीसगढ़, बस्तर 10 फ़रवरी 2018। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम 1910 की महान बस्तर बुमकाल विद्रोह के अमर नायक क्रांतिकारी गुण्डाधुर का 108 वां बुमकाल दिवस कांकेर जिले के कोयलीबेड़ा अन्तर्गरत देव स्थल उसेह मुदिया में मनाया गया। कोयलीबेड़ा, कागबरस से लौट कर तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट;

8 फरवरी 2018 से शुरू होकर तीन दिन 10 फरवरी तक बुमकाल दिवस मनाया गया। जहां आप-पास के 40 गांव के ग्रामीण इकठ्ठा हुए। कर्यक्रम में पहले दिन से ही आदिवासियों के अधिकार पांचवी अनुसूची, पेसा कानून,वन अधिकार कानून, रूढ़ी प्रथा आदि आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों का प्रशिक्षण एंव चर्चा किया गया । आस-पास के ग्रामीण के अलावा अन्य राज्य महाराष्ट्र के आदिवासी दल भी शामिल हुआ।

आस-पास के गांव से 14 मांदरी दल देव स्थल में शामिल थे जो रोजाना रात को आदिवासियों के पारंपरिक वेश-भूषा के साथ रेला,मोक्सा नृत्य भी करते थे जो दो रात रोजाना लगातार जारी रहा ।

आप को बता दे कि यह आयोजन पूर्ण रूप से आदिवासी समाज के संवैधानिक  अधिकारों के जनजागरूकता फैलाने और उनके अधिकारों के बारे में सजग करने के लिए किया गया था ।

कोयलीबेड़ा ब्लाक जो सुरक्षा बलो के कैम्प से घिरा हुआ है। दिवस का आयोजन जहाँ हो रहा था पूर्ण रूप से घनघोर वनों से आच्छादित स्थल है , जहाँ शासन-प्रशासन का पहुंच न के बराबर है, न सड़क, न बिजली, न पानी मूलभूत समस्याओं से जूझते जंगलों से होती पगडंडिया इन गांवो में पहुंचाती है । नजारा यह है कि आज-पास के गांव के अधिकतर लोग नक्सल आरोप के तहत जेल में है । जो जमानत पर बाहर वो न्यायलय के चक्कर काट रहे है।

ग्रामीणों ने बताया कि उसेह मुदिया राउड (आदिवासियों का देव स्थल) पवित्र है जो उनकी रक्षा करती है । आस -पास के सारे ग्रामीण इस देव स्थल में प्राकृतिक मान्यताएं जुड़ी है । किसी प्रकार की मूर्ति पूजा इस क्षेत्र में नही होता है , ग्रामीण झरनों , पहाड़ो, पेड़ो को ही पूजते हैं ।

आदिवासी युवक -युवतियों द्वारा पारम्परिक रेला..नृत्य करते समय उनके मुंह से फूटते स्वर इसी ओर इशारा करते है कि जल,जंगल, जमीन की रक्षा करना और प्राकृतिक का सेवा ही मूल उद्देश्य है ।

क्षेत्र के आदिवासी सहदेव उसेंडी बताते है कि आस-पास के 40 गांव के ग्रामीण अपना स्वयं का राशन-पानी लेकर बुमकाल दिवस में तीन दिन तक डटे हुए थे । जहाँ आदिवासियों के संवैधानिक अधिकार को लेकर प्रशिक्षित किया गया और खुल कर चर्चा की गई ।

आदिवासी राजीव धुर्वा बताते है कि कॉरपोरेट मुनाफे के लिये जल,जंगल,जमीन को बेचा जा रहा है। आदिवासियों के जंगल से उन्हें दूर किया जा रहा है। आगे वो कहते है यह क्षेत्र अमूल्य खनिज सम्पदाओं से भरा हुआ है। सरकार की गिद्ध दृष्टि इस क्षेत्र पर है ।

एस,टीएसी,ओबीसी का नेतृत्व कर रहे लोकेश शोरी कहते है आदिवासी प्राकृतिक पूजक है यह देव स्थल से आदिवासियों के प्राकृतिक मान्यताएं जुडी है। लेकिन सरकार इनका हिन्दुकरण करने में तुली हुई है ।
इसको भी देख सकते है