मध्य प्रदेश के वन कर्मियों का कारनामा : 23 आदिवासी परिवारों को किया बेघर
19 दिसम्बर, 2015 एक-तरफ, जब म. प्र. बैतूल जिले का आदिवासी के हालात इतने बद्दतर हो गए है कि वो पहली बार आत्महत्या की तरफ बढ़ रहा है – विगत माह चार आदिवासी किसानों ने आत्महत्या की, तब सरकार उन्हें मदद करने की बजाए: उनकी खडी फसल में बुलडोजर चला रही है; कीटनाशक का जहर डाल बर्बाद कर रही है; फलदार पेड़ उखाड़ रही है; उनके आशियाने जमीन-दोस्त कर रही है|
बैतूल जिला प्रशासन के दो-सौ अधिकारीयों और कर्मचारियों ने आज चिचोली ब्लाक के, पश्चिम वन मंडल के सांवलीगढ़ रेंज की पीपलबर्रा और बोड गाँव के आदिवासीयों के 45 घर तोड़ दिए; गेंहू की फसल में कीटनाशक डाल उसमें बुलडोजर चला दिए; पीने के पानी के कुएं में जहर डाल दिया और आम और जाम के चार साल पुराने पेड़ भी उखाड़ दिए| कार्यवाही के दौरान परसराम आदिवासी पिटाई में घायल हो गया और; मौके पर मौजूद अधिकारीयों ने उसके ईलाज से भी इंकार कर दिया| एक बकरी का पिल्ला जे सी बी मशीन के नीचे आकर मार गया| इस स्थान पर वर्ष 2010 में भी वन विभाग घरों में आग लगाने की कार्यवाही कर चुका है| यह स्थान बोड और पीपल्बर्रा गाँव के आदिवासीयों का पुराना गाँव है और वो वर्ष 2004-5 से यहाँ पुन: काबिज है| उन्होंने नारा दिया: “ फलदार-पोधे लगाएंगे – भुखमरी मिटायेंगे – हरियाली खुशहाली लाएंगे” और इस जमीन ; लाखों रुपए के श्रम बराबर मजूदरी लगा लेंटाना साफ़ कर यहाँ उन्होंने अभी तक 50 हजार फलदार पौधे लगाए| वन विभाग इन पौधों को लगातार नष्ट करता आ रहा है|
इस मामले में कानूनी स्थिती यह है: अनुसूचित जन-जाति एवं परम्परागत वन निवासी (वन अधिकार) कानून , 2006 ( वन अधिकार क़ानून) के 29 दिसम्बर 2006 को राजपत्र में प्रकाशित होने के बाद से इसकी धारा 6 के अनुसार कानून गाँव की ग्रामसभा ही एक मात्र ऐसी संस्था है, जो यह तय कर सकती है कि आदिवासीयों और जंगल में रहने वाले अन्य निवासीयों के जंगल पर अधिकार कितने है और किया –किया है | इसमें वन विभाग या प्रशासन एक तरफ़ा निर्णय नहीं ले सकता| और धारा 4 (5) के अनुसार इन अधिकारों को तय किए जाने की काम पूर्ण होने तक, किसी भी व्यक्ती को उसके कब्जे की वनभूमी से बेदखल नही किया जा सकता| इसकी धारा 3 (1): (a) के अनुसार खेती का अधिकार; (b) के अनुसार निस्तार के परम्परागत और राजे-महराजे के जामने के अधिकार और; (h) के अनुसार आदिवासीयों की पुरानी बसाहट को नियमित करने का अधिकार; और धारा 5 के अनुसार अपने जंगल के संरक्षण का अधिकार तय करने का काम ग्राम-सभा का है|
-अनुराग मोदी