संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

सुपेबेड़ा गाँव के आदिवासी गंदा पानी पीने को मजबूर 58 की मौत : छत्तीसगढ़ सरकार, मुख्य सचिव, सचिव पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय को राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने दिया नोटिस

छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के सुपेबेड़ा गाँव से एक किमी की दूरी पर हीरा खदान है। सरकार ने 2005 से पूरे इलाके को संरक्षण में ले रेखा। पिछले साल 58 आदिवासियों की मौत गंदा पानी पीने को हो चुकी है, आज सुपेबेड़ा में करीब 235 लोग किडनी, लीवर की बीमारी से ग्रसित हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि उनका गांव हीरा खदान क्षेत्र में होने की वजह से सरकार उन्हें यहां से बाहर निकालना चाहती है। यही वजह है कि उन्हें इलाज बिना मारा जा रहा है;

छत्तीसगढ़-रायपुर 16 फ़रवरी 2018, गरियाबंद जिले अन्तर्गरत सुपेबेडा में किडनी की बीमारी से सिलसिलेवार ग्रामीणों की मौत को लेकर राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने मुख्य सचिव, छत्तीसगढ़ सरकार और सचिव, पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय, को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है।

जानकरी के अनुसार राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, एनएचआरसी ने एक मीडिया रिपोर्ट को संज्ञान में लेते कहा कि केंद्र और छत्तीसगढ़ सरकार के संयुक्त प्रयासों के बावजूद फ्लोरोसिस और किडनी रोग से पीड़ित रोगियों की संख्या आर्सेनिक और फ्लोराइड के उच्च स्तर की वजह से बढ़ रही है। राज्य में पीने के पानी में अगस्त, 2016 तक कुल 1148 मरीजों की संख्या अब बढ़कर 1170 हो गई है। औद्योगिक क्षेत्रों के आस-पास के गांवों को बुरी तरह प्रभावित किया गया है। इनमें बस्तर, रायगढ़, बेमेतरा जिले के अन्य क्षेत्रों में शामिल हैं।

कथित तौर पर, सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, गरियाबंद जिले के सुपेबेड़ा में 55 लोग मारे गए हैं। हालांकि, ग्रामीणों का दावा है कि दूषित पानी पीने के कारण बीमारियों के कारण 103 लोगों की मृत्यु हुई है।

लगभग 225 लोग किडनी रोग से ग्रस्त हैं

आयोग ने मुख्य सचिव, छत्तीसगढ़ सरकार और सचिव, पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय, को नोटिस जारी कर दिया है, इस मामले में विस्तृत रिपोर्टों को चार सप्ताह के भीतर राज्य सरकार को देने को कहा गया है । जिसमें इस खतरे से निपटने के लिए उठाए गए कदम भी शामिल हैं।

आयोग ने यह भी पाया है कि समाचार रिपोर्ट की सामग्री, यदि सही है, तो मानवाधिकारों के उल्लंघन का गंभीर मुद्दा उठाता है क्योंकि पीने के पानी के लिए सभी बुनियादी मानव अधिकारों को प्राप्त करने के लिए जरूरी है, जिसमें सम्मान के साथ जीवन का अधिकार भी शामिल है। यह अपने नागरिकों को सुरक्षित पीने के पानी को सुनिश्चित करने के लिए राज्य का मुख्य कर्तव्य है। इससे पहले, आयोग ने देश के विभिन्न हिस्सों में पीने के पानी में फ्लोराइड और आर्सेनिक के उच्च स्तर की इसी तरह की रिपोर्टों पर चिंता व्यक्त की।

डेढ़ साल पहले 15 फरवरी, 2018 को जारी मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार ने आर्सेनिक और फ्लोराइड से प्रभावित क्षेत्रों से संबंधित डेटा जारी किया था। उस समय, अधिकतम प्रभावित क्षेत्र राजस्थान राज्य में पाए गए थे। छत्तीसगढ़ के अलावा, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, झारखंड, पंजाब, ओडिशा, कर्नाटक और तेलंगाना के राज्य भी स्वास्थ्य संबंधी खतरे से पीड़ित हैं।

क्या है मामला

29 जनवरी को सुपेबेड़ा के दर्जन भर ग्रामीण आम आदमी पार्टी के नेताओं के साथ राजभवन पहुंचे और रीडर को राज्यपाल के नाम ज्ञापन दिया। इसके बाद मीडिया से बात करते हुए ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि उनका गांव हीरा खदान क्षेत्र में होने की वजह से सरकार उन्हें यहां से बाहर निकालना चाहती है। यही वजह है कि उन्हें इलाज बिना मारा जा रहा है। हालांकि सरकार ने रायपुर के सबसे बड़े अंबेडकर अस्पताल में इस गांव के लिए अलग से एक वार्ड बनाया है जहां किडनी पीड़ितों का इलाज किया जाता है। सरकार यहां इलाज का पूरा खर्च उठाने का भी दावा करती है।

सुपेबेड़ा गांव के रहवासी ने पत्रकार वार्ता में बताया था कि शासकीय अधिकारियों के कथन के आधार पर 58 मौत हो चुकी है, लेकिन आज सुपेबेड़ा में करीब 235 लोग किडनी, लीवर की बीमारी से ग्रसित हैं। छोटे बच्चों, महिलाओं के चेहरों व पैरो में सूजन दिखाई दे रही है। कम उम्र की माता, बहन, बहू विधवा हो गई हैं।

ग्रामीणों ने बताया था कि जब पानी प्रदूषित होने का खुलासा हो चुका है तो सरकार पेयजल स्वच्छ करने का कोई उपाय क्यों नहीं कर रही है? सरकार की यह उदासीनता स्वाभाविक रूप से एक बड़े षड्यंत्र का इशारा करती है।

इसको भी देख सकते है