राजस्थान सरकार का किसान विरोधी भूमि अधिग्रहण विधयेक
माननीय मुख्यमंत्री जी,
राजस्थान, जयपुर
विषय: राजस्थान भूमि अधिग्रहण विधेयक 2014 को वापस लेने के संदर्भ में।
माननीय मुख्यमंत्री महोदया, निवेदन है कि राजस्थान सरकार ने 16 अगस्त 2014 को भू-राजस्व विभाग की वेबसाईट पर राजस्थान भूमि अधिग्रहण विधेयक 2014 का मसौदा जारी किया है, जो एक अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण कदम है। हम इस विधेयक को पूरी तरह खारिज करते हैं तथा यह कहना चाहेंगे किसी भी सुरत में हम यह विधेयक को स्वीकार नहीं करेंगे।
राजस्थान सरकार द्वारा हाल ही में राज्य में भूमि अधिग्रहण के लिए “राजस्थान भूमि अधिग्रहण विधेयक’’ का मसौदा जारी किया गया है। यदि यह विधयेक लागु होता है तो पिछले वर्ष पारित केन्द्रीय कानून “भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास एवं पुनःस्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्षिता का अधिकार अधिनियम 2013’’ जिसे जनता के सशक्तिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयासों में से एक माना जा सकता है, राज्य में लागु नहीं होगा। हाल ही में राजस्थन विधानसभा द्वारा पारित श्रम कानूनों में संषोधन विधेयक की तरह ही यह विधेयक विधानसभा द्वारा पारित होने पर भी राष्ट्रपति महोदय के अनुमोदन के बाद ही लागु हो सकता है।
हालांकी भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास एवं पुनःस्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्षिता का अधिकार अधिनियम 2013 में भी कुछ कमियां हैं परन्तु फिर भी इसका उद्देष्य स्थानिय स्वशासन एवं ग्राम सभा के साथ विमर्ष कर के विकास की परियोजनाओं के लिये प्रभावित परिवारों को कम से कम नुकसान पहुंचाते हुए मानवीय, सहभागी, सूचनाबद्ध और पारदर्षी प्रक्रिया से भूमि अधिग्रहण करना तथा प्रभावितों का पुर्नवास एवं प्रभावितों का पुनःस्थापन सुनिष्चित करना है, जबकि राजस्थान भूमि अधिग्रहण विधेयक के प्रस्तुत मसौद में तेजी से औद्योगिक विकास के लिये राज्य में भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को तेज करना तथा मुआवजा प्रदान करना ही उद्देष्य रखा गया है।
नीचे “राजस्थान भूमि अधिग्रहण विधेयक, 2014’’ के मसौदे के कुछ मुख्य प्रावाधानों की केन्द्र के “भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास एवं पुनःस्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्षिता का अधिकार अधिनियम 2013’’ के साथ तुलना की गयी है।
इस प्रकार हम देख सकते हैं कि केन्द्रीय कानून में कई महत्तवपूर्ण प्रावधान हैं जो भूमि अधिग्रहण से हुए विस्थापितों तथा प्रभावितों के हित में है तथा उनके पूर्नवास एवं उनके आजीविका से जुडे़ प्रावधान दिये गये हैं। और अब यह कानून 1 जनवरी 2014 से लागू हो चूका हैं। ऐसे में राजस्थान सरकार को एक नया कानून बनाने की कोई आवष्यकता नहीं हैं। राज्य सरकार को राज्य में केन्द्र कानून को लागू करने के लिए उचित नियम बनाने चाहिये तथा राज्य में विकास के लिए जमीन खोने वालों को और अधिक लाभ पहुँचाने के प्रयास करने चाहिये ना कि केन्द्रीय कानून द्वारा दिये गए अधिकारों में कटोती करनी चाहिये।