आखरी सांस तक लड़ती रहूंगी : जेल से दयामनी बारला का इंटरव्यू
झारखंड में किसानों की जमीन के अधिग्रहण के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाली पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता दयामनी बारला विगत एक महीने से जेल में है। उन पर भ्रष्टाचार और भूमि अधिग्रहण के विरूद्ध आंदोलन के दौरान सरकारी काम में दखलअंदाजी का आरोप है। दयामनी की रिहाई की मांग को लेकर पत्रकार, लेखक और कलाकार सड़क पर उतर आए हैं। राज्य भर में उनकी रिहाई को लेकर आंदोलन चल रहे हैं। विगत दिनों बिरसा मुंडा केंद्रीय काराग्रह , रांची में दयामनी से उन पर लगाए गए आरोपों, आंदोलनों और भूमि अधिग्रहण के मसलों पर पेश है नौशाद और आलोका की लंबी बातचीत:
मनरेगा जैसी योजना में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन करने के एक पुराने मामले में जब आपने न्यायालय में सेरेंडर किया था, तो आपको इस बात की जानकारी थी कि इतने दिनों तक जेल में रहना पड़ सकता है?
मैंने वर्ष 2006 में मनरेगा में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई थी। तब लोकतांत्रिक तरीके से आंदोलन किया था, कोई अपराध नहीं किया था। इसलिए मुझे इस बात की जरा भी उम्मीद नहीं थी कि हमें इस मामले में इतने लंबे समय तक जेल में रहना पड़ेगा।
जब आपने न्यायालय में आत्मसपर्ण किया था तो क्या इस बात की जानकारी थी कि आपके खिलाफ और भी मामले दर्ज हैं?
मेरे विरूद्ध और भी मामले दर्ज हैं, इस बात की मुझे कोई जानकारी नहीं थी। सेरेंडर करने के बाद दूसरे मामले में मेरे खिलाफ वारंट जारी किया गया। इससे पहले मुझे इस केस के बारे में कुछ भी पता नहीं था। मुझे किसी प्रकार की कोई नोटिस नहीं मिली थी। जेल में रहते ही वारंट जारी होने के बाद मुझे पता चला कि मैं नगड़ी में अधिग्रहण के लिए प्रयास किए जा रहे जमीन पर धान रापने की आरोपी हूं। इसके बाद अखबारों से यह पता चला कि मुझपर न्यायालय का अवमानना करने का भी आरोप है। इस मामले में भी मुझे अबतक किसी तरह की नोटिस नहीं मिली है।
ये न्यायालय अवमानना के मामले में क्या है?
मैंने पहले ही कहा है कि इस मामले में मुझे कोई नोटिस नहीं मिली है। अखबारों से यह पता चला है कि यह मामला नगड़ी मामले को लेकर हाईकोर्ट का पुतला दहन करने से संबंधित है। जबकि मैं उस कार्यक्रम में शामिल ही नहीं हुई थी। दरअस्ल, सालखन मुर्मू राजभवन के पास नगड़ी मामले को लेकर भूख हड़ताल पर बैठे थे। उसी दौरान मैं उनसे एक मानवीय संवेदना के तहत मिलने गई थी। मेरी इस मुलाकात के बाद कुछ लोगों ने अलबर्ट एक्का चौक पर हाईकोर्ट का पुतला दहन किया था। उस मामले में मुझे भी जोड़ दिया गया है। जबकि मैं उसमे थी ही नहीं। कोर्ट ने इस मामले में 26 नवंबर तक मुझसे जवाब मांगा है।
तो आप कोर्ट को जवाब देंगी?
हां क्यों नहीं, मैं शुरू से ही न्यायालय का सम्मान करती रही हूं। इस मामले में मैं कोर्ट के समक्ष अपनी बात अवष्य रखना चाहूंगी।
भूमि अधिग्रहण के विरूद्ध आप कई बड़े आंदोलनों में शरीक रहीं। लेकिन नगड़ी के मसले में आपको कुछ अलग तरह के ही अनुभव हुए। इस मसले को लेकर आपको जेल की यात्री भी करनी पड़ी। क्या कहेंगी इसपर?
हां, आपने सही कहा। मैं कई आंदोलनों में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत सक्रिय रही। कोयलकारो आंदोलन में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के लिए भूमि अधिग्रहण के खिलाफ भी संघर्षरत रही। गुमला और खूंटी में मित्तल के भूमि अधिग्रहण के विरूद्ध भी लड़ाई लड़ी। हर जगह हम बहुत हद तक सफल हुए। लेकिन नगड़ी की लड़ाई से हमे कुछ अलग तरह का ही अनुभव मिल रहा है। नगड़ी को लेकर मैं थोड़ी मायूस जरूर हूं, पर नाउम्मीद नहीं हूं। हमें पूरा भरोसा है कि यह लड़ाई भी एक निर्णय तक पहुंचने के बाद ही खत्म होगी।
आप एक महीने से अधिक समय से जेल में हैं। इस दौरान आपके विचारों में किसी तरह का बदलाव तो नहीं आया। क्या नगड़ी या भूमि अधिग्रहण के विरूद्ध आंदोलन को आप आगे भी लीड करती रहेंगी?
जेल में आने के बाद भी मेरे विचार वही हैं, जो पहले थे। मुझमें कोई बदलाव नहीं आया। मैं आगे भी नगड़ी के आंदोलन को नेतृत्व देती रहूंगी। मैं नगड़ी के लोगों की जमीन को सरकारी कब्जे से मुक्त कराने के लिए लोकतांत्रिक तरीके से संघर्ष करती रहूंगी। इसके लिए मुझे आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाए या फिर फांसी के तख्ते पर लटका दिया जाए। मैं नगड़ी तो क्या, राज्य के किसी भी हिस्से में किसानों के भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आखरी सांस तक लड़ती रहूंगी। क्योंकि जमीन खोने का दुख क्या होता है, यह मैंने महसूस किया है और भोगा भी है। मैं जब बहुत छोटी थी तो मेरे मां-बाप की जमीन छीन ली गई। इसके वजह से मेरे मां-बाप को गांव से पलायन करना पड़ा। उन्हें मेहनत-मजदूरी करनी पड़ी। पिता शहर में मोटिया मजदूर बने तो मां दूसरे के घरों में जूठन धोयी। मेरे भाईयों को भी कुली और धांगर बनना पड़ा। यहां तक कि मैं खुद भी छोटी उम्र में मजदूर बनी। दूसरे के घरों में बर्तन तक धोए। इसलिए अब मैं यह हरगिज नहीं चाहती कि किसी के माता-पिता की जमीन छीनी जाए। किसी के पिता मजदूर बने और किसी का भाई धांगर। यह भी नहीं चाहती कि किसी की मां को दूसरे के घरों में जूठन धोने को मजबूर होना पड़े या किसी की बेटी को दाई बनना पड़े।
लेकिन दयामनी जी विकास के लिए सरकार को जमीन तो चाहिए ही न?
हां जरूर चाहिए। लेकिन किसानों की कृषि योग्य जमीन ही क्यों? राज्य में 38 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि है। 22 लाख हेक्टेयर भूमि कृषि योग्य है और 14 लाख हेक्टेयर भूमि बंजर है। आखिर सरकार इस बंजर भूमि पर कल-कारखाने या पॉवर प्लांट लगाना क्यों नहीं चाहती है। हर जगह उनकी नजर किसानों की भूमि पर ही क्यों है। हम विकास के विरोधी नहीं हैं। सरकार विकास के लिए बंजर भूमि का उपयोग कर सकती है।
अच्छा एक बार फिर से नगड़ी की ओर लौटना चहूंगा। नगड़ी का मामला सिर्फ भूमि अधिग्रहण का नहीं है। यह मामला काफी पेचिदा लगता है। कोर्ट का मानना है कि नगड़ी में भूमि का अधिग्रहण बहुत पहले ही हो चुका है और रैयतों का कहना है कि भूमि अधिग्रहण हुआ ही नहीं है। अखिर हकीकत क्या है?
देखिए मैंने अभी हाल ही में आरटीआई के तहत भू-अर्जन विभाग से नगड़ी की जमीन का ब्योरा मांगा है। विभाग ने सूचना दी है कि 1957 में बिरसा एग्रिकल्चर के विस्तार के लिए जमीन का अधिग्रहण किया गया। इसके एवज में 1958 में 153 रैयतों में से 128 ने जमीन का मुआवजा लेने से इंकार कर दिया। दूसरी तरफ संबंधित किसानों की मालगुजारी रसीद भी कटती रही। इससे साफ जाहिर होता है कि वास्तविक रूप से जमीन का अधिग्रहण हुआ ही नहीं है। मैंने आरटीआई के तहत जिस विभाग के लिए जमीन अधिग्रहित करने की बात की जा रही है यानि बिरसा एग्रिकल्चर विभाग से भी यह सूचना मांगी है कि अगर जमीन अधिग्रहण हुआ है तो उसका उपयोग किस रूप में किया गया? इसपर इस विभाग का जवाब भी हैरत में डालने वाला है। विभाग ने स्पष्ट रूप से यह कहा है कि इसकी जानकारी विभाग को नहीं है। विभाग ने यह भी कहा है कि जमीन का अधिग्रहण हुआ ही नहीं है तो उसका उपयोग किस रूप में होगा?
अंत में एक सवाल और। क्या आप किसानों के भूमि अधिग्रहण पर नगड़ी और राज्य की जनता से कुछ कहना चाहेंगी?
मैं तमाम लोगों से यही कहना चाहूंगी कि वे किसी भी कीमत पर अपनी खेती लायक जमीन को हाथ से जाने नहीं दें। इसके लिए वे लोकतांत्रिक तरीके से अपना संघर्ष जारी रखें। जनसंघर्ष की ताकत अन्य सभी प्रकार की ताकत से मजबूत होती है। उन्हें न्याया जरूर मिलेगा।