मेरा नाम नागम्मल है और मैं 34 साल की हूं। मेरा अब तक का पूरा जीवन सेपक्कम गांव में बीता है, जो उत्तरी तमिलनाडु में स्थित है। यह नॉर्थ चेन्नई थर्मल पॉवर स्टेशन (एनसीटीपीएस) द्वारा बनाए गए एक ऐश पॉन्ड के किनारे बसा है। पहले मेरे गांव में 300 घर थे, लेकिन राख से होने वाले प्रदूषण से बचने के लिए अब बहुत से लोगों ने यहां से पलायन कर लिया है। यहां के लोगों के लिए रिश्ते ढूंढना भी मुश्किल हो गया है, क्योंकि कोई यहां रहना नहीं चाहता है। यहां तक कि मिलने-जुलने के लिए आने वाले रिश्तेदार भी रात में यहां नहीं रुकते हैं।
अब यहां केवल 80 परिवार ही रहते हैं। ऐश पॉन्ड से उड़ने वाली राख (फ्लाई ऐश) अक्सर मेरे गांव को धुंध से ढक देती है। हमारे लिए बाहर बैठना, खाना या कपड़े और बर्तन धोना मुश्किल है। राख उड़कर खिड़की-दरवाजों से घरों के अंदर भी घुस आती है और हर जगह जमा हो जाती है।
वर्तमान में यहां रह रहे लोगों में, हर व्यक्ति या तो खुद किसी स्वास्थ्य समस्या से पीड़ित है या फिर ऐसे किसी पीड़ित को जानता है। लोगों को घुटने में दर्द और सांस लेने में तकलीफ जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। कई बार यह इतनी बढ़ जाती है कि लोगों को लगता है कि उनका दम घुट रहा है। एक तरफ जहां इस तरह की बीमारियां बढ़ती ही जा रही हैं, वहीं दूसरी ओर स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच पाना अभी भी बहुत मुश्किल है।
हमें इलाज के लिए गांव के बाहर जाना पड़ता है। ऐसे में यहां कोई सार्वजनिक परिवहन सुविधा न होने के चलते या तो हमें खुद वाहन का इंतजाम करना पड़ता है या फिर राह चलती गाड़ियों से मदद मांगनी पड़ती है। उसमें भी बहुत कम लोग मदद के लिए रुकते हैं। छोटी-मोटी बीमारियों के लिए, हम पास की दवा की दुकान पर ही चले जाते हैं। लेकिन बड़ी और गंभीर बीमारियों के लिए हमें सरकारी या निजी अस्पताल जाना पड़ता है, जो गांव से पांच किलोमीटर दूर मिंजुर में हैं।
पिछले कुछ समय से राख की वजह से हमारे बच्चों के शरीर पर घाव और दाने होने लगे हैं। लोग घर पर ही इन घावों का इलाज करने की कोशिश करते हैं। इसके लिए भूरे रंग का एक मलहम इस्तेमाल किया जाता है। अगर हमारे पास मलहम होता है तो हम उसे लगाते हैं, नहीं तो पैरासिटामोल की गोलियों को पीसकर त्वचा पर लगा लेते हैं।
चाहे हम ये उपाय अपनाएं या अस्पताल जाएं, इससे बस थोड़ी देर ही आराम मिलता है और घाव फिर उभर आते हैं। अपने बच्चों को बचाने के लिए हम उन्हें खुले में खेलने या घर से बाहर निकलने से रोकते हैं। ऐसे में वे सिर्फ स्कूल के लिए बाहर जाते हैं और वहां से भी उन्हें सीधे घर आने की हिदायत होती है। गांव के लोग सिर्फ बारिश के समय ही घर से बाहर निकल पाते हैं, क्योंकि इससे कुछ समय के लिए हवा में उड़ने वाली राख बैठ जाती है।
कभी इस इलाके के 15 परिवारों को ऐश पॉन्ड के लिए अपनी जमीन खोनी पड़ी थी। तीस साल बाद, जब प्रदूषण उनके दरवाजे पर पहुंच गया है, तब भी ये अदालत में मुआवजे के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
नागम्मल सेपक्कम की निवासी हैं और गांव में सामुदायिक रिवर्स ऑस्मोसिस जल उपचार संयंत्र का प्रबंधन करती हैं।
__________________________________________________________________________
(इस कहानी को आईडीआर से साभार लिया गया है।)