नर्मदा बचाओ आंदोलन : चेतावनी उपवास शुरू; 28 अप्रैल को डूब के खिलाफ सामाजिक संगठनों का दिल्ली के मध्य प्रदेश भवन पर प्रदर्शन
नर्मदा बचाओ आन्दोलन की तीन दशकों की लड़ाई के बाद लाखों विस्थापितों के समर्थन में जस्टिस झा कमिशन की रिपोर्ट को लागू कराने के लिए प्रदर्शन
स्थान : मध्य प्रदेश भवन,
2, लोकप्रिय गोपीनाथ बर्दोलाई मार्ग, चाणक्यपुरी, नई दिल्ली
दोपहर 12 बजे, 28 अप्रैल 2016,
नर्मदा घाटी में सरदार सरोवर के विस्थापितों के 30 सालों से चल रहे संघर्ष से और साथ साथ निर्माण से आप परिचित हैं ही। आप सबका साथ, इन तीन दशकों में समय समय पर, हर गंभीर संकट काल में मिला है। आज फिर समय आया है कि आप और हम मिलकर शासन की धोखाधड़ी, अधिकारों की अवमानना, पुनर्वास बिना 50 हजार परिवारों की धरोहर, संपदा डुबोने की साजिश और भ्रष्टाचारियों को बचाने की तैयारी के सामने शासन को चुनौती दे।
नर्मदा का सवाल देशभर के जनसंगठनों से जुड़ा है और जनसंगठन हमसे। जबकि म.प्र. उच्च न्यायालय से गठित न्या. झा आयोग की 7 सालों से चली जाँच के बाद की रिपोर्ट एनवीडीए और राज्य शासन ने आंदोलन (याचिकाकर्ता होते हुए भी) को नहीं देने की साजिश रची और विधानसभा के नाम पर उच्च न्यायालय को खोलने नहीं दिया, लेकिन विधायकों को भी नहीं दिया, तब यह निश्चित है कि “व्यापम” के बाद अब यह नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण का भ्रष्टाचार भी शासन छुपाना चाहती है। सुप्रीम कोर्ट में अपील याचिका द्वारा हाईकोर्ट की पारदर्शिता के पक्ष में आदेश को राज्य शासन ने चुनौती देते हुए सर्वोच्च अदालत के आदेश से अपने हाथ रिपोर्ट ली है।
अब वह मुख्य सचिव के हाथ में है और आने वाले छः हफ़्तों में राज्य शासन को “कार्यवाही रिपोर्ट” यानि “एक्शन टेकन रिपोर्ट” सुप्रीम कोर्ट में पेश करनी है। उस पर फिर सुप्रीम कोर्ट से आंदोलन की सुनवाई होनी है। झा आयोग की रिपोर्ट से मालूम होगा कि फर्जी रजिस्ट्रियों कितनी हुई है, 1500, 2000 या उससे भी ज्यादा? उसमें कितने करोड़ रू. व्यर्थ गये है, कितने दलालों और साथ देने वाले अधिकारी शामिल है? घर प्लॉट आबंटन और पुनर्वास स्थलों के निर्माण कार्य में कितना घोटाला हुआ है, सिर्फ पैसे का ही नहीं, जमीनों का, अधिकारों का भी, यह पता चलना है। पुनर्वास स्थल रहने लायक हैं या नहीं, नहीं तो क्यों, यह भी साफ मालूम हेाना है। दोषी कौन? यह पता होकर अधिकारी हो या दलाल, उन्हें सजा मिलनी है। उच्च न्यायालय में हमारे जाने के (2007) पहले विस्थापितों को ही जेल भेजा जा रहा था, जिस पर हाईकोर्ट से रोक लगी थी, आगे क्या होता है?, देखा जाएगा।
सरकार के इस अन्याय पूर्ण रवैये के विरोध में घाटी के लोगों की ओर से, 27 अप्रैल से 29 अप्रैल, 2016 तक प्रतिनिधिक ‘चेतावनी उपवास’ भोपाल में होगा। आंदोलन ने सभी प्रगतिशील तथा न्यायप्रिय लोगों से इस उपवास में शामिल हाेने और उसे सहयोग देने की अपील की है.