पेंच बांध : अडानी को मिला पानी और विस्थापितों को मिला शरणार्थियों जैसा जीवन
किसी भी परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहित करते समय सरकार प्रभावित परिवारों से हजारों तरह के वायदे करती है किंतु जब उसके जमीनी क्रियान्वयन का समय आता है तो तस्वीर कुछ और ही बन कर उभरती है। ऐसा ही एक उदाहरण है मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में बन रहे पेंच बांध के विस्थापितों का। गौरतलब है कि यह बांध किसानों से यह कर बनाया जाना शुरु किया गया था कि उन्हें सिंचाई के लिए पानी मिलेगा किंतु बांध बनने से पहले ही यह खबर सामने आ गई कि बांध का 80 प्रतिशत अडानी के पावर प्लांट को बेच दिया गया है। इस बांध के लिए विस्थापित करते समय प्रशासन ने जमीन के बदले जमीन तथा अन्य सुविधाएं देने का वायदा किया था किंतु जब छिंदवाड़ा से एक जांच दल 14 जुलाई 2016 को विस्थापितों के पुनर्वास केंद्रों का जायजा लेने पहुंचा तो वहां के हालात अत्यंत संजीदा थे। पता चला कि विस्थापितों के पास न रहने के लिए सही ठिकाना है न ही वहां पर पानी, बिजली इत्यादि की व्यवस्था है। शरणार्थियों की हालत में रह रहे इन किसानों के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य के इंतजाम के बारे में तो सोचा भी नहीं जा सकता है। इस गौर करने वाली बात यह है कि यह किसान जब अपनी जमीनें छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे तो उन्हें मारपीट कर तथा आंतकित कर पुलिस के बल पर जबरदस्ती पुनर्वास केंद्रों पर लाकर पटक दिया गया। प्रशासन का यह कदम अंसवेदनशीलता की हर हद को तोड़ता हुआ दिखा। प्रस्तुत है किसान संघर्ष समिति द्वारा भेजी गई जांच दल की विस्तृत रिपोर्ट;
किसान संघर्ष समिति के कार्यकारी अध्यक्ष एवं जन आन्दोलनों के राष्ट्रीय समन्वयक के राष्ट्रीय संयोजक पूर्व विधायक डॉ. सुनीलम्, प्रदेश उपाध्यक्ष एड. आराधना भार्गव, मछुआरा संघर्ष समिति का जिला अध्यक्ष आशाराम उईके, किसान संघर्ष समिति के ब्लाक अध्यक्ष सज्जे पटेल, वाहिद खान एवं मुलताई महिला संघर्ष समिति की जिला अध्यक्ष सुमन बाई कसारे ने पेंच व्यपर्वतन परियोजना के प्रभावित क्षेत्रों से विस्थापित हुये परिवारों से पांच पुनर्वास केन्द्रों में जाकर गामीणों से मुलाकात की तथा वस्तु स्थिति की जानकारी प्राप्त की। आदर्श ग्राम धनौरा एवं बारह बिरयारी आदर्श ग्राम कर्वे पिपरिया, आदर्श ग्राम भूला, आदर्श ग्राम मोहगांव में जाँच दल ने देखा की किसी भी पुनर्वास स्थल में कोई भी हेंडपम्प चालू हालत में नही मिला। टेंकरो से पानी दिया जा रहा है तथा ग्रामीण 500 रूपये में एक टैंकर तक पानी खरीदने के लिए मजबूर किए जा रहे है। किसी भी पुनर्वास स्थल में विस्थापित परिवारों को भू-अधिकारपत्र नही दिये गये है। केवल तहसीलदार द्वारा प्लाट आबंटित किये गये है जिसके आधार पर कोई भी किसान कर्जा नही ले सकता, न ही उसकी बिक्री कर सकता है। अर्थात विस्थापितों को भूमि पर मालिकाना हक नही प्रदान किया गया है। किसी भी पुनर्वास क्षेत्र में मीटर लगाकर घरेलू कनेक्शन नही दिये गए हैं। किसी भी पुनर्वास स्थल पर ग्रामीणों की चिकित्सा व्यवस्था अथवा पशुओं की चिकित्सा व्यवस्था का कोई इन्तजाम नही किया गया है। बारह बिरयारी के स्कूल में 1 से 5 कक्षा में 71 बच्चों का नाम दर्ज था, अब पाँचों कक्षाओं के बच्चों को तीन शिक्षक एक कमरे में पढ़ाने को मजबूर है। जाँच दल ने पाया की स्कूल में 32 बच्चे मौजूद थे। कर्वे पिपरिया (चांदिया) में स्कूल की बिल्डिंग में पानी रिस रहा था तथा केवल 3 बच्चे मौजूद थे।
कई विस्थापितों द्वारा उनके मकान का मुआवजा नही मिलने तथा कम मिलने की शिकायत की गई। सभी विस्थापित परिवारो ने बताया की उन्हें कुआँ, बोर तथा पाईप लाईन का मुआवजा नही दिया गया है। मकान और जमीन के मुआवजा वितरण में पारदर्शिता दिखलाई नही पड़ी। कोई भी यह बताने की स्थिति में नही था की उसे भूमि, मकान तथा पेड़ों के किस दर पर मुआवजा दिया गया है।
जाँच दल की और से प्रेस विज्ञप्ति जारी कर डॉ. सुनीलम् ने कहा की पुनर्वास करते समय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों तथा प्रदेश की पुनर्वास नीति का पालन नही किया गया है। यदि प्रशासन द्वारा ध्यान दिया गया होता तो वास्तव में आदर्श पुनर्वास स्थल बनाये जा सकते थे, उन्होने कहा की सड़कें तथा नालियों का निमार्ण कार्य अत्यन्त घटिया है। तथा उबड़ खाबड़ जमीन पर पुनर्वास केन्द्र बनाये गये है। उन्होने कहा की बारह बिरयारी के 30 परिवारों को भारी बरसात में धनौरा के ट्रेक्टरों से बिना वैकल्पिक व्यवस्था किये, मारपीट कर तथा आंतकित कर पुलिस के बल पर जबरदस्ती हटाना, क्रूरता एवं संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है। बरसात के समय में बिना स्ट्रीट लाईट के पुनर्वास केन्द्र अत्यंन्त असुरक्षित हो गये है धनौरा के एक किसान को जंगली सुअर ने घायल कर दिया है।
किसान संघर्ष समिति द्वारा शीघ्र ही पुर्नवास क्षेत्र की समस्याओं को लेकर छिन्दवाड़ा जिलाधीश को तथा जल संसाधन विभाग के मंत्री को ज्ञापन सौंपा जाएगा।