संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

गुजरात : बुलेट ट्रेन के विरोध में किसानों ने शुरू किया खेड़ुत संपर्क अभियान

मोदी सरकार के महत्वाकांक्षी बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट को महाराष्ट्र के बाद गुजरात में भी विरोध का सामना करना पड़ रहा है.

किसानों ने बुलेट ट्रेन के लिए हो रहे ज़मीन अधिग्रहण को हाई कोर्ट में चुनौती दी है. किसान ज़मीन अधिग्रहण की प्रक्रिया और मुआवज़े को लेकर सवाल खड़े कर रहे हैं.

उन्होंने सरकार के ज़मीन अधिग्रहित करने के अधिकार को यह कहकर चुनौती दी है कि बुलेट ट्रेन किसी एक राज्य का नहीं बल्कि कई राज्यों का प्रोजेक्ट है.

लेकिन, इस विरोध के बीच नेशनल हाई स्पीड रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एनएचएसआरसीएल) के अधिकारियों को पूरा भरोसा है कि वह इस प्रोजेक्ट के लिए किसानों की सहमति ले लेंगे.

ज़मीन और घरों पर ख़तरा

किसानों ने नैनपुर (खेड़ा जिला) से क़रीब 10 दिनों पहले ‘खेड़ुत संपर्क अभियान’ नाम से अपने विरोध की शुरुआत की है जो राज्य के 192 गांवों के लगभग 2,500 किसानों को संगठित करेगा.

नैनपुर गांव के किसान कनभा चौहान के पास पांच एकड़ ज़मीन है. उन्हें ज़मीन अधिग्रहण के लिए नोटिस मिला है. वह कहते हैं, ”मेरा 15 सदस्यों का परिवार इस ज़मीन के टुकड़े पर ही चल रहा है. हम इस ज़मीन को नहीं दे सकते.”

छापड़ा गांव के किसान मनु चौहान कहते हैं, ”मेरे परिवार की क़रीब आधा एकड़ ज़मीन, संयुक्त परिवार के 6-7 परिवार और जानवरों को रखने की जगह ये सब अधिग्रहण में आ जाएंगे. अगर ये संपत्ति बुलेट ट्रेन के लिए ले ली जाएगी तो मेरे परिवार के 40 से 50 सदस्यों के सिर से छत छिन जाएगी.”

मनु चौहान ने बताया, ”खेड़ा ज़िला गुजरात का सब्जी उद्यान है, यहां किसान बागवानी फ़सलों से मुनाफ़ा कमाते हैं. मैं एक एकड़ ज़मीन पर कद्दू की खेती करके साल में पांच लाख रुपये कमाता हूं. अगर मुझे बदले में अनुपजाऊ ज़मीन मिली तो वो मेरे किस काम की.”

‘संभ्रांत वर्ग के लिए बुलेट ट्रेन’

किसानों की ये चिंता ‘मेट्रो मैन’ कहे जाने वाले ई श्रीधरन के बयान में भी झलकी. दिल्ली मेट्रो के पूर्व प्रमुख ई श्रीधरन ने ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि बुलेट ट्रेन संभ्रांत वर्ग के लिए है.

इस इंटरव्यू में उन्होंने कहा, ”बुलेट ट्रेन सिर्फ़ संभ्रांत वर्ग की जरूरतों को पूरा करेगी. यह बहुत महंगी है और सामान्य लोगों की पहुंच से बाहर है. इसके बजाए भारत को एक आधुनिक, साफ, सुरक्षित और तेज़ रेल प्रणाली की ज़रूरत है.”

गुजरात खेड़ुत समाज के नेता जयेश पटेल भी बुलेट ट्रेन की ज़रूरत पर सवाल खड़ा करते हैं. वह कहते हैं, ”भारतीय रेलवे के इंजीनियरों ने 225 किमी. प्रति घंटे के रफ़्तार से चलने वाला इंजन विकसित किया है. अगर अहमदाबाद से मुंबई के बीच इस वक्त रेलवे ट्रैक के आधुनिकीकरण पर 25 करोड़ रुपये का निवेश किया जाए तो यह ट्रेन की स्पीड को 150 से 200 किमी. प्रति घंटे तक बढ़ा सकता है.”

जयेश पटेल कहते हैं, ”तो इस परियोजना के लिए राज्य में उपजाऊ भूमि क्यों अधिग्रहित की जा रही है, जबकि इसमें जापान से 1 लाख 10 हजार करोड़ रुपये की लागत से एक बुलेट ट्रेन मंगाई जाएगी.”

सूरत के किसानों ने गुजरात हाई कोर्ट में इस ज़मीन अधिग्रहण को चुनौती दी है.

बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट दो ज़िलों से होकर गुजरने वाली है. इसके लिए ज़िला कलेक्टर के मातहत अधिकारियों ने ज़मीन अधिग्रहण की प्रकिया शुरू कर दी है.

‘हो रही है राजनीति’

सूरत के डिप्टी कलेक्टर (भूमि अधिग्रहण) एम के राठौड़ कहते हैं, ”किसानों की मांग है कि नई जंत्री दरों को बाज़ार दर पर तय किया जाना चाहिए और उसी के अनुसार उन्हें मुआवज़ा मिलना चाहिए.”

हालांकि, उन्होंने मुआवज़े के मसले पर कुछ कहने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा, ”किसानों ने इस मसले को लेकर कोर्ट में याचिका दायर की है. यह मसला कोर्ट में है इसलिए मैं इस पर कोई बयान नहीं दे सकता.”

संयुक्त उद्यम कंपनी नेशनल हाई स्पीड रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड के तहत बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट का काम किया जा रहा है. यह केंद्र सरकार और जिन राज्यों में हाई स्पीड रेल प्रोजेक्ट शुरू होने वाले हैं, उनका एक संयुक्त उद्यम है.

एनएचएसआरसीएल के जनसंपर्क अधिकारी ने बताया, ”किसानों का विरोध पूरी तरह सही है. उनके घर और ज़मीन उनकी संपत्ति हैं. अगर वो ले लिए जाएंगे तो विरोध तो होगा ही.” उन्होंने ये भी कहा कि ज़मीन अधिग्रहण का विरोध कम होता जा रहा है.

उनके अनुसार, एनएचएसआरसीएल की स्थापना के बाद बुनियादी ढांचा बनाने में देरी होने के चलते राजनीतिक दलों को इस मुद्दे पर राजनीति करने का मौका मिल गया है.

धनंजय ने ई श्रीधरन के बयान पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा, ”हमारा लक्ष्य अहमदाबाद और मुंबई के बीच सड़क और वायुमार्ग से यात्रा करने वाले व्यापारी हैं. हम उन्हें आकर्षित करना चाहते हैं.”

उन्होंने कहा, ”फ़्लाइट से यात्रा करने पर भी अहमदाबाद से मुंबई के सफ़र में पांच घंटे का समय लग जाता है. इसमें हम एयरपोर्ट पहुंचने में ट्रैफ़िक जाम के कारण लगने वाला समय, फ़्लाइट में और एयरपोर्ट से निकलकर लगने वाले ट्रैफ़िक जाम का समय जोड़ते हैं तो. जबकि बुलेट ट्रेन से यह समय दो से ढाई घंटे तक तक आ जाएगा क्योंकि इससे यात्री मुंबई के ट्रैफ़िक से बच सकेंगे.”

क्या मुआवज़ा है समस्या

धनंजय बताते हैं, ”ज़मीन राज्य सरकार का विषय है इसलिए सरकार अधिग्रहण कर रही है. गुजरात में हमने किसानों से बात नहीं की थी, इसलिए विरोध हो रहा हैं. किसानों का विरोध प्रोजेक्ट को लेकर नहीं है बल्कि उनकी चिंताएं मुआवज़े को लेकर है. हम किसानों को भूमि अधिग्रहण क़ानून में 2016 के संशोधन के अनुसार क्षतिपूर्ति करेंगे, हम उन्हें जंतरी दरों के अतिरिक्त 25% भी भुगतान करेंगे.”
उन्होंने कहा कि पूरी परियोजना एलिवेटेड ट्रैक पर होगी, इसलिए बुलेट ट्रेन के ट्रैक के साथ सिर्फ़ 17 मीटर की चौड़ाई तक ज़मीन ली जाएगी.

उन्होंने बताया कि किसानों को ज़मीन के बदले ज़मीन और बुलेट ट्रेन में नौकरियां या घर के बदले घर नहीं दिए जाएंगे. उन्हें जमीन के बदले पैसा दिया जाएगा. उन्होंने माना कि सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन भी अभी तक पूरा नहीं हुआ है.

भारत की पहली बुलेट ट्रेन की ख़ास बातें:

ट्रेन गुजरात के मुख्य शहर अहमदाबाद को भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई से जोड़ेगी.

इससे 500 किलोमीटर दूरी तय करने में लगने वाला 8 घंटों का वक्त घटकर 3 घंटे रह जाएगा.

रास्ते में 12 स्टेशन पड़ेंगे.

ज़्यादातर रास्ता ज़मीन से ऊपर यानी एलिवेटेड होगा.

इस यात्रा में सात किलोमीटर हिस्सा समंदर के नीचे बनी सुरंग से होकर जाएगा.

ट्रेन में 750 यात्रियों के बैठने की सुविधा होगी.

इसकी अधिकतम गति 350 किलोमीटर प्रति घंटा होगी, जो अभी भारत की सबसे तेज़ चलने वाली ट्रेनों की स्पीड से दोगुनी से भी ज़्यादा होगी.

(साभार बीबीसी हिन्दी से हरेश झाला की रिपोर्ट)

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