इंडस्ट्रियल करिडोर्स : संसाधन और स्वायत्ता की लूट का नया हथकंडा; राष्ट्रीय अधिवेशन, 22-23 अप्रैल 2016
कॉरिडर प्रभावितों और जन आंदोलन के कार्यकर्ताओं की दो दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन
इंडस्ट्रियल करिडोर्स : संसाधन और स्वायत्ता की लूट का नया हथकंडा
अप्रैल 22-23, 2016, सुबह 10 से शाम 5 बजे तक
इंडियन सोशल इंस्टिट्यूट, नई दिल्ली.
यह भारत की विडंबना है की आज़ादी के बाद भी जनता द्वारा चुने गये लोकतांत्रिक सरकारों का छुपा मुद्दा रहा है देश की ज़मीन, जल, खनिज एवं अन्य संसाधानो की खुली बिक्री. और इस प्रक्रिया मे अग्रणी है हाल ही में चुनी गयी केन्द्रिय सरकार. जहाँ एक तरफ किसानो की ज़मीन को जबरन देसी-विदेशी पूंजीपति कंपनियो के हवाले किया जा रहा है, वहीं सरकार विश्व बॅंक एवं अन्य अंतर-राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानो से हज़ारों करोड़ों का क़र्ज़ ले के देश के अर्थव्यवस्था को अंधेरे गर्त में धकेल रही है.
इन सभी जन-विरोधी नीतियों एवं परियोजनाओ का प्रत्यक्ष रूप दिखता है सरकार की ‘कॉरिडर’ या ‘गलियारा’ प्रॉजेक्ट के रूप में. पूरे देश मे ऐसे ग्यारह गलियारों को प्रस्तावित किया गया है जिनमे अग्रणी है दिल्ली मुंबई औद्योगिक गलियारा (डी. एम. आई. सी) और अमृतसर कोलकाता औद्योगिक गलियारा (ए. के. आइ. सी). इन गलियारो मे समाएगा निजी मालवाहक रेल व्यवस्था, विद्युत उत्पादन केंद्र, स्मार्ट शहेर, नदी-इंटर लिंकिंग और कई बड़ी परियोजनाए जो देश की कृषि व्यवस्था को पूरी तरह निगल जाएगा. . डी. एम. आई. सी पहले ही चरण में 90,000 हेक्टेर को अपनी चपेट में लेगा. ए. के. आइ. सी के पहले चरण में सिर्फ़ उत्तर प्रदेश ही 30,000 हेक्टेर का प्लान सौंप चुका है. सिर्फ़ पूर्वी मालवाहक गलियारे के लिए विश्व बॅंक से 14000 करोड़ का लोन लिया गया है और पस्चिम मालवाहक गलियारे के लिए 40,000 करोड़ जापान से लिया गया है. डी. एम. आई. सी. का कुल खर्चा होगा 45,000 करोड़.
जगह जगह ज़मीन अधिग्रहण की नोटीस जारी कर दी गयी है. कई जगहो पे पब्लिक हियरिंग या सार्वजनिक सुनवाई हो चुकी है. इनसे जुड़े किसी भी प्रतिवाद को किनारा करते हुए सरकार अपनी बात मनवाने में व्यस्त है. अन्य कई जगहो पर काम शुरू हो चुका है.
पिछले कई वर्षो से जन आन्दोलनों के साथी पूरे देश में इस योजना से होने वाले दुष्परिणाम, जीविका की हानि, पप्राकृतिक संसाधनों की लूट आदि के बारे में लोगों को अवगत करा हैं, लामबंद कर रहे हैं और संघर्ष कर रहे हैं. 2013 में हम देश भर के साथी इकठा हुए थे और उसी दौरान हमने अपने संघर्षों को तेज करने के कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए थे. आज नई सरकार के आने के बाद इन परियोजनाओं में और तेजी आई है और इसलिए एक बार फिर से एक साझी पहल की जरूरत है.
सभी साथियों से बात करके अप्रैल 22-23 की दो दिवसीय राष्ट्रीय बैठक आयोजित की जा रही है, इसी सन्दर्भ मे आपसे एवं आपके संगठन से निवेदन है की संघर्ष की इस राष्ट्रीय प्रक्रिया में योगदान दें. हमारी अपेक्षा है की आप अन्य लोगों को सूचित करें एवं हमें बताएं। अगर आपको सम्मलेन के दौरान रुकने के लिए जगह की जरूरत है तो हमें जरूर बताएं, हम इंतज़ाम करने की कोशिश करेंगे।
आपके विनीत,
मेधा पाटकर (NAPM), उल्का महाजन (सर्वहारा जन आंदोलन), सागर राबरी (गुजरात खेडूत समाज), वीरेंदर विद्रोही (इंसाफ), इस आर हिरेमठ, वीरेन लोबो एवं सौमेन रे (ICAN), डॉ सुनीलम, राजेंद्र रवि, महेंद्र यादव एवं मधुरेश (NAPM) एवं अन्य साथी