नर्मदा बांध के जल भराव के विराेध में देश भर के जनसंगठनों का नर्मदा जल जंगल जमीन हक सत्याग्रह के लिए उमड़ा समर्थन
संगठनों का उमड़ा समर्थन, देश भर के अलग अलग हिस्सों से सत्याग्रह से जुड़ने निकले समर्थक।
नर्मदा जल जंगल ज़मीन हक सत्याग्रह : 30 जुलाई 2016 से राजघाट, बडवानी, मध्य प्रदेश
देश भर में अलग अलग मुद्दों पर कार्यरत कई संगठन एक साथ आते हुए नर्मदा बचाओ आन्दोलन के “नर्मदा जल जंगल जमीन हक सत्याग्रह” के समर्थन में 29 जुलाई को सैकड़ों की तादाद में इंदौर रेलवे स्टेशन पहुँच रहे हैं। वहाँ से #RallyForTheValley निकालते हुए सत्याग्रह में शामिल होने के लिए 30 जुलाई को राजघाट, बडवानी पहुँचेंगे। दिल्ली, उज्जैन, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, बिहार, ओड़िशा, छत्तीसगढ़, हरियाणा, पंजाब से समर्थक इंदौर से शुरू होने वाली एक विशाल रैली का हिस्सा बनने निकल चुके हैं।
नर्मदा घाटी दुनिया की सबसे पुरानी संस्कृति, अब विनाश की कगार पर धकेली जा रही है। 30 बड़े और 135 मझौले बांधों से यह मातेसरी नदी, तालाबों में परिवर्तित होगी। हर बांध से उजड़ रहे लाखों लोगों के साथ यहां की अति उपजाऊ खेती, फलोदयान, जंगल और हर गांव के हजारो पेड, मंदिर, मस्जिदे, पाठशालाएं, यहां की कारीगिरी, व्यापार…… सब कुछ मर मिट जायेगा। कई बांध बने, गांव उजड गए, हरसूद जैसा शहर उखाडा, ध्वस्त किया गया, तो आज तक बसाए नही गए लोग…. हजारों पुनर्वासित नही हुए।
सरदार सरोवर बांध का कार्य भी अब पूरा कर दिया है मोदी सरकार ने। गेट्स लगाकर बांध की उंचाई 138.68 मीटर्स तक पहुंचाई गयी है। बस गेट्स लगाना बाकी है। करीबन 50000 परिवारों का पुनर्वास पूरा न होते हुए; हजारों को जमीन, हजारों भूमीहीनों को वैकल्पिक आजीविका सभी सुविधाए सिंचाई एवं घरप्लॉट के साथ पुनर्वास स्थल प्राप्त हुए बिना, घर, खेत-खलिहान, 244 गाँव और एक धरमपुरी नगर डूबोना क्या न्याय है? क्या इसे विकास के नामपर भी मंजूर किया जा सकता है? नहीं।
यह गैरकानूनी डूब थोपने का निर्णय व कार्य नयी केंद्र शासन ने, सत्ता में आते ही किया और 31 सालों के कानूनी, मैदानी संघर्ष के दरम्यान जो प्रगतिशील पुनर्वास नीति और योजना बनायी, जो सर्वोच्च अदालत से फैसले पाये, उनको नकार कर बांध को आगे बढाया। 14000 परिवारों को गुजरात और महाराष्ट्र में पुनर्वास प्राप्त हुआ लेकिन मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात के पहाड़ी आदिवासी क्षेत्र के आज भी करीबन 1500 परिवार बाकी है तो मध्य प्रदेश के मैदानी क्षेत्र के, भरपूर जनसंख्या के, पक्के मकानों के गावों मे 45000 से अधिक। अब इन्हें जलसमाधि देने की साजिश बेरहम अन्याय है। घाटी की प्राकृतिक संपदा ही नहीं, नर्मदा माता भी भयावह संकट में पडी है।
गुजरात में कच्छ-सौराष्ट्र के सूखाग्रस्तों को धोखा देकर कोकाकोला, अम्बानी, अडाणी की ओर पानी बहाना शुरु हो चुका है। 30 सालों मे केवल 30-40% ही नहरे बनने से अधूरा ही छोडा गया है; गुजरात के किसानों को भी वंचित रखकर बांध आगे बढाया जा रहा है । घाटी के विनाश के साथ, गुजरात भी भुगत रहा है कई भयावह असर। कोकाकोला को 30 लाख लीटर प्रतिदिन, मोटरकार फॅक्टरीज को 60 लाख लिटर्स/दिन पानी देने के अनुबंधो के बाद इंडस्ट्रियल कॉरीडोर के क्षेत्र को ही, 4 लाख हेक्टर्स तक जमीन और अधिकांश पानी दिया जा रहा है। हजारो गावों के बदले, सूखाग्रस्त कच्छ और अन्य जिलों के गावों को पीने का पानी भी न्यूनतम देकर, फसाया जा रहा है। गांधीनगर, अहमदाबाद और वडोदरा शहरो को ही अधिक पानी दिया जाना मूल योजना में अन्यायपूर्ण परिवर्तन है।…. सबसे गंभीर बात यह भी है कि बांध की लागत मूल 4200 करोड रु. से 90000 करोड रु. तक बढने की घोषणा अधिकृत रुप से हो चुकी है। लेकिन नहरें 30-40% तक ही बनायी इसलिए उपलब्ध पानी भी सिंचाई या कच्छ-सौराष्ट्र के लिए उपयोग में नहीं लाया जा रहा है। फिर भी बांध जल्दबाजी, राजनीतिक उद्देश्य से आगे धकेला गया है।
महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश को पूंजीनिवेश हजारो करोड रु. का होते हुए भी, उनके हक की केवल बिजली भी गुजरात नहीं दे रहा है। गुजरात से पॉवर हाऊस बंद रखने से हुए नुकसान की भरपाई मांगी है लेकिन म.प्र. की 3600 करोड़ होकर भी वह चुप है। म.प्र., महाराष्ट्र को इतनी संपदा डूबोकर, लाखों विस्थापित होकर भी सरदार सरोवर जलाशय के एक बूंद पानी पर अधिकार नहीं है।
इस स्थिति में कम से कम विस्थापितों का संपूर्ण पुनर्वास होने तक बांध को रोकना, पिछली सरकार और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी से सुप्रीम कोर्ट ने लिखित आश्वासन लिया था, उसके अनुसार जरुरी है। वह भी मोदी सरकार ने तोड़ मरोड़ दिया और बांध का कार्य बढाकर, 122 मी. से 138.68 मी. तक पहुचाया। पुनर्वास मे म.प्र. हायकोर्ट नियुक्त झा आयोग से मध्य प्रदेश के पुनर्वास में भ्रष्टाचार की 7 साल चली जॉंच की रिपोर्ट भी खुला नही की न कोर्ट को करने दी। इस रिपोर्ट से यह उजागर होना है कि कितने हजार परिवारों को जमीन के बदले फर्जी रजिस्ट्री के कागजात मिले….और कितने हजार परिवारों को न आजीविका मिली…पुनर्वास स्थल पर कितने करोड रु. व्यर्थ गये तो क्या वहा रहने लायक स्थिति है? रिपोर्ट आज तक सुप्रीम कोर्ट ने केवल म.प्र. शासन के ही हाथ सौंपा है।
ऐसी स्थिति में आनेवाली बारिश कितनी डूब, वंचना, हा:हाकार लाएगी यह चित्र सामने आ सकता है। 122 मी. पर प्रभावित म.प्र. के 177 गावों मे ही हजारो परिवार हैं….2013 में भी म.प्र. के मैदानी गावों मे, कई मुहल्लों मे, घर, खेती डूब चूकी है, वह भी क्षेत्र मे बाढ़ न आते हुए भी। बॅकवॉटर लेव्हल्स, 30 सालों के बाद बदलकर 16000 परिवारों को डूब से बाहर निकालने का खेल खेला है म.प्र. शासन ने। सहीं मे यह तो संख्या कम दिखाने की साजिश रही है और कोर्ट में भी शासन पुनर्वास में “0” बॅंलन्स बताती है।
यह सब चुपचाप सहन नहीं कर सकते लोग। अपने हक पाने तक बांध के गेट्स न लगने देने का संकल्प लेकर डूबसे टकराने के निश्चय के साथ, शुरु होगा,
नर्मदा जल जमीन हक सत्याग्रह। 30 जुलाई, राजघाट, जिला-बडवानी, म.प्र. में, शुरुआत के रोज आप जरुर पधारे।
बडवानी जिलें मे, म.प्र, में नर्मदा किनारे महात्माजी कस्तुरबा की समाधि के साथ ’राजघाट’ है । जहा नर्मदा और देवदेवताओं के मंदिर, मस्जिद है…पर डूबनेवाले है..डूब भी चुके है। सत्याग्रह के द्वारा हम निश्चय से एकेक कदम आगे बढते आये हैं…इस बार भी हमारा कहना है –
- सरदार सरोवर बांध के गेट्स बंद न किये जाए !
- किसी भी विस्थापित की सम्पति बिना पुनर्वास न डूबाई जाए ।
- 2013 के नये भू अर्जन कानून के तहत, विस्थापितों की सम्पत्ति पर उनका मालिकी हक मंजूर किया जाए ।
- म.प्र., महाराष्ट्र, गुजरात की सही जानकारी देकर शपथपत्र दाखिल करे हर सरकार। जिनका पुनर्वास बाकी है, उन हजारों का पुनर्वास कानूनन जमीन, पुनर्वास स्थलों पर पूरी सुविधाए आजीविका के साथ पूरा करे।
- न्या.झा आयोगकी म.प्र. मॆ पूनर्वास मॆ 1000-1500 करोड रु. के भ्रष्टाचार पर रिपोर्ट और उस पर कार्यवाही का अहवाल सार्वजनिक करे।
- सरदार सरोवर के पर्यावरणीय असर जैसे बांध के नीचे वास मे लाभों का बंटवारा व लाभहानि पर मूल्यांकन किया जाए।
- गुजरात में बांध का लाभ किसानों, आदिवासियों, सूखाग्रस्त क्षेत्रों को ही दिया जाए, लाभक्षेत्र की जमीन उद्योगपतियों को न दी जाए।
इन तमाम मुद्दों के साथ जुडा है ’नर्मदा’ का अस्तित्व। नर्मदा से क्षिप्रा, गंभीर, मही, कालीसिंध नदीयों मे 5000 सें 15000 लिटर्स प्रतिसेकंड पानी उठाकर डालने की म.प्र. शासन की लिंक योजनाए, नर्मदा का पानी प्रदूषित करेगी ही किन्तु नर्मदा का अस्तित्व ही खतरें मे डाल देगी, यह निश्चित! इन योजनाओं द्वारा कार्पोरेट्स का ही हित देखा जा रहा है।…
खेती, सिंचाई, सूखाग्रस्त क्षेत्र, गाववासी, आदिवासीयों को भी न बख्शते हुए 25 हजार हेक्टर्स जमीन के साथ नर्मदा का पानी भी उद्योगपतियों को ’उपलब्ध’ बताकर लालची न्यौता दिया जा रहा है। म.प्र की इन योजनाओं से नर्मदा का पानी और सरदार सरोवर भी प्रभावित होगा तो लाखों को उजाडना क्यों?….यह विनाश होगा तो विकास कैसे? किसका? कितनी और किस कीमत पर?
कृपया 30 जुलाई के ’नर्मदा जल जमीन हक सत्याग्रह’ के उदघाटन में शामिल होना जरुर तय करे, अपने अन्य साथी,अन्य समर्थकों, मान्यवरों को आप भी खबर करे। हमें जरुर खबर दे आपके आने की। यही वक्त है जब देशभर के वैकल्पिक विकासवादी, मानव अधिकारवादी, संवेदन और विचारशील नागरिक, नर्मदा भक्त, सभी जनसंगठनों के साथी, 31 सालों से संघर्षरत आंदोलन को बल दे। लाखों का सहारा बने।
विमलभाई(दिल्ली) – 9718479517, शबनम (दिल्ली)- 9643349452