वनाधिकार के लिए संघर्ष तेज करने का ऐलान : हिमालय नीति अभियान
हिमालय नीति अभियान द्वारा 19-20 सितम्बर 2015 को बिलासपुर में भूमि अधिकार व वन अधिकार कानून पर दो दिवसीय राज्य संमेलन आयोजित किया गया, जिस में प्रदेश भर के नौ जिला से 130 सामाजिक कार्यकर्ताओं व वन निवासियों ने भाग लिया। संमेलन में उतराखंड, जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, उड़ीसा से भी प्रतिभागी शामिल हुए। संमेलन को इंसाफ दिल्ली के महा सचिव वीरेंद्र विद्रोही, CSD उड़ीसा के सुधांशु शेखर देव, एनवीरोनिक्स ट्रस्ट के निदेशक आर श्रीधर, हिमालय नीति अभियान के अध्यक्ष कुलभूष्ण उपमन्यु तथा संयोजक गुमान सिंह ने संबोधित किया।
संमेलन में वन अधिकार कानून को लागू करने कि सरकार से मांग की गई और निर्णय लिया गया कि हिमालय नीति अभियान पूरे प्रदेश में वन अधिकार कानून लागू करने के लिए अभियान चलाएगी। प्रदेश व देश भर के सभी सामाजिक व राजनीतिक संगठनों को इस अभियान में शामिल किया जाएगा। राज्य सरकार को भी इस अभियायन में सहयोग करने का निवेदन किया जाएगा। हिमालय नीति अभियान ने बर्ष 2014-15 में 108 वन अधिकार समितियों के एक हजार गावों के सामूहिक वन अधिकार के दावे भरने में ग्राम सभा की मदद की है और इस साल पूरे प्रदेश में ग्राम सभाओं को दावे भरने के लिए सहयोग किया जाएगा। इस के लिए ग्राम सभाओं में प्रदेश-व्यापी जागरूकता अभियान चलाया जाएगा। वन अधिकार समितियों, पंचायत प्रतिनिधियों, स्थानीय संबद्ध विभागों के कर्मचारियों के प्रशिक्षण का कार्य किया जाएगा। सरकार के अधिकारियों को जागरूक व सक्रिय करने के लिए प्रयत्न किया जाएगा। सरकार से इस बारे में बात की जाएगी तथा इस अभियान में सहयोग के लिए निवेदन किया जाएगा। संमेलन में यह भी फ़ैसला लिया गयाकि अगर सरकार सहयोग करने व वन अधिकार कानून लागू करने के लिए तयार नहीं होती तो ऐसे में अभियान आंदोलनात्मक रुख भी अपनाए गा। संमेलन में निम्न प्रस्ताव पारित किए गए।
प्रस्ताव
1. वन अधिकार कानून 2006 को हिमाचल प्रदेश में लागू करने के लिए सरकार लगातार अवरोध खड़े करती रही है। उच्च न्यायालय के आदेशों की आड़ में वन निवासियों के विरुद्ध बेदखली की कार्यवाही की जा रही है। ऐसे में वन निवासियों को वन अधिकार के दावे पेश करने के लिए निरुत्साहित किया जा रहा है। आदिवासी व अन्य परंपरागत वन निवासी किसान प्रदेश भर में आज कल इस के विरुद्ध आंदोलन कर रहे हैं। हिमालय नीति अभियान वन निवासियों के इस आंदोलन का समर्थन करती है। संमेलन सरकार से मांग करता है कि वन निवासियों की वन भूमि से बेदखली तुरंत रोकी जाए, क्योंकि वन अधिकार कानून की धारा 4(5) के तहत वन निवासियों के दाखल को तब तक नहीं हटा सकता, जब तक उन के वन अधिकार के दावों का सत्यापन व मान्यता की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती है। जबकि हिमाचल में वन अधिकार कानून के तहत अभी दावे पेश करने की प्रक्रिया चल रही है। उच्चतम न्यायालय ने भी इस पर आदेश जारी किया है। सरकार को उच्च न्यायालय में नाजायज कब्जा के इस केस में यह पक्ष रखना चाहिए। आदिवासी व अन्य परंपरागत वन निवासियों को वन अधिकार कानून के तहत दावे पेश करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए व पूरी राजनीतिक इच्छा शक्ति के साथ कानून को लागू करने का कार्य पूरा किया जाए।
हिमाचल सरकार को अभियान के रूप में वन अधकर कानून लागू करने के लिए हिमालय नीति अभियान निम्न सुझाव देती हैं।
प्रस्ताव :
- प्रदेश में वन अधिकार कानून के प्रावधानों का व्यापक प्रचार प्रसार सरकारी माध्यमों से किया जाए। इस के लिए अखवारों में विज्ञापन, TV तथा आकाशवाणी केंद्र शिमला से लगातार प्रचार किया जाए।
- प्रचार सामाग्री को हिन्दी मे छापी जाए और पोस्टर, पेंफ्लेट व कानून तथा नियमों की प्रतियाँ बांटी जाएँ। सभी पंचायतों को गावों में इन्हें बांटने व उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर चिपकाया जाए।
- राज्य स्तर के अधिकारियों का सब से पहले orientation होना चाहिए तथा उस के बाद जिला, उपमंडल व स्थानीय स्तर के संबंधित विभागों के अधिकारियों व कर्मचारियों का प्रशिक्षण होना चाहिए।
- जन प्रतिनिधियों को जानकारी मुहैया कारवाई जाए तथा पंचायती राज प्रतिनिधियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं को जागरूक किया जाए।
- पंचायत सचिवों, वन अधिकार समितियों, उपमंडल स्तर की समितियों तथा जिला स्तर की समितियों का विस्तृत प्रशिक्षण करवाया जाए।
- वन अधिकार समिति को वन संसाधनों व उन के पारंपरिक उपयोग को दर्ज करना, वन का नक्शा बनाना , GIS तकनीक से वन संसाधन का सीमांकन, दावों को सही तरीके से भरने और उस का रेकर्ड रखने का पूरा प्रशिक्षण देना होगा।
- जन जातीय क्षेत्रों में पूरी प्रक्रिया को फिर से शुरू करना होगी, हो सकता है कि कुछ वन अधिकार समितियों को भी फिर से गठित करना पड़े। क्योंकि इन का गठन नियम 2008 के तहत हुआ था, जबकि इन्हें नियन 2012 के तहत गठन करने की वाध्यता है, जिस में ग्राम सभा का कोरम 50 % वयस्क सदस्यों का होना जरूरी है। ऐसे में दावों को भी फिर से लिया जाना होगा। 2008 में यह जानकारी लोगों को नहीं दी जा सकी है, इस कारण ग्राम सभाओं का गठन हिमाचल प्रदेश पंचायती राज कानून के तहत किया गया, जो वन अधिकार कानून में मान्य नहीं है।
- उपमंडल व जिला स्तरीय समितियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी वन अधिकार समितियों/ग्राम सभा को दावे फार्म मुफ्त में उपलव्ध करवाएँ। साथ में सामूहिक वन अधिकार के दावों के लिए राजस्व रेकॉर्ड से वाजिव-उल-अर्ज, नक्शा बर्तन तथा वन विभाग के रिकॉर्ड से वन की कम्पार्टमेंट हिस्ट्री शीट, वन बर्तन का रेकॉर्ड, लघु वन उत्पाद की अधिसूचना, लघु खनिज के नियम, आदि सभी दस्तावेज़ मुफ्त में वन अधिकार समितियों/ग्राम सभा को प्रदान करवाए जाएँ।
- शहरी क्षेत्रों में भी वन अधिकार कानून लागू होता है, अगर वहाँ वन निवासी श्रेणी के लोग जिन की वन बर्तनदारी दर्ज है और वे आज भी वन पर आजीविका के लिए निर्भर हैं। ऐसे में शहरी इलाकों में भी वन अधिकार समितीयां बनानी होंगी।
- वन अधिकार समितियों की हर माह बैठकें करवानी जाए, जिस के लिए पंचायत सचिव को जिम्मेबार बनाया जाना चाहिए।
- इस अभियान को चलाने के लिए सामाजिक संगठनों, NGOs, तथा किसान व बागवान संगठनों को बुलाकर, उन्हें भी अभियान में शामिल किया जाना चाहिए।
- सरकार इस के लिए संसाधन जारी करे व केंद्रीय आदिवासी मंत्रालय से भी संसाधन लेने के लिए अवदान करे।
2. भूमि अधिग्रहण में उचित मुआवजा और पारदर्शिता तथा पुनर्वास व पुनर्स्थापना कानून 2013 में कोई भी बदलाव न किया जाए तथा सभी परियोजनाओं में इस पालन होना चाहिए।
3. हिमाचल प्रदेश में किरतपुर-मनाली फोर लेन सड़क परियोजना में हुए भूमि अधिग्रहण व वन भूमि का हस्तांतरण गैर कानूनी तरीके से हुआ है। किसी भी ग्राम सभा की सहमति नहीं ली गई न ही कोई पर्यावरणीय मंजूरी के लिए जन सुनवाई की गई। आज भी इस परियोजना की DPR, तथा EIA, EMP इत्यादि की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई है और न ही पर्यावरणीय मंजूरी की कोई जनकारी लोगों को दी गई है। वन अधिकार कानून के तहत अधिकारों की मान्यता के प्रक्रिया नहीं की गई और न ही ग्राम सभा की मंजूरी ली गई है। ऐसे में परियोजना का कार्य गैरकानूनी तरीके से शुरू कर दिया है। इस परियोजना में मंडी तक छ: जगह टनल भी बन रहे हैं। निजी भूमि अधिग्रहण पर एक गुना मुआवजा दिया जा रहा है, जिस के लिए हिमाचल सरकार ने नियम में संशोधन किया। भूमि की कीमत स्टेम एक्ट व एक परियोजना के लिए एक सामान मुआवजे के सिद्धांत के बजाए सरकार ने अपने आप कीमत निर्धारित करने की नीति अपनाई, जिस से किसानों को भरी नुकसान हो रहा है। पुनर्वास व पुरस्थापना के प्रावधानों को लागू नहीं किया गया तथा न ही भूमि के बदले भूमि दी जा रही है। मकान का मुआवजा भी बर्तमान नए मकान के निर्माण पर आने वाले खर्च के मुताविक नहीं मिल रहा है और मुआवजे से जितना पुराना घर था उतना घर नहीं बन पा रहा है। इस सड़क निर्माण में बड़े पैमाने पर गैर कानूनी खन्ना हो रहा है। जिस का भी विरोध हो रहा है। इस परियोजना से प्रभावित किसान बिलासपुर, मंडी, कुल्लू तथा नागवाई में आंदोलन कर के विरोध कर रहे हैं।
4. संमेलन इस परियोजना के लिए हुए अधिग्रहण और हस्तांतरण में हुई अनियमताओं का विरोध करता है। हमारी मांग है की पर्यावरणीय कानून, भूमि अधिग्रहण कानून 2013 व वन अधिकार कानून 2006 की पालना की जाए और तब तक हो रहे इस गैर कानूनी निर्माण रोका जाए व कानूनी अवहेलना के विरुद्ध कार्यवाही की जानी चाहिए। मुआवजे को चार गुना दिया जाए और प्रभावितों की सहमति से मुआवजा राशि का निर्धार्ण होना चाहिए।
5. संमेलन में निर्णय लिया गया कि किसानों के इस आंदोलन का समर्थन किया जाता है और आंदोलन कर रहे विस्थापित व प्रभावित किसानों को सहयोग किया जाएगा।
गुमान सिंह
संयोजक –हिमालय नीति अभियान