तीन राज्यों के 80 गांवों/बस्तियों को जल समाधि देने एवं कनहर तथा पाँगन नदियों की मौत का ऐलान है कनहर बाँध परियोजना
उत्तर प्रदेश सरकार का यह विकास का मन्दिर नहीं स्वीकार लोगों को.
‘‘धरती मैया की जय’’ के नारे के साथ कनहर बचाओ आंदोलन ने फिर कसी कमर।
गाँवों में बैठकें, रणनीति का फैसला, संकल्प सभा, हजारों ने की पदयात्रा, जिला मुख्यालय तक पदयात्रा करने पर रोक, तहसील का किया घेराव और न्यायालय जाने की तैयारी।
अपने जन्मदिन 15 जनवरी 2011 को उ. प्र. की मुख्यमंत्री मायावती ने अपनी रियाया को बख्शीशें बांटी और सोनभद्र जनपद की दुद्धी तहसील के अमरवार गांव के पास पाँगन और कनहर नदी के संगम पर प्रस्तावित कनहर बाँध का तोहफा इस इलाके के लोगों को देने की दरियादिली दिखायी। यह दरियादिली केवल उ. प्र. तक ही सीमित न रही बल्कि इस परियोजना का मजा छत्तीसगढ़, झारखण्ड के गांवों को भी चखने का मौका दिया है। अब यह बात अलग है कि उ. प्र. के सोनभद्र, छत्तीसगढ़ के सरगुजा तथा झारखण्ड के गढ़वा जिले के तकरीबन 80 गाँव, बस्तियां परियोजना के पूरा होते ही जल समाधिस्थ हो जायेंगी। यह जानकर इन गांवों के वासी मायावती जी के तोहफे से आनंदित नहीं हो पा रहे हैं।
भूखे लोगों को -‘रोटी’ के बजाय ‘ब्रेड’ खाने की सलाह देने की सत्ता की परंपरा को जीवंत करते हुए, अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे इन ग्रामवासियों से जल समाधि की स्थिति को भूलकर ‘हरियाली लाने’ में योगदान की मानवतावादी-वैश्विक तथा संवेदनशील विकासोन्मुखी अपील सरकार, सरकारी अमले, सत्ता दल के नेताओं, निर्माण कंपनी, ठेकेदारों तथा दलालों द्वारा की जा रही है। इतने बड़े राज्य की मुख्यमंत्री यह तोहफा देने खुद न आ सकीं और लखनऊ में बैठे-बैठे उन्होंने इस परियोजना का शिलान्यास आधुनिक सेटेलाइट तकनीक से कर दिया और सरकारी अमले ने मुख्यमंत्री के जन्म के दिन फील्ड हास्टल-अमरवार में यह पत्थर चुनवा दिया।
इस तोहफे को अपने लिए मौत का पैगाम मानते हुए प्रभावित होने जा रहे ग्रामवासियों में खलबली मच गयी। इस प्रस्तावित बांध के खिलाफ 1976 ई., (6 अक्टूबर 1976) को जब तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने आपात काल के दौरान इस बांध की आधारशिला रखी थी, से ही संघर्षरत लोगों ने अपनी बैठकें तथा जनसंपर्क का कार्य शुरू कर दिया। गांव-गांव बैठकें करने के बाद इस आंदोलन की अगुआई कर रहे स्थानीय लोगों के संगठन ‘कनहर बचाओ आंदेालन’ ने तीनों राज्यों के प्रभावित होने जा रहे गांव के चुनिन्दा प्रतिनिधियों के साथ सोनभद्र जिले के भीसुर गांव में 20 से 22 फरवरी 2011 तक बैठक करके संघर्ष की आगामी रणनीति तय की। तय पाया गया कि अपनी माटी, नदी, जंगल, घर,गांव किसी भी हालत में छोड़ा नहीं जायेगा। बैठक में फैसला लिया गया कि 10 मार्च को सभी गांवों से लगभग 10 हजार लोग अमवार में इकट्ठा होंगे (जहां पर प्रस्तावित बांध का पत्थर लगाया गया है) वहां पर संघर्ष जारी रखने का सामूहिक संकल्प लिया जायेगा, सभी रात में यहीं पर रूकेंगे तथा जिला मुख्यालय पर प्रदर्शन करने के लिए सभी के सभी 10 हजार लोग पैदल मार्च शुरू करेंगे और 4 दिन पैदल मार्च करके 15 मार्च 2011 को जिलाधिकारी का घेराव करके इस परियोजना का विरोध करेंगे। इस कार्यक्रम की जिम्मेदारियंा बांटी गयीं, जत्था नायक, दल नायक आदि का नाम भी तय किया गया। राशन, चंदा, लकड़ी इकट्ठा करने का फैसला हुआ।
जिला प्रशासन को जैसे ही इस निर्णय की जानकारी हुई प्रशासन ने भी अपनी रणनीति बनाना शुरू किया। कनहर बचाओ आंदेालन के नेताओं से कहा गया कि इतनी तादाद में इतनी लम्बी दूरी तक पदयात्रा की अनुमति नहीं दी जा सकती। बसों, ट्रेनों और वाहनों से आने की बात कही गयी। जान-माल की सुरक्षा की स्वयं की जिम्मेदारी के शपथपत्र मांगे गये।
इन नयी हालात पर विचार करने के बाद आंदोलनकारियों ने तय किया कि गांव-गांव पदयात्रा की जाय, बैठकें की जायं (10 से 13 मार्च) तथा 14 मार्च को अमवार में संकल्प सभा की जाय और अमवार से दुद्धी तक (15 किमी) पैदल मार्च करके दुद्धी तहसील पर सभा, प्रदर्शन करके उ. प्र. सरकार को मांगपत्र प्रेषित किया जाय।
अपने फैसले के मुताबिक 14 मार्च को अमवार में दसियों हजार ग्रामवासी कनहर बचाओ आंदोलन के बैनर तले इकट्ठा हुए। ‘धरती मैया की जय’ के गगनभेदी नारों के बीच संघर्ष जारी रखने तथा अपनी माटी न छोड़ने का एकबार फिर से सामूहिक संकल्प दोहराया गया। इसके बाद शुरू हुई पैदल यात्रा, झण्डे-बैनर-नारों-मांगों की तख्तियां लिए बच्चे-बूढ़े- जवान-महिलायें-पुरुष तहसील मुख्यालय दुद्धी की तरफ कूच कर गये। 15 कि.मी. पैदल चलकर यह जुलूस 15 मार्च की दोपहर में दुद्धी तहसील के मैदान में एक विरोध सभा के रूप में बदल गया। सभा को कनहर बचाओ आंदोलन के साथी विश्वनाथ खरवार, जीतन प्रसाद, शिव प्रसाद, राम लाल, सादिक हुसैन, तेतरी देवी, शिव कुमारी, फूल कुंअर तथा कोरची एवं सुंदरी गांव के ग्राम प्रधान क्रमशः रमेश, रामविचार एवं जिला परिषद सदस्य बरफीलाल ने संबोधित किया। इस मौके पर कोरची गांव के निवासी जगदीश प्रसाद जायसवाल ने अपना मकान आंदेालन के मुख्य केन्द्र के संचालन के लिए देने की घोषणा की। इस पूरे अभियान में ग्राम प्रधान, भू.पू. ग्राम प्रधान, बी.डी.सी. सदस्य जहां तन-मन-धन से लगे हुए हैं, वहीं गंगा एक्सप्रेस-वे विरोधी आंदेालन, बभनी (सोनभद्र) के पावर प्लांट विरोधी आंदोलन के लोगों ने अपनी एकजुटता का ऐलान किया है और इस पदयात्रा एवं विरोध सभा-प्रदर्शन में शिरकत की। पी.यू.सी.एल. के साथी चितरंजन सिंह (राष्ट्रीय अध्यक्ष, इंडियन सोशल एक्शन फोरम- इंसाफ), राष्ट्रीय श्रमिक शिक्षा बोर्ड के चेयरमेन अशोक सिंह (उपाध्यक्ष- इण्टक), कृषि भूमि बचाओ मोर्चा के रामाश्रय यादव और एकता परिषद के प्रतिनिधि आंदोलकारियों के साथ रहे वहीं दूसरी तरफ सत्तादल, प्रस्तावित बाँध के निर्माण के लिए ठेका पाने वाली कंपनी तथा छुटभैये दलालों-ठेकेदारों के इशारे पर तथा पापी पेट के लिए कुछ करने को तत्पर लोगों ने ‘हरियाली लाओ, कनहर बचाओ’ के बैनर के तहत कनहर बचाओ आंदेालन के प्रदर्शन के ही दिन तहसील के गेट पर अपनी सभा का आयोजन करके आंदोलन की शांतिप्रिय पहल को हिंसक मोड़ देने की योजना बना रखी थी। परंतु कनहर बचाओ आंदोलन के परिपक्व नेतृत्व तथा दसियों हजार की तादाद में आये प्रदर्शनकारियों ने इनके मंसूबे पर पानी फेर दिया तथा तहसील के बगल में स्थित मैदान में अपनी सभा करके टकराहट टाल दी। आंदेालन के नेता विश्वनाथ खरवार का कहना था कि ‘‘इन गुमराह दलालों, स्वार्थी तथा लम्पट लोगों से हमारा कोई संघर्ष नहीं है हम तो अपनी माटी की हिफाज़त के लिए जूझ रहे हैं और जब तक अंतिम सांस बाकी है जूझते रहेंगे।’’
सभा के संयोजक महेशानन्द भाई ने अपने संबोधन में कहा कि आज तक विकास के नाम पर बड़े-बड़े उद्योगों बांधों विद्युत गृहों का अन्तहीन सिलसिला जारी है। बिना किसी उचित पुर्नवास योजना के आधा-अधूरा और उस पर भी प्रशासनिक बंदर बॉट से बचे रत्ती भर मुआवजे की राशि ऊॅट के मुंह में जीरा के बराबर साबित हो रही है। परिणाम स्वरुप ये विस्थापित परिवार स्वभाविक रुप से अपने पास-पड़ोस के जंगलों में जा कर बसने के लिए मजबूर हैं। जंगल में अपने परंम्परागत संबंधों का यह परिवार विस्तार कर रहे थे कि एक बार फिर वन संरक्षण व पर्यावरण संरक्षण के नाम पर फारेस्ट एक्ट की धारा 20 की नंगी तलवार उन पर लटकने लगी। वन विभाग का सामंती शोषण आज भी इस क्षेत्र में जारी है।
विकास के नाम पर विस्थापित हुए ये आदिवासी और उनकी संतानें दशकों से यह देखते चले आ रहे हैं कि जिन जमीनों को छोड़कर वे दर-दर भटक रहे हैं, वहां बड़े-बड़े कल कारखानों के साथ कालोनियां बस गयीं। बहरहाल आदिवासियों को पीने के पानी का आज भी जुगाड़ करना पडता है। प्रस्तावित कनहर बॉध का कुल कैचमेन्ट एरिया 2000 वर्ग कि0मी0 है। इस एरिया में आज के दिन 25 गांव जिनमें यदि बस्तियों, पुरवों, टोलों को जोड़ा जाय तो यह संख्या 80 से भी ऊपर पहुंचती है, जब कि सरकार मात्र 11 गांव ही मानती है। 30 सरकारी प्राथमिक स्कूल 20 पक्के मकान तथा लगभग 9 लाख छोटे-बड़े पेड़ जल समाधि कि स्थिति में है लेकिन सरकार की ऑंखें बन्द हैं। इस समय उत्तर प्रदेश में पुनः बिजली का संकट है। इस लिए कनहर परियोजना चर्चा मेें है। बिजली उत्पादन की क्षमता बढ़े इसकी पुरजोर वकालत की जा रही है। उत्पादन क्षमता वृद्धि हेतु कनहर को बांधना ही एक मात्र विकल्प समझा जा रहा हैं। परियोजना में कुर्बान होने वाले विस्थापित परिवारों की सुध लेने में सरकार की तत्परता नही दिख रही हैं। इन्ही कारणों से कनहर विस्थापित संगठित हो चुके हैं। कनहर बचाओ आन्दोलन देश में चल रहे आन्दोलनों के साथ एकाकार होने की प्रक्रिया में अग्रसर है। धरना प्रदर्शन व ज्ञापन देने के कार्यक्रम लगातार चल रहे हैं। क्रमशः आन्दोलन को नैतिक समर्थन भी मिल रहा है।
इस आन्दोलन का मिजाज कनहर को बचाने में लगा है। आन्दोलन का उददेश्य यहॉ के गांवों के लोगों की अपनी जमीन सुरक्षा हेतु, जो उनकी जीविका का एक मात्र आधार है, जल, जमीन को बचाने का है। सरकारी शब्दावली में तो विकास के लिए बांध हैं लेकिन स्थानीय वाशिंदों के लिए विनाश का पर्याय हैं। सरकारी तर्क है कि बांध से बिजली बनेगी, सिंचाई की व्यवस्था होगी और जमीनी हकीकत है कि बांध से हजारों-हजार लोग अपनी जमीन से उजड़ जायेंगे और जिन्दा रहने के उनके बुनियादी अधिकार का अपहरण होगा। बांध का फायदा उद्योग-धन्धों को मिलेगा और इसकी कीमत चुकायंेगे गरीब-गुरुबे, लेकिन भोले-भाले आदिवासी अब बुद्वू नहीं बनाये जा सकते। तमाम जगहों की तरह दुद्धी के आदिवासी भी विकास के लिए अपनी बलि देने के लिए तैयार नही हैं। यहॉ के आदिवासी अपने हक-हकूक को लेकर बाकायदा वाखबर हैं और लम्बी लड़ाई के लिए मन बनाकर क्षेत्र के स्ंवय सेवी संगठनों व जनसंगठनों, भूमि हकदारी मोर्चा के साथ जुडकर अपने अस्तित्व की लडाई आगे बढा रहे हैं।
सम्मेलन के मुख्य अतिथि अशोक सिंह आदिवासियों को देखकर कुछ क्षण के लिए भावुक हो गये। उन्होंने कहा कि विकास मनुष्य को जिन्दा रहने के शर्त पर होना चाहिए न कि जिन्दगी समाप्त करने के लिए। कई मुख्यमंत्री 30 सालों तक इस परियोजना को अपने शासन काल में बना नहीं सके, करोड़ों की धनराशि कबाड़ियों के हाथ कौड़ी के मोल बिक गयी तो अब ‘‘बृहद नई कनहर परियोजना’’ की एकाएक क्यों आवश्यकता हो गई। यह केवल आने वाले चुनावी लाभ को भुनाने का एक उपाय है। पानी और विकास से इसका कोई औचित्य नहीं है। 9 लाख पेड़ डूब क्षेत्र में जल समाधि लेंगे। यह पर्यावरण के दृष्टिकोण से काफी विचारणीय सवाल है। इसके लिए वे पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश के साथ बात करेंगे। गरीब आदिवासियों का विकास उन्हीं की शर्तांे पर होना चाहिए। इनके रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, समुचित व्यवस्था इनकी पहली वरीयता है। राज्य सकार को इस पर ध्यान देना चाहिए। हम आदिवासियों के आन्दोलन के साथ हैं हमारा पूरा समर्थन इनके साथ है।
पी0यू0सी0एल0 के चितरंजन सिंह का कहना था कि विस्थापन से मानवाधिकार का सबसे बड़ा हनन होता है। महिला और बच्चों की स्थिति सबसे दयनीय हो जाती है। इनकी सुरक्षा हेतु वे न्यायालय में जायेंगे और इन्हें समुचित न्याय मिलेगा। पी0यू0सी0एल0 बंचितों एवं गरीबों को हक-हकूक दिलाने की दिशा में तत्पर है। कनहर बचाओं आन्दोलन के साथ हरदम कंधों से कंधा मिलाकर खड़ा है।
विरोध सभा में दुद्धी के परगनाधिकारी स्वयं आये तथा आंदोलनकारयों ने अपना मांग-पत्र उन्हें सौंपा। यह मांग-पत्र उ.प्र. सरकार को सम्बोधित है तथा मांग-पत्र की मुख्य मांगें हैं-
- किसी भी प्रकार का विस्थापन न किया जाय।
- बड़ा बांध न बनाया जाय। ऐसा बांध न बनाया जाय जिससे गांव डूबें।
- आरक्षित वनों में पुश्तैनी तौर पर बसे सभी लोगों को वन अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के तहत उतनी भूमि दी जाय जितने पर उनका कब्जा है।
- क्षेत्र में घोषित अनुसूचित जनजाति के लोगों को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर चुनाव लड़ने का अधिकार हो।
- प्रत्येक प्राइमरी स्कूल में हर कक्षा के लिए कम से कम एक अध्यापक की व्यवस्था की जाय तथा अपर प्राइमरी स्कूल में प्रत्येक विषय के लिए कम से कम एक अध्यापक की व्यवस्था की जाय।
मांग-पत्र देने के बाद प्रदर्शनकारी संघर्ष को मंजिल तक पहुंचाने के संकल्प के साथ अपने अपने गांवों की तरफ वापस चले गये।
इस संघर्ष में एक प्रेरक की भूमिका निभाने वाले श्री महेशानंद जो इस क्षेत्र में भाईजी के नाम से जाने जाते हैं का कहना है कि- ‘‘विस्थापन का कोई विकल्प नहीं है और न ही इसकी क्षतिपूर्ति संभव है। योजनाकारों को इस बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए। जल-जंगल- जमीन और अपने ही देशवासियों के हितों को किसी के फायदे के लिए इस्तेमाल करना किसी भी प्रकार से न तो लोकतांत्रिक, मानवीय है और न ही दूरगामी तौर पर विवेकपूर्णं कुछ मुट्ठीभर लोगों की विलासिता की पूर्ति के लिए करोड़ों आदिवासियों के अस्तित्व को समाप्त कर देना न तो स्वतंत्रता संग्राम में कायम किये गये मूल्यों के अनुरूप है और न ही गांधी के ग्राम स्वराज की अवधारणा के अनुरूप। लोग लोकतांत्रिक ढंग से अपनी आवाज उठा रहे हैं, मुझे उम्मीद है सरकारें अपने मतदाताओं के साथ अन्याय नहीं करेंगी।’’
इस बीच कनहर बचाओ आंदोलन केे लोगों ने देश के तमाम जन संघर्षों से तालमेल बनाने, न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की बात तय की है। कनहर बचाओ आंदोलन के नेता विश्वनाथ खरवार, जीतन प्रसाद, शिव प्रसाद, राम लाल, तेतरी देवी,शिव कुमारी ने ऐलान किया है कि इसी तरह के विरोध प्रदर्शन छत्तीसगढ़ तथा झारखण्ड में भी शीघ्र ही आयोजित किये जायेंगे और इन राज्यों के प्रभावित गांव वासी अपने विरोध से अपनी-अपनी राज्य सरकारों को अवगत करायेंगे।
– वीरेन्द्र प्रताप सिंह, दुद्धी, सोनभद्र से
– विश्वनाथ खरवार (कनहर बचाओ आंदेालन के नेता)