सिंगूर फैसले ने दिखाई राह : बस्तर के बाद अब नवलगढ़ से उठी जमीन लौटाने की मांग
पश्चिम बंगाल के सिंगूर में टाटा के लिए हुए भूमि अधिग्रहण के संबंध में 31 अगस्त को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किसानों को जमीन वापस दिए जाने के निर्णय ने देश भर में भूमि अधिग्रहण विरुद्ध आंदोलनों को एक नया मोड़ दे दिया है। गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायलय के इस फैसले के तुरंत बाद बस्तर के आदिवासियों द्वारा मांग की गई कि उनकी जमीनें, जिस पर टाटा का कब्जा था और जो प्लांट 28 अगस्त 2016 को बंद हो गया, भी उन्हें वापस की जाए। इसी क्रम में अब आवाज उठी है राजस्थान के नवलगढ़ से जहां पर हजारों किसान पिछले दस वर्षों से लगातार सीमेंट फैक्ट्रियों के लिए हुए अपनी जमीनों के अधिग्रहण के विरुद्ध लड़ रहे हैं। हम यहां पर भूमि अधिग्रहण विरोधी संघर्ष समिति, नवलगढ़ द्वारा 1 सितंबर 2016 को जारी बयान आप के साथ साझा कर रहें;
31 अगस्त 2016 को दिए अपने एक ऐतिहासिक फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल के सिंगूर में टाटा नैनो प्रोजेक्ट के लिए अधिग्रहित की गई करीब 1000 एकड़ जमीन वापस किसानों को वापस दे देने का आदेश दिया है (देखें लिंकः http://www.sangharshsamvad.org/2016/08/blog-post_85.html)। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले ने देश भर में जबरन भूमि अधिग्रहण के खिलाफ लड़ रहे किसानों में एक नई जान फूंक दी है। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले का स्वागत करते हुए अब बस्तर के आदिवासियों ने भी अपनी जमीनें वापस करने की मांग की है जिस पर जबरन चल रहा टाटा प्लांट 28 अगस्त 2016 को बंद हो गया (देखें लिंकः http://www.sangharshsamvad.org/2016/08/11.html)। प्रस्तुत है बस्तर के आदिवासियों द्वारा की जा रही मांग पर डॉ लाखन सिंह की रिपोर्ट यहाँ पढ़े
प्राईवेट सिंमेट कम्पनी तो सार्वजनिक हित में हो ही नहीं सकती। कम्पनी का अवार्ड पारित हुए छः साल से ज्यादा हो चुके हैं मगर किसान अभी भी धरना देकर अधिग्रहण के खिलाफ विरोध कर रहे हैं। इस लिए यहाँ नवलगढ के किसानों के साथ तो सिंगुर से भी ज्यादा प्रक्रिया में गफलत हुई है। किस प्रकार लगभग 300 एसी एसटी परिवारों को जमीन से बेदखल कर दिया है। व कैसे कैसे अपने कम्पनी के कर्मचारियों के नाम करोड़ों की जमीन खरीदी तथा काले धन को सफेद किया।
इसका एक उदाहरण दूं कि जब ये किसी से जमीन की रजिस्ट्री करवाते हैं तो बहुत ही कम रकम की बनाते हैं। बाकी पैसा चैक बनाकर या नगद किसान को देते हैं इस प्रकार जितना राजस्व सरकारी खजाने में जाना चाहिए उसका 10%भी नहीं जाता। यही नहीं अगर पूरी प्रक्रिया की थोड़ी सी भी जांच हो जाये तो सारी बेईमानी व चालाकी की पोल खुल जायेगी कि हमारे कुछ राजस्व अधिकारीयों के क्या क्या कारनामें हैं। इस लिए हम सरकार से यह अनुरोध करते हैं कि हमें बिना सर्वोच्च न्यायालय की शरण जाये हमारी जमीन हमें सोंपदो व इस अतार्किक अधिग्रहण को रद्द करो।