आखिर नगड़ी के दर्द को कौन समझेगा ?
25 जुलाई 2012 बंदी के दौरान जो तोड़-फोड़ हुआ, खून बहा वहा, यह दुखद रहा। जो नहीं होना चाहिये था। हिंसा से किसी भी समस्य का हल नहीं निकलता है। नगड़ी का आंदोलन भी अहिंसा के रास्ते ही यहां तक पहूंचा है, जो अपने भीतर कई दर्द और सवालों को दबाये रखा है। 25 की घटनाओं को तो दुनिया के सामने रख ही दिया गया है। लेकिन नगड़ी के ग्रामीणों का क्या कसूर है? 7 जनवरी 2012 को बेकसूर 12 ग्रामीणों पर निर्माण कार्य में बाधा डालने का केस थोपा गया।
इस केस में हर तीसरे दिन एसडीओ कोर्ट में हाजरी देना पड़ता था। 9 जनवरी 12 से सैंकड़ों पुलिस फोर्स खेत में उतार कर चहारदिवारी का काम प्ररंम्भ किया सरकार ने। 9 जनवरी 2012 के बाद ग्रामीणों को अपने खेत में उतरने पर रोक लगा दिया गया । कोई खेत में जा नहीं सकता है। पूरे 227 एकड़ जमीन में 144 धारा लगा दिया गया और पूरे खेत में सैंकड़ों पुलिस बल को तैनात कर दिया गया। खेत में गाय-बैल, मुर्गी-चेंगना को भी चरने के लिए जाने नहीं दिया जाता था। बाद में आंदोलन तेज होने के साथ ही बैल-बकरियों, को खेत में चरने दिया जाने लगा। नदी के किनारे 100 एकड़ से अधिक जमीन में किसान गेहुं, चना, आलू, मटर, गोभी, आदि सब्जी लगा दिये थे-सबको पुलिस वाले बुलडोज कर दिये।
1-purbotar राज्य सरकार (बिहार) द्वारा 1957-58 में राजेंन्द्र कृर्षि बिश्वबिद्यालय / बिरसा कृर्षि बिश्वबिद्यालय कांके के नाम पर नगड़ी थाना सं0 53 में कितना एकड़ भूमिं अधिग्रहण किये है?2-किन किन रैयतों का जमीन कौन सा खाता नं0, प्लाट नां0 एवं कितना रकबा अधिग्रहण किया गया हे?3-जिन रैयतों की जमीन बिश्वबिद्यालय अधिग्रहण किया गया है, उन्हें जमीन का कीमत कितना भुगतान किया गया, पावती रसीद सहित4-रैयतों को जमीन को कीमत किस दर से भुगतान किया गया है, यदि जमीन को अधिग्रहण किया गया है तब उसका उपयोग आप किस उद्वे’य से अब तब करते आये हैं?