संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

मुलताई किसान आंदोलन ने बदला मेरे जीवन का रुख : डॉ सुनीलम

मध्य प्रदेश के बैतूल जिले की मुलताई तहसील के सामने 12 जनवरी 1998 को लगातार फसले खराब होने के कारण मुआवजा मॉंग रहे किसानों पर आंदोलन को कुचलने के उद्देश्य से पुलिस गोलीचालन प्रायोजित किया गया, जिसमे 24 किसान शहीद हुए, 150 किसानों को गोली लगी। सरकार ने 250 किसानों पर 66 फर्जी मुकदमे दर्ज किए। हत्या, हत्या के प्रयास, लूट, आगजनी, सरकारी काम मे बाधा सहित तमाम अपराधों को लेकर दर्ज फर्जी मुकदमे 12 जनवरी 1998 से आज तक चल रहे है। किसान संघर्ष समिति द्वारा हर वर्ष की तरह 12 जनवरी 2015 को 17वां शहीद किसान स्मृति सम्मेलन का आयोजन मुलताई में किया जा रहा है। मुलताई किसान आंदोलन पर डॉ सुनीलम का महत्वपूर्ण आलेख,

कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं, जो जिंदगी का रूख बदल देती हैं। मेरे साथ ऐसे ही मुलतापी के नर्मदा लॉज में हुआ, जब मैं जनता दल का एक प्रशिक्षण शिविर युवा जनता दल के राष्ट्रीय महामंत्री के तौर पर सम्बोंधित कर  रहा था। परमंडल गांव के कई किसान टंटी चौधरी जी के नेतृत्व में मेरे पास आए। उन्हांेने मुझे किसानों की फसलें अतिवृष्टि से नष्ट होने के बारे में बताया मुझै उन्होंने बताया कि हमने गांव की तरफ से जिलाधीष बैतूल को 25 दिसंबर तक का समय मुआवजा भुगतान करने के लिए दिया है। उसके बाद हम आंदोलन करना चाहते हैं। आप सहयोग कीजिए।

मैने बैतूल जिले में 1985 से बंजारी ढाल, आजादी के आंदोलन के दौरान विद्रोह करने वाले आदिवासियों की भूमि से काम की शुरूआत की थी। मुझ पर 1997 तक दसियों फर्जी मुकदमें लग चुके थे। कई बार जेल पहुचाया जा चुका था। कई बार हमले हो चुके थे। इस पृष्ठभूमि में मैने आंदोलन का नेतृत्व करने से इंकार कर दिया। लेकिन, किसानों को सहयोग करने के लिए आष्वस्त किया। दिल्ली लौटने के आरक्षण को रद्द कराया, गांवों में घूमा। 25 दिसंबर को परमंडल के किसानों ने नर्मदा भवन में बैठक बुलाई थी उसमें 100-200 किसानों की आने की उम्म्ीद थी लेकिन पांच हजार किसान पहंुच गए। इस कारण बैठक मुलतापी तहसील प्रांगण में करनी पड़ी। मैने कहा कि मैं किसानों की बात सुनना चाहता हूं। सभी ने विधायक, सांसद जिलाधीष और मंत्रियों को कोसा और खुद मुआवजे के लिए संघर्ष करने का संकल्प लिया। सभी ने तय किया कि सब अपनी-अपनी पार्टी छोड़कर किसान संघर्ष समिति का गठन कर आंदोलन करेंगे। मैने गांव-गांव में दौरा शुरू कर दिया। अनिष्चितकालीन धरना तहसील प्रांगण में 25 से ही शुरू कर दिया गया। आठ जनवरी की रात को पुलिस ने ठोक-पीट कर किसानों को खदेड़ दिया टेंट माईक जब्त कर लिया मुझे गिरफ्तार करने पुलिस गांव-गांव में घूमने लगी। नौ जनवरी को सुबह मुझे गिरफ्तार करने पुलिस परमंडल आई। पुरे षहर को पुलिस ने बैरिकेट कर दिया, लेकिन किसान परमंडल के एकत्र होकर 50 किमी की रैली निकालकर बैतूल पहुंचे।  जिलाधीष बैतुल ने 5000 रु. एकड की जगह 400रु. एकड का मुआवजे का प्रस्ताव रख दिया जिसे किसानो ने हाथ उठाकर नामंाजूर कर दिया।
बैतुल पुलिस ग्राउड पर 75 हजार किसानों का ऐतिहासिक अनुषासित जमावड़ा देखकर अधिकारियों ने भी आंदोलन की तारीफ स्वंय मुझसे की। मुलतापी शांतिपूर्ण तरीके से बंद का आवाहन सफल रहा। गांव में बैलगाडी तो क्या साइकिल तक भी नहीं चली। मुझसे बहुजन समाज पार्टी के नेता कांशीराम की मुलतापी की सभा को लेकर बसपा के विधायक दल के नेता दाऊराम रत्नाकर ने बात की। तय हुआ कि 12 जनवरी को पहले कांशीराम की सभा 12 बजे समाप्त होने के बाद हम मुलतापी तहसील पहुंचकर कार्यक्रम करेंगे। अधिकारियों को मैने बतला दिया कि 12 जनवरी के बाद ताप्ती किनारे हम भूख हड़ताल पर बैठेंगें। ताकि किसानों को नष्ट हुई फसलों को पांच हजार रूपये प्रति एकड़ की दर से मुआवजा, फसल बीमा राशि के भुगतान किसानो के कर्ज माफी, विजली बिल माफी तथा चारा उपलब्ध कराऐ जाने की मांग राज्य सरकार से मनवाई जा सके।

11 जनवरी की रात को मैं सोनेगांव में रूका। वहां से दूसरे दिन दोपहर 12 बजे के बाद मुलतापी पहुंचा। मुलतापी थाना के पास पहुंचने पर वाडेगांव की गोदी में बच्चा लिए एक महिला ने बताया कि आंदोलनरत किसानों पर गोलीचालन चालू कर दिया है। मैने मुलतापी थाना में सपंर्क किया तब उन्होने मुझे सबक सिखाने की धमकी देते हुए खुद जाकर देखने को कहा। मैं बस स्टैंड की ओर बढ़ा और माईक से पुलिसकर्मियों से गोलीचालन बंद करने की बार-बार अपील की। इसी दौरान मुझ पर तहसील कार्यालय की खिड़की से तत्कालीन पुलिस अधीक्षक जीपी सिंह ने गोली चलाई। गोली मेरे जीप के बोनट के आसपास खड़े दो किसानों को लगी। मैं जीप के नीचे कूद गया। दोनों किसान साथियों को जीप उठाकर 50 मीटर पर मुलतार्पी अस्पताल ले गया। वहां मौजूद कुछ डाक्टर और नर्सों ने मुझे एक कमरे में ले जाकर बाहर से कुंडी बंद कर दी। ढाई घंटे तक पुलिस गोली चालन लगातार जारी रहा। कफर्यू लगा दिया गया। अंधेरा होने पर डा. तिवारी के साथ एसपी, कलेक्टर आए। मुझे पूरे षहर की बिजली बंद करने के बाद मुलतापी थाने की हवालात में डाल दिया गया। जहां दो दिन लगातार बेहोषी की हालत में बार-बार लात,घुसो,बेल्ट, जूतों और लाठियों से पीटा जाता रहा। रात को पुलिस एनकाउंटर के लिए ले गई। दिल्ली में जनता दल सरकार के मंत्रियो की लगातार पुछताछ के कारण पुलिस सकते में थी । बात इतनी फैल चुकी थी कि एनकाउंटर का निर्देश देने वाले पुलिस अधीक्षक के आदेश का पालन करने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ, झाड़ियों में रायफलों के साथ मेरे फोटो खींचे गए। खाली कागजों पर जबरदस्ती हस्ताक्षर कराए गए। घटना के बाद तत्कालीन केंद्रीय मंत्री श्री शरद यादव भी मुलतापी आए। लेकिन, उन्हें मेरा पता नहीं बताया गया।

बाद में मजिस्ट्रेट रघुवंशी के सामने हथकड़ी और बेड़ियां लगाकर पेश किया गया। जिन्होंने पुलिस वाहन में ताला लगवाकर मुझे सीधे भोपाल जेल इस आदेश के साथ भिजवाया कि रास्ते में कहीं पुलिस वैन का ताला न खोला जाए। उन्होंने मुझसे कहा कि पुलिस रास्ते में एनकाउंटर कर सकती है। तीन महीने तक मुझे भोपाल केन्द्रीय जेल की फांसी सेल-7 तालो में रखा गया। जबलपुर उच्च न्यायालय से जमानत मिली। मुझसे कहा गया कि यदि मैं मुलतापी जाउंगा, तो जिंदा जला दिया जाएगा। लेकिन फिर भी में जेल से निकलकर सीधा मुलतापी गया। किसानों को संगठित करना शुरू किया।किसान हर महीने की 12 तारीख को किसान महापंचायत शुरू कर चुके थे। 12 अक्टूबर की चिकली कलॅा गांव की किसान महापंचायत में मुझे चुनाव लड़ाने का फैसला हुआ। हालांकि,, ना तो मैं तैयार था, ना ही महापंचायत में पहुंची सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर और डा. बीडी शर्मा मेरे चुनाव लड़ने के पक्ष में थे, मगर किसान महापंचायत का फैसला था, इसलिए मुलतापी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा। 50 प्रतिषत वोट पाकर विधायक बना। दूसरी बार फिर महापंचायत के प्रस्ताव पर 60 प्रतिषत वोट से विधायक चुना गया।

व्यवस्था ने किसान आंदोलन को कूचलने की भरपूर कोषिष की परन्तु उसे मुलताई के किसानों ने नाकाम कर दिया। किसानों की ताकत को कमजोर करने के लिए मुलतापी का परिसीमन कमलनाथ द्वारा सोची समझी रणनीति के तहत कराया गया। एक जाति के मतदाताओं को बहुसंख्यक बना दिया गया। पूंजीवादी और जातिवादी ताकतों ने एकजुट होकर इस मनमाने परिसीमन का उपयोग करते हुए तीन करोड़ से भी ज्यादा रुपया पानी की तरह बहाकर में परास्त कर  दिया गया।

किसान संघर्ष समिति का आंदोलन मुलताई में कमजोर पड़ गया था। छिंदवाड़ा में पेंच परियोजना अदानी पेंच पॉवर प्रोजक्ट एसकेएस और मैक्सो प्रोजेक्ट के प्रभावित किसानों ने मुझसे एडवोकेट अराधना भार्गव के माध्यम से संपर्क किया। 50 गांव के 50 हजार प्रभावित किसानों ने आंदोलन की शुरुआत की। दमन चक्र चला। अदानी ने जानलेवा हमला करवाया। कई मुकदमें दर्ज हुए। इस बीच मुलतापी गोलीचालन के बाद एसपी, कलेक्टेªट पर हत्या के मुकदमें दर्ज करने की बजाए मेरे समेत ढाई सौ किसानों पर 66 मुकदमें दर्ज किए गए, उनमें से तीन मुकदमों में मुझे मुलतापी न्यायालय द्वारा फर्जी मुकदमें और केवल पुलिस प्रशासन एवं अन्य शासकीय गवाहो की गवाही के आधार पर षड़यंत्रपूर्वक 52 वर्ष की सजा करवाकर छिंदवाड़ा के किसानों की जमीनों के अधिग्रहण का रास्ता सरकार ने साफ किया। (आन्दोलन में षामिल 75000 किसानो में से एक की भी गवाह नही बनाया गया) मुझे जेल भेज दिया गया। सरकार ने भारी पुलिस बल लगाकर जोर जबरजस्ती से माचागोरा बांध का काम छिंदवाड़ा में शुरू कराया। सजा होने की खबर से सदमे में आकर एडवोकेट आराधना भार्गव की माता जी का निधन हो गया, जिन्हें देखने सुश्री मेधा पाटकर जब छिंदवाड़ा पहुंचीं, तो उन्हें घर से गिरफ्तार कर लिया गया। सात दिन तक वे आराधना भार्गव के साथ छिंदवाड़ा जेल में रहीं। 4 महीने बाद मुझे उच्च न्यायालय से जमानत मिली। हर माह कि किसान माहपंचायते चलती रही। अब 17 वां ष्षहीद किसान स्मृति सम्मेलन 12 जनवरी 2015 को आयोजित किया जाना है।  बार बार मेने मन में आता है कि 17 वर्ष मे किसानों को क्या हासिल हुआ ?

किसानों को सही समय पर उचित मुआवजा मिले तथा हर किसान को लागत से दुगना फसल बीमा की राशि भी मिले, यह गत 17 वर्षों में सुनिष्चित नहीं हो पाया है। षहीद परिवारों को स्थायी षासकीय नौकरी भी नहीं दी गई है। किसानों पर गोली चालन कराने वाली कांग्रेस पार्टी की सरकार 11 वर्ष पहले म.प्र. और 6 महीने पहले देश से अपदस्थ की जा चुकी है । गत 11 वर्षों में भाजपा सरकार ने प्रदेश में ढाई लाख मुकदमें वापस लिए हैं, लेकिन मुलतापी के किसानों के मुकदमें अब तक वापस नहीं लिए गए हैं। अब तक षहीद स्तम्भ के निर्माण हेतु भी बस स्टेण्ड पर भूमि आबंटन नहीं किया गया है।

गोली चालन का सिलसिला अब तक थमा नहीं है। आजादी के बाद से लेकर अब तक 84,000 से अधिक निर्दोष नागरिक पुलिस गोली चालन में मारे गये है लेकिन अब तक किसी भी पार्टी सरकार ने जन आन्दोलनो पर पुलिस गोली चालान पर अब तक कानुनी प्रतिबंध लगाने पर विचार करना भी जरुरी नहीं समझा है ।

मुलताई – बैतुल सहित मध्य प्रदेश के तमाम जिलो में 1997-98 की तरह प्राकृतिक आपदा से गत् वर्षो से लगातार फसले बर्बाद हुई हैं । अब तक किसानो को न तो राजस्व मुआवजे कि राशि नजरिया सर्वे तथा क्रॉप कटिंग सर्वे के आधार पर मुहैया कराई गई है और न ही 1984 से किसानो से वसुली जा रही फसल बीमा की प्रीमियम राशि से कम्पनियो के पास करोडो रुपया जमा हो जाने के बावजुद उन्हे फसल बीमा राशि का भुगतान अब तक नहीं किया गया है। 1997 की तुलना में आज किसानी की लागत जितनी बढी है उसके अनुपात में राजस्व अथवा फसल बीमा की मुआवजा राशि में बढोत्तरी भी नहीं हुई है । कमाल की बात तो यह  है कि जो किसान पिछले दषको में लगातार फसल बीमा का प्रीमियम भरते रहें है । आज भी उन्हे सोसायटी द्वारा प्रीमियम भुगतान की रसीद तक उपलब्ध नहीं कराई जाती है । आज भी पटवारियो की मनमानी एवं घूसखोरी के आधार पर ही मुआवजा दिया जा रहा है । ग्राम सभा में पटवारियो द्वारा किये गए सर्वे को आज भी प्रस्तुत नहीं किया जाता एक तरफ किसानो को उनकी फसल का उचित दाम नहीं दिया जा रहा दुसरी ओर फसल खराव होने पर भी किसानो को उनका जायज भुगतान नहीं किया जा रहा ।

मक्का कि खरीद के समर्थन मुल्य 1300 रु क्विंटल तय होने के बावजुद भी किसानो को पुरे मध्य प्रदेश में 900 रु.क्विं. से अधिक का दाम नहीं मिल रहा है ।किसान संघर्ष समिति ने सोयाबीन का दाम 4500 रु.प्रति क्विं गेहु का दाम 2500 रु प्रति क्वि. तथा मक्का 2000 रु. प्रति क्वि.की दर से  सरकारी खरीद सुनिष्चित करने की मांग कर रही है । हम कई वर्षो से किसानो के साथ किये जा रहे भेदभाव के खिलाफ आवाज बुलंद करते हुए किसान परिवार की आय केन्द्र सरकार के चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी के बराबर अर्थात 10000 रु.प्रति माह प्रति परिवार सुनिष्चित करने की मांग कर रहें है । लेकिन सरकार न्युनतम आय सुनिष्चित करना तो दुर किसानी की लागातार बढती लागत पर अंकुष तक लगाने को तैयार नहीं है। समर्थन मुल्य में महगाई के अनुपात मे वृध्दि करने को तैयार है। अब समर्थन मुल्य पर खरीद की नीति को समाप्त करने का मन सरकार बना चुकी है। किसान बीज, खाद, किटनाषक, बिजली, समर्थन मूल्य पर खरीदए सब कुछ के लिए बाजार पर निर्भर हो गया है।

असल में पार्टीयो का एजेंण्डा किसानी तथा गांव के साथ न्याय करना तो दूर उनका अस्तित्ब ही नष्ट करने का है। देश की अधिकतर पार्टियो की मान्यता है कि किसानी को खत्म कर अधिक से अधिक शहरीकरण कर ही विकास का रास्ता प्रषस्त्र किया जा सकता है। इसी उद्वेष्य को पुरा करने के लिए देश में बेतहाषा भु-अधिग्रहण किया जा रहा है ।कोई भी सरकार अब तक हुऐ 10 करोड किसानो के विस्थापन के पुनर्वास सबंधी कोई भी श्वेतपत्र जनता के सम़क्ष रखने को तैयार नहीं हैं।

भू-अधिग्रहण के संबंध में केंद्र सरकार द्वारा लाया गया अध्यादेश को कार्पोरेट को किसानो की लूट की छुट देने वाला किसान विरोधी अध्यादेश हैद्य जिसमे भू अधिग्रहण कानून के किसानो के पक्ष के सभी प्रावधानों को संशोधित कर कानून को अंग्रेजो से भी बदत्तर बना दिया है.

किसानो ने बड़ी कुर्बानिया दे कर तथा सतत आन्दोलन चलाकर कई वार राज्य सरकारे पलटकर अंग्रेजो के बनाये हुए भू.अधिग्रहण कानून को रद्द कराने में सफलता प्राप्त की थीद्य  नए भू.अधिग्रहण कानून को बनाने के लिए संसदीय समिति के समक्ष कई बार जन आन्दोलनो के राष्ट्रीय समन्वय  किसानो का पक्ष रखा गया थाद्यण् संसदीय समिति के अध्यक्ष इंदौर से भाजपा की सांसद तथा अब वर्तमान लोकसभा अध्यक्ष थी सभी दलों की सहमती के आधार पर संसद में चर्चा के बाद सर्वसम्मति से भू अर्जन में पारदर्शिता एवं सही पुर्नवास कानूनी 2013 पारित किया गया था.

हाल ही में संपन्न हुए संसद सत्र के दौरान सरकार द्वारा भू अधिग्रहण कानून में संशोधनो को लेकर चर्चा न कराया जाना यह बताता है कि केंद्र सरकार संसदीय लोकतंत्र को ठेंगा दिखाकर कार्पोरेट की सेवा के लिए द्रणसंकल्पित हैण् पीपीपी प्रोजेक्ट के लिए 70 तथा निजी कंपनियों के लिए 80 फीसदी प्रभावित किसानो की सहमति की अनिवार्यता के प्रावधान को समाप्त किया जाना सोशलइम्पेक्ट अध्ययन की अनिवार्यता ए न्यूनतम खेती के अधिग्रहण करने के प्रावधानों को समाप्त करने तथा 24(2) में 5 वर्ष की समय सीमा समाप्त करने से विकास परियोजनाओ के नाम पर जमीन की लूट को क़ानूनी मान्यता मिल जाएगीद्य अग्रेजो के 1894 में बनाये गए कानून में बदलाब इसलिए किया गया था ताकि विकास के नाम पर जवरजस्ती किए जा रहे अधिग्रहण से किसानो के साथ हो रहे तीब्र टकराव को समाप्त किया जा सकेद्य वर्तमान अध्यादेश टकराव को बढाएगा देश में अशांति पैदा होगीद्य

मोदी सरकार के गठन के बाद से ही यह आशंका व्यक्त की जा रही थी कि सरकार द्वारा अब तक बने जनमुखी कानूनों में बदलाव किया जाएगाण् पहले श्रम कानून बदलने तथा अब भू.अधिग्रहण अध्यादेश लाने से वह आशंका सही साबित हुई है. तारा (रायगढ़) में 10-11 अगस्त को, आयोजित समाजवादी समागम में 2-3 नवम्बर को पुणे में आयोजित जन आंदोलनों के राष्टीय सम्मेलन में तथा ढिंकिया ओड़िसा में 29-30 नवम्बर को आयोजित जनसंघर्षो के राष्टीय सम्मलेन में भू-अधिग्रहण को लेकर राष्टीय आंदोलनों की रुपरेखा तय की गई थी. अब 12 जनवरी 2015 को तीनो समूहों के प्रतिनिधि मिलकर भू-अधिग्रहण अध्यादेश को रद्द कराने की रुपरेखा तय करेंगे.

मूलतापी किसान आंदोलन से जुड़ने के पहले मैं युवाओं के बीच कार्य करता था। 60 से अधिक मुल्कों में मैने भारतीय युवा समाजवादियों का नेतृत्व किया था। गोलीचालन के बाद अधिकतर समय किसानों के मुद्दों पर काम करने में गुजरा है। आंदोलन के चलते जनता दल से दूरी बन गई थी। अन्ना आंदोलन के चलते समाजवादी पार्टी से दोनों ही स्थितियां मेरी इस वैचारिक समझ का परिणाम थी कि किसी भी बदलाव के लिए बड़े संघर्ष की आवष्यकता होती है। इसलिए सजा हो जाने के बाद भी जब मुझ पर 24 मुकदमें चल रहे हैं। देशभर के विभिन्न जनसंघठनों के साथ मिलकर तथा समाजवदी समागम की प्रक्रीया को आगे बढाते हुए संघर्ष में अपना योगदान कर रहा हूं। संघर्षों से तमाम नतीजे गत 17 वर्षों में निकले हैं। सोयाबीन के गेरूआ रोग, इल्ली प्रकोप को प्राकृतिक आपदा में षामिल कराने, अनावारी तय करने की इकाई तहसील की जगह पटवारी हल्का कराने, बिजली बिल माफी, कर्जा काफी अल्पकालिन ऋणो के लिए चक्रवृध्दि ब्याज समाप्त कराने , किसानों को फसल नष्ट होने पर आधे दामों पर कीटनाषक उपलब्ध कराने जैसे सैकड़ों मुद्दों पर सरकारों से किसान संघर्ष समिति ने फैसले कराए हैं।

लेकिन, प्रदेश और देश में संगठित किसान आंदोलन न होने के कारण किसानों को उनका जायज हक और सम्मान दिलाने के संघर्ष का परिणाम आना वाकी है। षायद पूरा जीवन लगाने के बाद या जेल में काटने के बाद भी वह पूरी न हो, लेकिन अन्याय, अत्याचार के खिलाफ सदियों से संघर्ष की जो परंपरा चल रही है, मैने अपने साथियों के साथ उसे आगे बढ़ाया है मेरे लिए यह संतोष की बात है।

सरकारे इतिहास से सबक सीखने को तैयार नहीं है. किसानो को किसी उद्धारक का इंतजार करने की बजाए खुद संगठित होकर संघर्ष करना होगाद्य कोई भी संगठन किसानो की हालत अकेले संघर्ष कर बदलने की स्थिति में नहीं है. उसके लिए सामूहिक प्रयास करने की जरुरत है हम यही प्रयास जन आन्दोलनों के राष्टीय समन्वयए इंसाफ, लोक विद्या आन्दोलन विश्व मंच के साथ जुड़े जन संगठनो के साथ मिलकर किसान संघर्ष समिति कर रही है.

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