मोदी जी आदिवासी किसान अपने संघर्षों से जिंदा है आपके उन्मूलन से नहीं होगे खत्म
आदिवासी समाज संस्कृति जीने का अधिकार पर आदिवासी हक्क सम्मेलन
बड़वानी | 9 अगस्त, 2016: राजघाट में बडवानी में नर्मदा बचाओं आंदोलन की ओर से पहाडी और निमाडी आदिवासियेां के बीच विश्व आदीवासी सम्मान दिवस तथा आजादी आंदोलन में ‘‘भारत छोड़ो’’ का क्रान्तीकारी नारा दिया था, उस का्रतीकारी दिवस की 75 वर्षगाठ मनाई गई। बड़वानी कालेज के समाज विज्ञान के भूतपूर्व प्राध्यापक व जानेमाने शोधकर्ता प्रोफेसर निकुंज वर्मा मुख्य अतिििथ थे। साथ साथ स्वराज अभियान के ग्वालियर से आये विनोद शर्मा जी, धार से आये सामाजिक कार्यकर्ता सुनिल कुमार आदि उपस्थित थे।
‘‘आदिवासी अधिकार व विकास’’ पर चर्चा करते हुये कई गांव के प्रतिनिधियों ने अपनी बात रखी कैलाश अवास्या ने आदिवासी समाज उदार की बात आगे बढाते हुये स्वयं नोकरी छोड़ी व आंदोलन के साथ जुड़ने की कहानी बताई। सभी वक्ताओं ने अपना दर्द भी बताया। बांध से उजाडे जाने वाले लोगो की साथ देने का संकल्प जाहीर किया।
भीमा नायक खाजा नायक छितु किराड़ जैसे आदिवासी स्वतंत्रता सैनानीयों को याद करते हुए रूलसिंग भीलाला भादल ने कैसे जमीन का अधिकार लिया यह बात रखी। आज भी हर आदिवासी ने ‘ग्रामसभा’ ओर ‘पैसा’ कानून का आधार लेकर अपनी प्राकृतिक और सांसकृति बचाना संभव है। यह बात मेधा पाटकर ने सामने लाई। आज के आदिवासियेां के संघर्ष को 9 अगस्त का क्राती दिवस मनाते हुये, जोड़कर आदिवासी दिवस साजा करने पर आनन्द व्यक्त किया।
भारत छोड़ो तो आज कंपनीयों का कहना हर आदिवासी को जरूर है। प्रा. निकुंज वर्मा ने सतपुड़ा के आदिवासी राजाओं की प्रेरणा को याद करते हुए कहां कि आज भी आदिवासियों पर लड़त जारी हक्क लेने की जरूरत मघ्यप्रदेश में भी है।
गुजरात के विस्थापित आदिवासी भी अनिश्वित कालीन अनशन शुरू कर दिया। केवडिया कालोनी सरदार सरोवर बांध के पास बैठे है। आज 95 विस्थापितो ने अनशन की शुरूआत की। सेकडो विस्थापित धरने पर बैठे है, 15 जून से क्रमिक अनशन जारी है शासन से संवाद या बातचित नही की जा रही हैं मोदी सरकार आदिवासी विरोधी साबित हुई।
आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के भाभरा पहुचने पर चन्द्रशेखर आजाद की जन्म स्थिली पर आयेाजित कार्यक्रम हुआ। इस संबंध में भारतीय जनता पार्टी ने जाहीर किये प्रचार पत्र में आज का दिवस आदिवासी दिवस ‘उन्मूलन’ दिवस बताया गया है।
यह श्रदादायक है, लेकिन एक परे सच्चाई सामने आई है। आज देशभर आदिवासियेां का हमारे जल जंगल जमीन से उजाड़ा जा रहा है, हमारा ‘उन्मूलन’ ही हो रहा है। अपनी संस्कृति प्रकृति से उजाडे जाने से आदिवासी दर दर भटक रहे है, लेकिन साथ साथ संघर्ष पर उतरे हुये है। छत्तीगढ, झारखंड, उडीसा के साथ साथ नर्मदा जैसे मुददो पर म0प्र0 महाराष्ट्र में भी प्राकृतिक संपदा बचाने के लिये लड़ रहे आदिवासी।
भाजपा होश में आये, होश में रहे, आज तक मोदी शासन तो किसान विरोधी साबित हुई ही है अब अलिराजपुर में या पहले अंजड़ में भी आकर विस्थापितो की दखल तक प्रधानमंत्री ने नही ली ओर आज भी वे संवाद न करते हुए चले गये आंदोलन इसका निषेध करता है।
सुरभान भीलाला भायसिंग भीलाला रूलसिंग सोलंकी मेधा पाटकर