संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

जे.पी. पॉवर प्लांट के लिए अधिग्रहीत कृषि भूमि के खिलाफ संघर्ष जारी है…….

लिखित वादे से मुकरा जिला प्रशासन धमकी पर आमादा
घायल किसान शहीद

 

अपनी जीविका, जमीन तथा कृषि बचाने के लिए संघर्षरत करछना (इलाहाबाद, उ.प्र.) के किसानों का धरना, क्रमिक अनशन अपने 250 दिन पूरा करने जा रहा है। लेकिन सरकार, प्रशासन तथा कंपनी किसानों की सुनने के बजाय उनको आतंकित करने पर आमादा है।
इस बीच आंदोलन के नये घटनाक्रम के तौर पर जो बातें सामने आ रही हैं, वे प्रशासनिक उत्पीड़न, संवेदनहीनता तथा प्रशासनिक धोखाधड़ी के साथ ही साथ इस बात का भी संकेत देती हैं कि प्रशासनिक अमला कंपनी की सेवा में इस तरह आमादा है कि वह अपने लिखित समझौते को मानने से न केवल मना कर रहा हैं बल्कि समझौता करने वाले डी0एम0 इलाहाबाद का स्थानांतरण भी कर चुका है।
ज्ञातव्य है कि इलाहाबाद जनपद की करछना तहसील के देहली, भगेसर, मेडरा, कचरी, देवरी, देवरीकला,    देहवाकला और भिटार गांव के किसान जुलाई 2010 से ही संघर्ष के रास्ते पर हैं।

अपने गांवों पर पुलिस हमले से नाराज किसानों ने 18.07.10 को इलाहाबाद-मिर्जापुर राज मार्ग जाम कर दिया था। किसान अपनी तीन फसली 18 हजार एकड़ भूमि जिसे उत्तर प्रदेश सरकार ने 3 लाख रुपये बीघे में खरीद कर जे0पी0 कंपनी को 12 लाख रुपये बीघे की दर से बेच दिया है, छोड़ने को तैयार नहीं हैं। जे0पी0 कंपनी यहां पर पावर प्लांट लगाने की जुगत में है।

किसानों के आंदोलन की अगुवाई करने वाले संगठन पुनर्वास किसान कल्याण समिति के अध्यक्ष राजबहादुर सिंह पटेल, संचालक रंग बली सिंह का कहना है कि ‘‘किसानों के साथ लिखित समझौता करने वाले जिलाधिकारी संजय प्रसाद का स्थानांतरण कर दिया गया और नये जिलाधिकारी आलोक कुमार अब न केवल समझौता मानने से इंकार कर रहे हैं बल्कि अपने मातहत कार्यरत ए0डी0एम0 (प्रशासन) चिनकूराम के साथ धमकी देने के रास्ते पर उतर आये हैं।’’ राज बहादुर बताते हैं कि ‘‘डी0एम0 इलाहाबाद ने कचरी गांव के स्कूल में 26 मार्च 2011 को जनता-चौपाल बुलवायी तथा दोपहर 1 बजे वहां अपने पूरे अमले के साथ आये। मुझे चौपाल में बुलाया गया। मैंने जब भूमि न छोड़ने की बात रखी तो डी0एम0 ने मुझे धमकी दी और कहा कि तुम्ही नहीं मान रहे हो, बाकी सब मान गये हैं। बंधक बनाने के प्रकरण (जो मनगढ़ंत है) में फंसाने तथा जेल भेजने की धमकी दी। उनके साथ आये ए0डी0एम0 (प्रशासन) चिनकूराम ने कहा कि चाहे सूरज को धरती पर उतार लाओ तुम्हारी मांगें पूरी नहीं हो सकतीं तथा पावर प्लांट बनकर रहेगा। राज बहादुर कह रहे हैं कि चाहे जितनी धमकी दी जाय, हम अंतिम दम तक अपनी जमीन बचाने की लड़ाई लड़ेंगे।’’
वास्तव में इस समस्या ने एक विकराल रूप लेना तब शुरू किया जब 15 दिसंबर 2007 को दोलीपुर, देहली भगेसर तथा मेड़रा गांव की आबादी वाली तथा कृषि भूमि कुल रकबा 329 ़ 242 (561 हेक्टेयर) को अधिग्रहीत करने की प्रक्रिया शुरू की गयी तथा उ. प्र. सरकार (उ. प्र. पावर कारपोरेशन) ने 561 हेक्टेअर भूमि जे0पी0 पावर वेंचर्स को स्थानांतरित कर दी। इस प्रक्रिया से नाराज और आहत तमाम किसानों ने उच्च न्यायालय में याचिकायें दायर कीं। जिन पर अभी तक कोई निर्णय नहीं हो पाया है। यह मामला माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है।
वे बताते हैं कि यह धमकी नयी बात नही है। हमें प्रशासन द्वारा लगातार धमकी दी जाती रही है। वे बताते हैं-
‘‘बलात् भूमि अधिग्रहण के विरूद्ध हम लोग इलाहाबाद उच्च न्यायालय की शरण में गये। 23 अप्रैल 2008 को इस याचिका संख्या 20772/2008 (राज बहादुर बनाम यू0पी0 स्टेट) में माननीय उच्च न्यायालय, इलाहाबाद ने यथास्थिति बनाये रखने का आदेश पारित किया। इसके बावजूद भी जिला प्रशासन ने लेखपालों के माध्यम से किसानों को भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 की धारा 9 की नोटिस देकर हस्ताक्षर करवा लिये तथा उसमें तारीख का जिक्र नहीं था तथा लेखपालों ने अपनी कलम से मनमाफिक तारीख डाल दी। जिन किसानों ने अपने आप तारीखें डाल दी थीं उनमें संशोधन कर दिया गया। यह संशोधित तारीखों वाला दस्तावेज उपरोक्त रिट याचिका में सरकार की तरफ से दिये गये शपथपत्र के साथ संलग्न है। इसके बाद प्रशासन ने तत्कालीन एस0डी0एम0 (करछना) डी0एस0 उपाध्याय तथा   तहसीलदार (करछना) के माध्यम से याचिकाकर्ताओं से याचिका वापस लेने का दबाव बनाना शुरू किया। इसके बाद धमकी देने की जिम्मेदारी स्थानीय पुलिस पर छोड़ दी गयी। याचियों में से एक राम तौल के बेटे सुभाष को एस0डी0एम0 की मौजूदगी में करछना थाने में पकड़कर बैठाया गया तथा कहा गया कि अपने बाप को बुलाओ, रिट वापस कराओ नहीं तो अंजाम भुगतने को तैयार रहो। जब याची रामतौल ने याचिका वापस नहीं ली तो उन पर आपराधिक धारायें लगाकर जेल भेज दिया गया। इसके बाद याची राज बहादुर के भाई तेज बहादुर, राधेश्याम और याची रामहित के लड़के हरिश्चन्द्र व प्रदीपकुमार को लोक सम्पत्ति क्षति अधिनियम के तहत 2.8.08 को एफ.आई.आर. करके फंसाया गया। एफ.आई.आर. के बाद स्थानीय करछना थाने तथा चौकी की पुलिस राजबहादुर तथा हरिश्चन्द्र के घर पर रात में 12 बजे, 1 बजे जा जा कर बाल- बच्चों तथा घर की महिलाओं के साथ गाली-गलौज तथा धमकियां देने लगी। याचियों ने हाईकोर्ट से ‘अरेस्ट स्टे’ हासिल किया। फिर भी भीरपुर चौकी प्रभारी तथा करछना थानाध्यक्ष ने याचियों का घर से बाहर निकलना मुश्किल कर दिया। ‘अरेस्ट स्टे’ के बावजूद भी पुलिस चौकी प्रभारी त्रिवेणी प्रसाद शुक्ल ने याचियों को जान से मार देने की सार्वजनिक घोषणा करना आरंभ कर दिया। इससे इलाके के किसान दहशत में आ गये। अतएव डर वश, नौकरी की लालच वश तथा स्थानीय दबंगों के प्रभाव से तमाम किसानों ने करारनामे पर दस्तखत कर दिये।’’
फिर भी किसान घुटना टेकने को राजी नहीं हुए और सरकारी वादों, कंपनी के वादों को पूरा कराने की रणनीति लेकर नये सिरे से संघर्ष के रास्ते पर उतरे। करारनामे पर डरवश दस्तखत करने वालों को भी अपनी बुजदिली का अहसास हुआ। जून 2010 से फिर किसान एकजुट हुए और वादों को पूरा करने के लिए मांगें सामने रखीं- स्थानीय लोगों को आई.टी.आई. (टेकनिकल) की ट्रेनिंग, उचित मुआवजा  (जितने में सरकार ने जे.पी. कंपनी को जमीन बेची उसी दर पर) तथा पुनर्वास एवं वैकल्पिक आजीविका की व्यवस्था।
किसानों की इस एकजुटता से बौखलाकर तथा जे.पी. कंपनी का रास्ता साफ करने के इरादे से इस आंदोलन को तोड़ना जरूरी समझा गया। फलस्वरूप 28 जून 2010 को 16 किसानों तथा 150 अज्ञात किसानों के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज करवायी गयी। 17-18 जुलाई की रात में 3 बजे किसानों के नेता रामचन्द्र को गिरफ्तार कर लिया गया तथा रंगबली पटेल के घर जाकर उनके घर का दरवाजा करछना पुलिस ने तोड़ा-फोड़ा और घर के सामानों को नष्ट कर दिया।
आसपास के गांवों के किसानों को जब इस घटना की जानकारी हुई तो वे इकट्ठा होकर इलाहाबाद-मिर्जापुर राजमार्ग पर चक्का जाम करके धरने पर बैठकर किसान नेता रामचन्द्र की रिहाई की मांग करने लगे। मजबूर प्रशासन रामचन्द्र को रिहा करने पर बाध्य हुआ।
इसके बाद किसान अपने ऊपर दर्ज फर्जी मुकदमों को वापस कराने के लिए संघर्ष की शुरूआत करते हुए 22 जुलाई 2010 से क्रमिक अनशन पर बैठ गये जो अभी तक जारी है। क्रमिक अनशन का स्थल कचरी गांव है जो जे.पी. पावर प्लांट के प्रस्तावित निर्माण स्थल का मुख्य स्थान है तथा आंदोलनकारियों का भी मुख्य गांव।
जिलाधिकारी एवं ए0डी0एम0 (प्रशासन) इलाहाबाद 9 दिसंबर 2010 को अनशन स्थल पर आये तथा उन्होंने किसानों की 14 में से 9 मांगें मान लीं तथा शेष 5 मांगों पर उचित कार्यवाही हेतु उ. प्र. शासन को लिखने का वादा किया।
प्रशासन द्वारा निर्धारित समय में अपना वादा पूरा न करने से नाराज किसानों ने 4 जनवरी 2011 से आमरण अनशन शुरू कर दिया। आमरण अनशन के दौरान 21 जनवरी 2011 को जिला अधिकारी तमाम प्रशासनिक अधिकारियों, आई.जी., डी.आई.जी., एस.पी. गंगापार एवं जमुनापार, आर.ए.एफ., पी.ए.सी. एवं पुलिस की टुकड़ियों के साथ पहुंचे। राज बहादुर पटेल का कहना है कि ‘‘उस वक्त अनशन स्थल पर तमाम किसान, महिलायें, बच्चे मौजूद थे तथा 14 दिन से आमरण अनशन पर लोग बैठे थे। पहुंचते ही अनशनकारियों तथा वहां उपस्थित लोगों के ऊपर अधिकारियों की अगुआई में पुलिस ने हमला किया। टेण्ट गिरा दिया गया, लोगों को मारापीटा गया तथा महिलाओं-बच्चों को भी नहीं छोड़ा गया। अनशन कारियों को खींचना शुरू कर दिया गया। उपस्थित लोगों ने विरोध किया तथा दोनों तरफ से संघर्ष शुरू हो गया। इस बीच पी.ए.सी. के जवान रेल लाइन पर पहुंचे तथा वहां से लोगों पर पत्थर फेंकने लगे और यहंा तक कि देवरी तथा कचरी गांवों में घुसकर ग्रामवासियों, महिलाओं को पीटा तथा अपमानित किया गया। इन घटनाओं को देखकर किसान भी उग्र हो गये। पी.ए.सी. एवं पुलिस के रेल टैªक पर कब्जा कर लेने के नाते रेल मार्ग बंद हो गया। इस पर भी पुलिस, पी.ए.सी. तथा आर.ए.एफ. का मन नहीं भरा उन्होंने लोगोें पर लाठी- डण्डे चलाये, रबर की गोलियां दागीं तथा आंसू गैस छोड़ा। इस पूरी घटना में तमाम महिला-पुरुष घायल हुए और एक स्थानीय किसान गुलाब विश्वकर्मा की मौत हो गयी। राज बहादुर पटेल आगे बताते हैं कि गुलाब की मौत की खबर सुनकर किसान आपा खो बैठे और उन्होंने दिल्ली-हावड़ा रेल मार्ग पर कब्जा करके इस रेल लाइन का चक्का जाम कर दिया। सैकड़ों लोग लहुलुहान थे इसमें पुलिस के लोगों को भी चोटें आयीं। घायलों के इलाज की कोई व्यवस्था नहीं की गयी। आंदोलनकारी प्रशासन के इस कृत्य को जनता पर अघोषित युद्ध की संज्ञा देते हैं।’’
हालात की गंभीरता तथा आसपास के गांवों से हजारों लोगों की बढ़ती संख्या को देखकर जिलाधिकारी ने ताकत की बजाय कूटनीति का रास्ता अपनाया तथा हार मानकर किसानों के सामने समर्पण किया और स्टाम्प पेपर मंगाकर उस पर किसानों की मांगें मानने की लिखित स्वीकृति दी। गुलाबचन्द विश्वकर्मा की लाश लेकर आंदोलनकारियों ने इलाहाबाद-मिर्जापुर राजमार्ग को जाम कर दिया। उनकी लाश का पोस्टमार्टम भी नहीं कराया गया। दो दिन सड़क पर लाश रखकर चक्का जाम रहा। डी.एम. ने गुलाबचन्द विश्वकर्मा के परिजनों को 5 लाख रुपये का चेक देकर मामले को रफा-दफा कराया।
इस आंदोलन के समर्थन में सक्रिय प्रताप सिंह राणा तथा धर्मेन्द्र यादव का कहना है कि कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी, धर्मराज पटेल (भू.पू. सांसद) तथा अमर सिंह तथा समाजवादी पार्टी आदि के नेता मौके पर आये तथा पीड़ित परिवारों को पैसा भी दिया परंतु इसके बाद किसी का अता पता नहीं है।
धरने के संचालक रंग बली सिंह का कहना है कि ‘‘यह घटना सरकार की निर्ममता तथा अपने ही नागरिकों के खिलाफ हमलावर तेवर का सुबुत है। वे सवाल करते हैं कि स्टैम्प पेपर पर लिखकर किसानों की मांगें मानने के बाद अब डी.एम. जैसा अधिकारी अगर उसे मानने से इनकार करता है तो क्या यह धोखाधड़ी और चार सौ बीसी नहीं है? डी.एम. राज्य तथा केन्द्र सरकार का एक जिम्मेदार प्रतिनिधि है, और अगर डी.एम. इस तरह का व्यवहार करे तो अब जनता के पास लोकतांत्रिक- शांतिपूर्ण फरियाद करने की कौन सी जगह और  आंदोलन का कौन सा तरीका बचता है?’’
प्रताप सिंह राणा कहते हैं कि ‘‘सरकार किसानों और कंपनी के बीच जमीन की खरीद-फरोख्त में मुनाफा कमाती है, डी.एम. अपनी लिखित बातों से मुकर जाता है, याचिकाकर्ताओं को धमकियंा दी जाती हैं ऐसे समय में संघर्ष का कौन सा वैधानिक तथा लोकतांत्रिक तरीका बचता है।’’ राणा कहते हैं कि ‘‘इसी जे.पी. कंपनी को औने-पौने दाम में सीमेण्ट कारपोरेशन की चुर्क, चुनार और डाला सीमेण्ट कारखाने बेच दिये गये, 1047 कि.मी. लम्बी गंगा एक्सप्रेस-वे तथा जमुना एक्सप्रेस का ठेका दिया गया और अलीगढ़ के जिकरपुर गांव में किसानों की मौत की जिम्मेदार इस कंपनी पर सरकारें इतनी मेहरबान क्यों हैं? इस अबूझ पहेली को अब धीरे-धीरे लोग समझने लगे हैं और यही समझ किसानों की अस्तित्व रक्षा के संघर्षों की सही दिशा भी तय करेगी।’’
-राज बहादुर पटेल, प्रतापसिंह राणा एवं धर्मेन्द्र यादव इलाहाबाद से
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