संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

प्रधानमंत्री किसान पेंशन योजना : मोदी का मुनाफाखोर बीमा कंपनियों को किसानों को जबरन लूटने का तोहफा

चरण सिंह

नई दिल्ली। वैसे तो किसानों को हर सरकार बेवकूफ बनाती आ रही है पर मोदी सरकार है कि कुछ ज्यादा ही बना रही है। 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का दावा करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फिर से सत्ता संभालते ही कैबिनेट की पहली ही बैठक में किसानों को तोहफा देने की बात कही जा रही है। सत्ता पक्ष से लेकर मीडिया तक में यह खबर ऐसे चल रही है कि जैसे किसानों को मालामाल कर दिया गया हो।

किसान पेंशन योजना का ढिंढोरा जोर-शोर से पीटा जा रहा है। माहौल तो इस तरह से बनाया जा चुका है कि जैसे किसानों को तीन हजार रुपये प्रति माह पेंशन मिलनी शुरू हो गयी है। अवलन तो पेंशन साठ साल से ऊपर के व्यक्ति को ही मिलती है। लेकिन मोदी जी ने अच्छी स्कीम निकाली है। इस पेंशन योजना में साठ साल से ऊपर के किसान हैं ही नहीं। इतना ही नहीं 41 साल से ऊपर के किसानों को भी इस योजना में नहीं लिया गया है। तो फिर किन किसानों को इस योजना में लिया गया है ?

दरअसल किसान पेंशन योजना 18-40 उम्र के किसानों के लिए है। यह योजना ठीक इसी तरह से लग रही है जैसे कि देश में बीमा कंपनियां चल रही हैं। जो लोग किसान पृष्ठभूमि से जुड़े हैं वे जानते होंगे कि जब तक घर का मुखिया जिंदा होता है, तब तक जमीन उसी के नाम पर ही होती है। पुरुष है तो उसके नाम पर यदि वह नहीं तो महिला के नाम पर। मतलब जिन 18-40 साल के किसानों को पेंशन योजना में लाने की बात सरकार ने की है। इस तरह के किसान तो देश में नाम मात्र के हैं। मतलब या तो उनके माता-पिता का निधन हो गया हो या फिर किन्हीं दूसरे कारणों से उनको जमीन अपने नाम पर करानी पड़ी हो। इस तरह के उदाहरण न के बराबर ही होते हैं।

हां किसान इस योजना का लाभ अपने बेटे या बेटियों को दिलवाना चाहें तो उनके नाम पर जमीन करनी होगी। मतलब जमीन का बंटवारा। ऐसे में घर के मुखिया को अपने खर्च के लिए इन बेटों या फिर बेटियों का मुंह ताकना पड़ेगा।

जमीनी हकीकत यह है कि इस योजना में किसान को तो लिया ही नहीं जा रहा है। तो सरकार किन लोगों को इस योजना में ला रही है। ऐसा तो नहीं कि किसी बीमा कंपनी को इस योजना का ठेका दिया जा रहा है। या फिर किसान पेंशन के नाम पर भी अपना कोष भरने की तैयारी है।

इस योजना में किसानों से 55 रुपये प्रति माह लेने की बात कही गई है। मतलब किसान पृष्ठभूमि से जुड़े 18-40 साल के लोग इस योजना में आ गये तो सरकार प्रति माह अरबों रुपये कमाएगी।

यह स्पष्ट हो चुका है कि योजना का लाभ 20 साल बाद मिलेगा। पात्र व्यक्ति के मरने के बाद भी साठ साल के बाद ही। इस भ्रष्टाचार के दौर में 20 साल बाद देश की क्या स्थिति होगी। किसकी सरकार होगी। आने वाली सरकारें योजना के साथ क्या क्या करेंगी। कौन जानता है? तब योजना किस स्वरूप में होगी यह भी नहीं कहा जा सकता है। यह योजना किसानों के साथ धोखा नहीं तो फिर और क्या है? यदि पेंशन देनी ही है तो बिना कुछ लिये साठ साल से ऊपर के किसानों को दी जानी चाहिए थी।

इस योजना में यदि योजना का पात्र व्यक्ति मर जाता है तो उसकी पत्नी को 1500 रुपये प्रति माह देने का प्रावधान है। वह भी पात्र व्यक्ति की साठ साल उम्र के बाद। जैसे बीमा कंपनियों में प्रीमियम न जाने की वजह से पॉलिसी कैंसिल हो जाती है। ठीक ऐसे ही किसानों की इस योजना में भी प्रीमियम मिस होने की स्थिति में संबंधित किसान के प्रभावित होने की पूरी आशंका है।

ऐसा ही सालाना छह हजार रुपये देने की योजना है। किसानों को छह हजार रुपये सालाना देने का ऐलान तो मोदी के पहले कार्यकाल में ही हो गया था। हां इस बार इस योजना में सभी किसानों को ले लिया गया है। मतलब संपन्न किसानों को भी। यह मोदी ने तब किया है जब यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि बड़े स्तर पर व्यापारी जोत की जमीन खरीदकर किसान बन गये हैं। मतलब इस योजना में इन व्यापारियों को भी लाभ मिलेगा।

ऐसा नहीं है कि किसानों को बेवकूफ आज की तारीख में ही बनाया जा रहा है। कृषि ऋण माफी योजना में भी यही होता आया है। 1989 में वीपी सरकार में किसानों का 10000 रुपये तक कर्ज माफ करने की योजना में भी यही हुआ था। उसका फायदा बैंकों या फिर डिफाल्ट किसानों को मिला था। ऐसा ही 2008 में यूपीए सरकार की ओर से लाई गई कृषि माफी योजना में भी हुआ था। कैग रिपोर्ट में इस योजना में भारी घोटाला सामने आया था। योजना में 25 राज्यों के 92 जिलों से 715 बैंक ब्रांचों में भारी गड़बड़ियां मिली थीं।

आंध्र के गई गरीब किसान किडनी बेच कर सरकारी कर्ज उतारने के लिए मजबूर हो गए थे। कर्ज माफी योजना में घोटाले का मामला संसद में भी उठा। विपक्ष ने काफी शोर-शराबा किया। तब विपक्ष में यही भाजपा थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी जांच कर दोषियों को कड़ी सजा देने की बात कही थी। पर क्या हुआ? ढाक के तीन पात। 2012 में उत्तर प्रदेश में बनी अखिलेश सरकार ने भी किसानों के 50 हजार रुपये माफ करने का दावा किया था। उसमें भी ईमानदार किसान ठगे गये थे। यही कारण था कि उस समय के नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार लखनऊ के आसपास के क्षेत्रों में 225 लोगों ने खुदकुशी थी, जिसमें 119 किसान थे।

हर सरकार सत्ता में आते ही किसानों के कर्जे माफ करने का दावा करती है फिर किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला नहीं रुकता है। किसानों की आत्महत्याओं के आंकड़ें देखें तो एक बात साफ समझ में आती है कि मनरेगा, सहकारी समितियां, कृषि ॠण, ॠण माफी योजनाएं सब किसानों के लिए बेकार साबित हो रही हैं। किसान के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं।

यह सब राजतंत्र से ही चला आ रहा है। पहले राजा-महाराजाओं, उनके ताबेदारों ने किसानों का शोषण किया। फिर मुगल आए तो उन्होंने किसानों को जम कर निचोड़ा। अंग्रेजों ने तो तमाम हदें पार कर दीं। वे जमीदारों से उनका शोषण कराते थे। देश आजाद होने के बाद भी किसान कर्ज, तंगहाली और बदहाली से आजाद नहीं हुए हैं। ऐसा नहीं कि सरकारें किसानों की तंगहाली पर रोक के लिए कुछ नहीं करती हों। किसानों को कर्जे से मुक्त करने के लिए समय-समय पर कृषि माफी योजनाएं भी लाई गईं। पता चला कि इन योजनाओं का फायदा या तो बैंकों को मिला या फिर बिचौलियों को। हां, किसानों के माथे से डिफाल्टर का धब्बा हटने की रफ्तार में तेजी जरुर आ गई। अब मोदी सरकार की पेंशन योजना का लाभ किसान कैसे उठाएंगे यह तो समय ही बताएगा।

Credit : janchowk.com

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