किसानों को न्याय दिलाने का ऐतिहासिक आंदोलन के 11 माह पूरे : दशा और दिशा
यूं तो भारत में किसान आंदोलन का इतिहास आजादी के आंदोलन से साथ जुड़ा हुआ है। आजादी के बाद भी किसान आंदोलन लगातार चलते ही रहे हैं लेकिन पिछले वर्ष 26 नवंबर 2020 से शुरू होकर 26 अक्टूबर 2021 को 11 माह पूरे करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा के वर्तमान आंदोलन ने देश में ही नहीं दुनिया में एक नया इतिहास रचा है। इसे दुनिया का सबसे लंबा और सबसे बड़ा आंदोलन माना जा रहा है।
आंदोलन की शुरुआत
दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन की शुरुआत 26 नवंबर 2020 को हुई थी, जब देशभर में किसान मुख्यतः पंजाब के किसान सरकार के तमाम अवरोधों के बावजूद दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचे थे, जहां उन्हें पुलिस द्वारा रोक दिया गया था तब से आज तक सर्दी, गर्मी, बरसात सभी मौसमों का सामना करते हुए 650 किसानों की शहादत के बाद भी शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन जारी है।
अनौपचारिक तौर पर वर्तमान किसान आंदोलन की शुरुआत मंदसौर गोली चालन के एक माह बाद 6 जुलाई 2017 को अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के 250 किसान संगठनों द्वारा पुलिस गोली चालन में शहीद 6 किसानों को श्रद्धांजलि देकर हुई थी । श्रद्धांजलि के कार्यक्रम के दौरान सैकड़ों किसानों को गिरफ्तार किया गया था । रिहाई के बाद देश भर में ‘किसान मुक्ति यात्रा’ निकाली गई थी। समन्वय समिति ने देश भर में 500 मुक्ति सम्मेलन किए थे। दो बार लाखों किसानों के दिल्ली में प्रदर्शन हुए थे।
समन्वय समिति के गठन के बाद चलाए जा रहे आंदोलन का मुख्य लक्ष्य देश के सभी किसानों की कर्जा मुक्ति और लाभकारी मूल्य की गारंटी के लिए संसद से कानून पारित कराना था परंतु सरकार ने किसानों की मांगों के अनुसार कानून बनाने की बजाय तीन ऐसे अध्यादेश किसानों पर थोप दिए जिन्हें कभी किसानों ने मांगे ही नहीं थे। तीनों अध्यादेशों को कोरोना काल का लाभ उठाते हुए संसद में अलोकतांत्रिक तरीके से पास कराकर किसानों पर थोप दिया गया। अध्यादेश लाने तथा कानून बना दिए जाने के बाद से आंदोलन लगातार जारी है।
कोरोना काल मे 2020 में प्रदर्शन को अधिक प्रभावशाली और व्यापक बनाने के लिए अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने संयुक्त किसान मोर्चा का गठन किया था।
सरकार से बातचीत
केंद्र सरकार द्वारा संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े 40 किसान संगठनों से 11 दौर की बातचीत की गई। जिसमें पंजाब की 32 जत्थेबंदियों को शामिल किया गया। जानबूझ कर ऐआईकेएससीसी के वर्किंग ग्रुप को दरकिनार कर दिया गया।
बातचीत के दौरान केंद्र सरकार ने तीनों कानूनों में 15 कमियों को स्वीकार किया तथा बिजली बिल वापस लेने, पराली जलाने से जुड़े कानून में किसानों की सजा का प्रावधान खत्म करने, किसानों को अदालत जाने का अधिकार देने आदि मुद्दों पर कानून में तब्दीली करने का प्रस्ताव सरकार ने रखा लेकिन सरकार ने कोई अधिसूचना जारी नही की । सरकार कानून निरस्त नहीं करने पर अड़ी रही।
किसानों का मुद्दा सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा
किसान ने सर्वोच्च न्यायालय में तीनों कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई लेकिन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तीनों कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को लेकर 11 महीनों में आज तक सुनवाई नहीं की गई है। इस बीच सरकार के इशारों पर कुछ याचिकाकर्ता सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे और उन्होंने धरना देने वाले किसानों को सीएए -एनआरसी के आंदोलनकारियों की तरह हटाने की गुहार लगाई लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप करने से यह कह कर इनकार कर दिया कि शांतिपूर्ण विरोध करना नागरिकों का संवेधानिक अधिकार है। सर्वोच्च न्यायालय ने किसानों के मुद्दे को लेकर 4 सदस्यीय समिति बना दी। जिसके सदस्य सरकार की नीतियों के समर्थक थे, इस कारण संयुक्त किसान मोर्चा ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बनाई गई समिति को मान्यता देने से तथा उससे बातचीत करने से संयुक्त किसान मोर्चा ने इंकार कर दिया। फिलहाल सर्वोच्च न्यायालय में लखीमपुर खीरी के नरसंहार के बाद चार याचिका सुनवाई के लिए लंबित है। किसानों को सर्वोच्च न्यायालय से शिकायत है कि वह ना तो 3 कानूनों की संवैधानिकता को लेकर सुनवाई कर रहा है और ना ही लखीमपुर खीरी की घटना की जांच अपनी निगरानी में कराने तथा लखीमपुर खीरी हत्याकांड के जिम्मेदार गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा को मंत्रिमंडल से हटाने और गिरफ्तार करने के लिए निर्देशित कर रहा है।
किसानों की संसद
संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा पिछले संसद सत्र के दौरान रोज दिल्ली पुलिस की अनुमति लेकर 200 किसान प्रतिनिधियों के साथ किसान संसद का आयोजन जंतर मंतर पर किया गया। सभी कानूनों को लेकर किसानों ने विस्तृत चर्चा की तथा तीनों किसान कानूनों को रद्द करने, बिजली बिल वापस लेने तथा सभी कृषि उत्पादों की एम एस पी की खरीद की कानूनी गारंटी आदि मुद्दों को लेकर किसान संसद में कानून पारित किए गए। देशभर के लगभग सभी राज्यों के किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने किसान संसद में भाग लिया। संपूर्ण विपक्ष ने आकर किसान संसद की कार्यवाही को सुना, देखा और संसद सत्र के दौरान किसान विरोधी कानून को रद्द करने की मांग को लगभग रोज संसद में उठाने का सामूहिक प्रयास किया।
सरकार की सरकारी हिंसा और साजिशें
संयुक्त किसान मोर्चा ने जिस दिन दिल्ली में 26- 27 नवंबर को दो दिवसीय प्रदर्शन की घोषणा की थी, उसी दिन से केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों की मदद से किसानों को दिल्ली जाने से रोकने का असफल प्रयास शुरू कर दिया था। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और उनके पुलिस अधिकारियों ने ऐलान कर दिया कि वे पंजाब के किसानों को दिल्ली नहीं जाने देंगे। रास्ते पर गड्ढे खुदवाएं गए, कटीले तार और बैरिकेड्स लगाकर किसानों को दिल्ली जाने से रोकने का असफल प्रयास किया गया। किसानों के दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचने पर उन्हें खालिस्तानी एजेंट बताया, विदेशी पैसे से आंदोलन चलाने, पृथकतावादियों से समर्थन लेने तथा विपक्ष के इशारे पर काम करने के आरोप लगाए गए।
किसानों ने जब 26 जनवरी को दिल्ली में परेड करने का ऐलान किया तब आंदोलन को बदनाम करने के लिए गृह मंत्रालय द्वारा साजिश रची गई। दिल्ली पुलिस और संयुक्त किसान मोर्चा के बीच तयशुदा रूट से अलग रूट पर कुछ लोगों को साजिश पूर्ण तरीके से लाल किला और आई टी ओ की ओर ले जाया गया लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा ने उन सभी घटनाओं से खुद को अलग कर लिया। सरकार की साजिश नाकाम हुई उसके बाद किसान आंदोलन को उकसाने के लिए भाजपा के बड़े नेताओं द्वारा तमाम बयान दिए गए। खुद गृह राज्य मंत्री के उकसावे पूर्ण बयान के चलते किसानों को लखीमपुर खीरी में उनके लड़के आशीष मिश्रा के द्वारा अपनी गाड़ी से 4 किसानों को कुचल दिया गया।
हरियाणा में 13 बार पुलिस ने आंदोलनों के दौरान किसानों पर हमला किया। पिछले 11 महीनों में केवल हरियाणा में 50 हज़ार से अधिक किसानों पर फर्जी मुकदमे दर्ज किए गए। एस डी एम से किसानों का सिर फुड़वाया गया लेकिन किसानों ने अहिंसात्मक तरीके से आज भी आंदोलन जारी रखा है।
संयुक्त किसान मोर्चा का राष्ट्रव्यापी आंदोलन
केंद्र सरकार बराबर यह प्रचारित करती रही है कि यह आंदोलन पंजाब, हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश का आंदोलन है, लेकिन तथ्य यह है कि अध्यादेश आने के बाद से अब तक संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा जो भी आंदोलनों की घोषणा की गई है उनका देश के लाखों गांवों और सैकड़ों शहरों में पालन हुआ है। देश के अधिकतर जिलों में दसियों बार किसानों द्वारा पहले अध्यादेश फिर 3 किसान विरोधी कानून बनाने पर प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और कृषि मंत्री के पुतले जलाए जा चुके हैं तथा कम से कम 10 बार राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपें जा चुके हैं।
श्रमिक संगठनों का समर्थन
संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में चल रहे किसान आंदोलन को देश के 10 केंद्रीय श्रमिक संगठनों का समर्थन प्राप्त है। लगभग सभी कार्यक्रमों का श्रमिक संगठन समर्थन करते हैं। किसान संगठनों के द्वारा श्रम कानूनों को रद्द कर चार लेबर कोड थोपने तथा निजीकरण के खिलाफ चलाए जा रहे आंदोलन का संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा समर्थन किया जा रहा है। अब तक आंदोलन के दौरान तीन बार भारत बंद किया जा चुका है तथा रास्ता रोको और रेल रोको आंदोलन भी किए गए हैं। किसान आंदोलन के 11 महीने पूरे होने पर 26 अक्टूबर को पूरे देश भर में धरना प्रदर्शन किए जाएंगे।
किसान आंदोलन का राजनीतिक असर
संयुक्त किसान मोर्चा पर पहले दिन से आरोप लगाया जा रहा है कि यह विपक्ष द्वारा प्रायोजित आंदोलन है लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा की राजनीतिक लाइन एकदम स्पष्ट है। संयुक्त किसान मोर्चा के कार्यक्रमों में राजनीतिक पार्टियों के नेताओं के साथ मंच साँझा करने पर रोक लगाई गई है, परंतु यह भी स्पष्ट है कि किसान आंदोलन भाजपा और एन डी ए की केंद्र सरकार के खिलाफ है क्योंकि उसने किसानों पर 3 किसान विरोधी कानून थोपकर किसानों की मंडियां और जमीन अडानी अंबानी को सौंपने का निर्णय किया है। इसी नीति पर चल कर संयुक्त किसान मोर्चा ने प.बंगाल में ‘नो वोट टू बीजेपी’ अभियान चलाया तथा भाजपा को सत्ता हासिल करने से रोक दिया। अब संयुक्त किसान मोर्चा ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड मिशन की घोषणा की है। इसका उद्देश्य योगी सरकार को सत्ता से हटाना है ताकि मोदी सरकार पर कानून निरस्त करने का दबाव डाला जा सके।
आंदोलन की खूबसूरती और ताकत
संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में चल रहे आंदोलन की ताकत 550 किसान संगठनों के किसान कार्यकर्ता है जिन्होंने यह ऐलान कर रखा है कि जब तक कानून निरस्त नहीं होगा, तब तक घर वापसी नहीं होगी। आंदोलन संबंधी फैसले, विचार विमर्श की लंबी प्रक्रिया के बाद किये जाते हैं। पंजाब की 32 जत्थे बंदियां किसी भी मुद्दे पर पहले चर्चा करती है। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के वर्किंग ग्रुप के सदस्य भी अपने स्तर पर चर्चा करते हैं तथा निर्णय संयुक्त किसान मोर्चा की खुली बैठक में लिया जाता है। जिसे सभी संगठनों द्वारा स्वीकार किया जाता है।
संयुक्त किसान मोर्चा का आंदोलन किसानों द्वारा अपने गांव से नियमित तौर पर लाए गए संसाधनों से चला रहे हैं। सिंघु बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर, गाजीपुर बॉर्डर, शाहजहांपुर और पलवल बॉर्डर पर जो पक्के मोर्चे लगे है वहां जाकर देखा जा सकता है कि वहां धरना दे रहे किसान नेताओं ने या तो अपने गांव का टेंट लगा रखा है या अपने संगठन का। पंजाब और हरियाणा के हर गांव से कितने अंतराल के बाद कितने किसान आएंगे और कितना रसद- पानी आएगा सभी इंतजाम सुनियोजित तौर पर किया जा रहा है।
किसानों को 11 महीने तक सतत रूप से मजबूती तौर पर चलाने में सबसे बड़ी भूमिका लंगर सेवा देने वाले सिखों की रही है । उन्होंने जबरजस्त सेवा भाव के साथ आंदोलनकारियों के निशुल्क भोजन इत्यादि की व्यवस्था की है। सभी बॉर्डरों पर पंजाब हरियाणा और दिल्ली के तमाम गुरुद्वारे लंगर सेवा किसानों को लगातार उपलब्ध करा रहे हैं।
वर्तमान किसान आंदोलन की खूबसूरती यह है कि इस आंदोलन में 550 किसान संगठनों के शामिल होने के बावजूद जबरदस्त समन्वय और एकजुटता के साथ वैचारिक स्पष्टता है। संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े सभी संगठन अहिंसात्मक आंदोलन के लिए प्रतिबद्ध है हालाकि मोर्चों पर गांधी जी की तस्वीरें दिखलाई नहीं पड़ती लेकिन गांधीजी के जीवनकाल में आज़ादी के आंदोलन के बाद, गांधीजी के विचारों पर चलने वाला यह सबसे बड़ा आंदोलन है। यह दिलचस्प है कि बॉर्डरों पर भगत सिंह और बाबा साहेब की सबसे ज्यादा तस्वीरें दिखलाई पड़ती हैं। यही वैचारिक समन्वय इस आंदोलन को विशिष्टता प्रदान करता है ।
गत 11 महीनों में संयुक्त किसान मोर्चा के जो कार्यक्रम देशभर में आयोजित किए हैं उसमें समाज के सभी तबकों को जोड़ा गया है। बॉर्डरों पर सभी त्यौहार मनाए जाते हैं, सभी महापुरुषों और स्वतंत्रता आंदोलन के नायक नायिकाओं के जन्मदिन और निर्वाण दिवस मनाए जाते हैं। महिलाओं, युवाओं, आदिवासियों , पिछड़े वर्गों आदि सभी वर्गों से जुड़े कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं ।यह सामाजिक समग्रता और समरसता आंदोलन की शान है।
इस आंदोलन ने कितनी बड़ी ताकत खड़ी कर ली है इसका पता इस बात से चलता है कि पंजाब में 500 स्थानों पर पक्के मोर्चे दिल्ली वाला आंदोलन शुरु होने के 3 महीने पहले से चल रहे है। जिसके तहत अम्बानी के पेट्रोल पम्पों ,अडानी के सेलो और मॉल पर धरने दिए जा रहे हैं।
किसी भी आंदोलन की इतनी ताकत नहीं देखी गई जिसने सरकार , विपक्ष और सभी दलों को आंदोलन का समर्थन करने के लिए प्रेरित किया है, यह पंजाब में देखा जा सकता है।
इस आंदोलन ने संख्या और विभिन्न जाति और धर्मों के किसानों को जोड़कर महापंचायतों के माध्यम से देश भर में अपनी ताकत दिखलाई है इसका लोहा पूरा देश मान रहा है।
यह जानना भी जरूरी है कि शहीद किसानों की स्मृति में किसानों ने मिट्टी सत्याग्रह यात्रा के बाद सभी दिल्ली के मोर्चों पर शहीद स्तम्भ का निर्माण किया है। लखीमपुर खीरी हत्याकांड के बाद शहीद किसानों की अस्थि कलश यात्राएं निकाली हैं।
इस बीच केंद्र सरकार आंदोलनकारियों को थकाने और उपेक्षा से समझौता कराने की रणनीति पर काम कर रही है लेकिन आंदोलन के आधार का विस्तार होता जा रहा है। पब्लिक ओपिनियन भी पक्ष में लगातार बदल रहा है। हालांकि गोदी मीडिया ने पूरे आंदोलन को बदनाम करने में कोई कोरकसर बाकी नहीं छोड़ी है । इसके बावजूद भी किसान सोशल मीडिया के माध्यम से अपने संदेश गांव गांव तक पहुंचाने में कामयाब हो रहे हैं।
अंत मे जीत तो सत्य की ही होनी है जिसके लिए किसान 11 महीने से सत्याग्रह कर रहे हैं ।