संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

आतंकवाद के नाम पर मुसलमानों का उत्पीड़न

‘आतंकवाद के नाम पर कैद निर्दोषों के रिहाई मंच’ ने हैदराबाद के अब्दुल रज्जाक मसूद की आत्महत्या का जिम्मेदार खुफिया एजेंसियों को ठहराते हुए हैदराबाद के खुफिया अधिकारियों पर हत्या का मुकदमा चलाने की मांग की है। आरोप है कि खुफिया एजेंसियां उन पर मुखबीर बनने का दबाव डाल रही थीं। रिहाई मंच द्वारा लखनऊ में 15 अक्टूबर 2012 को एक बैठक आयोजित की गयी. पेश है बैठक की रिपोर्ट;

रिहाई मंच द्वारा लखनऊ में  आयोजित की गयी बैठक में उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिरीक्षक एसआर दारापुरी ने कहा कि ऐसा लगता है कि आतंकवाद से निपटने के नाम पर कांग्रेस सरकार ने खुफिया एजेंसियों को मुसलमानों को खत्म करने की खुली छूट दे दी है। मसूद की आत्महत्या कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले पूछताछ के नाम पर मुम्बई में फैज उस्मानी और कतील सिद्दीकी की यरवदा जेल में हुई हत्या में भी खुफिया एजेंसियों की भूमिका संदिग्ध रही है। इसकी जांच की मांग के बावजूद सरकार ने आपराधिक खामोशी अख्तियार की हुई है। उन्होंने इन घटनाओं को खुफिया एजेंसियों द्वारा लोकतंत्र को अगवा कर लेने का उदाहरण बताया।


उन्होंने कहा कि भारतीय खुफिया एजेंसियां अब देश की जनता द्वारा चुनी गयी सरकारों के बजाय मोसाद और सीआईए से सीधे संचालित होने लगी हैं। इसकी ताजा मिसाल सउदी अरब से दरभंगा बिहार निवासी इंजीनियर फसीह महमूद का भारतीय खुफिया एजेंसियों द्वारा गैर कानूनी ढंग से अगवा किया जाना है। इस घटना की जानकारी गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय को नहीं थी।

उन्होंने आगे कहा कि दुनिया के ये दो सबसे बडे आतंकी देश भारतीय अधिकारियों को मुस्लिम विरोधी संस्थागत हिंसा का प्रशिक्षण दे रहे हैं। खुफिया एजेंसियों और एटीएस के अधिकारियों को इसके लिए इजराइल और अमरीका भेजा जा रहा है। अब्दुल रज्जाक मसूद और कतील सिद्दीकी की हत्याएं इसी का नतीज़ा हैं।

रिहाई मंच के संयोजक एडवोकेट मोहम्मद शुऐब ने कहा कि खुफिया एजेंसियों पर लगातार निर्दोंष मुसलमानों को उत्पीडि़त करने का आरोप लग रहा है। यहां तक कि इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ मामले की जांच में भी सीबीआई ने खुफिया एजेंसियों को जांच के दायरे में खड़ा किया है। बावजूद इसके मुसलमानों के खिलाफ खुफिया एजेंसियों के साम्प्रदायिक हमले जारी हैं।

उन्होंने कचहरी विस्फोटों के आरोप में बंद तारिक कासमी द्वारा पिछले दिनों लखनऊ की जिला जेल से भेजे गये पत्र का हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि खुफिया एजेंसियां आतंकवाद के नाम पर कैद मुस्लिम युवकों का उत्पीडन कर रही हैं और इसके चलते उनमें आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है। अगर अब्दुल रज्जाक की तरह लखनऊ की जेल में भी कोई घटना होती है तो इसकी जिम्मेदार सपा सरकार और खुफिया एजेंसियां होंगी। एक तरफ तो मुलायम सिंह मुसलमानों को उत्तर प्रदेश में सपा सरकार बनाने का श्रेय देते हैं। दूसरी तरफ राज्य सरकार का सांप्रदायिक चरित्र यह है कि वो निमेष आयोग की रिपोर्ट को महीनों से दबाए हुए है और जेल में बंद मुसलमान युवकों का उत्पीड़न कर रही है। सात महीने के सपा कार्यकाल में आठ बड़े दंगे हो चुके हैं।

रिहाई मंच के शाहनवाज आलम और राजीव यादव ने कहा कि अब्दुल रज्जाक के सुसाइड नोट से अंदाजा लगाया जा सकता है कि खुफिया एजेंसियां किस हद तक मुसलमानों के खिलाफ षडयंत्र रच रही हैं। उन्हें पहले आतंकी बता कर फंसाया जाता है और फिर उन्हें मुखबिर बनने को मजबूर किया जाता है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि विभिन्न आतंकी घटनाओं में आईबी के अधिकारियों की भूमिका की जांच हो। पहले भी संसद पर हुए हमले के आरोपी अफजल गुरू और दिल्ली के मआरिफ कमर और इरशाद अली के मामले में यही खुलासा हुआ है। इस सब से यह संदेह और पुष्ट हो जाता है कि इंडियन मुजाहिदीन जैसे संगठनों को खुद आईबी संचालित कर रही है और देश में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दे रही है।

आतंकवाद के नाम पर कैद निर्दोषों का रिहाई मंच
लखनऊ
सम्पर्क- 09415254919, 09452800752

इसको भी देख सकते है