‘मेक इन इंडिया’ नहीं यह ‘लूट इन इंडिया’ है : कार्पोरेटस को श्रम और प्राकृतिक संसाधनों की लूट की छूट
विस्थापन विरोधी जनविकास आंदोलन के बैनर तले ‘मेक इन इंडिया’ का धोखा पर एक दिवसीय सेमिनार नागपुर में 29 अगस्त, 2016 को आयोजित कि गई। सेमिनार में छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिसा, मध्य प्रदेश, चंडीगढ, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, हरियाणा, महाराष्ट्र आदि राज्यों से जमीन अधिग्रहण के खिलाफ लडाई लड़ रही जनता ने भागेदारी की जिसमें वकील, मानवाधिकार कार्यकर्ता, शिक्षाविद्, बुद्धिजीवी शामिल थे। कार्यक्रम की शुरूआत वरिष्ट पत्रकार उमेश चौबे के स्वागत भाषण से हुई और इसके बाद छत्तीसगढ से आए आदिवासी सांस्कृतिक समूह ने गीत गाया।
उमेश चौबे जी ने कहा भारत में औपनिवेशिक काल से शुरू हुआ और 1947 के बाद भी जारी है। उन्होंने कहा कि लोगों की लडाई जमीन के छीने के खिलाफ लोगो की लडाई प्राचीन काल से चली आ रही है और अभी मेक इन इंडिया की घातक नीतियों के खिलाफ हमें गोलबंद होने की जरूरत है। इसके बाद मेक इन इंडिया नीति के उपर हैदराबाद के बी0एस0 राजू ने विस्तृत विश्लेषण पेश किया। उन्होंने उन राजनीतिक कारणों को सामने रखा जो एक ऐसी नीति को क्रियांवित करने के लिए सरकार को उतारू कर रहे हैं जिससे स्थानीय उद्योगों को बंद करके प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को विकास बताया जा रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसी नीति जो एक बड़े तबके को सही मायने के विकास से वंचित करती है का हमें कडा विश्लेषण करना चाहिए। इसके बाद ओडिसा, छत्तीसगढ में खनन और अन्य परियोजनाओं के खिलाफ जारी लडाईयों की प्रस्तुती की गई। चंडीगढ, भोपाल, मध्यप्रदेश इत्यादि में स्मार्ट सिटी से होने वाले विनाश और उसके खिलाफ जारी आंदोलनों की भी प्रस्तुती की गई।
छत्तीसगढ, ओडिसा, झारखंड से आए कार्यकर्ताओं ने बताया कि सरकार इस बात का प्रचार कर रही है कि निर्दोष बेचारे आदिवासी नक्सल एवं सरकार के बीच में पीस रहे हैं, लेकिन असलियत यह भी है कि बड़ी तादाद में अपनी जमीन जंगल एवं वन संसाधनों को बचाने के लिए दलित, आदिवासी एक जुझारू लड़ाई लड रहे हैं। और इसी लड़ाई को दबाने के लिए सरकार नक्सल उन्मूलन की आड में उन पर हमला कर रही है। शहरी क्षेत्रों के कार्यकर्ताओं ने बताया कि सरकार स्मार्ट सिटी और सुन्दर शहर के नाम पर झुग्गी झोपडियों को तोड रही है।
झारखंड के प्रो. रमेश शरण ने भारत में आर्थिक विकास के इतिहास को विस्तार से रखा और इसे जनविकास आंदोलन की स्थापन के जनसंघर्षों से जोडकर रखा। उन्होंनें कहा कि सरकार पर्यावरणीय कानूनों, जमीन कानूनों, पेसा, जैसें कानूनों को लागू करने में असफल रही है। साथ ही आदिवासी इलाकों में बेतहाशा राजकीय दमन किया जा रहा है, स्कूलों में पुलिस कैम्प बैठाए जा रहे हैं। और सरकार खुल तौर पर कारपोरेट व कारपोरेट नेताओं के साथ मिलकर जनता के खिलाफ नीतियां बना रही है। अगले सत्र में डा. श्रीनिवास खंडेलवाले ने कहा कि सरकार धीरे धीरे आदिवासी और दलित के खिलाफ नीतियों को लागू कर रही हैं। उन्होंने महाराष्ट्र व आसपास के राज्यों के उदाहरण देकर मेक इन इंडिया की नीतियों का खुलासा किया।
इसके बाद मध्यप्रदेश, सुरजागड और गडचिरोली, तेलंगाना, झारखंड में विस्थापन विरोधी जनांदोलन की स्थिति के बारे में चर्चा की गई। सेमिनार का समापन में प्रस्ताव पारित किया गया। बाद में विदर्भ में गडचिरोली जिल्हे के एव नागपुर के आसपास के विस्थापन विरोधी आंदोलनों पर चर्चा की गई। जिसमें एडवोकेट अनिल काले, विनोद गजभियेए अरुण वनकरए विनोद गिल्लुरकरए विलास भोंगाड़ेए अमित पावडे और रामदास जराते आदि ने विस्तृत चर्चा की।
‘मेक इन इंडिया’ का धोखा सेमिनार में प्रस्तावित प्रस्ताव-
- ‘मेक इन इंडिया’ जैसे शब्दाडम्बर के जरिए सरकार जल, जंगल, जमीन, प्राकृतिक संसाधन व राजकीय पूंजी को साम्राज्यवादी पूंजीपतियों व भारत के बड़े पूंजीपतियों को सौंप रही है। स्टार्ट अप, स्किल डवेलपमैंट, इंडस्ट्रियल कॉरिडार, एक्सप्रेस-वे, स्मार्ट सिटी, खनन, प्लांट, बडेबांध इसी नीति के तहत लगाए जा रहे हैं। इसके तहत लाखों एकड जमीन किसानों से छीनी जा रही है, बस्तियां उजाडी जा रही है। मेक इन इंडिया के तहत रोजगार पैदा करने का दावा छलावा मात्र है, क्योंकि ज्यादातर उद्योगों में स्वचालित मशीनों से उत्पादन होगा, जिसमें नाममात्र के मजदूरों की ही जरूरत होगी। इन मजदूरों को लगभग तमाम कानूनी अधिकारों से वंचित कर उन्हें लगभग बंधुआ मजदूर जैसा बनाकर काम करवाया जा रहा है और किसानों को बदहाली में पहुंचाया जा रहा है।
- वन संरक्षण के नाम पर आदिवासी बहुल इलाकों से ग्रामीणों को जंगल और जमीन से खदेड़ा जा रहा है। एक ओर, गुमला, नवापाडा जैसी जगहों पर वन्य अभ्यारण्य, नेशनल पार्क के नाम पर जंगलों से स्थानीय निवासियों को हटाने की कोशिश की जा रही है। वहीं दूसरी ओर, पिछले 7 सालों में 500 से अधिक जैव विविधता वाले घने जंगलों और उसके इर्द-गिर्द के इलाकों में रहने वाली जनता को ग्राम सभा की अनुमति के बगैर व तमाम कानूनों को ताक पर रखकर विभिन्न परियोजनाओं के लिए दे दिया गया है। इस विस्थापन का हम विरोध करते हैं।
- कैम्पेस्टरी ऐफोरेस्टेशन फंड एक्ट, 2016 जैसे कानून वृक्षारोपण के नाम पर हजारों एकड जमीन से आम जनता को उजाड़ने की योजना के अलावा कुछ नहीं है। हम इस कानून को वापिस लेने की मांग करते हैं।
- तथाकथित हरित क्रांति के नाम पर भारत की खेती-किसानी को साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा नियंत्रित बाजार मे धकेला गया जिससे परादेशीय विदेशी कम्पनियां व भारत के बडे पूंजीपति बीज, दवाई, रासायनिक खाद आदि के जरिए जहां कृषि क्षेत्र से अथाह मुनाफा कमा रही है। इस कारण सूदखोरी को अत्याधिक बढ़ावा मिला है। इस हरित क्रांति ने देश के अन्नदाता मेहनतकश किसानों को अपना गला खुद घोटनें पर मजबूर कर दिया। ये आत्महत्या नहीं, बल्कि इस साम्राज्यवादी ताकतों व सरकार द्वारा की गई हत्या है। हाल में पूर्वी भारत में दूसरी हरित क्रांति के नाम पर जहरीले जी.एम. बीज को बढ़ावा दे रही है जो किसानों के हालात को बद से बदतर बना देगी। हम इस तथाकथित दूसरी हरित क्रांति का विरोध करते हैं।
- भारत सरकार लगातार शिक्षा, स्वास्थय, बिजली, पानी, राशन जैसी सुविधाओं से हाथ पीछे खींच रही है। परन्तु दूसरी ओर नॉन-परफार्मिंग एसेटस (एनपीए) के नाम पर लगभग 6 लाख करोड़ रूपये बड़े पूंजीपतियों के हवाले कर दिए। इसके अलावा कारपोरेट घरानों को इस साल लगभग 6 लाख करोड़ रूपये की छुट दी गई है। यहां तक कि कोयला खदानों के नए आवंटन में कम्पनियों की 1200 करोड रूपए की लेवी माफ कर दी। हम जनता की खुन पसीने की गाढ़ी कमाई को कारपोरेट घरानों और बड़े पूंजीपतियों के हवाले करने का विरोध करते हैं और मेहनतकश जनता को बुनियादी सुविधाएं निशुल्क देने की मांग करते हैं।
- हम बढ़ते ब्राहम्णवादी हिन्दूत्ववाद एवं फर्जी राष्ट्रवाद के अंतर्गत महिलाओं, आदिवासी, दलित और अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलें और दमन का विरोध करते हैं जोकि गउ रक्षा, फर्जी राष्ट्रववाद, लव जेहाद, घर और समाज की इज्जत, घर वापसी, धार्मिक संरक्षण के नाम पर किया जा रहा है। जहंा दलित, आदिवासी, महिलाएं व अल्पसंख्यक अपने अस्मिता, अस्तित्व, जमीन और आजीविका की लड़ाई लड़ रहे हैं, उन पर दमन-उत्पीडन बढ़ रहा हैं। हम उन सभी लड़ाईयों का समर्थन करते हैं, जो ब्राहम्णवादी व सामंती व्यवस्था के खिलाफ लड़ रहे हैं। इस समय उना से शुरू हुई दलित हक-हकूक की लड़ाई का हम पुरजोर समर्थन करते है और इसे अपनी लड़ाई मानकर इसके विस्तार के लिए भी प्रतिबद्ध हैं।
- खनिजों के उत्खनन और जमीन पर कब्जे के लिए सरकार और कारपोरेट घरानों के गठजोड़ के द्वारा झारखंड, ओडिसा, छत्तिसगढ़ एवं अन्य आदिवासी बहुल क्षेत्रों में सारे कानूनों को ताक पर रखकर जमीनों पर कब्जा करने की कोशिश की जा रही है तथा छोटा नागपुर काश्तकारी कानून और संथाल परगना काश्तकारी कानून जैसे कानूनों में बदलाव कर आदिवासियों की जमीन लूट को कानूनन करने की कोशिश कर रहे हैं। इसी प्रयास के तहत इन इलाकों में राजकीय सैन्यीकरण बढाया जा रहा है। लड़ाकू जनता के उपर दमन बढ़ रहा है। छत्तीसगढ़ और ओडिसा में आम ग्रामीणों को फर्जी मुठभेडों में मारा जा रहा है। महिलाओं के साथ यौन हिंसा सुरक्षा बलों की रणनीति का हिस्सा बन गई हैं, जिसे तमाम सरकारें आंख मूंद कर समर्थन दे रही है। इस दमन का विरोध कर रहे वकील, सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार, शोधकर्ताओं पर भी जुल्म ढहाया जा रहा है, इलाके से खदेड़ा जा रहा है, जेलों में डाला जा रहा है। हम इसका विरोध करते है।
- कश्मीर में भारत की सेना व स्थानीय पुलिस हमलावर सेना जैसा व्यवहार कर रही है। जिस कारण 50 से ज्यादा नवयुवकों की मौत हो चुकी है, तथा हजारों की संख्या में जनता को पैलेट गन से अपंग कर दिया है। सरकार जनता की आवाज सुनने बजाए व कश्मीर मामले का राजनैतिक हल निकालने की बजाए 50 से अधिक दिनों से कफर्यू लगा रही है। यह सम्मेलन भारत सरकार से मांग करता है कि कश्मीर के सैन्य कब्जे की रणनीति को छोड़कर जनता की आकांक्षा के प्रति संवेदनशील होकर एक राजनीतिक हल की प्रक्रिया शुरू करे।
- विस्थापन विरोधी जनविकास आंदोलन के साथ जुड़े कार्यकर्ताओं विरेन्द्र कुर्रे, जोकि छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में लक्ष्मी सीमेंट के जबरन जमीन अधिग्रहण के खिलाफ लड़ रहे थे, और दासरू मल्लिक, जो नियमगिरी में खनन परियोजनाओं के खिलाफ लडाई की अगुआई कर रहे थे, सहित जेल में बंद तमाम अन्य आंदोलनकारियों को तुरंत बेशर्त रिहा किया जाए। और आफसा, यूएपीए, छत्तीसगढ़ जनसुरक्षा अधिनियम आदि तमाम दमनकारी कानूनों को निरस्त किया जाए।
- गडचिरौली में सुरजागढ, बांडे, आगरी-मसेली व दमकोंडवाही में लौह खादान को तुरंत बंद किया जाए। टिपागड में अभ्यारण्य परियोजना वापिस लिया जाए। इन खादान परियोजनाओं के खिलाफ लडने वाले कार्यकर्ताओं को प्रताडित किया जा रहा है। उन्हें सीआरपीसी की धारा 110 के तहत थाना में लगातार हाजरी लगाने के लिए मजबूर किया जा है। फर्जी मुकदमें लगाकर उन्हें जेल में डाला जा रहा है। हम मांग करते है कि कार्यकर्ताओं को प्रताडित करना बंद किया जाए, जेल में बंद कार्यकर्ताओं को बेशर्त रिहा किया जाए। साथ सीआरपीसी की धारा 110 जैसी गैर-लोकतांत्रिक धाराओं को तुरंत निरस्त किया जाए।