जन विरोधी विकास निति का नतीजा बड़कागांव गोलीकांड
भारत सरकार के आकड़े को माने तो देश के पास अतिरिक्त 5000 मेगावाट बिजली है. तब भी पावर प्लांट क्यूँ ? अब जरूत आ गयी है विनाशकारी पॉवर प्लांटो को बायबाय करने कि और ऊर्जा के अन्य तरीको को खोजने की. समय आ गया है वीनासकारी जन विरोधी -जीवन विरोधी विकास नीति बदलने का. यदि हम अपने विकास नीति नहीं बदलते है तो पिछले दिनों जो बड़कागांव में गोलीकांड हुआ. इस तरह की घटनाएं आम हो जाएगी. क्यूंकि तत्कालीन विकास नीति जीवन विरोधी है. दीपक रंजीत की रिपोर्ट;
बड़कागांव, हजारीबाग में शांतिपूर्ण सत्याग्रह कर रहे सत्याग्रहियों के कार्यक्रम को तोड़ने के नियत से गोली चलाना. जिसमे दो नावालिक समेत 4 लोगो कि मृत्यु हो गयी. हत्यारी निशंसता की इस जघन्य प्रशासनिक कार्यवाही से ये पूरी तरह जाहिर हो गया है कि सरकार विकास की परियोजनाए दमन हत्या और विनाश की परियोजनाए है.
सरकार स्थानीय ग्रामीणों और किसानो कि लाश पर भी परियोजनाओ को बनाने – चलाने पर आमादा है. गैरस्थानीय और दौलतमंद पूंजीपतियों को संसाधनों और सम्पति कि लुट के सारे मौके पर उतारू है. उसे मेहनतकाश किसानों और मजदूरों कि जिंदगी और खुशहाली से ज्यादा प्यारी पूंजीपतियों के साथ यारी और हिस्सेदारी है.
जब कुछ मनमौजी युवा किसी खाश विचारधारा से प्रभावित होकर परिवर्तन के लिए हथियार उठा के जंगलों में चले जाते है तब सरकार कहती है. ये युवा भटक गये है. इन्हें मुख्य धारा में लाना होगा. इसके लिए इन्हें हथियार का रास्ता त्यागना होगा. सीधे बात करना होगा. और आगे जोडती है कि दुनिया में हर समस्या का समाधान बातचीत से निकला जा सकता है. परन्तु बड़कागांव में तो लोग को गोली बन्दुक कि बात भी नहीं कर रहे थे वल्कि गाँधीवादी तरीके से शंतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे उनपर भी गोली चला दिया गया. अब जनता को कौन सा रास्ता चुनना चाहिए? सरकार को ये बताना चाहिए.
सरकार को शांतिपूर्ण प्रतिवाद भी वरदाश्त नहीं. तभी तो इतने लह्लाराते फसलो बहुफसली उपजाऊ खेती को जल – जंगल – खेती आक्सीजन निगलते और धुआ – प्रदुषण – विमारी बेरोजगारी उगालते खानों एवं कारखानों में तब्दील कर रही है.
इतना ही नहीं वह खेतिहरों को खनन और कारखानों का मालिक नै बनने चाहती है. भूमिहीन और पर निर्भर बनाना चाहती है. अगर किसानो को खुशहाली के साथ खान और कारखान खड़ा करना चाहती तो सुप्रीम कोर्ट की व्याप्त न्यायिक और संविधानिक भाषण तथा किसानो की मांगों को मानते हुए वह खेतों और गांवों कि अन्य भूमि का अधिग्रहण नहीं करती.
गोली कांड के बाद ग्रामीण जन न तो कोई जाँच कि मांग कर रहे है और न ही किसी तरह के मुआवजे का माँगा कर रहा है. वे तो सिर्फ ये चाहते है कि जिसके कारण उनके परिवार के सद्शय उनका पडोशी उनके गांव वाले मारे गये है. वह परियोजना न लगे. ताकि आगे इस तरह का कोई और घटना घटे. ये लोग चाहते है एनटीपीसी न लगे. बस यही उनका एक मात्र मांग है.
हजारीबाग के रहने वाले साथी मिथलेश दांगी का कहना है कि ग्रामीणों को अपने जमीं से निकलने वाले खनिज सम्पदा को निकालने बेचने का अवसर सरकार क्यूँ नहीं देती. जब कि सुप्रीम कोर्ट भी यही मानती है कि खनिज सम्पदा पहला अधिकार जमीन रैयतों का होता है.
वे आगे बताते है कि ये विनाशकारी पॉवर प्लांट अब दुनिया को जरुरत नहीं है. पूरी दुनिया इससे तौबा कर रही है तबी भारत जैसा देश इसके लगाने के लिए इतनी आमादा क्यूँ है? इसे हमें समझना चाहिए. ये सिर्फ कुछ मुट्ठी भर लोगो को फायदा पहुचने के लिए है ये परियोजन लगाया जा रहे है.
गोड्डा जिले में अदानी ग्रुप का एक पॉवर प्लांट लग रहा है. जिसका क्षमता 1700-1800 सो मेगावाट बताया जा रहा है. यदि भारत सरकार के आकडे को माने तब आपको साफ साफ समझ में आएगा. आकड़ा बताती है कि देश के पास अतिरिक्त 5000 मेगावाट विजली है. तब भी पावर प्लांट क्यूँ ?
अब जरूत आ गया है विनाशकारी पॉवर प्लांटो को वाय वाय करने के कि और उर्जा के अन्य तरीको को खोजने की. समय आ गया है वीनासकारी जन विरोधी जीवन विरोधी विकास नीति बदलने का. यदि हम अपने विकास नीति नहीं बदलते है तो पिछले दिनों जो बड़कागांव में गोलीकांड हुआ. इस तरह की घटनाएं आम हो जाएगी. क्यूंकि तत्कालीन विकास नीति जीवन विरोधी है.