सारांडा जंगल का सच: दमन, हत्या और गिरफ्तारी
पिछड़े झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के सारांडा जंगल से 6 घंटे से ज्यादा की यात्रा करते हुए 30 वर्षीय मंगरी होनहंगा अपने 4 महीने के पुत्र डुला होनहंगा तथा परिवार के अन्य सदस्यों के साथ निराशापूर्ण हालत में रांची इंसाफ पाने की उम्मीद करके आयी। मॉं और बेटा दोनों ही बीमार थे…
डुला ग्रेड-3 का कुपोषित रोगी था और मंगरी एनीमिया से पीड़ित थी। लेकिन सारी तकलीफें सहने के सिवाय उनके पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था। डुला के पिता और मंगरी के पति 38 वर्षीय मंगल होनहंगा की कोबरा सिपाहियों की दो गोलियों से की गई हत्या के पहले उनका जीवन थोड़ा बेहतर था। इसीलिए वे मुख्यमंत्री, बड़े अधिकारियों और वास्तव में मीडिया के सामने अपने दर्द कठिनाइयों और वेदनाओं को बॉंटने आये थे। मंगरी होनहंगा सिर्फ यह जानती है कि उसके पति को पुलिस उसके घर से उठा कर जंगल में ले गयी और फिर उसकी लाश उसे सौंपकर चली गयी।
स्वर्गीय मंगल होनहंगा के छोटे भाई 27 वर्षीय सुनिया होनहंगा और रोंडे होनहंगा; (25 वर्षीय); अपने बड़े भाई की निर्मम हत्या के चश्मदीद गवाह हैं। जून के अन्त में जंगलों में जो कुछ हुआ उसका विवरण और खुलासा उन्होंने किया। हालांकि मानसून अपने चरम पर था, फिर भी 28 जून 2011 को आसमान साफ था और सुबह कुछ धुप खिली थी। सुबह 10 बजे सुनिया होनहंगा और मंगल होनहंगा अपने बगीचे के आम सम्भाल रहे थे। वे अभी खेत में धान की रोपाई करके आ ही रहे थे कि अचानक उनका उनके गांव (बालिवा) को 300 से ज्यादा सुरक्षा बलों ने घेर लिया। सारंडा जंगल के छोटानागरा पुलिस स्टेशन का यह गॉंव कारपोरेट दानवों के लिए स्वर्ग है और माओवादियों का घर है।
पश्चिमी सिंहभूम के सुपरिंटेंडेंट पुलिस अरुण कुमार और सी.आर.पी.एफ. कमांडेंट लालचन्द यादव कार्यवाही का नेतृत्व कर रहे थे। सुरक्षा बलों ने सुनिया होनहंगा और मंगल होनहंगा को पकड़ा और गॉंव के बीच में चबूतरे पर ले गये और पूरे गांव वालों को वहॉं जमा होने को कहा। जब पूरे गांव वाले जमा हो गये तो सुरक्षा बलों ने औरतों, बच्चों समेत सबको गॉंव वालों से हासिल रस्सियों से बॉंध दिया।
सुपरिंटेंडेंट पुलिस, सी.आर.पी.एफ. कमांटेंडेंट तथा सिपाहियों ने गॉंव वालों को गालियॉं दीं और धमकी दीं कि यदि उन्होंने माओवादियों का समर्थन करना, उन्हें शरण देना और भोजन देना बन्द नहीं किया तो उसके बुरे नतीजे भुगतने को तैयार रहें। गॉंव वालों को रात भर बॉंधकर रखा गया। अगले दिन 6 गॉंव वालों को भारतीय वायुसेना के एक हेलिकॉप्टर में बैठाकर अज्ञात स्थान पर ले जाया गया और मंगल होनहंगा और रोंडे होनहंगा को सीआरपीएपफ बलों के साथ जंगल जाने का आदेश दिया गया। सौभाग्य से सुनिया होनहंगा बच गया। जंगल में आगे की घटना का वर्णन रोंडे होनहांगा बयान करता है। सभी 16 गॉंववालों को बिना भोजन-पानी दिये दिनभर अर्द्धसैनिक बलों का सामान उठवाया गया। रात में उनसे जंगल में सोने को कहा गया। 30 जून को सुरक्षा बलों ने उनसे छोटानागरा पुलिस स्टेशन की ओर चलने को कहा। इसलिए उन्होंने सबेरे 3 बजे यात्रा शुरू की। इसी बीच मंगल होनहंगा और एक ग्रामीण तासु सिधु क्षणभर के लिए रुक गये और मंगल होनहंगा नित्यकर्म हेतु नदी किनारे गया। कोबरा के सिपाहियों ने अनुमान लगाया कि मंगल होनहंगा भाग रहा है। इसलिए उन्होंने 3 फायर किये। एक गोली हवा में और दो गोलियॉं मंगल होनहंगा को लगीं। फलस्वरूप वह वहीं पर गिर पड़ा और मर गया। तासु सिधु ने अपनी ऑंखों से यह देखा। फौरन सिपाहियों ने मृत शरीर को लपेट लिया और गॉंववालों से छोटानागरा पुलिस स्टेशन पहुचने तक छिपाये रखा। लाश को चाईबासा पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया। अन्ततः लाश को पुलिस के सुपुर्द करके सभी 15 गॉव वालों को बालिवा गॉंव भेज दिया।
चाईबासा में सुपरिंटेंडेंट पुलिस अरुण कुमार ने एक प्रेस वार्ता की और मीडिया वालों को नक्सल-विरोधी कार्यवाहियों में मिली महान सफलता के बारे में बताया। तथापि उसने माना कि मंगल होनहंगा एक बेगुनाह ग्रामीण था, सुरक्षा बलों और माओवादियों के बीच गोलियों के आदान-प्रदान के बीच सुरक्षा बल की एक गोली उसे लग गयी। हालांकि गांववालों ने सत्य उजागर कर दिया। उनके अनुसार, गोलियों का कोई आदान-प्रदान नहीं हुआ था और यह साफ-साफ सुरक्षा बलों द्वारा की गयी निर्मम हत्या का मामला है। क्योंकि गॉंव वाले सत्य जानते थे। इसलिए उच्च अधिकारियों ने छोटनागरा पुलिस स्टेशन के ; ऑफिसर इंचार्ज से परिवार के सदस्यों को मुआवजा देने का आदेश दिया। मृतक के परिवार के सदस्यों को 3 लाख रुपये, व एक व्यक्ति को रोजगार का प्रस्ताव दिया गया। विडम्बना है कि मृत्यु प्रमाण पत्र में मौत की वजह नहीं दर्शायी गयी है। यह पुलिस और सुरक्षाबलों द्वारा तथाकथित नक्सल विरोधी कार्यवाहियॉं संचालित करने में की जा रही हत्या, चालूपना, चालाकी और अधिकार हरण का ठोस नमूना है।
ऐसे ही एक अन्य मामले में पुलिस ने एक गॉंववाले की हत्या करके उसे मुठभेड़ का हादसा दिखाया। 18 अगस्त 2011 को सुरक्षा बल फिर से चालिबा गॉंव आये। उन्होंने 6 गॉंववालों, लुडरा बारजो, मंगला बारजो, सेनिका बारजो, टुविया बारजो, भंगरा गुरिया और सोमा गुरिया को पकड़ा। उन्हें गॉंव के चबूतरे पर ले जाया गया और ठोकर मारी गयी, लाठी, पत्थर और बन्दूकों के बटों से बुरी तरह पीटा गया। फलस्वरूप सोमा गुरिया गिर पड़ा और बेहोश हो गया। अगले दिन सुरक्षा बल उन्हें जंगल ले गये। सोमा गुरिया चलने फिरने लायक नहीं था फिर भी उसे घसीट कर जंगल ले जाया गया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार जब वह चोटों की वजह से जंगल में मर गया तब सुरक्षा बलों ने उसके सीने में दो गोलियॉं दागीं। 20 अगस्त को सोमा गुरिया का शव गॉंव वालों को सौंपा गया और बताया गया कि वह मुठभेड़ में मारा गया। वास्तव में, सुरक्षा बल किसी गॉंव में आते हैं, घरों को नष्ट करते हैं, बेगुनाह गॉंव वालों को पकड़ते हैं, उन्हें यातना देते हैं, औरतों से बलात्कार करते हैं और पुरुषों को गोली मार देते हैं दो दिन बाद लाशों को परिवार वालों को सौंपकर बताते हैं कि उनके आदमी की मुठभेड़ में मौत हो गयी। इस प्रकार सारंडा जंगलों में सुरक्षा बलों के अन्तहीन अमानवीय कारनामे जारी हैं। गांववाले अपने दर्द, तकलीफें और मनोव्यथा में बताते-बताते थक गये हैं। किन्तु उनके पास क्या कोई भी रास्ता है? 3 अगस्त को सुरक्षा बलों ने टिल्हरी पुलिस गॉंव के पेतुर गेगराई की राशन की दुकान वाले घर पर कब्जा कर लिया। वह गॉंव की शिक्षा कमेटी का अध्यक्ष भी है। पुलिस ने आरोप लगाया कि वह माओवादियों को राशन भेजता है। एक अन्य मामले में पुलिस ने 1 अगस्त को करामपाडा गॉंव में 3 औरतों के साथ बलात्कार किया और 24 अगस्त को बगैर किसी सबूत के हतनापुर गॉंव के 15 लोगों को सी.पी.आई., माओवादी के सदस्य बताकर उठा ले गये। सच तो यह है कि जब कभी सुरक्षा बल नक्सलविरोधी अभियान में जाते हैं तो वे बेगुनाह गॉंववालों को शिकार बनाते हैं। लाख टके का सवाल यह है कि क्या सी.पी.आई.;माओवादी, का सदस्य होने पर सुरक्षा बलों को सोचे-समझे तरीके से जानबूझकर महिलाओं से बलात्कार तथा पुरुष की हत्या करने का अधिकार है?
कहानी यहीं खत्म नहीं होती जब झारखंड ह्यूमेन राइट्स मूवमेंट्स (JHRM) ने हस्तक्षेप किया और सुरक्षा बलों द्वारा मंगल होनहंगा और सोमा गुरिया की हत्या का पर्दाफाश किया तो उच्च अधिकारी (JHRM)को ही माओवादी संगठन बताने लगे। कोल्हान के डी.आई.जी. नवीन कुमार ने कहा कि परिवार द्वारा लगाये गये आरोप माओवाद से प्रायोजित है। यह पुलिस कार्यवाहियों को परेशान करने तथा उसमें बाधा डालने के लिए है। उसने मंगल होनहंगा को एक विद्रोही भी बताया। इसी तरह आई.जी. तथा झारखंड पुलिस के प्रवक्ता आर.के. मलिक ने कहा कि मंगल होनहंगा के पास कुछ विस्फोटक सामग्री थी। झारखंड के उच्च अधिकारियों ने अपने अमानवीय कारनामों को छिपाने के लिए बेगुनाह आदिवासी को माओवादी बताने की क्या तरकीब सोची है। तथापि जब बड़ा दबाव पड़ा तो पुलिस आई.जी. ने जॉंच की और तब पता चला कि मंगल होनहंगा और सोमा गुरिया दोनों बेगुनाह आदिवासी थे और सुरक्षा बलों ने उन्हें उस समय गोली मारी जब उन्होंने उनके आदेशों का पालन नहीं किया। विडम्बना है कि अब भी पुलिस डाइरेक्टर जनरल तथा गृह सचिव दोनों ही लगातार इन दोनों हत्याओं को मुठभेड़ का परिणाम सिद्ध करने की कोशिश कर रहे हैं।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि धरती के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में अधिकारों की बात करना एक अपराध बन गया है। खास तौर पर तब जब अधिकारों की बात वंचित समुदायों से जुड़ी हो। तथापि यदि आप मध्य वर्ग या उच्चमध्य वर्ग के लिए बोलते हैं तो आप हीरो बन जाएगे। शायद दूसरे गॉंधी, नेहरू, या पटेल कहलाएगे। उदाहरण के लिए जब हजारों लोग और निजी स्कूलों के शिक्षकों ने अपने विद्यार्थियों से पढ़ाई छोड़कर अण्णा हजारे के आन्दोलन में हिस्सा लेने को कहा तो इन शिक्षकों पर कार्यवाही करने या सवाल करने के बजाय 24ग्7 समाचार चैनलों ने उन्हें गौरवान्वित किया। एक दूसरे ऐसे ही मामले में जब गरीब बच्चों ने उड़ीसा राज्य में पोस्को प्रोजेक्ट के खिलाफ आन्दोलन में हिस्सा लिया तो राज्य सरकार ने बाल अधिकारों के हनन के नाम पर आयोजकों के खिलाफ कार्यवाही करने की धमकी दी। किस प्रकार का यह लोकतंत्र है?
बहुत स्पष्ट है कि यदि आप पुलिस ज्यादतियों के खिलाफ खड़े होते हैं और प्राकृतिक संसाधनों से (जमीन, जंगल, खदान) वंचित होने में अनिच्छुक हैं तो आप उग्रवादी करार दिये जाएगे। ऐसा होने के पीछे साफ-साफ करण यह है कि पुलिस ज्यादतियॉं और विस्थापन दोनों ही अन्ततः सरकार की नक्सल विरोधी अभियानों का सम्बन्ध कॉरपोरेट घरानों के खदान हितों से स्थापित कर देते हैं। जाहिर है कि भारतीय शासन नागरिकों के अधिकार और संविधान की रक्षा के बजाय ‘निवेश वातावारण के खतरे’ की चिन्ता करता है। हालॉंकि झारखंड पुलिस ने मंगल होनहंगा और सोमा गुरिया की हत्या की बात स्वीकार कर ली है। फिर भी मेरा अनुमान है कि परिवार वालों को मुआवजा देकर उनका मुह बन्द कर दिया जाएगा और उच्च अधिकारी हमेशा की तरह मौज करेंगे।
जब मैंने यह हिस्सा पूरा किया तो समाचार पत्रों में एक रिपोर्ट आयी, जिसमें बताया गया कि सारंडा जंगल में थोलकाबाद गॉंव के आदिवासियों ने अपने गॉव को खाली कर दिया और पुलिस यातना के डर से कहीं और चले गये। मैं शुरू से ही तथाकथित नक्सल विरोधी अभियानों के बारे में लिखते समय यह कहता रहा हू कि ‘‘आपरेशन ग्रीन हंट’’ का मकसद साफ-साफ गॉंवों में आतंक, असुरक्षा तथा जीवन दूभर बनाना है ताकि गॉंव वाले अपनी जमीनें खाली कर दें। फलस्वरूप सरकार आदिवासियों की जमीन कॉरपोरेट दानवों को दे सके। झारखंड सरकार ने मित्तल, जिन्दल, टाटा, और टोरियन सहित 19 स्टील कम्पनियों को सारंडा जंगल में लौह-अयस्क आवंटित कर दिये हैं। वास्तव में, इसीलिए वे जमीन हथियाना चाहते हैं। – ग्लैड्सन डुंगडुंग