संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

राष्‍ट्रीय सम्मेलन : समाज-संसाधन-संविधान बचाओ; 6 दिसम्‍बर 2015, नयी दिल्ली

26 जनवरी 2015 को प्रकाशित एक सरकारी विज्ञापन (संख्‍या-डीएवीपी 22201/13/0048/1415) में संविधान की प्रस्‍तावना के दो शब्‍द ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ रहस्‍यमय ढंग से गायब थे।[1]

क्‍या ऐसा जानबूझकर किया गया था? भारत के सामाजिक ताने-बाने को नष्‍ट-भ्रष्‍ट करने की अनेक कोशि‍शों के बाद, क्‍या यह सरकार भारत के संविधान के ताने-बाने को उलटने-पुलटने में लगी है? अल्‍पसंख्‍यक समुदायों के प्रति दुर्भावनापूर्ण और असंवेदनशील नीतियों के लिए कुख्‍यात वर्तमान केन्‍द्र सरकार की इस मामले में चौतरफा आलोचना हुई। इसके बाद भी, इसके सहयोगी हिन्‍दुत्‍वादी संगठन सरकार, पुलिस और प्रशासन के सक्रिय सहयोग से खुलेआम सामाजिक संस्‍थाओं पर हमले कर रहे हैं। ये पूजा स्‍थलों और शैक्षणिक संस्‍थानों पर हमले कर रहे हैं। लोगों की रोजमर्रा की जीवनशैली पर हमले कर रहे हैं। गिरजाघर में आग लगाना, गोमांस के सनसनीखेज मुद्दे के आधार पर दलितों और अल्‍पसंख्‍यकों के खिलाफ हमला, शैक्षिक, शोध और कला संस्‍थानों में हिन्‍दुत्‍वादी समर्थकों को तैनात करना – ये सारी बातें वर्तमान सरकार की गुप्‍त मंशा को साबित करती हैं। इन सबके जरिए सरकार की मंशा भारत को एक बहुसंख्‍यकवादी, सैन्‍य राज्‍य में तब्‍दील करना है। ऐसा राज्‍य जहाँ हाशिए पर पड़े लोगों की आवाज खुलेआम दबाई जा सके। ऐसे ही तत्‍वों द्वारा हमारे संस्‍कृति के झंडाबरदार – लेखकों, कवियों, गायकों, इतिहासकारों, वैज्ञानिकों को धमकाया और अपमानित किया जा रहा है। इन तत्‍वों का बस एक ही मकसद है कि समुदायों के बीच नफरत पैदा की जाए और जाति व धर्म के आधार पर वोटों की फसल काटी जाए।

हालांकि ‘साम्‍प्रदायिकता’, एक बड़ी समस्‍या का महज छोटा सा हिस्‍सा है। फासीवादी ताकतों के लिए सत्‍ता शक्ति‍ को मजबूत करने का यह सिर्फ एक जरिया है। ठीक उसी तरह जैसे नाजी जर्मनी ने ‘जर्मन-यहूदी’ भेद पैदा किया था। फासीवादी लालची कम्‍पनियों के सबसे अच्‍छे दोस्‍त भी हैं। लगभग सभी देशों में बड़ी कम्‍पनियों द्वारा तानाशाही, जनविरोधी राजनीतिक ताकतों को पाला-पोसा जाता रहा है। भारत में भी कहानी इससे अलग नहीं है। यह सरकार ‘बहुसंख्‍यक समुदायों’ के वोटों को एकजुट कर और विज्ञापनों पर कारपोरेट के लाखों लाख धन खर्च कर सत्‍ता में आई है। जीतने के बाद, अब वे अपने मददगारों को खुश करना चाहते हैं। इसलिए वे कारपोरेट के हितों के पक्ष में भूमि, श्रम और पर्यावरण कानूनों में जबरन संशोधन की कोशिश में लगे हैं। परियोजनाओं के लिए फटाफट इजाजत देने के नाम पर वे वनों को खत्‍म कर रहे हैं और इसे कारपोरेट के मुनाफे के लिए बेच रहे हैं। संवैधानिक प्रक्रियाओं का सम्‍मान नहीं किया जा रहा है और न ही लोगों के हितों की हिफाजत की जा रही है।

सब जानते हैं कि किसने पंसारे, डाभोलकर और कलबुर्गी की हत्‍या की। सवाल यह है कि ऐसे दुस्‍साहस को कौन चुनौती देगा? भारत के नागरिक होने के नाते क्‍या हम अपने संवैधानिक मूल्‍यों के साथ खिलवाड़ को बर्दाश्‍त करेंगे? भारत के सांस्‍कृतिक शख्‍सीयतों ने राज्‍य प्रायोजित अपने सम्‍मानों और पुरस्‍कारों को वापस कर एक बड़ा उदाहरण पेश किया है। इस पूरे परिदृश्‍य और मौके को देखते हुए, हम इस संवाद को आगे बढ़ाना चाहते हैं। हम आपको भारत के संविधान की हिफाजत के लिए आयोजित एकदिवसीय सम्मलेन में आमंत्रित करते हैं। यह सम्मेलन छ: दिसम्‍बर 2015 को गांधी शांति प्रतिष्‍ठान, नई दिल्ली में आयोजित किया जा रहा है।

6 दिसम्‍बर 2015 । सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक
गांधी शांति प्रतिष्‍ठान, दीन दयाल उपाध्‍याय मार्ग, नई दिल्‍ली – 110002

संभावित कार्यक्रम

09:00-09:30 चाय और रजिस्‍ट्रेशन

09:30-09:40 स्‍वागत – विमल भाई

09:40-09:50 सम्मलेन की भूमिका – मेधा पाटकर

09:50-10:50 बुद्धिजीवियों, लेखकों और संस्‍कृतिकर्मियों का अभिनंदन और विचार-विमर्श

10:50-11:00 चाय

11:00-01:00 मूलभूत अधिकारों और संवैधानिक मूल्‍यों के उल्‍लंघन की दास्‍तान
(दलित, आदिवासी, मुसलमान, ईसाई और परियोजनाओं से प्रभावित समुदायों के प्रतिनिधियों की दास्‍तान)

01:00-01:45 भोजन

01:45-03:45 ‘समाज बचाओ’, ‘संविधान बचाओ’ और ‘संसाधन बचाओ’ विचार-विमर्श (3 ख्‍यातिनाम वक्‍ता)

03:45-04:00 निष्‍कर्ष

04:00-04:45 आगे की योजना

04:45-05:00 चाय

जिंदाबाद!

मेधा पाटकर | अरुंधती धुरू | फैजल भाई | मीरा | बिलाल | गैब्रिअल | आशीष रंजन | सी आर नीलाकंदन | डॉ सुनीलम | राजेंद्र रवि | विमल भाई | महेंद्र यादव

ज्‍यादा जानकारी के लिए सम्‍पर्क करें – शबनम 9971058735 | मधुरेश 9818905316 |
ई-मेल: napmindia@gmail.com

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