संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

नियामगिरी : अवैध गिरफ़्तारी, फर्जी सरेंडर और एनकाउंटर-कॉर्पोरेट लुट के लिए डोंगरिया कोंध आदिवासियों पर दमन का दौर

कॉर्पोरेट लुट के लिए राज्य और वेदाांता द्वारा नियामगीरी के डोंगरिया कोंध की हत्याए और प्रताड़ना; जाँच दल की रिपोर्ट विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन के तत्वाधान में जून 2016 में नियमगिरि के अलग-अलग गांवों का एक जाँच दल ने दौरा किया । दल में मुंबई उच्च न्यायलय के भुतपूर्व न्यायाधीश बी. जी. कोळसे पाटिल, प्रशांत जेना (अधिवक्ता ओडिशा उच्च न्यायालय, कटक), प्रशांत पाईकराय (पॉस्को प्रतिरोध संग्राम समिति, ओडिशा), दामोदर तुरी (विस्थापन विरोधी जन विकास आन्दोलन, झारखंड), महेश राउत (विस्थापन विरोधी जन विकास आन्दोलन, महाराष्ट्र), भगवान माझी (प्रकृति संपदा सुरक्षा मंच, काशीपुर, ओडिशा), लिंगराज आज़ाद (नियामगिरी सुरक्षा मंच), सुरेश संग्राम तथा सत्या महार शामिल थे। जाँच दल का मानना है कि राज्य सरकार द्वारा जारी हिंसा में आदिवासी पिस रहे हैं, वनाधिकार कानून को दरकिनार कर जगह-जगह पुलिस कैंप खोलने के लिए आदिवासियों की जमीन पर कब्जे किए जा रहे है, बड़े पैमाने पर फर्जी आत्मसमर्पण, गिरफ्तारियों , फर्जी इनकाउंटर की घटनाएँ सामने आयी हैं। पेश है जाँच दल की विस्तृत रिपोर्ट;

कुणी सिकका, दोधी सिकका और परिवार , प्रणब डोले, सोनेस्वर नरह को तुरंत रिहा किया जाये और उनपर लगाये गए सभी झूठें आरोप रद्द किये जाये..

नियामगिरी (ओडीसा) मे कुणी सिकका कि अवैध गिरफ्तारी और पुरे परिवार को फर्जी सरेंडर के तहद फ़साने की शाजिश का विरोध करे..

असम में प्रणब डोले, सोनेस्वर नरह की पुनः गिरफ़्तारी और जिपल कृषक श्रमिक संगठन के साथियों पर लगाये फर्जी आरोपों और प्रताड़ना का विरोध करे..

विकास और अभयारण्यो के नाम पर जबरन विस्थापन एवं जन विरोधी विकास नीतियों का विरोध करे और जनतांत्रिक विकास प्रक्रिया के निर्माण में आन्दोलन को तेज करे..

नियामगिरी आंदोलन एक सफल जन आंदोलन है, जिसकी मांगों की वैधता भारत के बड़े नागरी समाज और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी मानी गयी है। क्षेत्र के लोगों द्वारा लगातार प्रतिरोध ने वेदांता जैसी शक्तिशाली बहुराष्ट्रीय कंपनी को पीछे हटने के लिए मजबूर किया है। यह सभी विरोध लोकतांत्रिक ढांचे के भीतर ही रहे है।

पर सरकार लोगों के इस लोकतान्त्रिक आंदोलन को बल प्रयोग और हिंसा से दबाने का पूरा प्रयास कर रही है. नियामगिरी क्षेत्र में लोगों को मारपीट, झूठें आरोपों में गिरफ़्तारी, फर्जी मुकदमें डाल कर खनन के खिलाप के प्रतिरोध को दबाने का पूरा प्रयास सरकार कर रही है. हाल ही में नियामगिरी सुरक्षा समिति को माओवादी संगठन द्वारा चलाये जाने का बेबुनियाद आरोप भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने किया है. इसके तहद लोगो के आन्दोलन को दबाने के लिए अपने किसी भी हिंसक कार्यवाही को सरकार सही करार देने का रास्ता बना रही है.

सरकार के इन्ही दमनकारी अजेंडे के तहद 1 मई के रात CRPF और रायगडा जिल्हे के पुलिस ने नियामगिरी के गरता गाव में आकर कुणी सिकका (उम्र 20 साल) को उसके घर से लेके गए. उस समय कोई भी महिला पुलिस भी उपस्थित नहीं थी. कुणी सिकका नियामगिरी सुरक्षा समिति के नेता दधि पुसिका (उम्र 62 वर्ष) की बहु है और आन्दोलन के दुसरे अन्य प्रमुख नेता लाधो सिकका की वोह भांजी है.

कुणी सिकका की इसा अवैध गिरफ़्तारी के खिलाफ पुरे देश भर से विरोध प्रदर्शित किया गया. ३ में को कुणी को पुलिस थाने से छुड़ाने के लिए लाधो पुसिका और उन्हका परिवार रायगडा गया. पर वहा पर पुलिस ने कुणी और उसके परिवार के ऊपर माओवादी होने का आरोप लगाकर उन्हें धमकाया. ३ मई को रायगडा SP ने कुणी सिकका, उसका पति जोगिली पुसिका, नियामगिरी आन्दोलन के नेता दधि पुसिका, और अन्य साथ गए ग्रामीणों को खूंखार माओवादी बताकर उन्हके द्वारा पुलिस के सामने सरेंडर किया है ये प्रेस विज्ञप्ति जारी की.

दधि सिकका नियामगिरी आन्दोलन के शीर्ष नेता है और वेदांता कंपनी को खदान आवंटन के खिलाफ में आन्दोलन को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उन्हें और उनके परिवार, अन्य ग्रामीणों और आन्दोलन के साथियों को इस तरफ फर्जी सरेंडर में फसाकर सरकार नियामगिरी में चल रहे आंदोलन को दबाकर खनन का रास्ता साफ करना चाहती है.

इसके पहले भी नियमगिरि क्षेत्र में लोगो को डराने के लिए, नियामगिरी आन्दोलन को दबाने के लिए ऐसे ही हिंसक घटनायों को सरकार ने अमल में लाया है. नियामगिरी आन्दोलन में सहभागी कार्यकर्ता यों पर फर्जी मुकदमे दायर कर उन्हें जेलों में डाल कर रखा है. लोगो में दहशत फ़ैलाने के लिए फर्जी एनकाउंटर किये गए है. (नियामगिरी में चल रहे दमन की वास्तविकता को जानने हेतु विस्थापन विरोधी जन विकास आन्दोलन द्वारा 2016 में एक जाँच रिपोर्ट बनायीं गयी थी. वह रिपोर्ट साथ में जोड़ी है.)

नियामगिरी सुरक्षा समिति के नेता दधि पुसिका, कुणी सिकका और अन्य को पुलिस में माओवादी घोषित कर फर्जी सरेंडर करवाया. उन्हें अपमानित किया गया. यह राज्यसत्ता द्वारा नियामगिरी के लीगो पर की गयी हिंसा ही है.

(इस घटनासे सम्बंधित जानकारी के लिय पढ़े – http://www.thehindu.com/todays-paper/tp-national/tpotherstates/controversy-over-surrender-of-alleged-maoist/article18380748.ece )

असम : विस्थापन, हत्याए और जन आंदोलनों पे दमन..

असम के काजीरंगा क्षेत्र में अभयारण्यो के विस्तार के नाम पर आदिवासी एवं अन्य समुदायों से उन्हकी जमीन छिनी जा रही है. जंगल पर और वन संसाधनों पर स्थानिको के नैसर्गिक अधिकारों को समाप्त किया जा रहा है. अपनी आजीविका और संस्कृती की रक्षा में वनों पर आश्रित आदिवासी समुदायों को उन्ही जंगलो से खदेड़ा जा रहा है, उन्हें जबरन विस्थापित किया गया जा रहा है. पिछले कुछ सालों में शेकड़ो व्यक्तियों को जंगल में घुसपैठ करने के झूठें आरोपों में फर्जी एनकाउंटर में मारा गया है.

जिपल कृषक श्रमिक संगठन इस क्षेत्र में आदिवासी समुदाय के अधिकार और उन्हपर हो रहे दमन का प्रतिरोध कर रहे है. फर्जी एनकाउंटर और हत्यायों के खिलाप लोगों को संगठित कर आवाज उठा रहे है. उन्हों ने हाल ही में जबरन विस्थापन और हत्यायों के खिलाफ धरने का आयोजन किया था. सरकार ने लोगो के इस संगठित प्रतिरोध को दबाने के लिए आंदोलन में सहभागी कार्यकर्तायों पर फर्जी आरोप लगाकर उन्हें जेल में दल रखा है. जिपल कृषक श्रमिक संगठन के साथी प्रणब डोले और सोनेस्वर नरह 24 अप्रिल 2017 से हिरासत में है. जमानत की अर्जी दो बार ख़ारिज की गयी गई. जान बुझकर पुलिस स्टेशन डायरी और अन्य दस्तावेज कोर्ट के सामने रखने में देरी कर रही थी जिससे जमानत मिलाने में देरी हो. उन्हपर धारा 147, 447, ५५3 और 506 के तहद आरोप लगाये थे. 04.05.2017 को प्रणब और सोनेस्वर को जमानत मिलने के बाद में फिरसे गिरफ्तार किया गया. इस गिरफ़्तारी का हम विरोध करते है.

(इस घटनासे सम्बंधित जानकारी के लिय पढ़े – http://www.kractivist.org/assam-arest-of-activists-soneswar-narah-and-pranab-doley-and-brutal-lathicarge-on-the-protesters-mediablacksout/ )

सिर्फ कुछ घटनाए नहीं, ये दमन की एक व्यापक रणनीति है..
इसके खिलाफ संगठित प्रतिरोध जरुरी है..

यह सरकार की एक सोची समझी रणनीति है जिससे सत्ता, अपने प्राकृतिक आवास और संविधानिक अधिकारों की रक्षा में संघर्ष कर रहे आदिवासियों और शोषित समुदायों के प्रतिरोध के स्वरों को दबाने का काम करती है. यह समय है कि, वास्तविकता में लोकतंत्र और संविधानिक अधिकारों का समर्थन कर रहे जन आंदोलनो को दबाने के लिए दमनकारी तरीकों की खोज करने की बजाये सरकार ने राजनीतिक समाधानों की तलाश करनी चाहिए और अपनी नीतियों में खामियों की जांच करनी चाहिए.

हम देशभर के तमाम संघर्षरत संगठनो, शिक्षाविदों, विद्यार्थियों, कार्यकर्तायों और जनता से अपील करते है, की वे सरकार द्वारा किये जा रहे इन्ह दमनकारी, लोकतंत्रविरोधी नीतियों का विरोध करे. जनसंगठनों के कार्यकर्ता और उससे जुड़े व्यक्तियों पर दायर फर्जी मुकदमो, आरोपों और जबरन करवाए जा रहे फर्जी आत्मसमर्पण, हत्यायों की निंदा करे. उसका खंडन करे. और आदिवासी एवं अन्य समुदायों के किये जा रहे जबरन विस्थापन और शोषणकारी विकास के एजेंडे के विरोध में जनतांत्रित संघर्ष को मजबूत बनाये.

हम फिर से, किसी भी तरह के असंतोष को दबाने के लिए लोगों के जन आंदोलनों को लेबल करने की राज्य के इस दमनकारी कृत्य की निंदा करते हैं। और हम लोगों के साथ संघर्ष में खड़े रहने की विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन की प्रतिबद्धता को फिर से दोहराते है. जन विरोधी विकास योजनाओं के चलते हुए अन्याय के खिलाफ, हम सभी प्रकार के विस्थापन के खिलाफ हमारे एकजुट संघर्ष को आगे बढ़ाएंगे, ताकि भूमि और संसाधनों पर दलितों, आदिवासियों, किसानों, मजदूरों के अधिकार को प्रस्तापित कर सुरक्षित रखने के संघर्ष को आगे बढ़ा पाए.

जारीकर्ता:

विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन
( विस्थापन नही, विनाश नही, विपन्नता नही, मौत नही, पुनर्वास नही, बदलाव हो – समानता और न्याय आधारित)
केंद्रीय संयोजक समिति:
त्रिदिप घोष, प्रशांत पैकराय,माधुरी जी, दामोधर तुरी, जे. रमेश, महेश राउत
एवम् स्टीयरिंग कमेटी और संलग्नित राज्य इकाईया.
केंद्रीय कार्यालय: सरई टांड, मोरहाबादी, पोस्ट रांची विश्वविद्यालय, रांची, झारखंड 834008
संपर्क: janandolan@gmail.com ०८७५७५७९८९८, ०९४३७५७१५४७, ०९१७९७५३६४०, ०९९४८४१०७९८, ०८३९००४५४८२

इसको भी देख सकते है