संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

अवैध खनन से पीड़ित जाखपंत गांव के लोगों के संघर्ष की कहानी

उत्तराखण्ड के  पिथौरागढ़ से देवेन्द्र पंत की रिपोर्ट;

हमारा गांव (जाखपंत ) पिछले 15 वर्षों से अवैध व बेतरतीव ढंग से हुए खनन की मार झेल रहा है। आज से 15 वर्ष पहले जब मेरे गांव में सड़क बनी तभी से यहां अवैध रूप से खनन का धंन्धा जोर पकड़ने लगा। तब ग्रामीण लोग भी खनन से भविष्य में होने वाले दुष्परिणामों को नहीं समझ पा रहे थे। इस कारण ग्रामीण उदासीन थे, परिणामस्वरूप बाहर से आये माफियाओं ने गांव के मुट्ठी भर स्वार्थी तत्वों के साथ गांव के हरे भरे पहाड़ों व हर जगह जहां खनन सामग्री प्राप्त हो सकती थी जी भर कर लूटा, कई वर्षो तक माफियाओं की मनमानी गांव में चलती रही गांव के लोग इसके प्रति उदासीन थे, गांव में अराजकता का माहौल था, यह गांव को दुर्भाग्य था कि उसी दौरान गांव में हुए पंचायती चुनाव में एक अयोग्य ब्यक्ति के हाथ प्रधान पद की सत्ता चली गयी, जिसमें माफियाओं का हाथ था, गांव में अराजकता माहौल बन गया था, यह स्थिति अराजक तत्वों के लिए मुफीद साबित हुई, और उन्होंने मनमाने ढंग से गांव को भयानक रूप से खोदना शुरू किया।

हम कुछ लोग प्रारम्भ से ही इसका लगातार विरोध करते आ रहे थे,प्रारम्भ में खुले रूप से विरोध करने वालों की संख्या मुश्किल से चार या पांच थी, तथा प्रशासन पूरी तरफ से माफियाओं के पक्ष में रहता था, तथा हमारी बात को महत्व नहीं दिया जा रहा था। लेकिन धीरे-धीरे जब आम लोगों के साथ खनन माफियाओं की ज्यादती सामने आने लगी, तथा बेतरतीब ढंग से हुए खनन के दुष्परिणाम सामने आने लगे तब लोग थोड़ा जागरूक होने लगे, माफियाओं व गांव के ही मुट्ठी भर तत्वों द्वारा भोले भाले गा्रमाीणों को बरगलाने का तमाम प्रयास किया जा रहा था, लेकिन हम लोगों के प्रयास से अराजक तत्व इसमें सफल नहीं हो पा रहे थे।

धीरे’- धीरे गांव खनन के विरोध में आन्दोलित होने लगा, लोग साथ आने शुरू हुए हमारा भी उत्साह बढ़ा, तथा प्रशासन भी दवाव में आने लगा, इसी दौरान प्रशासन में कुछ समय तक एक इमानदार अधिकारी की नियुक्ति दौरान इन खनन माफियाओं पर कार्यवाही की गयी, व कुछ समय के लिए खनन गतिविधियां बन्द रही, इससे हमारे आन्दोलन को बल मिला और लोगों का विश्वास जागा कि हमारी भी बात सुनी जा रही है, इस बीच गांव से सारे खनन करने वाले तत्व भूमिगत रहे, वह इस बात का इन्तजार कर रहे थे कि प्रशासनिक ब्यवस्था उनके अनूकूल हो तथा वह फिर से खनन कार्य कर सकें, ठीक ऐसा ही हुआ प्रशासनिक फेरबदल उनके अनूकूल हुआ और खनन माफियाओं ने फिर से अपना सर उठाना शुरू कर दिया।

इसी बीच उत्तराखंड की बर्तमार सरकार ने भी खनन सम्बन्धी सारे नियम कानून व मानक सरल कर दिये, इसके परिणामस्वरूप खनन माफियाओं ने गांव के अन्दर जहां तहां खनन के पट्टे स्वीकृत कराने शुरू कर दिये हैे। बर्तमान में धड़ल्ले से पट्टे दिये जा रहे हैं, लेकिन गांवसासियों व ग्राम पंचायत को सूचना तक नहीं दी जा रही है कि उनके गांव में खनन पट्टे का आवंटन किया जा रहा है। गांव की पंचायत की अवहेलना की जा रही है व लोगों के मानवाधिकारों का खुल्लमखुल्ला उल्लंधन किया जा रहा है।

अभी गांव में खनन के विरोध में एक बहुत बडा जनआंन्दोलन खड़ा हो चुका है, लोग इससे भविष्य में पड़ने वाले दुष्प्रभावों को समझा चुके हैं। लगातार विरोध और जनआन्दोलन के फलस्वरूप जिला प्रशासन दवाव में आया हैं दिनांक 22 जून 2016 को ग्रामवासियों द्वारा जिलाधिकारी कार्यालय पिथौरागढ़ में एक विशाल प्रदर्शन किया गया जिसमें बड़ी संख्या में ग्रामवासियों ने एक़ होकर अपने गांव में मनमाने व बिना पंचायत की जानकारी के जारी खनन पट्टे निरस्त करने की मांग की। भारी जनविरोध को देखते हुए जिलाधिकारी पिथौरागढ़ ने आश्वासन दिया है कि ग्रामवासियों की भावना के अनुरूप जाखपंत गांव में जारी खनन पट्टों को निरस्त करने की संस्तुति शासन को की जायेगी, तथा शीघ्र ही पचायत को इसकी जानकारी दी जायेगी।

लेकिन फिर भी ग्रामवासियों केा शासन प्रशासन पर भरोसा नहीं है, तथा ग्रामवासियों ने चेतावनी दी है कि यदि ग्रामवासियों के हित में कदम नहीं उठाये गये तो ग्रामवासी फिर खनन के खिलाफ विशाल प्रदर्शन करेंगे, ग्रामवासी खनन के खिलाफ कोर्ट में जाने का भी मन बना रहे हैे। देर से ही सही ग्रामवासियों में खनन के खिलाफ जागरूकता आयी है, तथा ग्रामवासी अपनी अधिकारों व अपने गांव को बचाने को उठ खड़े हुए हैे।

                                           

इसको भी देख सकते है