बताव ए साहेब किसान काहे मरता
भारतीय किसान आसमानी विपदा और सरकारी बेरुखी का एक साथ शिकार बन गया है। मौसम किसानों के लिए कहर बनकर बरपा है। वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार भूमि अधिकार कानून (संशोधन) विधेयक को पारित कराने और राज्य सरकारे कृषि साीलिंग कानून को छिन्न भिन्न करने में जुट गई है। चक्की के पाट में पिस रहे किसान को अब फाँसी का फंदा शायद अधिक आकर्षित कर रहा है। किसानों की व्यथा पर गंगा एक्प्रेस वे विरोधी आंदोलन के साथी
बलवन्त यादव ने यह गीत लिखा है जिसे हम यहाँ पर साझा कर रहे है;
बताव ए साहेब, किसान काहे मरता।
चाउर, आटा, चीनी, चारों ओरी सरता।।
धरती के जोति-जोति अन्न पैदा कइनी
भरपेट रोटी हम,कबहूँ ना पवनी
दिल्ली में बइठ के, रेट तय करता।
बताव ए साहेब…………..
कहीं पड़े सूखा, कहीं बाढ़ आवै
कबो शीतलहरी, जुलूमवा मचावै
खड़े फसल में, आँधी, पत्थर पड़ता।
बताव ए साहेब…………..
चप्पल और जूता बिना, बेवाई फाट ताटे
हमरा लरिकवा के, चीथड़ा झूलत वाटे
सोरहो सिंगार, कुकुरा तोहार करता।
बताव ए साहेब…………..
मेहनत से हमनीका, करी जा किसानी
दुधवा से महंगा, बेचा ताटे पानी
घाटा के सौदा, किसान केवल करता।
बताव ए साहेब…………..
हमनीके मेहनत से, मिले तन्खवाह हो
लूटी-लूटी कइल, हमनी के तबाह हो
इअन्नदाता, खुदकुशी करता।
बताव ए साहेब…………..।
धरती के जंग में, पूंजी के रंग बा
सरकारी जवान में, संविधान संगबा
विकास के नाम पर, इ देशमें के बेचता।
बताव ए साहेब…………..।
मनवा के बात कहे, खेती किसानी से
दिलवा के बात पूंजीपतिया अडानी से
तनवा के बात स्मृति इरानी से
जीयते यशोदाबेन के जीवन नरक करता।
बताव ए साहेब…………..।
थाकि गइनी माँगत-2, मिल ना अनुदान हो
पूंजीपति करेंले, तोहरे बखान हो
सबका पेट भरे वाला, भूखे पेट रहता।
बताव ए साहेब…………..।