35 हजार परिवार बेघर, हजारों हाथ बेकार, शरणार्थी स्थल जैसे ‘पुनर्वास स्थल’ : सुनिए कहानी निसरपुर के स्मार्ट होने की
मध्य प्रदेश, बड़वानी 26 जुलाई 2018। पर्यावरण दिवस पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की यह घोषणा कि सरदार सरोवर के पुनर्वास स्थलों को स्मार्ट विलेज के रूप में विकसित किया जायेगा तथा निसरपुर पुनर्वास स्थल (जहाँ 7 गाँव के …… परिवार बसाने हैं) को मिनी स्मार्ट सिटी का रूप दिया जाएगा, फिर से एक बार हास्यास्पद साबित हो रही है।
आज तक मध्य प्रदेश के हर पुनर्वास स्थल पर, सर्वोच्च अदालत के 3 फैसले, मध्य प्रदेश उच्चतम न्यायालय और शिकायत निवारण प्राधिकरण का 2017 का फैसला, इन सभी के पालन के बदले उल्लंघन ही होता आया है। ताज़ी स्तिथि यह है कि शि.नि.प्रा. के 28/11/2017 के आदेश से, 31 दिसंबर 2017 तक चरागाह, 30 अप्रैल 2018 तक पीने का पानी, 30 जनवरी 2018 तक हर घर के लिए आवंटित भूखंड का समतलीकरण होना था, जो आज तक नहीं हुआ है। हर एक पुमर्वास स्थल पर नर्मदा ट्रिब्यूनल फैसला व मध्य प्रदेश की राज्य स्तरीय पुनर्वास नीति के अनुसार जो जो सुविधायें देनी थी उसका अभाव ही नहीं, उसमें अद्भुत भ्रष्टाचार की हकीकत न्या. झा आयोग के रिपोर्ट द्वारा सामने आई है। लेकिन राज्य शासन ने किसी भी अधिकारी के खिलाफ वसूली का प्रकरण दर्ज नहीं किया न ही जेल भेजा।
पुनर्वास स्थलों पर लगे भवनों की रंग रंगोटी ज़रूर की लेकिन काली कपास की मिटटी में हुए पुनर्वास स्थलों के निर्माण की IIT, मुंबई और मानित, भोपाल के द्वारा हुई जांच पर आधारित जो निर्णय लेना था, वह नहीं लिया ।इसके बदले, करोड़ों रूपए का व्यर्थ खर्चा अस्थायी पुनर्वास के नाम पर किया गया है, जिसकी राशि मात्र सत्ताधारी दल के पदाधिकारी व मंत्रियों के खीसे में आई है जबकि भोजन शिविर, टीनशेड या चारा शिविर में से कोई एक भी कार्य एक भी विस्थापित के काम में नहीं आया है।
जिन पुनर्वास स्थलों पर भूखंड आवंटन भी बिना रजिस्ट्री के दिये गए हैं, जो की 2017 में लिए गए निर्णय के अनुसार गलत है। पूर्व आवंटित भूखंडों का रजिस्ट्रीकरण आज तक होना बाकी है । भूखंड की अदलाबदल, गलत व्यक्तियों का अनाधिकृत कब्ज़ा इत्यादि होते हुए पुनर्वास स्थल पर अंधाधुंध तरीके से नियोजन व आवंटन में परिवर्तन होता रहा है, शिकायतों का निराकरण नहीं।
इस स्थिति में मुख्यमंत्री जी या नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने आज तक न कभी भ्रष्टाचार उजागर करने की, अवैधता समाप्त करने की या पुनर्वास स्थलों पर सालों से बनी हुई त्रुटियाँ दूर करने की या तकनीकी सुधार की कोई बात कभी नहीं की। नर्मदा सेवा यात्रा के दौरान निसरपुर से लेकर अंजड, मनावर या बोरलाय जैसे कई ब्लॉक्स के पुनर्वास स्थलों से गुज़रते हुए भी मुख्यमंत्री जी ने न कभी इन स्थलों की ओर झाँक के देखा न ही अपने किसी वक्तव्य में पुनर्वास क्या विस्थापितों का भी नाम तक लिया।
अब अचानक मुख्यमंत्री ने इस कार्य को स्मार्ट बनाने की, निसरपुर जैसे बड़े लेकिन ग्राम पंचायत के ही क्षेत्र में मिनी स्मार्ट सिटी बनाने की बात कहाँ से आई ? क्या मुख्यमंत्री जी मात्र नए नए निर्णय कार्य के बड़े बड़े टेंडर्स खुलवा के अपने नेताओं ,कार्यकर्ताओं व मित्रों व साथियों को खिलाना चाह रहे है ?
आज तक 2033 विस्थापितों को भूखंड आवंटन पिछले साल किया याने 2008 से 2017 तक भूखंड आवंटन का कार्य पूरा हुआ है, ये शपथपत्र बार बार सर्वोच्चा अदालत में देना गलत या झूठा साबित हो ही गया ? इस आवंटन में भी क्या गड़बड़ियाँ हैं और कितने आवंटित करना बाकी है ? मछ्वारों की 28 नहीं, 31 समितियों का गठित हैं और व पंजीयन हुआ है लेकिन जलाशय का ठेका किसे, इस बात का जवाब न राज्य मत्स्य महासंघ दे रहा है , न ही राज्य शासन ! कहीं जलाशय ठेकेदारों को देकर उन्हें चांदी और स्थानिक विस्थापित मछुआरों को गुलाम मजदुर बनाया गया है। सरदार सरोवर के क्षेत्र में यह नहीं होने देंगे। शासकीय आदेश से जून 2017 में मंज़ूर किये गए हक़ आज तक न नाविकों के न ही कुम्हारों को दिए गए हैं। हज़ारों परिवार आज तक 60 लाख रूपए के सर्वोच्च अदालत के आदेशों पर अमल भी अगर मोदी,शिवराज करवाएं तो धन्य होंगे हम और उनकी भी वाहवाह होगी। लेकिन चुनावी राजनीतिक दौर में क्या यह प्रचारी सरकार सरलता से अपनी क़ानूनी व नैतिक ज़िम्मेदारी निभाएगी?