18 राज्यों के हजारों आदिवासियों ने मांगा अपना वनाधिकार
आदिवासियों को अपने ही घर, जल, जमीन, जंगल से बेदखल किए जाने के खिलाफ देश के 18 राज्यों से आए हजारों आदिवासियों ने 15 दिसंबर 2011 को जन वनाधिकार रैली निकाली। इसमें बड़ी संख्या में महिलाएं भी थीं। आंदोलनकारियों ने वनवासियों व आदिवासियों के अधिकार देने वाले कानून को तुरंत लागू करने की मांग की। यह कानून 15 दिसंबर 2006 को संसद में पारित हुआ था।
देश भर से जंगली क्षेत्रों, समुद्र तटीय इलाकों के आदिवासी व असंगठित क्षेत्र के मजदूरों ने मंडी हाउस से संसद मार्ग (जंतर मंतर) तक रैली निकाली। वे अपनी मांगों के समर्थन में व सरकार की आदिवासी विरोधी नीतियों के खिलाफ नारे लिखी तख्तियां लिए नारे लगाते हुए संसद की ओर बढ़ रहे थे। थाना संसद मार्ग पुलिस ने उन्हें बीच में ही रोक दिया। इस पर आंदोलनकारियों ने वहीं पर सभा शुरू कर दी। सभा का संचालन राष्ट्रीय वन-जन श्रमजीवी मंच उŸार प्रदेश व उŸाराखंड के संयोजक रोमा व मुन्नीलाल ने किया।
वक्ताओं ने सरकार से सवाल किया कि वनाधिकार कानून बने पांच सालबीत जाने के बाद भी देश में इसे पूरी तरह से लागू क्यों नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि हमारे साथ 80 फीसद आंदोलनकारी महिलाएं हैं जिनका जल, जमीन, जंगल से सीधा व गहरा नाता है। इस अटूट रिश्ते पर सरकारी बंदिशें अब हम मानने वाले नहीं हैं। महिलाएं यह एलान करने आई हैं कि अब वनों पर समुदाय का नियंत्रण होगा न कि सरकार या वन विभाग का।
मुन्नी लाल, गौतम वंद्योपाध्याय, शांता भट्टाचार्य, अरुणाचल से जारजुम और नेशनल फिशवर्कर फेडरेशन से पीटर सहित कई वक्ताओं ने विचार रखे। मुन्नीलाल ने कहा कि हम सरकार को चुनौती देते हैं कि वनाश्रित समुदाय को बेदखल करके दिखाए। अब यह समुदाय सरकार के भरोसे का इंतजार नहीं करेगा। वे अपना अधिकार पाने के लिए खुद पहल करके जल, जंगल और जमीन पर सामूहिक रूप से अपना दखल कायम करेंगे। एनटीयूआई के गौतम मोदी ने केंद्र सरकार की ओर से लाए जाने वाले भूमि अधिग्रहण कानून का विरोध करते हुए कहा कि इससे न केवल किसानों के सामने जीविका का संकट पैदा होगा बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा भी खतरे में पड़ जाएगी। रामचंदर राणा ने कहा कि सरकार वनाधिकार कानून लागू करना ही नहीं चाहती। हुलसी देवी ने कहा कि अगर उनके अधिकारों को तुरंत मान्यता नहीं दी गई और कानून लागू नहीं किया गया तो वे अपने खोए हुए जंगल, भूमि, नदी, तालाब, समुद्र, वनोपज आदि सरकार व वन अधिकारियों से छीनकर अपना अधिकार कायम करेंगे।
राजकुमारी ने कहा कि सरकार इस कानून को इसलिए लागू नहीं कर रही है क्योंकि वह जानती है कि ऐसे कानून को लागू करने में राजनीतिक, प्रशासनिक व सामाजिक बाधाएं हैं। वन संपदा पर सरकार व अभिजात वर्ग का प्रभुत्व खत्म करने के लिए यह कानून बना था। लेकिन अभी तक इसे लागू करने की कोई पहल सरकार ने नहीं की है।
रैली में कैमूर क्षेत्र महिला मजदूर, किसान संघर्ष समिति, महिला वनाधिकार एक्शन कमेटी तराई क्षेत्र व थारू आदिवासी महिला मजदूर किसान मंच, वन ग्राम और अधिकार मंच, धाड़ क्षेत्र मजदूर संघर्ष समिति, बिरसा मुंडा भू अधिकार मंच सहित दर्जनों अन्य संगठनों के पदाधिकारी शामिल थे। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, छत्तिसगढ़, बिहार, ओडीशा, झारखंड, असम, गुजरात, कर्नाटक महाराष्ट्र, अरुणाचल प्रदेश सहित तमाम राज्यों से आए आदिवासी इसमें शामिल रहे।
रैली के माध्यम से निम्न मांगें की गयीं :-
- सामुदायिक वनाधिकार के तहत ग्राम समाज में जितने भी वन आते हैं, उन्हें समुदाय के अधीन किया जाए व वनविभाग के नियंत्रण से मुक्त किया जाए।
- वनविभाग द्वारा ग्राम समाज की मारी गई भूमि पर भूमिहीनों को मालिकाना हक़ दिया जाए।
- अंतर्राष्ट्रीय वित्त संस्थाओं, जापानी कंपनी जायका द्वारा चलाये जा रहे संयुक्त वनप्रबंधन कार्यक्रम को तुरंत बंद किया जाए।
- अन्य परंपरागत समुदाय के लिए तीन पीढ़ी के 75 वर्ष के प्रावधान को समाप्त किया जाए।
- महिलाओं के सामुदायिक वनाधिकारों पर मालिकाना हक़ कायम किया जाए।
- सभी वनग्राम एवं टोंगिया वनग्राम बस्तियों को राजस्व ग्राम में बदला जाए।
- लघु वनोपज पर सामुदायिक अधिकार, राष्ट्रीय पार्कों व सेंचुरी में सख्ती से कानून का पालन किया जाए, पशुपालकों के वनाधिकार को दिया जाए व वनविभाग की ठेकेदारी और दबंगों व माफियाओं के साथ सांठ-गांठ एवं गुंडागर्दी को समाप्त किया जाए।
- वनक्षेत्र में नदियों एवं तालाबों, मछुआरों व वनाश्रित समुदायों का खनिजों पर मालिकाना हक़ दिया जाए व खनिजों को कंपनियों को बेचना तुरंत बंद किया जाए।
- वनाश्रित समुदायों पर वनविभाग द्वारा व भारतीय दंड संहिता के तहत लादे गए तमाम मुकदमों को वापस लिया जाए, जैसा कि शासन ने आदेश पारित किया है। ग्राम वनाधिकार समितियों का सम्मेलन बुलाया जाए व उनके प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाए।