हम मरब, कउ नहीं बचाई बाबू: जीतलाल वैगा
यह केवल जीतलाल वैगा की कहानी नहीं हैं, बल्कि सिंगरौली से करीब 30 किलोमीटर दूर रिलायंस के पावर प्लांट के बनने के बाद अमजौरी में विस्थापन के बाद बनी बस्ती में सबकी यहीं कहानी है. ये उन लाखों-करोड़ो आदिवासी में शामिल हैं, जिन्हें भारत सरकार विकास के मुख्यधारा में लाने के बहाने विस्थापित कर रही है। विस्थापन सिर्फ जमीन-जंगल से ही नहीं बल्कि उनकी सभ्यता, संस्कृति, रहने के ढंग और जीने के सभी पारंपरिक नियमों से।सरकार इन्हें मुख्यधारा में लाने की बात कहती है लेकिन वे अपने अस्तित्व के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। जीतलाल वैगा के लफ्जों में ही कहें तो- “हम मरब, कउ नहीं बचाई बाबू।” विस्थापन के दंश को उजागर करता अविनाश कुमार चंचल का महत्वपूर्ण आलेख;