वनाधिकार: नहीं दे पा रहा है आदिवासियों और परम्परागत वन वासियों को संरक्षण
सरकार हो या पूंजीवादी ताकते, इन्होंने कभी भी दलितों और आदिवासियों को उनका हक नहीं देना चाह है ? परन्तु जनाक्रोश को दबाने के लिये इनके हक को दर्शाने वाले कानून तों बना दिये जाते है लेकिन इनके सही क्रियान्वयन न करने कि निरंतर प्रक्रिया के चलते ऐसे कानूनों का थोड़ा लाभ देकर इन्हें ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है. ठिक इस तरह कि दोगली सोच के साथ लागू हुआ वनाधिकार कानून 2006 की असिलियत अब जगजाहिर होने लगी हैं. आज हम देखते है कि दलितों, परम्परागत वन वासियों और आदिवासियों को इस कानून का सही मायने में लाभ नहीं मिल पा रहा है. उत्तर प्रदेश के चन्दोंली जिले में संघर्षरत मजदूर किसान मोर्चा की रिपोर्ट-
आजादी के 65 वर्ष बाद चन्दौली जिले का नौगढ़ ब्लाक आज भी गुलाम है संविधान में सभी नागरिकों को समान रुप से जीने का अधिकार दिया गया है लेकिन नौगढ़ में आज भी दोयम दर्जे की स्थिति बरकरार है। वनाधिकार कानून को लागू करते हुए सरकार ने कहा था कि जंगल पर निर्भर लोगों के साथ लम्बे समय से नाइंसाफी हो रही हैं जिसकों कम करने के लिए वनाधिकार अधिनियम 2006 को लागू किया गया परन्तु वनाधिकार अधिनियम 2006, लम्बे संघर्ष के बाद 2009 में चन्दौली जिले में लागू किया गया।
सरकार की दोहरी नीति एक तरफ जमीन के लिए दावा फार्म भरने के लिए समिति का गठन करना तथा दूसरी तरफ जमीन से बेदखली का अभियान चलाया जाना। चन्दौली जिला में उन्हीं लोगों को जमीन से बेदखल किया जा रहा हैं जिनके पास वन भूमि के अलावा जीने व रहने के लिए कोई घर नहीं है कोई आधार नहीं हैं जो पूरी तरह वन पर आश्रित है वनविभाग द्वारा लगातार उनके घरों को उजाड़ने की प्रक्रिया चल रही हैं दूसरी तरफ बड़े कस्तकार या भू माफिया हैं जिनके पास 400 से लेकर 500 एकड़ तक की जमीन हैं और वह भी वन भूमि में काबिज है उनके घरों को या फसलों को उजाड़ने के लिए वन विभाग द्वारा कोई अभियान या पहल नहीं किया जा रहा है। वहीं वन विभाग लगातार दलितों व आदिवासियों को उजाड़ने हेतु पुलिस फोर्स का सहारा लेता हैं तथा घर की बहू बेटियों के उपर शारीरिक व मानसिक अत्याचार किया जाता हैं।
चन्दौंली जिले के नौगढ़ विकास खण्ड में 29 जून को जयमोहनी रेन्ज के अधिकारियों, पुलिस व वनकर्मीयों द्वारा ग्राम -भरदुआ, पोस्ट-समसेरपुर के दलितों की बस्तियों को दिन के 12 बजे उजाडा गया। वन विभाग के अधिकारीयों व कर्मचारियों ने (वनवासी) दलितों के घर जे.सी.बी. लगाकर गिरा दिये। जिस समय यह घर गिराने का कार्य चल रहा था उस समय अधिकांश पुरुष मजदूरी करने के लिए बाहर गये हुए थे गॉव में केवल कुछ महिलाएं ही थी। घर गिराने के साथ-साथ ही घरों में रखे हुए अनाजों के बर्तनों को तोड दिया गया जिसके कारण अनाज मिटी में मिल गया, विरोध करने वाले लोगों को गन्दी-गन्दी गालिया दी गयी साथ ही उनको मारा पीटा गया। इनमें 35 लोग घायल हुये है
इस घटना के प्रतिरोध में स्थानिय जन संगठन “मजदूर किसान मोर्चा” ने अन्य संगठनों के साथ मिलकर आंदोलन शुरू किया है इस घटना के विरोध में सरकार के विभिन्न अधिरारियों के पास मांग पत्र भेजा है। साथ ही नौगढ़ का आम जन इस घटना के विरोध में लामबन्द हो रहा है. 14 अगस्त 2012 को नौगढ़ विकास खण्ड के मुख्यालय पर एक दिन का धरना करने का निर्णय लिया गया है।