कोइल कारो पुलिस फायरिंग के 17 साल : 8 लोगों की शहादत को नहीं भूलेंगे तोरपा के आदिवासी
झारखण्ड के खूंटी जिले में 2 फ़रवरी को काला दिवस मनाया गया। यह आयोजन 2001 से हर साल इसी तारीख को मनाया जाता है ताकि 2001 में ग्रामीणों पर हुए पुलिसिया हमले की याद जिंदा रहे और उसके खिलाफ गुस्से की आग सुलगती रहे। कोइल कारो नदी पर प्रस्तावित बांध के लिए ज़मीन न देने पर स्थानीय आदिवासियों पर बर्बर पुलिसिया दमन हुआ जिसमें आठ आंदोलनकरी शहीद हुए थे। पढ़िए कोइल कारो आंदोलन पर एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट;
जान देंगे जमीन नहीं, “बिजली बत्ती कबुअ, डीबरी बत्ती अबुअ” का नारा कोयलकारो अंचल में दशकों से गुंजता रहा है। विस्थापन के खिलाफ क्षेत्र के मुंडा अंचल के ग्रामीण सरजोम की तरह तन कर खड़े हैं और किसी भी तरह के विस्थापन के खिलाफ चट्टान की तरह अडिग हैं। अपने पूर्वजों की जल, जंगल, जमीन की विरासत को बचाने के लिए आज भी निरंतर संघर्ष कर रहे हैं। दूसरी ओर इस इलाके को आज भी विकास के लिए सरकार के खोखले दावे से ही संतोष करना पड़ता है। यहां निवास करने वाले आदिवासी और सदान की आजीविका का मुख्य स्रोत कृषि है। साथ ही लघु वनोपज पर भी इनकी आजीविका निर्भर करती है।
2 फरवरी 2001 की घटना को नम आंखों से याद करते हैं ग्रामीण
तपकरा गोलीकांड की टीस आज भी ग्रामीणों के जेहन में है। दो फरवरी के दिन शहीद स्थल पर आसपास के गांव से हजारों की संख्या में तपकरा शहीद स्थल में ग्रामीण जमा होते हैं और 2 फरवरी 2001 की घटना को नम आंखों से याद करते हैं। तपकरा में जब कोयलकारो जन संगठन के लोगों पर शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन कर रहे हजारों लोगों पर पुलिस ने गोलियां चलाई और 8 लोगों को मौत के घाट उतार दिया, उस समय राज्य के मुख्यमंत्री बाबूलाल मंराडी की सरकार थी।
1960 से ही इलाके में चल रहा है संघर्ष
कोयलकारो संगठन के रेजन गुड़िया कहते हैं, बांध के विरोध में हमलोगों का संघर्ष 1960 से ही इलाके में चल रहा है। बांध के निर्माण से कई सभ्यता और संस्कृति समाप्त हो जायेगी। हम लोग किसी भी कीमत पर अपनी जमीन बांध के लिए नहीं देंगे। हमारे पूर्वजों ने कोयलकारो इलाके में जंगल साफ कर पहाड़ों को तोड़कर छोटे-छोटे खेत बनाये, इसी से अन्न पैदा करके अपनी आजीविका चलाते आये हैं। जीवन की आवश्यकता वे जंगल के कंद-मूल से पूरा करते, झरनों-नदियों से मछली मार कर खाते हैं। और इससे पूरे क्षेत्र के लोगों की आजीविका चलती है ऐसे में हम खुद को विस्थापित नहीं होने दे सकते हैं।
कोयलकारो के शिलान्यास की खबर सुनकर पूरा क्षेत्र आंदोलित हो उठा था
रेजन आगे बताते हैं, बांध बनने से 256 गांव विस्थपित होंगे। आंदोलन के इतिहास के बारे में रेजन कहते हैं कि 5 जुलाई 1995 को कोयलकारो के शिलान्यास की घोषणा प्रधानमंत्री श्री पी।वी। नरसिम्हाराव ने की थी। शिलान्यास की खबर सुनकर पूरा क्षेत्र आंदोलित हो उठा था। तोरपा, रांची, तपकरा, जयपुर, रनिया और बसिया जैसे प्रखण्ड मुख्यालय में रैली और धरना के कई कार्यक्रम निरंतर हुए। एक जुलाई से पांच जुलाई तक परियोजना क्षेत्र में कर्फ्यू लगा दिया गया। कर्फ्यू के दौरान कोई भी बाहरी आदमी क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकता था। क्षेत्र में जनाक्रोश को देखते हुये प्रधानमंत्री का कार्यक्रम रद्द कर दिया गया था। वर्ष 2000 में चोरी छिपे सर्वे करने वाले दो कर्मचारियों का वहां की महिलाओं ने सिर मुंडन कर कालिख पोत दी थी।
17वां शहीद दिवस
कोयलकारो जनसंगठन के बैनर तले हजारों ग्रामीण हर साल दो फरवरी को तपकारा शहीद स्थल पर जूटते हैं। शहीदों को श्रद्धांजलि देने उसके परिवार के लोग भी आते हैं। इसी के तहत आज शहीद दिवस कार्यक्रम कोयलकारो जनसंगठन द्वारा आयोजित किया गया। इसमें आसपास के दर्जनों गांवों के लोग शहीदों की याद में जुटते हैं। आज के संकल्प सभा को दयामनी बारला, फादर स्टेन स्वामी, दमोदर तुरी, रतन मुंडा, इलियास अंसारी, तुरतन टोपनो, गोपी घोष एवं कई ग्रामीणों ने संबोधित किया। कार्यक्रम का संचालन विजय गुड़िया ने किया।