जे.पी. थर्मल प्लांट बघेरी पर 100 करोड़ का जुर्माना
हिमाचल हाईकोर्ट ने जेपी एसोसिएट्स के बघेरी थर्मल संयंत्र पर एक अभूतपूर्व निर्णय दे कर यह आभास कराया है कि प्रदेश में संसाधनों की कॉरपोरेट लूट मची है और इस काम में यहां के राजनेता-अधिकारी बेशर्मी से शामिल हैं। हाईकोर्ट ने दूसरी बार इस परियोजना को वर्तमान मंत्रिमंडल से मिली मंजूरी पर भी सवाल उठाया। यह भी पिछले कुछ वर्षों में पहली बार हुआ है कि किसी बड़े कॉरपोरेट को भूमि, वन और पर्यावरण के कानून तोड़ने पर एक सौ करोड़ से ज्यादा का जुर्माना हुआ। निर्मित ढांचे को तोड़ने का आदेश और कानूनी हेराफेरी करने वाले अधिकारियों व संस्थाओं की जांच का आदेश दिया गया।
वेदान्ता, पॉस्को, लवासा से ले कर देश में बन रही तमाम परमाणु ऊर्जा सयंत्रों, थर्मल पॉवर प्लांट और पनबिजली प्लांटों में ऐसी ही धांधलियां हो रही हैं। सरकारें कंपनियों को कानून तोड़ने की खुली छूट दे रही है। प्रभावित जनता व देश के ईमानदार जनपक्षधर लोग जब इन विनाशकारी परियोजनाओं का विरोध कर रहे हैं तो नेता उन्हें देशद्रोही करार दे रहे हैं। न्यायालयों की भूमिका भी सब जगह ठीक नहीं लगती है। नव-उदारवाद के दौर में लोकतंत्र का सच यही है कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जनता के साथ खड़ी नहीं दिखती बल्कि पूंजीपतियों के हितों की रक्षक बन कर रह गई है। इसलिए भी हिमाचल हाईकोर्ट का यह फैसला अलग तरह का फैसला है, जिसकी हम तारीफ करते हैं।
हिमाचल प्रदेश में पिछले डेढ़ दशक से खासकर विकास के नाम पर कॉरपोरेट लूट खुले-आम चल रही है। तमाम जलविद्युत परियोजनाओं व अन्य व्यवसायिक इकाइयों की स्वीकृति तथा निर्माण में कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। पैसों के खुले लेन-देन का चलन आम बात हो गई है।
80 के बाद औद्योगिक विकास का दौर चला. विकास की परिभाषा बदलनी शुरू हुई. सीमेंट फैक्ट्रियां लगनी शुरू हुई।. एसीसी बरमाना और अंबुजा दरालाघाट में बड़े घपले हुए, खूब पैसे बनाए गए जो सर्वविदित है। 90 के बाद तो नैतिकता के अर्थ बदल गये। मैं यह सब कहानी इसलिए याद दिला रहा हूं कि देश में आज भी लोग यह सोचते हैं कि हिमाचल में भ्रष्ट सरकार नहीं है, वास्तव में यहां का सच कुछ और ही है।
पिछले एक दशक से हिमाचल ने एक बोर्ड टांग रखा है- एकल खिड़की- मतलब हिमाचल बिकाऊ है. अब प्रदेश सेब राज्य नहीं-बिजली राज्य है। आगे पर्यटन राज्य बनाने वाले हैं, हर छोटी-बड़ी नदी के लिए ग्राहक चाहिए। पॉवर प्लांट लगाने के लिए, पहाड़ का पत्थर बिकाऊ है सीमेंट के लिए, जंगल-पहाड़-बर्फ सब बिकाऊ है पर्यटन के लिए। खेती की थोड़ी सी समतल भूमि उद्योगों, बंगलों और शहरों के लिए। सरकार कहती है कि हमारे कानून प्रदेश हित में देश में सब से उतम हैं लेकिन विकास के नाम पर (कंपनी के फायदे और अपनी जेब हित) जनहित में छूट मिल सकती है।
बघेरी सीमेंट ग्राइन्डिंग और थर्मल प्लांट बागा सीमेंट प्लांट के क्लिंकर की पिसाई के लिए यह प्लांट लगा क्योंकि क्लिंकर में फ्लाई ऐश जो 15 प्रतिशत मिलनी होती है जिसे डीपीआर के मुताबिक कंपनी को पानीपत से लाना था। इसलिए भाड़ा कम करने के लिए थर्मल प्लांट का प्रस्ताव लाया गया। जिस से फ्लाई ऐश भी मिल जाए और बिजली भी बन जाए। इस परियोजना के लिए वर्ष 2004 में एमओयू किया गया और तभी से बिना किसी पर्यावरण व अन्य मंजूरी के काम शुरू कर दिया गया। इसके लिए कंपनी ने कुछ निजी भूमि खरीदी और बाकी 24 हेक्टर शामलात पर नाजायज कब्जा किया गया जो 2010 में कंपनी के नाम हस्तांतरित हुई।
इस दौरान दोनों भाजपा और कांग्रेस दोनों की सरकार रही। हमारे आंदोलन के साथियों के बार-बार बताने पर भी दोनों में से किसी सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। 24 मई, 2010 को बघेरी में हमने जलसा किया और 25 मई को सुंदर लाल बहुगुणा जी के साथ मुझे भी सुबह मुख्यमंत्री के आवास पर उनके साथ जाना पड़ा। जब मैंने बहुगुणा जी के सामने बघेरी में जेपी के इस नाजायज कब्जा की बात छेड़ी तो धूमल साहब बिगड़ गए और कहने लगे कि ऐसा इल्जाम लगाने की हिम्मत कैसे हुई। मैं अपने साथ इस भूमि का एक दिन पहले निकला पर्चा ले गया था। जब मैंने पर्चा दिखाया तो धूमल सकपकाते हुए बात टालने लगे।
यहां पर कब्जा की गई शामलात भूमि से 2004 के आसपास हजारों पेड़ नदारद हुए। किसी को समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है। कौन ये पेड़ काट रहा है। कुछ दिनों बाद निर्माण कार्य शुरू हो गया। 2007 में जब जन सुनवाई की बात प्रचारित हुई तब जाकर हिम परिवेश के कार्यकर्ताओं ने मसले को समझने कि शुरुआत की। 24 जून, 2007 को सुंदर लाल बहुगुणा जी और मैं स्वयं पहले विरोध में शामिल हुए। जबकि इस मामले में 23 जून, 2007 को हम सभी उस समय के मुख्यमंत्री से शिमला में उन के कार्यालय में मिले थे।
27 जून को जनसुनवाई हुई। इस में 2डज्च्। सीमेंट ग्राइन्डिंग यूनिट और पदजमहतंजमक उनसजप निमस इंेमक बंचजपअम थर्मल पॉवर प्लांट 10 मेगावाट और 1.10.89 मेगावाट डीजल जेनरेटर सेट को जन सुनवाई के लिए रखा गया। जनता ने भारी विरोध किया और एक स्वर से प्रस्ताव निरस्त कर दिया गया। कुछ दिनों बाद पता चला कि और भी कुछ थर्मल प्लांटों की मंजूरी सरकार ने दे दी है। इसका भारी विरोध हुआ और उस वक्त की सरकार ने सभी थर्मल प्लांट के प्रस्तावों को निरस्त कर दिया। 2008 में नई सरकार बनते ही इस घपले की जांच के बदले केवल जेपी को 20 मेगावाट थर्मल की मंजूरी फिर से दे दी गई। इस पर भी कोर्ट ने सवाल उठाया है।
इसलिए दूसरी पर्यावरण जन सुनवाई 7 सितंबर, 2009 को आयोजित हुई। अब प्रस्ताव 30 (मेगावाट) बंचजपअम थर्मल पॉवर प्लांट, 32 मेगावाट डीजल जेनरेटर सेट और 2 डज्च्। ग्राइन्डिंग व मिक्सिंग यूनिट का पेश किया गया। इसे भी जनता ने भारी विरोध के साथ खारिज कर दिया। मई, 2010 को जेपी समूह के द्वारा मेरे और दुखिया जी के विरुद्ध कई अदालतों में कैविएट दाखिल कर दी गई। इन कैविएट के नोटिस से पता चला की जेपी कंपनी को पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी मिल गई है। इसके बाद कंपनी के नाम भूमि हस्तांतरित हुई जबकि तब तक पूरी परियोजना गैर-कानूनी तरीके से बन कर तैयार हो चुकी थी।
इसके बाद मामले अदालतों में गए। इस फैसले से साबित हो गया है कि यहां जेपी समूह द्वारा पहले दिन से भारी गड़बड़ी नेताओं और अफसरों की मिलीभगत से की गई है। हिमाचल हाईकोर्ट का यह फैसला इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि पहली बार सारी अनियमितताएं सूचीबद्ध हुईं और कैबिनेट के फैसले पर भी नाराजगी जाहिर की गई। जब एक परियोजना में अदालत द्वारा 100 करोड़ का जुर्माना लगाया जा रहा है तो ऐसे में प्रदेश में हजारों करोड़ के आज तक के घपलों पर कितने का जुर्माना बनेगा।
हिमालय नीति अभियान लंबे दौर से स्थानीय आंदोलनों के साथ काम कर रहा है तथा टिकाऊ व पहाड़ की प्रकृति के अनुसार दोहन मुक्त विकास की वकालत करता रहा है।
हम केंद्र व राज्य सरकार से मांग करते हैं-
उपरोक्त परिस्थितियों को ध्यान में रखकर हम केंद्र सरकार से मांग करते हैं कि उन सभी बड़ी बिजली, सीमेंट और औद्योगिक इकाइयों की मंजूरी और उसके निर्माण की सीबीआई जांच करवाई जाए जो पिछले 10 वर्षों के भीतर हिमाचल प्रदेश में स्थापित हुई हैं। कानून की अनदेखी करके मंजूरी देने वाले सभी नेताओं और अफसरों को जांच के दायरे में लाकर सजा दी जाए।
जय प्रकाश समूह के प्रदेश में चल रहे सभी उद्यमों की जांच सेवानिवृत जज द्वारा सरकार को तुरंत शुरू करवानी चाहिए क्योंकि इस समूह के सभी उद्यमों में घपले हुए हैं। जय प्रकाश समूह को जांच पूरी होने तक प्रदेश में कारोबार करने से रोका जाय।
इस केस में हिमाचल हाईकोर्ट द्वारा बनाए गए विशेष जांच दस्ते का नेतृत्व हाईकोर्ट के सेवानिवृत जज द्वारा होना चाहिए।
– गुमान सिंह, हिमालय नीति अभियान