बस्तर में अल्ट्रा मेगा स्टील प्लांट के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू
बस्तर : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बस्तर यात्रा के 24 घंटे के भीतर ही उन गांवों में विरोध के तीखे सुर सुनाई देने लगे हैं जहां सरकार ने एक अल्ट्रा मेगा स्टील प्लांट लगाने की बात कही। दंतेवाड़ा से करीब 40 किलोमीटर दूर डिलमिली और बुरुंगपाल समेत करीब 10 गांवों ने रविवार को बैठक की। एक दिन पहले ही शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दंतेवाड़ा यात्रा के दौरान यहां एक मेगा स्टील प्लांट समेत बस्तर में 24 हज़ार करोड़ के निवेश की बात कही।
इस प्लांट के लिए देश की दो सबसे बड़ी कंपनियां एनएमडीसी और सेल के बीच एमओयू प्रधानमंत्री की मौजूदगी में किया गया, लेकिन एनडीटीवी इंडिया ने जब इन गांवों का दौरा किया तो किसानों में ज़बरदस्त नाराज़गी दिखी। गांववालों का कहना है कि यहां मेगा स्टील प्लांट आने की बात इन लोगों को मीडिया के ज़रिए पता चली।
‘पिछले एक महीने से हम लोग अखबारों में ही पढ़ रहे हैं कि यहां प्लांट आ रहा है। गांव वालों को इस बारे में कुछ पता नहीं। अख़बारों में यह पढ़कर हमें हैरानी हुई कि यहां के लोग प्लांट आने की बात से खुश हैं, जबकि यहां के लोग तो यह सोचकर परेशान हैं कि उन्हें अपनी ज़मीन देनी पड़ेगी।’ बुरुंगपाल गांव के नरेंद्र करमा ने हमें बताया।
डिलमिली और बुरुंगपाल समेत कोई ढाई दर्जन गांवों की ज़मीन इस प्लांट के लिए ली जा सकती है। डिलमिली के सरपंच आयतूराम मंडावी ने कहा कि गांव के लोग खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। ‘हम लोग चाहे जेल चले जाएं, लेकिन ज़मीन नहीं देंगे। यहां लोग पढ़े-लिखे नहीं हैं इसलिए उन्हें नहीं लगता कि उन्हें इस प्लांट के आने से कोई रोज़गार मिलने वाला है। अगर सरकार सारे गांववालों को जेल में डाल दे तभी वह स्टील प्लांट ला सकती है।’
उधर केंद्रीय इस्पात मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एनडीटीवी इंडिया से कहा, ‘यह सच है कि ये प्लांट अभी शुरुआती स्टेज में है और इसके लिए ज़मीन का अधिग्रहण किया जाना है। जहां ज़रूरत होगी हम ज़मीन खरीदेंगे, लेकिन इससे किसानों को नुकसान नहीं होगा। उनका फायदा है, क्योंकि यहां 10,000 नौकरियों के मौके पैदा होंगे।’
बस्तर में जहां ये स्टील प्लांट प्रस्तावित है वहां से कुछ दूर लोहांडीगुडा में पिछले 10 साल से निजी कंपनी टाटा का प्रोजक्ट भी अटका पड़ा है। गांववालों का कहना है कि सरकारों पर यहां लोगों को भरोसा नहीं है, क्योंकि जब भी विकास की परियोजना आती है तो ज़मीन तो किसानों की जाती है लेकिन रोज़गार बाहर के लोगों को ही मिलता है। 28 साल के पांडु वैट्टी का कहना है, ‘पिछले कई सालों से दंतेवाड़ा के किरनदूल में खनन कंपनी एनएमडीसी काम कर रही है लेकिन वहां किसी स्थानीय आदिवासी का कोई भला नहीं हुआ है। इसीलिए लोगों को सरकार के वादों पर भरोसा नहीं है।’