नेशनल हिल्स पार्क : 37 गांवों के वाशिंदों को हटाकर जानवरों को बसाने का फरमान
राजस्थान के चित्तौड़गढ जिले के ब्लॉक भैसरोडगढ में राजस्थान सरकार ने तीन ग्राम पंचायतों के 37 गांवों के वाशिंदों को हटाकर जानवरों को बसाने के उद्देश्य से नेशनल हिल्स पार्क बनाने का फैसला किया है।
इन गरीब आदिवासियों (भील) को विस्थापित करने का यह दूसरा षड्यंत्र हैं। पहले भारत सरकार द्वारा 1965 में राणाप्रताप सागर बांध बनाया गया जिसके चलते जो आदिवासी डूब क्षेत्र में आये उनको यहां से हटाकर भैसरोडगढ के अन्य क्षेत्रों में बसाया गया था। जहां वे आज भी बसे हुए हैं। ये लोग पशुपालन, खेती, जंगल के फल, गोन्द को एकत्रित करके अपना गुजारा कर रहे है। अधिकतर परिवारों के लिए अभी भी पूरे वर्ष भोजन, रहने के लिए मकान, पीने के लिए साफ पानी, बच्चों की शिक्षा, बीमार होने पर उपचार के लिए कोई व्यवस्था नहीं है।
भैसरोडगढ क्षेत्र में सन् 1965 में 508 परिवारों को सरकार ने 12449 बीघा जमीन आबंटित की थी। इस जमीन को आदिवासियों ने अपना खून-पसीना बहाकर कृषि व सिचाई योग्य बनाया था। अचानक सरकार ने इस जमीन को वापिस जंगलात के खाते में डाल दिया है और अब इसे प्रस्तावित नेशनल पार्क का हिस्सा घोषित कर दिया है।
पूरे देश में आदिवासियों ने जंगल में खेती करने के अधिकार को लेकर लम्बे समय तक संघर्ष किया जिससे केंद्र सरकार को मजबूर होकर इन आदिवासियों की बात माननी पड़ी। लिहाजा सरकार ने 2005 में वनाधिकार कानून बनाया जबकि भैसरोडगढ के इन गांवों में प्रस्तावित नेशनल पार्क के नाते किसी को भी पट्टा देने की कार्यवाही आज तक नहीं की गयी है।
वर्तमान स्थिति
- 16 फरवरी 2010 को जिलाधीश चित्तौड़गढ द्वारा इस आदिवासी क्षेत्र में नेशनल हिल्स पार्क बनाने की घोषणा।
- जिलाधीश द्वारा वन्य जीव अभ्यारण क्षेत्र की सीमा विस्तार पर आपत्ति दर्ज करनो हेतु ग्राम पंचायतों को नोटिस देना।
- भैसरोडगढ ब्लॉक की तीन ग्राम पंचायत-लुहारिया, मण्डेसरा तथा राजुपुरा में लगभग 37 गांव, 2000 परिवार, 12000 आबादी व 9040 बीघा जमीन है।
- भैसरोडगढ ब्लॉक में कुल 5213 परिवार व 25000 जनसंख्या निवास कर रही हैं जो जिले में सबसे अधिक हैं।
डूब विस्थापित संघर्ष समिति द्वारा 20 मार्च 2010 को भीम चौराहा, मण्डेसरा पर एक बैठक का आयोजन किया गया। जिसमें नेशनल हिल्स पार्क योजना पर चर्चा की गयी। चर्चा के बाद आदिवासियों का कहना था कि ’’वे किसी भी स्थिति में अपनी भूमि को नहीं छोड़ेगें’’। सरकार के इस दोहरे षड़यंत्र से लड़ने के लिए वे तैयार हैं। बीच-बीच में युवा साथी नारे लगा रहे थे-’’जंगल किसका, जो जंगल में रहता उसका’’ मीटिंग के अंत में एक पारित प्रस्ताव के अनुरूप –
- 22 मार्च 2010 को जिलाधीश चित्तौड़गढ के कार्यालय पर सामूहिक (प्रभावित 37 गांवों की तरफ से) आपत्ति दर्ज करायी गयी।
- आपत्ति दर्ज करवाने 37 गांवों के लोग रैली के रूप में गये तथा किसी भी स्थिति में अपनी जमीन न देने का ऐलान किया।
- जिला कलेक्टर को एक मांग पत्र दिया गया जिसमें नेशनल हिल्स पार्क को निरस्त करने की माँग तथा वनाधिकार कानून 2005 के अन्तर्गत लोगों को पट्टा देने की मांग शामिल है।
आपसी विचार-विमर्श तथा आगे की रणनीति पर विचार
15 से 17 अप्रैल 2010 को भैंसरोड़गढ़ स्थित हनुमान मन्दिर के परिसर में सीधे तौर पर प्रभावित होने जा रहे 37 गांवों के निवासियों, सरपंचों तथा क्षेत्र में कार्यरत जनसंगठनों के प्रतिनिधियों ने विचार-विमर्श करके यह तय किया कि-
- सरकार के नोटिस के बारे में और स्पष्ट जानकारी ली जाये। इसकी जिम्मेदारी जयपुर से आये साथियों को दी गयी।
- इस मुद्दे पर कार्यरत सभी संगठनों, सरपंचों तथा प्रभावित होने जा रहे लोगों को एक साझे मंच पर इकट्ठा किया जाय।
- किसी भी हालत में अपना गांव, जमीन, पहाड़ तथा जंगल न छोड़ने का संकल्प लिया गया।
प्रांतीय स्तर पर पहल:
जयपुर में 1 एवं 2 मई 2010 को राजस्थान में विस्थापन तथा पलायन के सवाल पर कार्यरत संगठनों ने एक साझी चर्चा के बाद तय पाया है कि पूरे राज्य में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ चलने वाले संघर्षों को एकजुट किया जाय तथा देश के अन्य भागों में चलने वाले संघर्षों से एकजुटता कायम करके निर्णायक संघर्ष छेड़ा जाय।
किसानों के जुझारू संघर्ष के आगे विवश सरकार; भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलन, हाज्यावाला, जयपुर
राजस्थान सरकार द्वारा जयपुर विकास प्राधिकरण के जरिए जयपुर जिले के ग्रामीण इलाके की तहसील सागानेर में ग्राम हाज्यावाला व उसके आस-पास के गांवों की करीब 500 बीघा भूमि अधिग्रहण करने की योजना बनाई गई है। सरकार यह योजना स्वर्ण विहार विस्तार आवासीय योजना व क्षेत्र के विकास के नाम पर बना रही है जिसको यहां के वाशिन्दे किसान व अन्य लोग, स्थानीय ग्रामीणों की भूमि हड़पने का सरकारी षड्यंत्र मानते हैं। उनका कहना है कि ‘‘जयपुर में ही अजमेर रोड़ स्थित कलवाड़ा व उनके आस-पास के गांवों की 3000 बीघा जमीन किसानों से भी विकास के नाम पर ही ली थी जो कि बाद में सेज बनाने हेतु महेन्द्रा एण्ड महेन्द्रा कम्पनी को दे दी गई। इसलिए इस क्षेत्र के किसानों ने अपनी भूमि सरकार को नहीं देने का फैसला किया है। हाज्यावाला भूमि बचाओ संघर्ष समिति के बैनर के नीचे यहां के किसानों ने अप्रैल माह से जून 15 तक शान्तिपूर्वक व जुझारू संघर्ष चलाया, जिसके परिणामस्वरूप फिलहाल सरकार को भूमि अधिग्रहण से पीछे हटना पड़ा। किसान इसे अपने संघर्ष की जीत मानते हैं और भविष्य में भूमि बचाने हेतु तीव्र संघर्ष करने हेतु एकताबद्ध हैं।
संघर्ष के महत्वपूर्ण पहलू
· इस भूमि संघर्ष का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि किसानों की यह भूमि यानी जमीन सिंचित व उपजाऊ है। कई पीढ़ियों से ये लोग बसे हुए हैं। इसलिए भावनात्मक लगाव भी है। इस जमीन में पानी होने के कारण यहां पर सभी प्रकार की कीमती फसलें व सब्जियां होती हैं। इसके अलावा किसान पशुपालन व दूध का भी व्यवसाय करते हैं जिससे उनकी आजीविका चल रही है। इसलिए किसान व स्थानीय वाशिन्दे राजस्थान सरकार से मुआवजा लेकर अपनी भूमि किसी भी कीमत पर देने को तैयार नहीं है।
· दूसरा महत्वपूर्ण पहलू यह है कि किसानों की इस भूमि का मैपिंग गुगल मैच प्राईवेट एजेन्सी द्वारा करवाया जा रहा है जिससे किसानों को यह समझ में आ गया है कि सरकार व प्रशासन आवासीय योजना व विकास के नाम पर उनकी जमीन अधिग्रहण करके सब्जी आदि का व्यापार करने वाली बहुराष्ट्रीय व राष्ट्रीय कंपनियों को देने जा रही है। क्योंकि इस इलाके के किसान पास के गांवों के किसानों की सेज में ली गई भूमि का नजारा देख चुके हैं। इसलिए भी हाज्यावाला क्षेत्र के किसान अपनी जमीन के लिए जुझारू संघर्ष के लिए तैयार हो रहे हैं।
संघर्ष की वर्तमान स्थिति (जुलाई 2010)
सरकार की ओर से जयपुर विकास प्राधिकरण द्वारा किसानों की 500 बीघा भूमि के आबंटन का अभियान रोक दिया गया है। इसलिए हाज्यावाला भूमि बचाओ संघर्ष समिति ने किसान आंदोलन अभियान स्थगित कर रखा है लेकिन संघर्ष के चलते मिली सफलता के कारण सभी स्थानीय ग्रामीण एकजुट हैं और उनके हौसले बुलन्द हैं। संघर्ष समिति सदस्य श्योजीराम चौधरी के अनुसार स्वर्ण विहार विस्तार आवासीय योजना के नाम पर सागानेर हाज्ययावाला क्षेत्र के हजारों किसानों व वाशिन्दों को उजाड़कर जमीन अधिग्रहण करने की सरकारी मंशा हम कभी भी पूरी नहीं होने देंगे।