संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

हरदा जल सत्याग्रह : जितनी मजबूत, उतनी कमजोर सत्ता

जल सत्याग्रह से लोट कर जानेमाने  गाँधीवादी  सामाजिक कायकर्ता हिमांशु कुमार की टिप्पणी 

अभी अभी मध्य प्रदेश से लौटा हूँ ! वहाँ हरदा जिले के खरदना गाँव वालों के एक सत्याग्रह में शामिल होने गया था ! गाँव वालों के साथ करीब अट्ठारह घंटे पानी में खड़ा रहा !

गाँव वाले तो पिछले चौदह दिन से पानी में ही खड़े थे ! कारण यह था कि पहले तो गाँव वालों से बात किये बिना ही सरकारी अफसरों और नेताओं ने इंदिरा सागर नाम का एक बड़ा बाँध बना दिया ! फिर इस साल लोगों को ज़मीन के बदले ज़मीन दिए बिना ही सरकार ने बाँध में पानी भर दिया ! लोगों के खेत और फसल डूब गयी !ज़मीन डूब गयी तो अब लोग क्या करें ?बच्चों को क्या खिलाएं ? लोगों ने कहा इस से तो अच्छा है कि सरकार हमारी ज़मीन के साथ साथ हमें भी डूबा दे ! सरकार की इस मनमर्जी के खिलाफ लोग पानी में जाकर खड़े हो गये !


देश भर में किसानों के इस विरोध प्रदर्शन के तरीके पर बड़ा आकर्षण पैदा हुआ ! चारों ओर सरकार की आलोचना होने लगी ! सरकार घबरा गयी ! लेकिन सरकार में बैठे लोग खुद को बहुत ताकतवर मानते हैं ! इसलिए सरकार ने पानी में खड़े महिलाओं और पुरुषों को ताकत का इस्तेमाल कर के निकालने का फैसला किया ! सरकार ने पानी में क़ानून की एक सौ चवालीस धारा लागू कर दी ! शायद भारत में पहली बार पानी में यह धारा लागू की गयी थी ! अगले दिन सुबह – सुबह पांच बजे लोगों पर पुलिस ने हमला शुरू किया ! छोटे – छोटे बच्चों के साथ घरों में सोयी हुई महिलाओं और बूढों को पुलिस ने घरों के दरवाज़े तोड़ कर बाहर खींच कर निकालना शुरू किया ! इसके बाद पानी में खड़े लोगों को बाहर निकालने के लिये पुलिस ने पानी में खड़े लोगों पर हमला किया ! पुलिस के हमलों से बचने के लिये लोग ओर ज्यादा गहरे पानी में चले गये ! पुलिस ने मोटर बोटों में बैठ कर लोगों के चारों तरफ घेरा डाल दिया ! इसके बाद पुलिस कमांडो ने पानी में घुस कर सभी सत्याग्रहियों को खींच कर बाहर निकाला !

लोगों ने हांलाकि कोई अपराध नहीं किया था ! लोग तो अपने ही खेतों में खड़े थे ! सरकार ने उनके खेत में बिना बताये पानी भर दिया था ! किसानो की मेहनत से लगाई गयी सोयाबीन की फसल डूब गयी ! एक किसान मुझे रोते हुए बता रहा था कि भाई जी मैंने बीस हज़ार रुपया क़र्ज़ लेकर सोयाबीन की फसल बोई थी ! अब मैं क़र्ज़ कहाँ से चुकाऊंगा ? अपने बच्चों को कहाँ से खिलाऊंगा ?

सरकार ने लोगों के विरोध को कुचलने के लिये पूरे गाँव को उजाड़ने की तैयारी कर ली ! गाँव की बिजली काट दी गयी ! पीने के पानी के हैण्ड पम्प उखाड़ने की कोशिश की जाने लगी ! सत्याग्रह करने वाले गाँव वालों के घरों को तोड़ने के लिये सरकारी बुलडोज़र गाँव में आ गये !
मुझे यह सब देख कर दो साल पहले बस्तर में अपने आश्रम को उजाड़े जाने के दृश्य याद आने लगे ! तब भी सरकार ने पहले बिजली काटी थी फिर पीने के पानी के हैंडपंप उखाड़े थे और फिर सरकारी बुलडोजरों ने आश्रम में बने घरों को कुचल दिया था !

गाँव वालों के साथ- साथ जब पुलिस वाले मुझे घसीट रहे थे ! बच्चे रो रहे थे ! किसान औरतें और पुरुष नारे लगा रहे थे ! मैं उत्साह और आशा के भावों से भरा हुआ था ! क्योंकि इन गावों के कमज़ोर से दिखने वाले लोगों ने शक्तिशाली राज्य को इतना झकझोर दिया था ! कि किसी की परवाह ना करने वाला राज्य इन पर हमला करने पर आमादा हो गया था !

शायद कुछ ही वर्षों में इसी तरह से हम इस देश में करोड़ों गरीबों से उनकी ज़मीने ऐसे ही पीट पीट कर छीन लेगे ! गरीब इसी तरह से विरोध करेंगे ! और हम ऐसे ही पुलिस से गरीबों को पिटवा कर उनकी ज़मीने छीन लेंगे ! गरीबों से ज़मीने छीन कर हम अपने लिये हाइवे , शापिंग माल , हवाई अड्डे , बाँध , बिजलीघर , फैक्ट्री बनायेंगे और अपना विकास करेंगे !

हम ताकतवर हैं इसलिए हम अपनी मर्जी चलाएंगे ? ये गाँव वाले कमज़ोर हैं इसलिए इनकी बात सुनी भी नहीं जायेगी ? सही वो माना जाएगा जो ताकतवर है ? तर्क की कोई ज़रुरत नहीं है ? बातचीत की कोई गुंजाइश ही नहीं है ?

और इस पर तुर्रा यह कि हम दावा भी कर रहे हैं कि अब हम अधिक सभ्य हो रहे हैं ! अब हम अधिक लोकतान्त्रिक हो रहे हैं ! और अब हमारा समाज अधिक अहिंसक बन रहा है !
हम किसे धोखा दे रहे हैं ? खुद को ही ना ?

करोड़ों लोगों की ज़मीने ताकत के दम पर छीनना, लोगों पर बर्बर हमले करना , फिर उनसे बात भी ना करना, उनकी तरफ देखने की ज़हमत भी ना करना ! कब तक इसे ही हम राज करने का तरीका बनाये रख पायेंगे ? क्या हमारी यह छीन झपट और क्रूरता करोड़ों गरीबों के दिलों में कभी कोई क्रोध पैदा नहीं कर पायेगा ? क्या हमें लगता है कि ये गरीब ऐसे ही अपनी ज़मीने सौंप कर चुपचाप मर जायेगे या रिक्शे वाले या मजदूर बन जायेंगे ? या ये लोग भीख मांग कर जी लेंगे और इनकी बीबी और बेटियाँ वेश्या बन कर परिवार का पेट पाल ही लेंगी ? और इन लोगों की गरीबी के कारण हमें सस्ते मजदूर मिलते रहेंगे ?

दुनिया में हर इंसान जब पैदा होता है तो ज़मीन , पानी , हवा , धुप , खाना , कपडा और मकान पर उसका हक जन्मजात और बराबर का होता है ! और किसी भी इंसान को उसके इस कुदरती हक से वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि इनके बिना वह मर जाएगा !

इसलिए अगर कोई व्यक्ति या सरकार किसी भी मनुष्य से उसके यह अधिकार छीनती है तो छीनने का यह काम प्रकृति के विरुद्ध है , समाज के विरुद्ध है , संविधान के विरुद्ध है और सभ्यता के विरुद्ध है !

हम रोज़ लाखों लोगों से उनकी ज़मीने, आवास , भोजन और पानी का हक छीन रहे हैं ! और इसे ही हम विकास कह रहे हैं ! सभ्यता कह रहे हैं ! लोकतंत्र कह रहे हैं !

यदि किसी व्यक्ति के पास अनाज , कपड़ा ,मकान , कपडा , दूध दही , एकत्रित करने की शक्ति आ जाती है तो हम उसे विकसित व्यक्ति कहते है ! भले ही वह व्यक्ति अनाज का एक दाना भी ना उगाता हो , मकान ना बना सकता हो , खदान से सोना ना खोद सकता हो ! गाय ना चराता हो ! अर्थात वह संपत्ति का निर्माण तो ना करता हो परन्तु उसके पास संपत्ति को एकत्र करने की क्षमता होने से ही हम उसे विकसित व्यक्ति कहते हैं !

बिना उत्पादन किये ही उत्पाद को एकत्र कर सकने की क्षमता प्राप्त कर लेना किसी विशेष आर्थिक प्रणाली के द्वारा ही संभव है ! और ऐसी अन्यायपूर्ण आर्थिक प्रणाली समाज में लागू होना किसी राजनैतिक प्रणाली के संरक्षण के बिना संभव नहीं है !

इस प्रकार के अनुत्पादक व्यक्तियों या या व्यक्तियों के वर्ग को उत्पाद पर कब्ज़ा कर लेने को जायज़ मानने वाली राजनैतिक प्रणाली उत्पादकों की अपनी प्रणाली तो नहीं ही हो सकती !

इस प्रकार की अव्यवहारिक ,अवैज्ञानिक और अतार्किक और शोषणकारी आर्थिक और राजनैतिक प्रणाली मात्र हथियारों के दम पर ही टिकी रह सकती है और चल सकती है !

इसलिए अधिक विकसित वर्गों को अधिक हथियारों , अधिक सैनिकों और अधिक जेलों की आवश्यकता पड़ती है ! ताकि इस कृत्रिम राजनैतिक प्रणाली पर प्रश्न खड़े करने वालों को और इस प्रणाली को बदलने की कोशिश करने वालों को कुचला जा सके !

बिन मेहनत के हर चीज़ का मालिक बन बैठे हुए वर्ग के लोग अपनी इस लूट की पोल खुल जाने से डरते हैं ! और इसलिए यह लोग इस प्रणाली को विश्व की सर्वश्रेष्ठ प्रणाली सिद्ध करने की कोशिश करते हैं ! इस प्रणाली को यह लुटेरा वर्ग लोकतंत्र कहता है ! इसे पवित्र सिद्ध करने की कोशिश करता है ! इसके लिये धर्म , महापुरुष , फ़िल्मी सितारों , मशहूर खिलाड़ियों और सारे पवित्र प्रतीकों को अपने पक्ष में दिखाता है !

सारी दुनिया में अब यह लुटेरी प्रणाली सवालों के घेरे में आ रही है ! इस प्रणाली के कारण समाज में हिंसा बढ़ रही है ! हम इसका कारण नहीं समझ रहे और इस हिंसा को पुलिस के दम पर कुचलने की असफल कोशिश कर रहे हैं ! देखना यह है कि यह लूट अब और कितने दिन तक अपने को हथियारों के दम पर टिका कर रख पायेगी ?

(लेखक के फेसबुक से )

इसको भी देख सकते है