छत्तीसगढ़ : टीआरएन एनर्जी ने आदिवासियों की जमीन पर बनाया अवैध फ्लाई ऐश
छत्तीसगढ़ के रायगढ जिले में एसीबी (इंडिया) पॉवर लिमिटेड की सहायक कंपनी टीआरएन एनर्जी 600 मेगावाट कोयला आधारित थर्मल बिजली संयत्र चलाती है। 15 अक्टूबर 2017 को नवापारा टेन्डा में, टीआरएन एनर्जी की ओर से काम करने का दावा करने वाले लगभग 15 लोगों ने चार उत्खनन यन्त्र (excavators) और पांच ट्रकों की मदद से राख़ के लिए तालाब बनाने का काम शुरू किया । गाँव के लोगों को तालाब के निर्माण के बारे में ना ही सूचित किया गया, ना ही उनके साथ कोई परामर्श किया गया और ना ही उन्हें बताया गया की इस तालाब के कारण साफ़ हवा, पानी, स्वास्थ्य और आजीविका के उनके अधिकार किस तरह से प्रभावित होंगे। पढ़े एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया रिपोर्ट;
छत्तीसगढ़, रायगढ 5.01.2018। स्थानीय आदिवासियों को जानकारी दिए बिना और उनके साथ परामर्श किये बिना नवापारा टेन्डा गाँव (रायगढ़, छत्तीसगढ़) में थर्मल बिजली संयंत्र द्वारा पैदा की जाने वाली राख के विसर्जन के लिए तालाब का निर्माण, आदिवासियों के स्वतंत्र, पूरी जानकारी के साथ और पूर्व सहमति के अधिकारों का उलंघन है, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडियन आज कहा।
एसीबी (इंडिया) पावर लिमिटेड की सहायक कंपनी टीआरएन एनर्जी, इस क्षेत्र में 600 मेगावाट कोयला आधारित थर्मल बिजली संयत्र चलाती है। स्थानीय निवासियों ने एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया को बताया कि 15 अक्टूबर 2017 को नवापारा टेन्डा में, टीआरएन एनर्जी की ओर से काम करने का दावा करने वाले लगभग 15 लोगों ने चार उत्खनन यन्त्र (excavators) और पांच ट्रकों की मदद से राख़ के लिए तालाब बनाने का काम शुरू किया था। गाँव के कई लोगों ने बताया कि राख के इस तालाब के निर्माण के बारे में ना ही उन्हें सूचित किया गया, ना ही उनके साथ कोई परामर्श किया गया और ना ही उन्हें बताया गया की इस तालाब के कारण साफ़ हवा, पानी, स्वास्थ्य और आजीविका के उनके अधिकार किस तरह से प्रभावित होंगे ।
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के व्यापार और मानव अधिकार प्रबंधक कार्तिक नवयान ने कहा, “यह आदिवासियों का अधिकार है कि उन सभी फैसलों में उनकी भागीदारी हो जिनका असर उनके जीवन और आजीविका पर होगा; पर अक्सर उनके इस अधिकार का अधिकारियों द्वारा उलंघन किया जाता है। इसलिए बिना किसी पूर्व सूचना के बिजली संयत्र से निकलने वाली खतरनाक राख (फ्लाई ऐश) के लिए एक तालाब का निर्माण किया जाना, भयावह तो है, लेकिन कोई आश्चर्य की बात भी नहीं है।”
सुखवारो राठिया, एक आदिवासी महिला जिनसे ली गयी ज़मीन पर तालाब का एक हिस्सा बनाया जा रहा है, ने कहा, “मैं इस काम को रुकवाने की कोशिश कर रही हूं, लेकिन कंपनी के अधिकारी मेरी बात नहीं सुनते हैं। मेरी ज़मीन पर खुदाई करने से पहले उन्होंने कभी मुझसे कोई परामर्श नहीं किया।”
राख़ के तालाब का इस्तेमाल आमतौर पर उस राख़ (फ्लाई ऐश) के विसर्जन के लिए किया जाता है, जो कोयला जलाने की प्रक्रिया में निकलती है | इस राख़ (फ्लाई ऐश) में पारा, क्रोमियम, आर्सेनिक और सीसा जैसे धातु पदार्थ होते हैं जिनके संपर्क में आने से स्वास्थ्य को भारी हानि पहुंच सकती है | श्रीधर राममूर्ति, गैर-लाभकारी संस्था एंवोरोनिक्स ट्रस्ट के कार्यकर्ता और संस्थापक सदस्य ने कहा, “राख के तालाबों से हवा और जल प्रदूषित होते हैं, और यह ज़हरीले प्रदूषक का स्रोत होते हैं। रायगढ़ पहले से ही देश के सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में से है, और यह परियोजना और ज़्यादा नुकसान पहुंचाएगी। ”
केन्द्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा 2011 में बिजली संयंत्र के लिए दी गई पर्यावरण मंजूरी के तहत 150 एकड़ (0.6 वर्ग किलोमीटर) में राख़ के तालाब के निर्माण की अनुमति है, लेकिन उसके साथ साथ भूजल प्रदूषण को रोकने के लिए कई सुरक्षा उपाय अनिवार्य बताये गए हैं। एम्नेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने 3 नवंबर 2017 को टीआरएन एनर्जी को लिखकर यह जानकारी मांगी थी कि कंपनी ने राख़ के तालाब के संभावित प्रभाव का आकलन करने के लिए और स्थानीय आदिवासी निवासियों को सूचित करने और उनकी स्वतंत्र, पूर्व और पूरी जानकारी के साथ सहमति प्राप्त करने के लिए क्या कदम उठाए हैं और यह भी पुछा था कि क्या यह भूमि कंपनी द्वारा कानूनी तरीके से खरीदी गयी है? कंपनी की तरफ से कोई जवाब प्राप्त नहीं हुआ |
रायगढ़ भारत के संविधान के तहत एक संरक्षित अनुसूचित क्षेत्र है जहां आदिवासी समुदायों के सदस्यों को अपनी भूमि पर विशेष पारम्परिक अधिकार प्राप्त हैं। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम – दलित और आदिवासी अधिकारों की रक्षा के लिए बनाया गया एक विशेष कानून – के तहत, किसी भी भूमि या जलस्रोत पर अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के अधिकारों के साथ किसी भी तरह का हस्तक्षेप कानूनन अपराध है। इस अधिनियम के तहत “अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य द्वारा सामान्यत: उपयोग किए जाने वाले किसी स्रोत, जलाशय या किसी अन्य स्रोत के जल” को दूषित करना “जिससे वह ऐसे प्रयोजन के लिये कम उपयुक्त हो जाए जिसके लिए वह साधारणतया उपयोग किया जाता है”, यह भी कानून अपराध है |
आदिवासियों के, उन्हें प्रभावित करने वाले निर्णयों में उनकी स्वतंत्र, पूर्व और पूरी जानकारी के साथ सहमति लिए जाने के अधिकार को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून और मानकों में मान्यता प्राप्त है जिसमें आदिवासीयों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के घोषणापत्र भी शामिल है जिसपर भारत ने भी हस्ताक्षर किये हैं | इस घोषणापत्र के अनुच्छेद 29(2) के तहत राज्य की खासतौर पर यह सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी बनती है “कि बिना उनकी स्वतंत्र, पूर्व और पूरी जानकारी के साथ सहमति के, आदिवासियों की भूमि पर किसी भी हानिकारक सामग्री का भंडारण या निपटान नहीं किया जाए” |
जिस ज़मीन पर राख के तालाब का निर्माण किया जा रहा है उस ज़मीन के पूर्व-मालिकों ने भी एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया को बताया कि 2009 और 2010 में उन्हें टीआरएन एनर्जी के एजेंटों को अपनी ज़मीन बेचने के लिए – धमकी, डर, ज़बर्दस्ती और गलत सूचना के ज़रिये – मजबूर किया गया था |
जून 2017, में चार गाँवों के दर्जनों आदिवासी महिलाओं और पुरुषों ने ज़मीन की इस तथाकथित गैरकानूनी खरीद-फरोख्त के खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज़ कराने की कोशिश की थी | लेकिन राज्य पुलिस ने प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज़ करने से इंकार कर दिया है | १० अक्टूबर २०१७ को, अनुसूचित जनजाति के राष्ट्रीय आयोग ने छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक को इन सभी मामलों में की गयी कार्यवाही के बारे में रिपोर्ट देने को कहा | पुलिस ने इसका जवाब दिया है या नहीं इस बात की पुष्टि नहीं हो पायी है |
14 नवंबर को, छत्तीसगढ़ के उच्च न्यायालय में तीन आदिवासीयों द्वारा, पेड़ों के काटने और उनसे गैरकानूनी तरीके से खरीदी हुई ज़मीन पर राख के तालाब के निर्माण के खिलाफ दायर की गई एक याचिका पर सुनवाई हुई। अदालत ने टीआरएन एनर्जी को पेड़ों की कटाई रोकने का निर्देश दिया। स्थानीय निवासियों का कहना है कि राख के तालाब का निर्माण अब भी जारी है।
कार्तिक नवयान ने कहा, “आदिवासियों की सहमति के बिना तालाब का निर्माण करना, और वह भी ऐसी ज़मीन पर जो कथित रूप से बिना सहमति के हासिल की गयी है, यह घाव पर नमक छिड़कने जैसा है। रायगढ़ में आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए छत्तीसगढ़ सरकार के अधिकारियों को तत्काल कदम उठाने की जरूरत है।”
साभार : छत्तीसगढ़ बॉस्केट