नर्मदा बांध विस्थापितों ने जमीनी हकीकत से वाकिफ करवाया नर्मदा कंट्रोल अथाॅरिटी के सदस्य को
मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले के राजघाट पर पिछली 30 जुलाई 2016 से अनिश्चितकालीन नर्मदा जल जंगल जमीन हक सत्याग्रह जारी है । आज 27 अगस्त को नर्मदा कंट्रोल अथाॅरिटी (एनसीए) के सदस्य एहमद ने राजघाट स्थित आंदोलन के सत्याग्रह स्थल पर पहुँच कर नर्मदा बांध विस्थापितों की बाते सुनी । नर्मदा बचाओ आंदोलन की विज्ञप्ति;
सरदार सरोवर परियोजना संबंधी नर्मदा न्यायाधिकरण के आदेशों का पालन करवाने वाली केन्द्रीय एजेंसी नर्मदा कंट्रोल अथाॅरिटी (एनसीए) के सदस्य (पुनर्वास एवं पर्यावरण) डाॅ॰ अफरोज एहमद ने प्रभावितों के आग्रह पर राजघाट स्थित आंदोलन के सत्याग्रह स्थल पर पहुँच कर उनसे मुलाकात की। उन्होंने स्वीकार किया कि प्रभावितों द्वारा उठाए गए केचमेंट एरिया ट्रीटमेंट, वैकल्पिक वनीकरण, भूकंप, बाँध के निचले क्षेत्र में प्रभाव, रेत खनन, नीति अनुसार पुनर्वास न किया जाना, बैक वाटर लेवल कम किया जाना आदि मुद्दे महत्वपूर्ण है। उन्होंने प्रभावितों को आश्वासन दिया कि वे इन मुद्दों को आगामी 31 अगस्त की मीटिंग तथा राज्य और केन्द्र सरकारों के समक्ष उठाएँगें। उन्होंने यह भी स्वीकारा कि आंदोलन के कारण प्रभावितों को उनके हक मिलना सुनिश्चित हो पाया।
गौरतलब है कि आगमी 31 अगस्त 2016 की दिल्ली में एनसीए पर्यावरण उपदल की मीटिंग है। केन्द्रीय जल संसाधन सचिव इस उपदल के अध्यक्ष तथा महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान और मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव इसके सदस्य होते हैं। इस मीटिंग में बाँध के गेट बंद करने का जनविरोधी निर्णय लिया जा सकता है।
सर्वश्री कैलाश यादव (कसरावद), जामसिंह भीलाला (अमलाली), महेश शर्मा (चिखल्दा), देवीसिंह तोमर (एक्कलबारा) सुश्री कमला यादव (छोटा बड़दा), कैलाश अवास्या (भीलखेड़ा) उमेश पाटीदार (गोपालपुरा) आदि डाॅ॰ एहमद को बताया कि सरकार प्रभावितों के लोकतांत्रिक और मानवाधिकारों को कुचलते हुए बगैर पुनर्वास किए बाँध का गेट लगाने की फिराक में है। प्रभावितों को खेती की जमीन नहीं दी जा रही है। पुनर्वास स्थल रहने योग्य नहीं है। ऐसे में एनसीए अपनी जिम्मेदारी से मुँह फेरकर मूक दर्शक क्यों बना हुआ है। बैक वाटर लेवल कम कर हजारों परिवारों को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया गया है। मछुआरों को मछली का अधिकार नहीं दिया जा रहा है। सरकारें झूठे आँकड़ों से देश को गुमराह कर रही हैं। एनसीए के सदस्य के रूप में उन्हें आगामी मीटिंग में सच्चाई प्रस्तुत करना चाहिए। बाँध के गेट बंद किया जाना प्रभावित कभी स्वीकार नहीं करेंगें।
आंदोलन की नेत्री सुश्री मेधा पाटकर ने कहा कि प्रभावितों के पुनर्वास के फर्जी आँकड़े प्रस्तुत करने के कारण मध्यप्रदेश सरकार की आंदोलन से बात करने की हिम्मत नहीं है। प्रभावितों ने कहा कि कलेक्टर तो इतना डरते हैं कि उनसे मिलने जाओं तो वे कलेक्टोरेट में ही धारा 144 लगा देते हैं।
डाॅ॰ एहमद ने स्वीकार किया कि प्रभावित गाँवों में अभी भी हजारों परिवार रह रहे हैं। मलेरिया, फाईलेरिया, सिस्टो सोमियोसिस जैसी जलाशय आधारित गंभीर बीमारियों के नियंत्रण संबंधी काम बाकी है। इन बीमारियों से डूब क्षेत्र के अलावा भी जलाशय के आसपास के गाँव और शहर प्रभावित होंगें। मध्यप्रदेश में 50 हजार हेक्टर में केचमेंट एरिया ट्रीटमेंट का काम बाकी है और यह काम नहीं होना गंभीर मामला है। साथ ही यह भी एकाधिक बार कहा कि डूब क्षेत्र में रेत खनन नहीं होना चाहिए।
अंत में आंदोलन की नेत्री सुश्री मेधा पाटकर ने अधिकारी को बताया कि अभी तो बाँध की 122 मीटर की ऊँचाई से प्रभावितों का ही पुनर्वास नहीं हो पाया है। 45 हजार परिवार अभी भी डूब क्षेत्र में रह रहे हैं।यदि सरकार प्रभावितों को जमीन नहीं दे सकती तो बाँध भी नहीं भर सकती है। पुनर्वास की जिम्मेदारी से बचने के लिए बैकवाटर लेवल कर 15 हजार 900 परिवारों को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया है। हजारों महिला खातेदारों जमीन नकार दी गई है। नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए) के दबाव में शिकायत निवारण प्राधिकरण (जीआरए) प्रभावितों पर नगद मुआवजा लेने के लिए दबाव डाल रहा है। ऐसे में बाँध के गेट बंद कर नर्मदा घाटी को जल समाधि देना स्वीकार्य नहीं है।
सुश्री पाटकर ने अधिकारी से निवेदन किया कि वे नर्मदा कंट्रोल अथाॅरिटी के पुनर्वास एवं पर्यावरण उपदल को डूब क्षेत्र का दौरा करवाएँ।
सभा के अंत में वाहिद मंसूरी (चिखल्दा) ने अधिकारी द्वारा प्रभावितों की बात ध्यान से सुनने के कारण उनका आभार व्यक्त किया।