विकास की कीमत चुकाते रावतभाटा के आदिवासी : परमाणु प्लांट से हो रही बीमारियों पर एक खोजी रिपोर्ट
राजस्थान के रावतभाटा में छह परमाणु ऊर्जा संयंत्र काम कर रहे हैं जबकि दो नए प्लांटों और अनु-ईंधन प्रसंस्करण यूनिट का निर्माण चालू है. इस प्लांट के इर्द-गिर्द रहने वाले ज़्यादातर लोग 1960 के दशक में परमाणु संयंत्र और गांधीसागर बाँध से विस्थापित होकर यहां आए थे. सितम्बर में दस दिन तक इन गांवों का दौरा करने के बाद बलजीत मेहरा ने ये रिपोर्ट हमें भेजी है जो हम आपसे साझा कर रहे हैं:
राजस्थान राज्य में रावतभाटा जिलें में सरकार द्वारा न्युकिलयर एटर्मी से बिजली का निर्माण किया जा रहा है। इस बिजली निर्माण के कार्य में लगे प्लाटों से यहां के रहने वाले निवासियों और जानवरों एंव वातावरण पर क्या प्रभाव पड़ रहा है इसको जानने के लिए रावतभाटा जिले के अन्तर्गत आने वाले पांच गावों का सर्वे किया गया, जिसमें झरझनी, मालपुरा, दीपपुरा, बक्षपुरा और तमलाव गांव आते है इन गावों के तहत सबसे अधिक परिवारों की संख्या झरझनी गांव में आती है यहा करीब 600 परिवार है, तमलाव गांव रावत भाटा न्यूकलियर प्लांट से सिर्फ 2 से 3 किलोमीटर की दूरी पर है। इस सर्वे को करने के लिए पूरे भारत के स्तर पर अलग-अलग राज्यों से लोग रावतभाटा आये जिसमें स्ंवय सेवी संस्था, रिसर्चर, डाक्टर, और व्यक्तिगत स्तर पर भी लोगो ने यह सर्वे किया। यह सर्वे डा सुरेन्द गाडेकर के नेतत्व में किया गया जोकि पेशे से वैज्ञानिक है और अणुमुक्ति आन्दोलन के साथ 1980 के दशक से जुड़े हुये है।
रावतभाटा जिले में कुल 8 रिएक्टर लगे हुये है जिसमें से 7 और 8 नम्बर रिएक्टर का निर्माण कार्य अभी चल रहा है। एक और दो नम्बर रिएक्टर जो सबसे पहले लगे थे वह अभी काम में नही लाए जा रहे है। 4 नम्बर रिएक्टर में शट डाउट के चलते मरम्मत का काम चल रहा है। साल में एक बार एक-एक करके सभी प्लाट को मरम्मत के लिए बन्द किया जाता है। इन प्लाटों कि मरम्मत के लिए जिन मजदूरों को बुलाया जाता है। वह मजदूर आस पास के गांव के होते है और अधिकतर मजदूर ठेकेदारों दूसरें राज्यों से भी लाए जाते है। तमलाव गांव की भील बस्ती में मजदूरों से चर्चा के दौरान उन्होने बताया कि वर्तमान में अधिकतर काम ठेकेदारो के तहत करवाया जाता है। रावतभाटा न्यूकलियर प्लांट में यह ठेकेदारी प्रथा 1982 में शुरू हुई प्लांट मरम्मत के समय मजदूरों को विकिरण जिसे कि रावतभाटा प्लांट में काम करने वाले और गावों में रहने वाले लोग सामान्य भाषा में डोज कहते है वह लगने के चांस अधिक होते है। तमलाव गांव के सर्वे के दौरान वहा के निवासियों से बातचीत करने के तहत पाया गया कि सरकार द्वारा तय है कि यदि किसी मजदूर को 800 डोज लग जाता है तो वह मजदूर रिएक्टर के अन्दर काम नही कर सकता, क्योकि यहा पर अधिकतर काम ठेकेदारो द्वारा किया जाता है ठेकेदार यह मात्रा 1200 डोज तक भी कर देते है। मजदूरों ने यह भी बताया कि जिस समय उन्हें मरम्मत के लिए अन्दर भेजा जाता है उस समय जो मजदूरी तय होती है काम खत्म होने के बाद उन्हें तय मजदूरी के अनुसार भुगतान नही किया जाता है। मजदूरों के अन्दर जाते समय डोजी मीटर दिया जाता है, जिससे यह पता चलता है कि अभी तक मजदूर को कितना डोज लग गया है। जिस समय मजदूर अन्दर जाते है उस समय यह डोजी मीटर मजदूर को दिया जाता है पर जैसे ही वह बाहर आता है वैसे ही गेट पर खड़े कर्मचारी के द्वारा उनसे वह मीटर ले लिया जाता है जिससे कि वह मीटर आगे विभाग में नही पहुंच पाता है और यह पता भी नही लग पाता है कि मजदूर को कितना डोज लगा है जिसका नतीजा यह होता है कि रिएक्टर में काम करने वाला मजदूर या तो किसी भयंकर बिमारी का शिकार हो जाते है और कई बार ऐसा भी होता है मजदूरों की मौत तक हो जाती है। मजदूरों से बातचीत के दौरान यह भी पता चला कि यदि कोई मजदूर किसी गंभीर बिमारी से ग्रसित हो जाता है तो ठेकेदार या विभाग के द्वारा मुआवजा भी नही दिया जाता है एंव काम से भी निकाल दिया जाता है। यंहा पर काम करने वाले मजदूर अधिकतर तमलाव गांव के है। तमलाव गांव की बजारां बस्ती में काम करने वाले परिवारों में एक परिवार ऐसा भी है जिसमें काम करने वाला 28 साल का मजदूर आज भी हर 15 दिन या 1 महीने के अन्दर उनकी लम्बाई और वजन दोनो ही बड़ता जा रहा है। वर्तमान में उनका वजन 130 किलो ग्राम है। इसी बंजारा बस्ती में रहने वाले और प्लांट में काम करने वाले मजदूर ने बताया कि सन 2001 में इन्होने रिएक्टर नम्बर 1 और 2 में शटडाउन के समय काम किया है। उस समय दिन में दो बार यह मजदूर रिएक्टर में काम करने के लिए एक से डेढ़ घंटे के लिए जाते थे, परन्तु इन मजदूरों का परमिट 10 से 15 मिनट के लिए बनता था पर यह काम ज्यादा करते थे। बातचीत के दौरान यह भी सामने आया कि न्युकिलयर प्लांट का सरकारी कर्मचारी रिएक्टर में जिस जगह काम करना होता है वह जगह दिखा कर तुरन्त बाहर आ जाता है वह वहा ज्यादा देर के लिए नही रहता है। यह मजदूर रोजाना के आधार पर काम करते है इन मजदूरों को प्लांट की तरफ से रिएक्टर में कैसे काम करना है इसके लिए बेसिक जानकारी दी जाती है जैसे प्लांट के अन्दर जाते समय प्लास्टिक के जूते, गल्वस आदि पहने होने चाहिए। यदि किसी मजदूर को रेडियेशन लग जाता है तो उस मजदूर को अन्दर ही तीन से चार बार तक नहाना पड़ता है जब तक रेडियशन साफ नही हो जाता। रेडियशन साफ हो गया है या नही इसकी पुष्टि प्लांट के अन्दर लगी मशीने करती है।
सामाजिक आर्थिक स्थिति
बातचीत के दौरान आने वाले पांच गावों झरझनी, मालपुरा, दीपपुरा, बक्षपुरा, तमलाव आदि में झरझनी गांव के लोग आर्थिक रूप से थोड़ा अधिक सक्षम है उसमें भी अहीर समुदाय के लोग आते है इस समुदाय के लोग के पास गाय भैंस और सरकार की तरफ से विस्थापन के समय मुआवजे के रूप में मिलने वाली खेती लायक जमीन है। दीपपुरा और मालपुरा गांव के लोग के पास भी जमीन है और पशुओं में अधिक बकरिया है। दीपपुरा और मालपुरा गांव में प्रत्येक परिवार से एक-एक सदस्य प्लांट में पिछले कम से कम चार सालों से काम कर रहे है। प्लांट में यह काम मजदूरों को लगातार नही मिलता है दिनों के अनुसार परमिट बनता। वर्तमान में अधिक मजदूर प्लांट नम्बर 7 और 8 में काम कर रहे है जो अभी नये बन रहे है। झरझनी गांव में प्रत्येक घर से लोग प्लांट में काम करने नही जाते है पर 10 में से 4 घरों में लोग प्लाट में काम करने जाते है। तमलाव गांव जोकि प्लाट के सबसे नजदीक गांव में आता है और न्यूकलियर प्लाट के द्वारा गांव को गोद भी लिया गया है परन्तु विडम्बना ऐसी है कि जिन बच्चों के लिए प्लाट द्वारा स्कूल स्थापित किया गया है उन्हीं के बच्चों को प्लांट द्वारा स्थापित स्कूलों में दाखिला नही मिल पा रहा है। बातचीत के दौरान तमलाव गांव की भील बस्ती में लोगो ने बताया कि उनके बच्चों का दाखिला प्लांट द्वारा संचालित स्कूलों में नही हो पा रहा है यहा तक कि उनके द्वारा भरे गए फार्म को भी नही लिया जाता है। वर्तमान में भी बच्चे उच्चतर शिक्षा नही ले पा रहे है अन्य गावों कि स्थिति कि लगभग इसी प्रकार कि है। बिजली भी दिन के केवल कुछ ही घंटे आती है। बिजली के मुद्वे पर बाकी सभी चार गांवो कि भी यही स्थिति है। सड़कों पर रोड लाइट कि व्यवस्था नही है गलियों में लाइट कि वयवस्था नही है यह स्थिति प्लांट द्वारा गोद लिए हुये गांव कि है। तमलाव गाव में कुछ तथ्य और भी सामने आये जैसे लोगो ने बताया कि उनके पास जमीन तो है पर कानूनी रूप से उनके नाम नही है उसका कारण उन्होने यह बताया कि जिस समय प्लांट को लगेगा कि उन्हे वह जमीन चाहिए वह आसानी से ले सकते है। तमलाव गाव में रहने वाले किसी भी समुदाय के नाम जमीन के कागजात नही है।
पीने का पानी हैंडपप और कुओं के द्वारा घरों में लाया जाता है। हैंडपप में कई बार पीला पानी आता है उस दौरान गांव वाले या तो पानी खरीद कर लाते है या फिर चूल्हे पर उबाल कर पीते है। शौचालाय के लिए लोगो को बाहर जाना पड़ता है। गांव में एका दुका परिवार ऐसे है जिन्होने घर में शौचालय बनवाया है।
स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें
रावतभाटा न्यूकलियर प्लांट के आसपास आने वाले क्षेत्र में बसे गावों में सर्वे में सभी गावों में कुछ स्वास्थय संबंधी दिक्कतें सामान्य रूप पाई गई जैसे लोगो का कहना है कि सुबह उठने के बाद यह लगता ही नही है कि रात भर सोये थे पूरा शरीर थका-थका सा लगता है। जोड़ो में दर्द रहता है चाहे फिर वह छोटा बच्चा ही क्यों न हो या फिर 50 साल का उमर दराज व्यक्ति। महीने में हर व्यक्ति को चाहे वह बच्चा, बड़ा, औरत, आदमी कोई भी हो सभी को 5-6 बार बुखार आ जाता है। झरझनी गांव में करीब 15 साल पहले मेघवाल समुदाय का एक व्यक्ति प्लांट में सरिया ढोने का काम करता था जिसके चलते धीरे धीरे उनके हाथों कि चमड़ी उतर गई और उगलिया आगे से टेड़ी हो गई वर्तमान में वह अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए खेती करते है। इसी गांव में एक दूसरा परिवार जोकि अहीर समुदाय से संबंध रखता है वह भी 20-22 साल पहले प्लांट में काम करते थे उनके सिर कि सारी चमड़ी उतर चुकी है, उनका बेटा जोकि 15 साल है उनके दोनो हाथो की 6-6 उगलिया है और आखों में तिरछापन है। महिलाओं के प्रसूति संबंधी जानकारी लेते समय पता चला कि, इन गावों में लगातार गर्भपात हो रहे है 3 से 4 महीने का गर्भ गिरने कि घटनाएं ज्यादा हो रही है। कुछ परिवार इस तरह के भी सामने आए जिसमे महिला या पुरूष किसी भी प्रकार का गर्भनिरोधक इस्तेमाल नही कर हे है बावजूद इसके वह गर्भधारण करने में सक्षम नही है।
तमलाव गांव में स्वास्थय संबंधी दिक्कते ना सिर्फ मनुष्यों में पाई गई बल्कि जानवरों में देखी गई। वर्तमान में बकरियों के गले का हिस्सा बड़ा हुआ पाया गया। तमलाव गांव मे परिवारों के जाने के दौरान देखा गया कि वहा बच्चे बहुत ही सुस्त है। बंजारा बस्ती में एक परिवार के सर्वेक्षण के दौरान पता चला कि परिवार कि महिला का गर्भपात 4 बार हो चुका है उनको नही पता है कि उसका कारण क्या है कोई भी गर्भ 4 महीने से ज्यादा नही रह पाता है। इसी गांव के लोगो कि लम्बाई और वजन भी महीने के अन्तराल में बड़ रहा है।
मालपुरा गांव में सर्वेक्षण के दौरान बुखार और दर्द के अलावा कुछ परिवार ऐसे भी मिले जिनके गाल में गाठें हुई और उन्होने आपरेशन के द्वारा उन्हे निकलवा दिया यह व्यक्ति वर्तमान में भी प्लांट में काम कर रहे है। यहा महिलाओं के पेट में दर्द कि शिकायत अधिक पाई गई है। दीपपुरा गांव के लोगो ने सर्वे के दौरान बुखार और शरीर दर्द के साथ-साथ पेट में दर्द कि तकलीफ बताई। दीपपुरा गांव में एक परिवार में एक 15 साल कि बच्ची मानसिक रूप से विक्षिप्त भी पाई गई
सर्वेक्षण के दौरान इन तमाम तथ्यों को पाया गया, इन तथ्यों के आधार पर यह सोचना जरूरी हो जाता है कि विकास के लिए क्या इसी तरह के रास्तो को अपना जरूरी है या इसके और भी विकल्प हो सकते है।