संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

मोदी राज के अच्छे दिन : झारखण्ड में भाजपा सरकार ने एसपीटी-सीएनटी एक्ट अध्यादेश किया जारी, विरोध में राज भवन मार्च, 24 अगस्त 2016

झारखण्ड की भाजपा सरकार छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी एक्ट) और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (एसपीटी एक्ट) में संशोधन के लिए अध्यादेश जारी किया है। राज्यपाल के मार्फत यह अध्यादेश मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास है। इस जमीन लूट अध्यादेश के खिलाफ झारखण्ड के आदिवासी हर दिन विरोध प्रदर्शन, सभा-रैली कर रहे है क्योंकि दोनों एक्ट में संशोधन खतरनाक है। यह अध्यादेश प्रभावी हुआ तो आदिवासियों की जमीन को बड़े पैमाने पर लूटा जायेगा। 24 अगस्त  2016 को आध्यादेश के खिलाफ राज भवन का घेराव  किया जा रहा है . आपसे अपील है कि  आदिवासियों की अस्मिता, अस्तित्व, जीविका और भविष्य की रक्षा में अपना योगदान दें। 

अध्यादेश पर आपत्ति    

संविधानकी धारा 338 (ए) (9) में प्रावधान है कि संघ और प्रत्येक राज्य सरकार अनुसूचित जनजाति को प्रभावित करने वाले सभी महत्वपूर्ण नीतिगत विषयों पर राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग से परामर्श करेगी।

रघुवर सरकार ने आयोग से परामर्श नहीं लिया।
फिलहाल सीएनटी एक्ट के तहत उद्योग और खनन के लिए आदिवासी भूमि का हस्तांतरण संभव है।

नए अध्यादेश के तहत रोड, बांध, रेलवे, केबल ट्रांसमिशन, वाटर पाइप लाइन, स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, पंचायत भवन, अस्पताल, आंगनबाड़ी समेत राज्य सरकार जनहित कह कर किसी भी कार्य के लिए आदिवासी की जमीन ले सकेगी।

अध्यादेश लागू हुआ तो गैर आदिवासी मन मुताबिक आदिवासी की जमीन ले लेंगे।
झारखंड की जनजातीय परामर्शदातृ परिषद (टीएसी) की भी इस पर सहमति नहीं थी। शिड्यूल एरिया में टीएसी में सहमति के बगैर अध्यादेश निर्गत करना संवैधानिक नहीं है।

शिड्यूल एरिया में पेसा कानून लागू है। यहां ग्रामसभा को अत्यधिक अधिकार है। जमीन का विषय भी ग्रामसभा के अधिकार के दायरे में आता है।


सी.एन.टी. एक्ट एवं एस.पी.टी., एक्ट संशोधन अध्यादेश 2016
तथा
स्थानीय नीति के विरोध में राजभवन मार्च 24 अगस्त 2016, बुधवार

स्थान: मोराबादी स्थित महात्मा गांधी प्रतिमा के समझ

समय: 11: 00 बजे एकत्रित होंगे एवं 11:30 बजे अल्बर्ट एक्का चौक होते हुए राजभवन पहुंचकर राज्यपाल को स्मारक पत्र सुपुर्द करेंगे।

अपील

आदिवासी भाईयों एवं बहनों,

झारखण्ड सरकार की मंशा है कि झारखण्ड में आदिवासियों  का समूल विनाश हो जाय, उनके हाथों से पुरखों का अनमोल धरोहर, जीवन का आधार जल-जंगल,जमीन लूट लिया जाए और आदिवासी अस्मिता,अस्तित्व एवं पहचान को सदा के लिए मिटा दिया जाए। ज्ञात हो कि अंग्रेजी हुकूमत द्वारा प्राप्त सी.एन.टी.एक्ट,1949 जिसके लिए हमारे पूर्वजों ने लरका आन्दोलन, संथाल विद्रोह, बिरसा आन्दोलन जैसे जगत प्रसिद्व आंदोलन किए और अपनी कुर्बानी दी उसे आदिवासियों की इजाजत के बिना एक झटके में रघुवर सरकार ने संशोधित करने का दुस्साहस किया है।

आनन-फानन में तथाकथित अपरिपक्व जनजाति परामर्शदात्री समिति की अनुशंसा, कैबिनेट का निर्णय-प्राप्त कर राज्यपाल से हस्ताक्षरित सी.एन.टी.एक्ट अध्यादेश, 2016 के रूप में राष्ट्रपति के समक्ष अनुमोदनार्थ सुपुर्द कर दिया है। उक्त दोनों अध्यादेश में सी.एन.टी. एक्ट, 1908 की धारा 21, 49 एवं 71 तथा एस.पी.टी.एक्ट की धारा 13 में संशोधन किया है और संशोधन के अनुसार अब राज्य सरकार अपने उपयोग और बड़े-छोटे उद्योग घरानांे के लिए सीधे बिना किसी रोक-टोक, गजट नोटिफिकेशन से -उद्योग , मॉल, स्कूल, कॉलेज, नहर, डैम, सड़क इत्यादि के लिए जमीन अधिग्रहित कर सकेगी। कृषि जमीन को गैर-कृषि जमीन-घोषित करके उसे भी उक्त उपयोगों के लिए ले लेगी।

जब संशोधित सी.एन.टी.एक्ट, 1908 एवं एस.पी.टी.एक्ट, 1949 के होते हुए आदिवासियों की लाखों एकड़ जमीन लूट ली गई तो उक्त संशोधन के बाद क्या होगा?
स्थानीय नीति/नियोजन नीति पर राज्य सरकार के गलत नीतिगत फैसले की बदौलत अब सरकरी नौकरियों, कारोबार पर बाहरियों का कब्जा होगा और भारी मात्रा में आव्रजन होेगा। डोमिसाईल आंदोलन के फैसले में झाारखण्ड हाईकोर्ट ने मध्यस्था दी है कि राज्य सरकार भाषा संस्कृति एवं परम्परा के आधार पर राज्य के निवासियों को नियोजन एवं कारोबार में प्राथमिकता दे सकती है। लेकिन राज्य की सरकार ने प्राथमिकता की परिभाषा तो दूर बाहरियों का रास्ता प्रशस्त किया है। हमने मांग की थी कि अंतिम जमीन सर्वे रिकार्ड के आधार पर स्थानीयता की परिभाषा हो परंतु हुआ यह कि कोई व्यक्ति जो यहीं जन्म लेगा और मैट्रिक पास करेगा वही स्थायी निवासी होगा।

क्या यह भूमिपुत्रों के गाल में थपड़ मारने जैसे नहीं है।
उपरोक्त मसलों के समाधान में एक ही उपाय है कि हम सभी एकजुट होकर संघर्ष का रास्ता अपनाएं और आदिवासी एवं भूमिपुत्रों की अस्मिता, अस्तित्व, जीविका और भविष्य की रक्षा में अपना योगदान दें।

निवेदक

झारखण्ड आदिवासी संघर्ष मोर्चा के सभी अनुशांगी सामाजिक संगठन
सोसाइटी फोर प्रोटेक्षन एण्ड इनफोर्स मेंट ऑफ ट्राइबल राइट्स (स्पीय), राजी पड़हा प्रार्थना सभा, आदिवासी सरना प्रार्थना महासभा, आदिवासी छात्र संघ, आदिवासी जन परिषद, आदिवासी सेना, भारत मुण्डा समाज, आदिवासी, लोहरा समाज, आदिवासी युवा संगठन, झारखण्ड बचाओ मंच, अखिल भारतीय आदिवासी धर्म परिषद आदिवासी बुद्विजीवी मंच, जोगो पहाड़ सरना समिति, आदि अखड़ा, कैथलिक महासभा, कैथलिक महिला संघ, कैथलिक ऑफ चर्चेस, सभी चर्च के युवा संघ, झारखंड चीक बड़ाईक युवा संघ, रांची खड़िया महासभा, बेदिया विकास परिषद, एस.टी/एस.सी परिषद, शहीद बिरसा सेवा समिति, केंद्रीय सरना समिति, सरना समिति कांके, पश्चिमी क्षेत्र केंद्रीय सरना समिति, बेया ग्राम समिति, शहीद बिरसा सेवा समिति, अखिल भारतीय आदिवासी महासभा।

इसको भी देख सकते है