आखिर दिल्ली की प्यास कब बुझेगी?
हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में रेणुकाजी बांध परियोजना के जबरर्दस्त विरोध के बावजूद सिरमौर जिले में ही दुसरी बड़ी परियोजना किशाउ बांध के नाम से प्रस्तावित की है जो टोंस नदी पर बनने जा रही है। टोंस नदी यमुना नदी की प्रमुख सहायक नदी है। इस परियोजना का भी मुख्य उदेश्य दिल्ली को पानी पिलाना और उतरप्रदेश, हरियाणा, पंजाब और राज्यस्थान को सिंचाई के लिए पानी देना और साथ ही इस बांध के सहारे 660 मेगावाट बिजली का उत्पादन करने की भी योजना है। इस परियोजना के लिए 2950 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया जाएगा जिसमे लगभग 1500 हेक्टेयर जमीन हिमाचल प्रदेश की व 1450 हेक्टेयर उतराखण्ड की है। इस परियोजना के बनने से 45 कि0 मी0 लम्बी झील बनेगी। इस बहूदेश्य बताई जाने वाली परियोजना में उपजाऊ कृषि जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है जो अदरक उत्पादन में एशिया में अग्रणीय स्थान रखता है। इसके अतिरिक्त अधिग्रहण की जाने वाली भूमि से नकदी फसलें जैसे टमाटर, लहसून, मूंगफली, प्याज व बीन जैसी सब्जियों का उत्पादन किया जा रहा हैं इसके अतिरिक्त यहां के लोग दलहनी व तिलहनी फसलें भी उगाते है। और इन्हें राष्ट्रीय स्तर तक की मण्डीयों में भेजा जाता है।
उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में ही प्रस्तावित रेणुकाजी बांध परियोजना जिसकी लम्बाई 24 कि0मी0 है और ऊचाई 148 मी0 जिसके बनने से 1630 हेक्टयर जमीन का जलमग्न होना तय है और कुल 2200 हैक्टयर भूमि अधिग्रहण की जानी है। लगभग भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया भी पूरी की जा चुकी है। इस परियोजना के बनने से लगभग 15 लाख पेड़ कटेगे या जलमग्न हो जाएगे और 1142 परिवारों का विस्थापन (हि.प्र.पा.को.लि.) के आंकड़ो के अनुसार होगा. लेकिन हि.प्र.पा.को.लि. द्वारा वन एंव पर्यावरण मंत्रालय से फोरेस्ट क्लियरेंस लेने के लिए 1.86 लाख पेड़ ही अपनी रिर्पोट में दर्शाए है. हि.प्र.पा.को.लि. ने अब इस झूठी रिपोर्ट को वन एंव पर्यावरण मंत्रालय को फोरेस्ट क्लियरेंस लेने के लिए भेज दिया गया है। भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया खत्म होने के बावजुद भी लगभग 80 लोगों को आज तक मुआवजा नहीं मिल पाया है। संघर्ष अभी भी जारी है और नेशनल ग्रीनट्रिबियूनल में मामला लम्बित पड़ा है।
ध्यान रहे कि भौगोलिक स्थिति के पिछड़ा होने के कारण यह क्षेत्र कम्पनियों व सरकार को जमीन अधिग्रहण करने में आसान भी लग रहा था लेकिन रेणुका जी बांध परियोजना के विरोध में हुए जनसंघर्ष ने लोगों के दिलों में एक जनसंघर्ष की चेतना पैदा कर दी है। 2 वर्षो के अथक प्रयासों के बाद वहां पर 20 जुलाई 2013 को उत्तम सिह व नरेश नेगी की अगवाई में किशाउ बांध जन संघर्ष समिति का गठन हो गया है और लोग इसके विरोध के लिए लाम्बन्द हो रहे है।
यदि 17 अगस्त को उतराखण्ड में प्राकृतिक आपदा नहीं आई होती तो इस परियोजना का डव्न् साईन हो जाना तय था। लेकिन इस त्रास्दी के कारण इस परियोजना का एमओयू साईन होने से रुक गया है और लोगों को समझने के लिए वक्त भी मिल गया है। इन दोनों परियोजनाओ के अतिरिक्त सिरमौर में 2 बड़ी चूना पत्थर की खदाने भी है जिसके कारण यहां पर पानी के प्राकृतिक स्त्रोत नष्ट हो गए हैं और जंगली जानवरों का पलायन गांव की ओर हुआ है जिसके कारण किसानों की हालत दिन प्रतिदिन बद से बदतर होती जा रही है। इस कारण जिला सिरमौर में खेती का क्षेत्रफल दिन प्रतिदिन कम होता जा रहा है। डैमौं व खदानों के कारण जो पेड़ कट रहे हैं उससे पर्यावरण का संतुलन भी बिगड़ रहा है।