गोरखपुर में प्रस्तावित परमाणु ऊर्जा संयन्त्र के खिलाफ संघर्षरत किसान
भारत में साफ, सुरक्षित एवं सस्ती तथा समुचित बिजली आपूर्ति की बातें जोरशोर से सरकार तथा तंत्र द्वारा प्रचारित करते हुए यह कहा जा रहा है कि इस जरूरत को पूरा करने के लिए 40 नये परमाणु संयंत्रों को स्थापित करने की जरूरत है। इन प्रस्तावित परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में से एक हरियाणा के फतेहाबाद जिले के गौरखपुर गाँव में प्रस्तावित है।
आज से कई साल पहले इस परियोजना के लिए इस इलाके का मौका-मुआयना किया गया था तब यह कुम्हारिया परमाणु संयन्त्र के नाम से प्रचारित किया गया था। यह संयंत्र लगभग 1503 एकड़ जमीन में लगाने की योजना है। इस उद्देश्य हेतु हरियाणा सरकार ने जब भूमि अधिग्रहण की सूचना समाचार पत्रों में प्रकाशित की तो सीधे तौर पर प्रभावित हो रहे गाँवों- गौरखपुर, बड़ोपल तथा काजलहेड़ी के किसानों ने किसान संघर्ष समिति का गठन करके अपनी कृषि भूमि को बचाने तथा परियोजना के विरोध में संघर्ष की शुरूआत की।
15 अक्टूबर से किसान संघर्ष समिति ने फतेहाबाद जिला मुख्यालय पर धरना-प्रदर्शन आरंभ कर दिया। किसानों की साफ समझ है कि वे किसी भी कीमत पर (चाहे जितना मुआवजा दिया जाय) अपनी जमीन नहीं छोड़ेंगे। वे कई राजनीतिक पार्टियों की इस समझ और माँग से सहमत नहीं हैं कि एन.सी.आर. के रेट से मुआवजा तथा नौकरियाँ दी जाएं तभी जमीन देंगे।
इस बीच में किसानों ने परमाणु ऊर्जा के खतरों, पर्यावरण की क्षति तथा सरकार द्वारा निर्धारित मापदण्डों की अवहेलना के मसलों को लेकर किसानों, छात्रों, नवजवानों तथा व्यापारियों के बीच में भी जागरूकता अभियान चलाकर आंदोलन को व्यापक करने की मुहिम तेज कर दी है। किसानों के 85 फीसदी हिस्से ने जिला राजस्व अधिकारी को भूमि न देने का पत्र सौंप दिया है तथा इन पत्रों में मुआवजे का जिक्र तक नहीं है।
इस संदर्भ में 13 नवंबर 2010 को टोहाना बाजार में किसानों, छात्रों, नवजवानों तथा व्यापारियों की एक संयुक्त सभा करके परियोजना के विरोध के निर्णयों को दोहराया गया तथा इसके कारणों को भी व्याख्यायित किया गया। इस सभा में प्रो. राजेन्द्र चौधरी (महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय), डा. राजेन्द्र शर्मा, धीरज गाबा, कर्मवीर सिंह, का. इन्द्रजीत बसवाल, जसमेर सिंह, हंसराज प्रधान, सुरेन्द्र आनंद गाफिल ने अपने विचार रखे।