उत्तराखण्ड : गंगा-यमुना से महाकाली नदी पर बने बांधों पर चर्चा, लंबित समस्याओं से सरकारों ने मूंदी आंखें
उत्तराखण्ड में 2013 के भूस्खलन से प्रभावित 350 गाँवो को राज्य सरकार अभी तक नहीं बसा पाई है. फिर लाखो लोगो को उजाड़ने के लिए सरकार क्यों इतनी जल्दी कर रही है. राज्य सरकार को इस हरित राज्य में गंगा, यमुना से महाकाली नदियों तक बांधो की पागल दौड़ से पहले इन सवालो का जवाब देना होगा. पढ़िए विमलभाई एवं पूरन सिंह राणा की उत्तराखण्ड पर महत्वपूर्ण रिपोर्ट;
उत्तराखंड सरकार ने पुराने बांधों से अभी कोई है समझ नहीं ली है। मगर नए बांधो को आगे बढ़ाने के लिए हर तरह की तैयारियां और कोशिशें जारी हैं. ठेकेदारों को और खास तरह के माफियाओं को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से सहयोग देने का काम करने में यह सरकार भी पीछे नहीं है।
शराब माफिया व खनन माफिया को बढ़ावा देते हुए बांधों पर भी को आगे बढ़ाने के लिए पर्यावरणीय रुकावटों, स्वीकृतियों व कानूनी रुकावटों को दूर करने के सारे उपाय शुरू किए। हॉल ही में मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र रावत जी दिल्ली जाकर श्री नितिन गडकरी जी को मिले. पर्यावरण मंत्रालय और ऊर्जा मंत्रालय के बीच सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल किए जा रहे शपथ पत्रों में एकरूपता होने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय सक्रिय हुआ. प्रधानमंत्री के मुख्य सचिव ने 3 फरवरी को दोनों मंत्रालय के अधिकारियों की एक बैठक बुलाई. फिर 16 फरवरी को सभी लंबित परियोजनाओ की बाधाओ को दूर करने के प्रयास हुए. किन्तु टिहरी बांध विस्थापितों के पुनर्वास के लिए बांध कम्पनी द्वारा पैसा न देने पर कोई बात नहीं हुई.
ज्ञातव्य है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 2013 की आपदा के बाद स्वयं संज्ञान लेते हुए 13 अगस्त 2013 को उत्तराखंड के बांधों की सभी तरह की स्वीकृतियों पर रोक लगाई थी. सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमा जैसे-जैसे आगे बढ़ा, सर्वोच्च न्यायालय का ही दिया हुआ आदेश कमजोर होता गया। पहले सभी परियोजनाओं पर रोक लगी फिर, मामला गंगा घाटी तक आया और फिर मात्र 24 परियोजनाओं तक ही सुप्रीम कोर्ट की रोक का आदेश लागू हो पाया। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर पर्यावरण मंत्रालय ने श्री रवि चोपड़ा की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई. जिसने अपने महत्वपूर्ण सुझावों के साथ बांधों की जून २०१३ की आपदा में भूमिका के ठोस सबूत दिए। वन्य जीव संस्थान, उत्तराखंड ने अपनी रिपोर्ट में 24 परियोजनाओं को रोकने की सिफारिश की थी जिनको सर्वोच्च न्यायालय ने रोक कर के रखा है। पर्यावरण मंत्रालय ने इस समिति को कमजोर करने के लिए एक और समिति बनाई जिसके अध्यक्ष रवि चोपड़ा कमेटी के उपाध्यक्ष श्री दास बनाए गए. इस समिति ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रोकी गए 24 परियोजनाओं में से 6 बड़ी परियोजनाओं को पुनः जांच करके कुछ शर्तों के साथ आगे बढ़ाने की सिफारिश की।
अगर हम पर्यावरण की बात छोड़ भी दे और सिर्फ पुनर्वास की बात ही करे तो सरकार कॆ पास विस्थापितों को देने के लिए जमीन ही नहीं है। तो आप लोगों को कैसे उजाड़ सकते हैं? सरकार एक तरफ पलायन रोकने के लिए विभाग बना रही हैं दूसरी तरफ उजाड़ने के लिए एक के बाद एक योजनाएं बनाई जा रहीं है। जिनमे कानूनों का घोर उल्लंघन किया जाता है. शर्म की बात यह है कि जो सरकार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण की हिमायत करती हैं पर्यावरण की बात है कि जो सरकारी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण की हिमायत करती है वही सरकारॆ अपने देश और राज्य में पर्यावरण की बर्बादी करने में चुकती नहीं। सरकार नए बांधो सॆ पहलॆ इन सवालॊ का जवाब दॆ.
परियोजना प्रभावित लोगों की लाभकारी नीतियों को ना तो प्रचारित किया गया ना ही लागू किया गया.
- पर्यावरण और पुनर्वास की चुनौतियों का सामना करने के लिए राज्य को मिलने वाली 12% मुफ्त बिजली.
- स्थानीय क्षेत्र विकास कोश {परियोजना प्रभावित} के लिए परियोजना से मिलने वाली 1% मुफ्त बिजली.
- प्रत्येक प्रभावित परिवार को उत्पादन चालू होने के अगले 10 वर्ष तक 100 यूनिट बिजली प्रतिमाह मिलने का प्रावधान.
टिहरी बांध से जुड़े प्रश्नों की सूची तो बहुत लंबी है जिनमे से कुछ ज्वलंत सवाल:–
- भागीरथी और भिलगनानदी के 10 पुल टिहरी बांध की झील में डूबे जिसके बदले में चार पुल बनने थे 12 वर्ष के बाद भी अभी तक पूरी क्यों नहीं हुए?
- सरकार को बताना होगा 2005 से टिहरी बांध का काम चालू हो गया पुनर्वास पूरा ना होने के कारण 2017 नवंबर को बांध की जलाशय का जलाशय 815 मीटर की ऊंचाई तक ही रखने का फैसला किया गया यानी बांध की कुल ऊंचाई से, 815 मीटर के बीच के लोगों का भविष्य अनिश्चित और असुरक्षित कर दिया गया?
- सर्वोच्च न्यायालय नहीं दाखिल शपथ पत्र के अनुसार 415 लोगों को भूमि आधारित पुनर्वास क्यों नहीं दिया।
- बांध जलाशय के दोनों तरफ के लगभग 40 गांव नीचे धसक रहे है जिन गावों में मकान गिर गए भूस्खलन हुआ, उनका मुआवजा भी अभी तक क्यों नहीं?
- टिहरी बांध की झील में तार बाड़ ना होने के कारण कितने ही लोग और मवेशी मारे गए हैं जिनका हिसाब तक नहीं.
- टिहरी बांध जलाशय के उपर हरित पट्टी का पता नहीं.
- इन गांवों के लिए प्रस्तावित सम्पाषर्विक नीति पर आगे काम क्यों नहीं बड़ा जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने इसकी जिम्मेदारी केंद्र, राज्य सरकारो व पुनर्वास निदेशक पर डाली है।
- हरिद्वार के पुनर्वास स्थलों पथरी भाग 1, 2, 3, 4 के हजारों विस्थापितों को आज तक भूमिधर अधिकार क्यों नहीं दिया गया? जबकि 2003 में राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय ने शपथ पत्र देकर यह अधिकार तुरंत देने की बात कही थी।
- सिंचाई और पीने के पानी की कमी के कारण विस्थापित अपनी जमीने बेचने के लिए मजबूर हो रहे है. सरकार इस समस्या का हल क्यों नहीं करती जबकि 500 मीटर पर गंग नहर बहती है?
उत्तराखंड के दूसरे भी तमाम बांधो की समस्याओ का समाधान क्यों नहीं किया?
- मनेरी भाली 1 और 2 कि अनियमितताओं के कारण 6 से ज्यादा लोग मारे गए हैं.
- श्रीनगर बांध में अलकनंदा नदी का पानी रोक दिया गया। बांध से शहर की जरूरत है कि लिए भी पानी क्यों नहीं दे पा रही हैं सरकारे ?
- अलकनंदा भागीरथी व अन्य नदियों में बांध कंपनियां परयावरणीय मानकों का उल्लंघन करते हुए मलबा डाल रही हैं.
- एनजीटी कॆ जुर्माना लगाने पर सरकार बांध कंपनियों के ही पक्ष में खड़ी नजर आती है.
- विष्णुप्रयाग बांध की सुरंग से प्रभावितों का उचित पुनर्वास क्यों नहीं किया गया.
- विष्णुगाड-पीपलकोटी बांध के प्रभावित अपनी जमींन मकानों की सुरक्षा के लिए आवाज़ उठाने के कारण क्यों मुकद्दमे झेल रहे है .
भूस्खलन से प्रभावित 350 गाँवो को राज्य सरकार नहीं बसा पाई है चूँकि उनके लिए जमीं नहीं है. फिर बिना जमींन दिए लाखो लोगो को उजाड़ने के लिए सरकार क्यों इतनी जल्दी कर रही है. राज्य सरकार को इस हरित राज्य में गंगा, यमुना से महाकाली नदियों तक बांधो की पागल दौड़ से पहले इन सवालो का जवाब देना होगा.